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Friday, February 10, 2017

Manusmriti ka sach


Manusmriti ka sach

एक आरोप ये भी लगाया जाता है कि जब ब्राह्मणों का वर्चस्व खत्म होने लगा तो उस वक़्त ब्राह्मणों ने मनुस्मृति लिख डाली, जबकि मनु जी द्वारा लिखित यह पुस्तक बहुत ही प्राचीन है। 'महाभारत' में महाराजा मनु की चर्चा बार-बार की गई है (महाभारत अनुशासन पर्व और शांतिपर्व देखें), किंतु मनुस्मृति में महाभारत, कृष्ण या वेदव्यास का नाम तक नहीं है आखिर क्यों ? महाभारत का रचनाकाल 3150 ईसा पूर्व अर्थात आज से लगभग 5,165 वर्ष पूर्व का माना जाता है। '

आधुनिक शोध के अनुसार श्रीराम का जन्म 10 जनवरी 5114 ईसा पूर्व हुआ था अर्थात आज से 7,128 वर्ष पूर्व। महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण (वाल्मीकि रामायण 4-18-30, 31, 32 देखें) में मनुस्मृति के श्लोक व महाराज मनु की प्रतिष्ठा मिलती है आखिर कैसे ?

महाभारत और रामायण में ऐसे कुछ श्लोक हैं, जो मनुस्मृति से ज्यों के त्यों लिए गए हैं। अतः ऐसा सिद्ध होता है कि मनु महाराज श्रीकृष्ण और श्रीराम से पहले हुए थे और उनकी मनुस्मृति उन्हीं के काल में लिखी गई थी।

सन् 1932 में जापान के एक बम विस्फोट द्वारा चीन की ऐतिहासिक दीवार का एक हिस्सा टूट गया था। टूटे हुए इस हिस्से से लोहे का एक ट्रंक मिला जिसमें चीनी भाषा में एक प्राचीन पांडुलिपियां भरी हुई थीं। ये पांडुलिपियां सर आगस्टस रिट्ज जॉर्ज (Sir Augustus Fritz) के हाथ लग गईं और उन्होंने इसे ब्रिटिश म्यूजियम में रखवा दिया था। उन पांडुलिपियों को प्रोफेसर एंथोनी ग्रेम ( Prof. Anthony Graeme) ने चीनी विद्वानों से पढ़वाया तो यह जानकारी मिली...

चीन के राजा ‍शी लेज वांग (Chin-Ize-Wang) ने अपने शासनकाल में यह आज्ञा दी कि सभी प्राचीन पुस्तकों को नष्ट कर दिया जाए। इस आज्ञा का मतलब था कि कि चीनी सभ्यता के सभी प्राचीन प्रमाण नष्ट हो जाएं। तब किसी विद्याप्रेमी ने पुस्तकों को ट्रंक में छिपाया और दीवार बनते समय चुनवा दिया। संयोग से ट्रंक विस्फोट से निकल आया।

चीनी भाषा के उन हस्तलेखों में से एक में लिखा है ‍कि मनु का धर्मशास्त्र भारत में सर्वाधिक मान्य है, जो वैदिक संस्कृत में लिखा है और 10,000 वर्ष से अधिक पुराना है तथा इसमें मनु के श्लोकों की संख्या 630 भी बताई गई है। ...किंतु वर्तमान में मनु स्मृति में 2400 के आसपास श्लोक हैं। इसका मतलब आप समझ लीजिए मनुस्मृति को बदनाम करने के लिए और हिंदुओं में फुट डालने के लिए कितने श्लोक मिलाए गए हैं।

इस दीवार के बनने का समय लगभग 220 से 206 ईसा पूर्व का है अर्थात लिखने वाले ने कम से कम 220 ईसा पूर्व ही मनु के बारे में अपने हस्तलेख में लिखा। 220+10,000= 10,220 ईसा पूर्व मनुस्मृति लिखी गई होगी अर्थात आज से 12,234 वर्ष पूर्व मनुस्मृति उपलब्ध थी।

धर्मशास्त्रीय ग्रंथकारों के अतिरिक्त शंकराचार्य, शबरस्वामी जैसे दार्शनिक भी प्रमाणरूपेण इस ग्रंथ को उद्धृत करते हैं। कुछ विद्वान मानते हैं कि परंपरानुसार यह स्मृति स्वायंभुव मनु द्वारा रचित है, वैवस्वत मनु या प्राचनेस मनु द्वारा नहीं।

स्वायंभुव मनु 9057 ईसा हुए थे। ये भगवान ब्रह्मा की दो पीढ़ी बाद हुए थे, याने 10000 साल प्राचीन पुस्तक है ये... और इसकी सही प्रति लेना हो तो वो कहीं भी ना मिले पर फिर भी गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित पुस्तक ठीकठाक है।

सिंह_पुरुष_श्री_राम --- ( रामायण - भाग 15 )


#सिंह_पुरुष_श्री_राम --- ( रामायण - भाग 15 



राम के सामने अभी विकट  परीक्षा है , एक और  मारीच ने यज्ञ की तरफ  मांस का टुकड़ा फेंक दिया है , और दूसरी और वायु की गति से राम की और खडग लेकर  दौड़ा।

निमिष मात्र में अब शरीर और मस्तिक को एक साथ काम करना था , राम ने कान तक धनुष की प्रतनच्या तान एक साधारण बाण मारा , बाण ने शक्तिशाली पक्षी के समान झपटते हुए उस मांस खड़   को यज्ञ वेदी से बहुत दूर उसे वायु में ही रोक दिया।

 किन्तु मारीच ---- राम ने तूणीर से दूसरा बाण खींचा और लाघवपूर्ण इसे कम  अंतराल में चला दिया।   मानो दोनों बाण साथ साथ ही छोड़े  गए हो , किन्तु मारीच को लगते ही राम समझ गए की यह  बाण मारीच के लिए उपयुक्त नहीं , वह शीतेसु  नामक मानवास्त्र था , साधारण मनुष्य के लिए यह अस्त्र यम का दूत था , किन्तु मारीच जैसे बलवान राक्षस के लिए कदाचित इसकी शक्ति अप्रयाप्त थी।

सितेषु ने मारीच की छाती पर आघात किया ,  राम लक्ष्य से सुई की नोक पर भी नहीं भटका था , वह जानता था , की कौनसा अस्त्र उसे कहाँ छोड़ना है।   लंबी चीख निकलते हुए मारीच झाड़ियो में जा फंसा।

कुछ समय राम ने मारीच की प्रतीक्षा की ,  किन्तु उसके लौटने का अब कोई चिन्ह नहीं था , सुबाहु ने भी अब आक्रमण का कोई  प्रयत्न  नहीं किया ,  वह भोच्चका होकर राम मारीच युद्ध देख रहा था , इससे पूर्व उसने किसी मानव को राक्षसों के विरुद्ध युद्ध करते नहीं देखा था , वह मारे भय के मारीच के लौटने की प्रतीक्षा कर रहा था।  किन्तु मारीच के लौटने का कोई आभास  नहीं था , या तो वह मर चुका था , या  गंभीर घाव खा कहीं पड़ा था ,  सुबाहु अपनी स्तिथि के प्रति सजग हुआ , जहाँ वह आश्रम में अपने शत्रुओ से घिरा हुआ था ,  सामने राम थे , और दूसरी और लक्ष्मण।  लक्ष्मण बच्चा था , किन्तु राम साधारण मानव नहीं थे।  उन्होंने ताड़का और मारीच जैसे राक्षसों को मार गिराया था।

 राम अपने तीसरे बाण के साथ  अब प्रस्तुत थे  , इस बार वे संयोग पर निर्भर नहीं थे ,  चयन का अवसर मिल गया था , उन्होंने इस बार [ पर आग्नयस्त्र  धारण किया , इस अस्त्र का प्रहार सुबाहु नहीं झेल सकता , यह राम जानते थे।

सुबाहु ने अपना खड्ग तान राम की और दौड़े , ह

 इस बार राम को कोई  जल्दी नहीं थी ,  पूर्ण योजना के अनुसार राम ने धनुष ताना और तीर  अग्निअस्त्र छोड़ दिया ,

 यह तीर भी सीधा सुबाहु की छाती पर जाकर लगा , रक्त का उत्स फूटा , सुबाहु का शरीर निमिष-भर काँपा और पृथ्वी  गिर पड़ा , उसकी गर्दन तनिक सी हिली माथे पर पीड़ा की रेखाएं प्रकट हुई , और मुह से रक्त बह  निकला ,  मरते हुए पशु के समान  वह पीड़ा में डकराया  और उसने अपना निष्चेश्ट शरीर भूमि पर टेक दिया।

राम ने मारीच के आने की प्रतीक्षा की , पर मारीच कहीं दिखाई नहीं  दे रहा था ,

इधर राक्षसों की सेना ने लक्ष्मण पर आक्रमण कर दिया , अपने स्वाभाव के अनुसार कदाचित उन्होंने गुप्त प्रहार किया , किन्तु लक्ष्मण अपनी टोली के साथ पूर्णतः सावधान थे , राक्षस  लगभग वैसे ही भयंकर थे , जैसे मारीच और सुबाहु थे , किन्तु आकर में थोड़े छोटे थे , और उनके शरीर पर महंगे आभूषण भी नहीं थे।

 उन्होंने आक्रमण के साथ ही  मारीच और सुबाहु का परिणाम भी देख लिया  था , मुख पर क्रूरता तथा भय दोनों व्याप्त था , भय से मुक्त होने के लिए वह जोर जोर से चिल्ला रहे थे , व्यव्हार में आक्रमक होने का प्रयत्न  कर रहे थे , किसी निश्चित योजना के हिसाब से व्याकुल होकर इधर उधर भाग रहे थे ,

लक्ष्मण चुन चुन कर राक्षसों को मार रहे थे ,  राक्षशो की संख्या लगातार कम हो रही थी ,  आज सभी आर्य एक  होकर राक्षसों का सामना कर   रहे थे , और एकता के बल का परिणाम भी उनके सामने था।

#महाभारत ---- भाग - 2 #गाथा_निर्मोही_की


#महाभारत ---- भाग - 2  #गाथा_निर्मोही_की
                                           
                                    
देवव्रत सत्यवती को लेकर अपने प हस्तिनापुर लौट चुके है ,  अब आगे ----

सांतनु ने एक लंबे असुविधाजनक मौन के बाद कहा , और सायास ही  देवव्रत की और देखा ,  उन्हें लगा की वह सहज देवव्रत की और नहीं देख पाएंगे , किन्तु  मुह मोड़कर भी वो शांत नहीं रह पाएंगे , वस्तुतः देवव्रत से उनका सम्बन्ध नहीं रहा , जो आज  तक था , उन्होंने अपने इस पुत्र को नहीं जाना था , उन्हे तो केवल समय समय पर यही सुचना मिलती थी  की गंगा का एक पुत्र भी है , जो गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त कर एक यौद्धा   बन रहा है।  गंगा की गौद  में एक नन्हा शिशु था , सांतनु को तो उससे प्रेम था ,  वे उसे अपना पुत्र मानकर प्रेम करते थे , दरअसल यह प्रेम था ही नहीं  मोह था।   उस शिशु से मोह था , जिसका नाम देवव्रत था , किन्तु इस  देवव्रत को तो कभी उसके पिता ने समझा ही नहीं।

 सत्यवती को देखने के बाद , उसकी शर्ते सुनने के पश्चात  सांतनु को लगा की उनका कोई पुत्र है ही क्यू , अगर  उसी समय इसे भी मरने दिया होता , तो आज में आराम से विवाह कर सकता था , सांतनु को लगा की देवव्रत उनका परमसुख छीनने ही आया है।

सांतनु ने काम के वेग को तो पहचान लिया , किन्तु देवव्रत को नहीं पहचान पाए , उन्होंने गंगा के जाने के बाद बस अपनी उग्रता को दबा रखा था , किन्तु सत्यवती  की सुंदरता ने उस उग्रता को शांत कर दिया था।  सत्यवती के सौन्दर्य के आगे सांतनु का वास्तविक चरित्र सामने आ गया था।

 और तब  सांतनु को लगा की गांगेय जैसा मेरा कोई पुत्र है ही क्यू ?? अगर उनका कोई पुत्र ना होता तो वह बिना किसी विरोध के सत्यवती से विवाह कर सकते थे ,  विबाह को उनकी आवश्यकता ही नहीं , उनका धर्म भी माना जाता ,  उन्हें लगा गंगा को जाना ही था  , इसीलिए तो वह उन्हें पुत्रो से मुक्त करना चाहती थी , ताकि एक  दूसरे के विवाह में असुविधा ना रहे ,  वे व्यर्थ के मोह में ही फंस गए थे।

 सांतनु को लगा की पुत्र  केवल सुख का  कारण नहीं होता , कभी कभी यह आपके जीवन की सबसे बड़ी बाधा  बन जाता है , उन्हें लगा की देवव्रत ने उन्हें कामाग्नि के झरने के निचे  खड़ा कर दिया है , जहाँ अब उन्हें नित्य जलना ही है।

 मगर आज उनके सामने जो गांगेय बैठा था , वह कितना समर्थ , और कितना बड़ा त्यागी है ,  जैसे कोई  बच्चा जब एड़िया रगड़ रगड़ कर किसी चीज़ की जिद करता है , और समर्थ पिता उसकी जिद पूरी करता है ,  इस बात की चिंता किये बिना की इस वस्तु का मूल्य क्या है , किन्तु आज पुत्र ने ने पिता की  इस जिद को पूरा किया था , ऐसा इतिहास में पहले कभी हुआ ही नहीं था , सृस्टि के नियम के विरुद्ध जाकर  देवव्रत ने अपने जीवन के सारे सुखो को बेचकर अपने पिता की इच्छा पूरी की थी।



 तुमने जो प्रतिज्ञा की है गांगेय    . सांतनु बड़े कठिनाई से बोले , यह सरल नहीं असंभव प्रतिज्ञा है , तुमने भीषण कर्म किया है , मै  तुम्हे क्या दे सकता हूँ पुत्र तुम जैसे पुरुष को कोई क्या दे सकता है ??  मुझे लगता है , तुम्हारा जन्म कुछ लेने के लिए हुआ ही नहीं है ,  तुम आजीवन दोगे  , लोग याचक होंगे , और तुम दाता  होंगे।  जीवन  तुमको कभी कुछ नहीं देगा , हमेशा तुमसे पायेगा ही पायेगा ,  मेने तुम्हे कभी नहीं पहचाना पुत्र , आज मेने तुम्हे देखा है।

 मै  इस अवसर पर तुम्हारा नया नामकरण कर रहा हूँ

तुम इस प्रतिज्ञा के कारण भीष्म कहलाओगे।

देवव्रत ने अपने पिता की और देखा , " मेने केवल अपना पुत्र धर्म निभाया है आर्य।

सांतनु की आँखे डबडबा  गयी , एक ही दृस्टि के भीष्म को देखते रह गए ,  " तुमसे पुत्र पाने की कामना हर पिता करेगा  " सांतनु भारी  गले के कारण   बहुत मुश्किल से अपनी बात कह पा रहे थे ,  तुमसे  कोई पुत्र होता है , तो पिता केवल पुत्र पर गर्व कर सकता है , स्वम् अपने आप पर भी गर्व करने का सहस वह नहीं जुटा  पाता।

 तुम भीष्म हो पुत्र , पूरा संसार तुम्हे भीष्म के नाम  से जानेगा  .

Samvidhan 1

भारत का संविधान ---  ( हिन्दूओ के चारो वर्णो के लिए कितना खतरनाक )

मेने जैसे भारत के संविधान को कुरआन का ही लेटेस्ट वजर्न कहना शुरू कर  दिया है , दरअसल  मेरा मानना तो यह है , की इस्लाम को भारत में विशेषाधिकार देने की जगह , कुछ कम  अधिकार उन्हें अन्यो से  कम देने चाहये थे , जिससे हिन्दुओ  की आजादी के बाद भी उनके ही देश में  इतनी जाने नहीं जाती ।।

विभाजन हो चुका था ,   विभाजन से पहले भारत  के हिन्दू देश के लिए लड़ रहे थे , और मुसलमान  पाकिस्तान के लिए , जिन इक्के दुक्के मुसलमानो ने अगर स्वतंत्रता संग्राम में प्राण भी दिए , तो उसके एवज में भारत  माँ की भुजाएं तोड़ दी , मुसलमानो के कारण भारत माँ का मुकुट उनसे छीन  गया , फिर भी ना जाने क्यू इस देश के कांग्रेसी नेताओ ने उन्हें अधिकार पर अधिकार देते  दिए।

 यह सब फ़ालतू की बकवास है की अंग्रेजो ने भारत के टुकड़े करवा दिए , अबी कश्मीर में कौनसे अंग्रेज है , या बंगाल में है ??  यह तो इस्लाम का परम कर्तव्य है , जिस देश में भी रहना उसे गई खंडित कर देना , चाहे चीन हो यूरोप , हर देश को मुसलमानो ने तोडा ही है , इनकी कुरआन में देशभक्ति हराम है।

भारत की न्यायपालिका बार बार यह आदेश दे कि  चुकी है की धार्मिक, आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता , किन्तु यहाँ न्यायलाय के सम्मन करने वालो की नानी मर जाती है , न्यायलाय कहती है की किसी भी प्रकार से छल  कपट या धन का लालच देकर धर्म परिवर्तन नहीं करवाया जा सकता , किन्तु उड़ीसा में लगातार यह काम जारी था..... इस कहानी की चर्चा आगे ---

धारा  ३७० को लेकर मुहम्मद जवाहर लाल नेहरू ने कहा की यह घिसते घिसते मिट जायेगी , यह धारा  अस्थायी रोप से लागू हुई थी , किन्तु आज इसने इन्ही मुसलमानो के दबाव के कारण  स्थायी रूप ले लिया है।  आखिर मुस्लमान जो भारत के अन्य  राज्यो में रहे है , क्यू कश्मीरियो को नहीं दुत्कारते , उनकी   गद्दारी के लिए , वो यह नहीं कर सकते , क्यू की गजवा- ए - हिन्द की हदीस के अनुसार अभी अगला विभाजन का नम्बर कश्मीर ही है , भारत के अन्य राज्य भी इनके इस गजवे के कारण सुरक्षित नहीं , किन्तु मुस्लमान कभी इस गजवे की चर्चा कर यह नहीं कहते  की युवाओ को ऐसे गजवो से बचना चाहिए , बल्कि मदरसा आदि में तो पढ़ाया ही यह गजवा ही जाता है।

क्या पढ़ते है मदरसा में  जाकर ??? कुरआन !!  ---- जो सिर्फ हिन्दुओ के कत्लेआम का आदेश देती है , आखिर क्या साबित करना चाहती थी सरकारे , मदरसा को इतनी बढ़ोतरी देकर  ???

संविधान और मुसलमानो ने हिन्दुओ और पीड़ित हिन्दुओ को (जो की खुद को दलित कहते है)  उन्हें अपनी पाँव की जूती  बनाकर रख दिया है , मुझे तो सबसे ज़्यादा हैरत तब होती है , जब भीमरत्ते  मुसलमानो का साथ देते है , उन्हें नहीं पता मुलनिवाशियो , यह बांग्लादेश और पाकिस्तान भी कभी तुम लोगो का ही था ।। और अब भी आप सुरक्षित हो तो इन्ही यूरेशिया वाले लोगो की वजह से ।।

 एक मुसलमान चित्रकार ने बेशर्मी की हदे पार  करते हुए , हिन्दू देवी देवताओ की नग्न तस्वीरे बना दी , किन्तु उसने आएसा और मुहम्मद की तस्वीरे क्यू नहीं बनायी ???  यह मुसलमान सिर्फ हिन्दुओ को अपमानित करने , या उनको आहात करने ही भारत की भूमि पर आज तक है।

इस देश को चंद  लोगो ने मुसलमानो के हाथों बेच खाया है , आखिर जब आप्किस्तान बन ही गया था , तो क्यू हिन्दुओ का गला कटवाने पहले तो इन्हें रखा , उसके बाद सारे अधिकार भी इन्हें दे दिए।   यह धोखा आज हिन्दुओ का जीना हराम कर चुका है , हर जगह भारत में कोने कोने पर मुसलमानो के द्वारा हिन्दुओ को प्रताड़ित किया जा रहा है, धूलागढ़ से मालदा , या कश्मीर , अगर कुछ दिन हम ऐसे ही रहे तो भारत की पावन भूमि से संतो की वाणी गायब हो जायेगी , मंदिर टूट कर मस्जिद बन जाएंगे , ना हमारा अस्तित्व बचेगा , ना रामायण बचेगी , ना वेद।   गुरुग्रंथ साहिब क्या तुम रख सकोगे , सरदारो ???

 कहीं यह सेककलर राजनीती या विशेषाधिकार कानून संविधान के नाम पर हिन्दुओ से गद्दारी तो नहीं ???  यहाँ भी क्या सिरिया की तरह बारूद की गंध, गोलियों की तडातड , वाले सिद्धांत राजनीतिज्ञ और संविधान चाहता है ???

भारत के हिन्दुओ को अपने ही देश में साम्प्रदायिक कह अपमानित किया जाता है , किन्तु क्या मुसलमानो के राज आने के बाद यह आजादी इन टीवी एकंकार को भी मिलेगी , जो आज धर्म के नाम की इतनी  लंबी चौड़ी  व्याख्या करते है।

भारत में इस्लाम तो इस कदर हावी हो गया था , कांग्रेस के समय में, की विदेशनीति भी मुसलमानो की भावनाओ को धयन में रखकर बनायी जाने  लगी थी , विदेश नीति का निर्धारण  प्रत्येक देश अपने राष्ट्र के हित  के लिए करता है , इसके उल्ट भारत में मुसलमानो के हित  और भावनाओ को ध्यान में रखकर विदेशनीति बनाई जाने लगी , ईरान के विरुद्ध परामाणु परीक्षण के खिलाफ मुसलमनो ने वोट नहीं देने दिया , उस समय मनमोहन की सरकार  हुआ करती थी ,
सभी जानते है , ईरान कितना गैरजिम्मेदार देश है।

दूसरी एक घटना तो और खतरनाक है ------ भारत की सरकार कुछ ससमय से मुस्लिम देशो के संगठन में शामिल होने के लिए आवेदन करने लग गयी थी , निवेदन की बेशर्मी इस  कदर है , की अगर स्थायी नहीं , तो अस्थायी सदस्यता ही भारत को दिया जाए.  जागो हिन्दू जागो

आज पाकिस्तान और बांग्लादेश में देखे तो सभी मुस्लमान ही है , तो क्या यह हमारी आअधय्त्मिक हार नही हम हिन्दुओ की ???

हम अब भी कब जागेंगे यह ईश्वर जाने

क्रमश: ---

रामायण ----- ( #सिंह_पुरुष_श्री_राम )

रामायण -----  ( #सिंह_पुरुष_श्री_राम )

ताड़का वध के बाद राम की अद्भु वीरता का यश चारो और फेल चुका है ,  विश्वामित्र अब  जनसभा को संबोधित करने आये , की  आज  तक राक्षसों से केवल हमारा संघर्ष चल रहा था , अब युद्ध की घोषणा हो चुकी है , यह युद्ध केवल राम को नहीं , प्रत्येक देशवाशी  को लड़ना है , अब में यह नहीं कह सकता की राक्षसों का आक्रमण रात्रि में होगा या दिन में , किन्तु हमें इसी समय से पूर्ण सावधान रहना होगा।  जिसके पास जो भी शस्त्र  हो उसे वह धारण करें , और जिसके पास सस्त्र नहीं है , वो  शस्त्र का स्वम् निर्माण करें या म्रत्यु के लिए सज्ज रहे , क्यू की राक्षसो को शाश्त्र नहीं , शस्त्र  ही समझ में आते है।

       विश्वामित्र ने एक शिष्य को कहा , की अब नगर नगर जाकर  लोगो को जागरूक करने का काम  तुम्हारा है --- ग्राम वालो को सुचना दो की ताड़का का वध हो चूका है , और बाकी के शाशको के विरुद्ध धर्मयुद्ध करने के लिए यथा शीघ्र पहुंचना है।

इसी बीच  राम बोले - गुरुदेव मुझे रात्रि के आक्रमण की कोई सम्भावना नहीं दिखती ,

सम्भावना सचमुच बहुत कम है राम  , किन्तु सावधानी तो आवयशक है ही , किन्तु आज से पहले आश्रम की यह अवस्था नहीं थी राम , आश्रम के आस-पास  राक्षस नर की बलि लेने , उनकी हड्डिया चबाने को घूमते ही रहते थे , आश्रम के आस-पास मदिरा की दुर्गन्ध आती थी , अब चारो और शांति है पुत्र , ना उनके आखेट के स्वर , और ना ही  उनके नृत्य का , ताड़का के वध के बाद वे भयभीत हो गए है , वे अत्याचारी है , वीर नहीं।

     गुरु अब वापस कुटिया की  पड़े , राम  आश्रम की  रक्षा करने के लिए कुटिया के बाहर ही खड़े रहे।

वहीँ एक १० वर्ष का ब्रह्मचारी ब्राह्मण बड़ी देर से राम  को आँखे भर भर के देख रहा था , राम ने उसे देखकर पुछा - क्या नाम है तुम्हारा बालक।

" सत्यप्रिय "

 राम हंसे - तुम तो सत्यप्रिय हो , युद्ध प्रिय तो नहीं , फिर युद्ध करने क्यू आये हो ?

बालक ने संकुचित होकर उत्तर दिया , आर्य में सत्यप्रिय हूँ , और ब्राह्मण हूँ , इसीलिए युद्ध करना अब मेरा कर्तव्य है , असत्यप्रिय होता , तो राक्षसों के भवनों में जाकर सुख से सो रहा होता।

 उस बालक के हाथ में केवल एक लकड़ी थी , राम ने  फिर पुछा , तो क्या इस लकड़ी से तुम राक्षसों  से कैसे लड़ोगे ??

मै  इसे जलाकर  राक्षसों की ढाढ़ीया झुलसा दूंगा ,

लक्षमण इतने समय चुप बैठे थे , किन्तु इस बार वे स्वम् को रोक नहीं सके , उन्होंने जोर का अट्टहास किया ,--- सत्यप्रिय यह युद्ध बड़ा ही मनोरंजक होने वाला है।  सारे राक्षस अपनी जलती दाढियो से व्याकुल  इधर उधर भागते हुए नज़र आएंगे।

 राम मंद मंद मुस्कुरा रहे थे

 सुबह जब गुरु स्नान करने आये , तो आश्रम का वातवरण ही बदल चुका था , आसपास के लगते सभी ग्रामो के लोग कुछ ना कुछ हथियार लेकर सैनिक रूप धारण कर चुके थे , यह वह लोग थे , जो गुरु के बार बार आह्वाहन करने पर भी घरो से निकलने को राजी नहीं थे , उन्होंने तो राक्षसों के डर  से अपने घरो को छोड़ छोड़ कर पलायन करना शुरू कर दिया था ,  राक्षस नाम सुनते ही जिनके मुह पिले पड़  जाते थे , वही आज राक्षसों से लड़ने को आक्रामक मुद्रा में बैठे थे।

 गुरुअपनी गरिमापूर्ण सहज गति से तेजी से आगे बढे , मध्य में बैठे राम और लक्ष्मण के पास पहुंचे ,

 राम तुमने चमत्कार किया है पुत्र -- यह शोषित और दलित प्रजा आज आर्य बन चुकी है , आज यह लोग कितने समर्थ लग रहे है , मै  आज मान गया हूँ , प्रजा ना तो कायर होती है न आलसी , पर उचित नेतृत्व का निरंतर अभाव उन्हें कायर और निर्बल बना देता है, और जनता अन्यायों के प्रति सहिष्णु हो जाती है ।  उचित नेतृत्व मिलते ही , ठन्डे गीले प्रदार्थ में आग लग जाती है , उसका तेज जाग्रत हो जाता है।

तुम समर्थ हो राम।  तुम समर्थ हो ------

आपकी ही महिमा है गुरुदेव , राम ने मस्तक झुकाते हुए नम्र  वाणी में कहा , अब आपसे एक प्रार्थना है , युद्ध का आह्वाहन  अब हम करे गुरुदेव में लक्ष्मण और सारी  प्रजा युद्ध के लिए सज्ज है गुरुदेव।  तबी एक संदेशवाहक ने कहा ---- गुरुदेव --- राक्षस अपने शिविर से  आश्रम की और निकलते दिखाई पड़  रहे है ,  राम और लक्ष्मण तुरंत चौकन्ने हो गए।

मारीच और सुबाहु ------ किसी ने टोली में से बिच में ही कहा ,

राक्षस बड़ी तेजी के साथ बढ़ते हुए आश्रम की और आ रहे है ,  तभी राक्षसों की टोली की नज़र राम पर पड़ी , उनकी लाल लाल  आँखे , मुछ  कटी  हुई ढाढ़ी , आँखे जैसे क्रोध के मारे निकालकर कटोरो की भांति हो चुकी थी ,

 विकत हुंकार कर मारीच ने मांस खंड उस और उन्चाल  दिया, जिस और विश्वामित्र अन्य ऋषियों के साथ  यज्ञ  कर रहे थे , और मांस का टुकड़ा उन्चालकर स्वम  राम की और खडक तानकर  भागा।

 राम के लिए  यह परीक्षा की घडी थी  , क्यू की उन्होंने  ऐसे मायावी राक्षसों का सामना कभी नहीं किया था , अगर मारीच को रोकते तो यज्ञ अपवित्र हो जाता ,  और मांस के टुकड़े को रोकते , तो मारीच खड्ग  से उनपर वार कर देता।

Samvidhan

संविधान ----- ---------- हिन्दुओ ( सभी चार वर्णो )के लिए कितना लाभदायक --

किसी भी देश को अगर तोडना हो --- तो उसमें टाइम लगता है,,, यह बात तो तय है " हिन्दू शब्द इतना मजबूत है, की इसपर इस्लाम कभी भी कोई प्रभाव नहीं डाल सका ।।
    मगर हम इसका दूसरा तथ्य देखे तो कभी अफगानिस्तान भी हिन्दू राष्ट्र ही था , लगभग पिछले 1000 वर्षों के अंदर ही वह मुस्लिम राष्ट्र बना,,, पाकिस्तान बांग्लादेश  भी इसी तरह इस्लामिक देश बने,  दूसरे शब्दों में भारत का बहुत बड़ा हिस्सा इस्लाम की भेंट चढ़ गया,  अब में जिसकी बात कर रहा हूँ, हो सकता है, की अगले 10 -20 साल में, यह 50 साल में, पूरा देश ही इस्लाम के भेंट चढ़ जाए ।। अगर ऐसा पूर्ण ना भी हो, तो यह तो तय है, की फिर से भारत के बहुत बड़े भूभाग पर कब्ज़ा हो जाए,,,, और फिर से वही खुनी बर्बर इतिहास की कहानी लिख दी जाए,,, आज हम अफगानिस्तान, पाकिस्तान की कहानियां पढ़ते है,,,, सम्भव है, शायद कभी , आसाम, बंगाल, केरल, उत्तरप्रदेश की भी यही कहानी पढ़े ।। की यह कभी हिन्दू राष्ट्र हुआ करते थे।। और यह कोई ज़्यादा विचार करने वाली बात नहीं है ---- यह पूर्ण सत्य है,,, अगर इस्लाम और बढ़ा, फैला, तो देश् का एक और विभाजन तय है, संभवतः पूरा देश् ही मुस्लिम राष्ट्र बन जाए ।

में हमेशा अपने युवाओं को डींग हांकते देखता हूँ, "  I love my country "  मुझे धरमः से पहले देश चाहिए  , तरह तरह की बड़ी बड़ी बकवास ।

क्या होता है देश् ।। कुछ भी तो नहीं, और देश तो छोटा बड़ा होता रहता है, बढ़ता है, कम होता है, तो क्या आपका देश को लेकर प्यार भी घटता बढ़ता रहेगा।।
      जैसा ऊपर लिखा है, और यह बात तो हर एक हिन्दू भी जानता है --- कि अफगानिस्तान से लेकर पाकिस्तान, आधा कश्मीर इसी इस्लाम की वजह से खोया है ।। हिन्दुओ ने कौनसे टुकड़े करवाये देश् के,, यह आप पूरा इतिहास पढ़कर हमें बताइये ।। राजस्थान जैसे प्रदेश जिनका अपना खुद का ही तो शाशन था दिल्ली की कब सुनी राजस्थान के हिन्दुओ ने ??? मुगलकाल के भारत तक???  -- किंतु वहां के हिन्दू क्या मुक्ति संग्राम छेड़ कर रखे???

जिस तरह से इस्लाम में देश भक्ति हराम है,,, तो यह तो निश्चित रूप से होना ही है, की देश अभी और कई बार टूटना बाकी है  उन्हें तो  कुरआन के हिसाब से चलना ही है, कुरआन में लिखा है, मूर्तिपूजकों ( हिन्दुओ )  की हत्या हर मुसलमान का परमकर्तव्य  है ,, उसी कुरआन के उपदेशों को पूरा करने के लिए एक मुसलमान पैदा होता है, और उद्देश्य प्राप्ति की राह में मरना भी चाहता है ।।

आप क्या सोचते है??? इस्लाम बना, और भारत में लोग उसकी अच्छाइयां देखकर मुसलमान बने??? नहीं ।।

सर पे हतोड़े मार, गर्म चिमटे लगा,  माँ का सामने बेटी का बलात्कार, बेटे का कत्ल, घरों को जलाकर, खड़ी फसल बर्बाद कर, गले रेंतकर , छोटे बच्चो का अपहरण कर, ऊन्का खतना कर दिया, आज के  मुसलमान भले ही यह बात ना माने, की उनकी माताओ बहनो को बाल पकड़ कर,  जनानाखानों तक ज़बरदस्ती घसीटकर ही मुसलमान बनाया गया था, और यह केवल भारत में नहीं, विश्व का एक कौना भी ऐसा नहीं, जहाँ इस्लाम शांति के माध्यम से फैला हो,,, हर जगह केवल वही खुनी विभस्त इतिहास ।। जहाँ यह मुसलमान कम होते है, वहां बहुत शांति से रहते है---- जैसे  राजस्थान  9% के करीब वहां मुसलमान है, इसलिए इतना प्रेम है उनमें, की मुझे खुद इस्लाम कभी समझ ही नहीं आया, उल्टा कई बार तो में विश्वाश ही नहीं कर पाया,,,, की क्या ऐसा भी होता है ??

जिस धरमः के नाम पर हिन्दुओ की माता बहनो का शील  भंग हुआ, उनके बच्चो के गले रेंते गये, जिसके कारण हिन्दुओ का एक तिहाई हिस्सा पाकिस्तान और बंगलादेश के रुप में परिवर्तित हो गया, अफगानिस्तान और बाकी अन्य देशों को गिन ही नहीं रहा ।।  जैसे तैसे इनसे हमें मुक्ति मिली ---- तो  हमें खत्म करने के लिए,,,, हिन्दुओ को खत्म करने के लिए,,, कुरआन का नया बर्जन संविधान लॉन्च हुआ ।। हो सकता है यह मेरे द्वारा कानून का उलंघन ही किया जा रहा हो, किन्तु में चुप नहीं रह सकता, में यह बार बार करुंगा।
घर की माँ बहनो की इज्जत, खुद और हिन्दुओ की जान से बढ़कर भी कोई कानून या संविधान है क्या ???

जी हां ---- भारत के संविधान ने भी आपके संपूर्ण विनाश की पूरी तैयारी कर ही रखी है ---------- अल्पसंख्यकों को  विशेषाधिकार देकर ।। यह अल्पसंख्यक है कौन---- यह हमारा संविधान हमें नहीं बताता ---- दूसरी और मुसलमानो के लिए अलग " शरीयत " कानून व्यव्यस्था का कानून बना,, पुरे भारत के हिन्दुओ के भविष्य वही  तय कर दिया, जो 1000 साल पहले था। आज बंगाल हो आसाम में हिन्दुओ की हत्या ---- उसका जिम्मेदार संविधान है और कोई नहीं ।।

यह कैसा देश है??? यहाँ एक आदमी चार विवाह कर सकता है??
जब चाहे अपनी पत्नी को तीन तलाक कह  तलाक दे सकता है??
40 बच्चे पैदा कर गरीबी, भीड़ और भुखमरी फैलाता है??

इसके उलट दूसरी और इंद्रा गांधी ,हिन्दुओ की नसबंदी करवा उन्हें कम से और कम करने का प्रयास करती है ।।। हम हिन्दुओ को अब तक समझ ही नहीं आया,,, की हमारे साथ आखिर हो क्या रहा है ।।

सिरिया  से लेकर सऊदी हो या अन्य कोई भी देश,, सारे कभी या तो यहूदी देश थे या ईसाई, वो कभी इस्लाम के लिए विरुद्ध लड़े भी थे,,, आज जो तुर्की है, जहाँ शत-प्रतिशत लोग मुसलमान है,  यह सब कुछ बोद्ध थे कुछ ईसाई ।। इस्लाम की ऐसी मार पड़ी, की आज बच्चा बच्चा यहाँ का मुसलमान है। और ऐसा मुसलमान जो पूरी दुनिया में ही अपना काला अँधेरा फैलाना जानता है।।

यह तुर्की लोग कभी बोद्ध हुआ करते थे, टेंगड़ी ऊन्का देवता था, जिसका मतलब होता है, धरती का राजा --- नीला आसमान और चंदसितारे उनके प्रतिक चिन्ह थे, जो आज तक तुर्की के झंडे पर है, और तुर्की शब्दकोष में अल्लाह का दूसरा नाम भी टेंगड़ी ही है ।।  उसी  टंगड़ी धरमः का ही चाँद सितारा है, जो मुसलमान गर्व से कहते है, यह हमारा है,, बल्कि सऊदी जानता है हक़ीक़त,,, की यह चाँद सितारा अपना नहीं है,,, इसलिए सऊदी के झंडे पर तलवार है ---- ना की यह चाँद सितारे, खुद चंगेज खान , इसी धरमः को मानने वाला था। टेंगड़ी देवता को।  

चीन इसीलिए तो इस्लाम से इतनी नफरत करता है,,,,,,, क्यू की तुर्किस्तान, कजाकिस्तान, उज्बेक सब कभी यह चीनी साम्रज्य का हिस्सा थे, किन्तु मुसलमानो ने कुरआन की पवित्र रिवाज को निभाते हुए,,,, इस् देश को भी तोड़ दिया था ।। आज भी इनका हर देश में अपना मुक्ति संग्राम जारी है ।।

अब सवाल यह की, जब मेरे जैसा मामूली आदमी यह जानता है, की इस्लाम क्या चीज़ है, कुरआन क्या चीज़ है।। तो क्या यह बात संविधान लिखने वालों, या बाद में संसोधन करने वालो ने नहीं पढ़ी थी??? या वे इतिहास जानते नहीं थे???

सत्यबात यह है, की वास्तव में वो इस्लाम को जानते ही नहीं थे, और जो इस्लाम को जानते थे, वो खुद अंदर से मुस्लमान थे। जैसे जवाहर लाल नेहरू ,यहाँ  तक की खुद महात्मागांधी इस्लाम से प्रभावित था ---------- या मुसलमान ही था ।। क्यू महात्मागांधी ने कहा था, मेने कुरआन पढ़ी है, उसके बाद भी उसने मुसलमानो को सर पर बैठाकर रखा तो साफ़ है ------ महात्मागांधी मुसलमान ही था ।।

सबसे बड़ी बात यह गौर कीजिए ------ खिलाफत आंदोलन जो भारत में हुआ, उसमे महात्मागांधी का क्या काम था??? किंतु इसने इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया, क्यू की वो खुद एक मुसलमान था, और अपना धर्म निभा रहा था।। जैसे की कुरआन में कहा भी गया है, ज़रूरत पड़ने पर घात लगाकर बैठो, धोखा दो।। वही सब यह महात्मागांधी हम हिन्दुओ के साथ कर के चला गया ।।

आप मोबाइल में कुरआन लोड किजिए, 168 से ज़्यादा आयत है, जो आदेश देती है, मूर्तिपूजक (हिन्दुओ ) का या तो कत्ल करो, या धर्म परिवर्तन करवाओ,,, उनकी लड़कियों को काबू में करो, उनके मंदिर तोड़ो, और तोड़े भी ।।। यह सब आदेश कुरआन का है----मुसलमानो की इनमे विशेष गलती नहीं, वो तो केवल अपना धरमः निभा रहे है -----किंतु हम हिदुओ की मत क्यू मारी गई,,, की जब इन कातिलों को अधिकार दिए जा रहे थे, तो हम चुप थे, या आज भी चुप है,  सोचते है सिविल वार हो जायेगा।।। तो हो जाने दो ।।

वैसे भी हमारे तो आगे कुंवा पीछे खायी है ही ----मरने या मारने की ही तो नोबत आ गयी है ..  ।।। इस संविधान का सम्मान करते करते, हम खाक हो जाएंगे, क्यू की राख होना हमारे नसीब में ना होगा ।।

चलिए देखते है---- क्या किया इस कुरआन के नए वर्जन संविधान ने हमारे साथ एक नज़र ---

मुसलमानो को 25, 26 ,29, 30 धारा ---- धाराप्रवाह से हिन्दुओ के कत्लेआम का आदेश् देती है।। मेने यह इसलिए कहा है, की जहाँ मुसलमान बढ़ा, वहां हिन्दू कटा, लुटा, मरा ----- कश्मीर से लेकर मालदा, गोधरा, सब जगह इनकी मौत की झांकिया आज के युवा भी देख चुके है------ना जाने बेशर्म सेक्युलर हिन्दू गद्दार लोग, किस मुह से आज भी  सर्व-धरमः समभाव की बात करते है । तुम्हारे चक्कर में देश का सत्यानाश हो गया,,, सारे बलात्कार, हत्या और लूट के जिम्मेदार तुम ही हो।।। मुसलमानो की इसमें कोई गलती नहीं,,, ऊन्का तो काम ही यही है ।।

हज के लिए सब्सिडी दी जाती है ----- और मानसरोवर यात्रा पर टैक्स (जजिया )लिया जाता है ------ यह है मेरा हिन्दुराष्ट्र ???

अव्यबस्था  के नाम पर केवल हिन्दू मंदिरो का अधिग्रहण किया जाता है। क्या मस्जिदों से कभी कोई अव्यवस्था नहीं होती ??

हिन्दुओ के पर्सनल कोड़ में बार बार परिवर्तन होता है, पर क्या मुसलमानो के पर्सनल कोड में एक बार भी फेरबदल हुआ??? अभी करने की कोशिश की है, तो सारे मुसलमान इसपर एक हो गए है, क्यू की 40 बच्चे पैदा किये बिना, हिन्दुओ का कत्ल कैसे कर पाएंगे?? फिर भी बड़ी बेशर्मी के साथ हिन्दुओ को ही कट्टरवादी कहा जाता है ।।

जिन मुसलमानो ने 1000 साल भारत पर राज किया, फिर वो पिछड़े कैसे रह गए ???? क्या आजादी के बाद कांग्रेस ने ऊन्का सब कुछ लूट लिया था???  उसके लिए सच्चर कमिटी बनायी, की कैसे मुसलमानो का भला हो---- और हिन्दुओ के माल-और बीवी दोनों पर कब्ज़ा हो।। क्यू की इस्लाम फैला और हिन्दू कटा ।।

सऊदी अरब में हिन्दू राजदूत क्यू नही ??

इतना पढ़िए सोचिये---- बताइये ,,, आगे और भी लिखूं इसपर ??

हिन्दुओ की शौर्य गाथा ( प्रथम )

हिन्दुओ की शौर्य गाथा ( प्रथम )

इतिहास में पहली बार , जिसे मौत और हार का डर  ना हो , जीत उसके मुकद्दर में तय होती थी , जिसने ना केवल पूर्वोत्तर  में हिन्दू धर्म की रक्षा की , बल्कि मुगलो  के गरूर को भी कुचल डाला।

वो नाम था ------ the  legend of  lachit  Borphukan

भारत का वो हिस्सा जहाँ सूरज सबसे पहले दस्तक देता है , पूर्वोत्तर , जिसे आज हम आसाम कहते है , इसकी राजधानी हुआ करता था रोमपुर , शिवसागर , यहाँ मुग्लो की पैरवी करते हुए मीर जुमला ने राजा जयधरत सिन्हा को परास्त कर किया , इस दुख  में उनकी अकाल म्रत्यु हो गयी ,जिसके पश्चात् चक्रध्वज  सिन्हा विराजमान हुए , जिन्होंने अपने राज्य के प्रधानमंत्री अतुन बोरा गुहाई  , जो बेहद चतुर और हर काम में निपुण एक कूटनीतिज्ञ  के साथ मिलकर नए दुर्गों का निर्माण किया , अपनी सेना को संगठित बनाने के लिए उन्होने वीर योद्धा  लासित वीरफूकन  को अपनी सेना का सेना पति नियुक्त  किया , जो हर तरह के युद्ध में पारंगत थे , सेनापति नियुक्त  करते समय  राजा ने उन्हें सोने की तलवार भेंट  की।

राजा चक्रध्वज  सिन्हा ने धीरे धीरे पडोसी राज्यो के साथ मित्रता बढ़ानी शुरू की , मुग़लो  के साथ  की गयी संधियों को तोडना शुरू कर दिया , यह देखकर मुगलो के फोजदार फिरोज खान ने चक्रध्वज  सिन्हा पर दबाव बनाना  शुरू किया और कहा की अगर तुमने हमारी संधि तोड़ी तो इसके बहुत ही विनाशकारी परिणाम तुम्हे भुगतने होंगे।

इधर इन बातों की परवाह किये बिना ओटन गुहा प्रधानमंत्री और लासित वीरफूकन के साथ मिलकर पहले छोटी  जगहों पर जीत हासिल की , फिर अगस्त 1667 में गुवाहाटी पर ही फतह हासिल कर ली , और मुगलो की सेना को पीछे हटना पड़ा  तब राजा चक्रध्वज ने कहा था ,

" अब में दो मुट्ठी चावल सुकून से खा  सकूँगा ,

वहीँ दिल्ली में बैठा औरेंगजेब इस बात से बोखला गया , और 19  दिसंबर 1667  को उसने विशाल सेना जिसमे

5000  बंदूकधारी
1000  तोपे
नावो का बहुत बड़ा बेडा
30 ,000  पैदल सैनिक
15000  तीरंदाज
18000  तुर्की  घुड़सवार  थे , जिसकी कमान रामसिंह को देकर औरन्जेब  ने कहा  जाओ और जो हमारे सामने सर उठाये उसका सर कुचल दो ,
फ़रवरी  तक रामसिंह की सेना ने गुवाहाटी पहुँच कर उसपर फिर से कब्ज़ा कर लिया।  तब लाचित  ने कहा था ,

" यह बड़े दुःख की बात है की मेरे प्रधानसेनापति रहते मेरा देश भयंकर समश्या से झूझ रहा है , अपने राजा और प्रजा को कैसे इस संकट से दूर करूँ , मैं  में पूर्वजो की मान सम्मान की रक्षा कैसे करूँ , उसी दौरान रामसिंह ने कूटनीतिक चाल चलते हुए चक्रध्वज को सन्देश पहुँचाया की वीफकन  ने गुवाहाटी खाली करने की एवज में १ लाख रूपये लिए है , मगर यह चाल प्रधानमंत्री ने कामयाब ना होने दी , इसके पीछे की एक ठोस वजह थी , लाचित  का देशप्रेम और और उनका त्याग ,

मुगलो की युद्ध नीति  पर नजर रखने  के लिए  गुवाहाटी के नजदीक दुर्ग बनाने की ज़िम्मेदारी अपने मामा को दी , और कहा की एक ही रात में दुर्ग तैयार ऑन चाहिए , मामा ने कहा आप निश्चिन्त होकर सोइये , दुर्ग तैयार हो जाएगा, आधी रात को लाचित की बेचैनी बढ़ गयी वो रह नहीं पाए और दुर्ग का काम देखने चले गए , जाकर देखा तो मामा और मजदुर सो रहे थे , यह देखकर वीरफूकन  आग बबूला हो गए , और कहा तुम्हारी मातृभूमि , माँ बहनो की इज्जत खतरे में है और तूम सो  रहे हो  ??? एक ही वार में मामा की गर्दन अलग करते हुए कहा की देश से बड़ा मामा नहीं।  फिर खुद खड़े रहकर दुर्ग का काम पूरा करवाया, इसी वजह से मुगलो को जलयुद्ध करना पड़ा , जिसमे वो पारंगत नहीं थे , बल्कि बहुत ही कमजोर थे।

इधर युद्ध से पहले लाचित बहुत ही बीमार थे , राजा ने कहा आप युद्ध पर ना जाए , पर लाचित  गए और शुरू हुआ , हिन्दू और मुसलमानो के बीच  ---सरायघाट  का युद्ध

लाचित के पास सेना कम थी इसलिए आसाम की सेना पीछे हटने लगी तब लाचित ने सेना से कहा ---

' हे आसाम के वीर सेनिको , अगर तुममे कोई युद्ध छोड़कर  जाना चाहता है अवश्य  जाए , किन्तु मेरे राजा ने  मुझे दायित्व  दिया है , इसलिए जब तक मेरे अंदर प्राण बाकी है में लड़ूंगा , अगर मुग़ल मुझे बंदी बनाकर ले जाना चाहे तो बेशक ले जाए , तुम जाकर राजा से कह देना में उनकी आज्ञा का पालन करते हुए आखिरी वक़्त तक लड़ा , तब लाचित की सेना में ऊर्जा का तीव्र संचार हुआ , मुग़ल सेना परास्त हुई , इस युद्ध के एक साल बाद लंबी बीमारी के कारण इस वीर हिन्दू का देहांत हो गया , आज भी इतिहास में इनके जोड़ का कोई यौद्धा नहीं पैदा हुआ।  आसाम में हर साल २४ दिसंबर को लासित  दिवस बनाया जाता है।

रक्षा अकादमी के रक्षा के लिए सर्वश्रेष्ठ  पुरुस्कार का नाम भी वीरफूकन  के नाम से ही दिया जाता है।

इतिहास के इस वीर हिन्दू यौद्धा  को  मेरा शत  शत  नमन

Friday, February 3, 2017

Sanatan sabhyta

अवश्य पढ़े,,,

कभी आपने सोचा है कि इस धरती की सबसे प्राचीन सभ्यता, जिसने असंख्य बर्बर आक्रमणों के बाद भी दस हजार वर्षों से अपना अस्तित्व बरकरार रखा है, वह पिछले डेढ़ सौ वर्षों से क्यों लगातार सिमटती जा रही है?

असल में पिछले डेढ़ सौ बर्षों से, पहले तो अंग्रेजी सत्ता और बाद में उसके भारतीय संस्करण ने हमारे दिमाग को झूठी धर्म निरपेक्षता के नाम पर कुछ इस तरह कुंद कर दिया है, कि हमको अपना धर्म दीखता ही नही है।

पूरी दुनिया में सिर्फ भारत के हिन्दू ही ऐसे हैं जिनके लिए धर्म सबसे अंतिम मुद्दा है।
हमारी सोच को किस तरह से कैद किया गया है इसकी बानगी देखनी हो तो आप कभी अपने बच्चे से पूछ कर देखिये, कि भारत का सबसे महान सम्राट कौन था। वह तपाक से जवाब देगा- सम्राट अकबर, या सम्राट अशोक।
बच्चे को छोड़िये, क्या हमने कभी सोचा है कि सिर्फ अपनी जिद के लिए कलिंग के छः साल से अधिक उम्र के सभी पुरुषों की हत्या करवा देने वाला अशोक सिर्फ हिन्दू धर्म को ठुकरा कर बौद्ध अपना लेने भर से महान कैसे हो गया?

इतिहास के पन्ने खोल कर देखिये, कलिंग युद्ध के बाद वहां अगले पंद्रह साल तक महिलाएं हल चलाती रहीं क्योकि कोई पुरुष बचा ही नहीं था। लेकिन सिर्फ बौद्ध धर्म अपना लेने भर से अशोक हमारे लिए महान हो गया। हमारे लिए भारत की धरती पर पहली बार बड़ा साम्राज्य स्थापित करने वाला चन्द्रगुप्त महान नही था।

अपने एक आक्रमण में लाखों हिंदुओं को काट कर रख देने वाले बर्बर हूणों को अपने बाहुबल से रोकने वाला स्कन्दगुप्त हमारे लिए महान नहीं था। अपनी वीरता से बर्बर अरबों को भारत में घुसने की आदत छुड़ा देने वाले नागभट्ट का हम नाम नहीं जानते। हमें कभी बताया ही नहीं गया कि इस देश में पुष्यमित्र सुंग नाम का भी एक शासक हुआ था जिसने भारत में भारत को स्थापित किया था, वह नही होता तो सनातन धर्म आज से दो हजार साल पहले ही ख़त्म हो गया होता।

हम अकबर को सिर्फ इस लिए महान कह देते हैं कि देश की बहुसंख्यक हिन्दू आबादी पर अत्याचार करने के मामले में वह अपने पूर्वजों से थोड़ा कम बर्बर था। उसे महान कहते समय हम भूल जाते हैं कि स्वयं साढ़े पांच सौ शादियां करने वाले अकबर ने भी अपने पूर्वजों की परम्परा निभाते हुए अपनी बेटियों और पोतियों की शादी नहीं होने दी थी। वह इतना महान और उदार था कि उस युग के सर्वश्रेष्ठ गायक को भी उसके दरबार में स्थापित होने के लिए अपना धर्म बदल कर मुसलमान बनना पड़ा था।

सेकुलरिज्म के नाम पर अकबर को महान बताने वाले हम, उसी अकबर के परपोते दारा शिकोह का नाम तक नहीं जानते जिसने वेदों और उपनिषदों का ज्ञान प्राप्त किया, उनका उर्दू फ़ारसी में अनुवाद कराया, और अपने समय में हिंदुओं पर होने वाले अत्याचारों पर रोक लगाई।

हमारी बुद्धि इस तरह कुंद हो गयी है कि हम अपने नायकों का नाम लेने से भी डरते हैं, कि कहीं कोई हमें साम्प्रदायिक न कह दे।
आप भारत में ईसाईयों द्वारा चलाये जा रहे स्कूलों के नाम देखिये, निन्यानवे फीसदी स्कूलों के नाम उन जोसफ, पॉल, जोन्स, टेरेसा के नाम पर रखे गए हैं, जिन्होंने जीवन भर गरीबों को फुसला फुसला कर ईसाई बनाने का धंधा चलाया था। पर आपको पूरे देश में एक भी स्कूल उस स्वामी श्रद्धानंद के नाम पर नहीं मिलेगा जिन्होंने धर्मपरिवर्तन के विरुद्ध अभियान छेड़ कर हिंदुओं की घर वापसी करानी शुरू की थी। हममें से अधिकांश तो उनका नाम भी नहीं जानते होंगे।

ईसाई उत्कोच के बदले अपना ईमान बेच देने वाले स्वघोषित बुद्धिजीवियों और वोट के दलाल राजनीतिज्ञों के साझे षडयंत्र में फँसे हम लोग समझ भी नहीं पाते हैं कि हमारे ऊपर प्रहार किधर से हो रहा है। हम धर्मनिरपेक्षता का राग अलापते रह गए और हमसे बारी बारी मुल्तान, बलूचिस्तान, सिंध, पंजाब, बंग्लादेश, कश्मीर, आसाम, केरल, नागालैंड, और अब बंगाल भी छीन लिया गया। हम न कुछ समझ पाये, न कुछ कर पाये, बस देखते रह गए।

आप तनिक आँख उठा कर देखिये, वर्मा के आतंकवादी रोहिंग्यावों पर हमले होते हैं तो दूर भारत के मुसलमानों को इतना दर्द होता है कि वे भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई में आग बरसा देते हैं। दुनिया के किसी कोने में किसी ईसाई पर हमला होता है तो अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस और तमाम ईसाई देश गरज उठते हैं। सबसे कम संख्या वाले यहूदियों में भी इतनी आग है कि कोई उनकी तरफ आँख उठाता है तो वे आँखे निकाल लेते हैं। पर हमारे अपने देश में, अपने लोगों को जलाया जाता है, भगाया जाता है, उजाड़ दिया जाता है पर हम साम्प्रदायिक कहलाने के डर से चूँ तक नहीं करते।

बंगाल के दंगे को अगर हम प्रशासनिक चूक भर मानते हैं तो हमसे बड़ा मुर्ख कोई नहीं। बंगाल का आतंक हमारे लिए इस प्रश्न का उत्तर खोजने का सूत्र है कि उत्तर में कश्मीर से, पूर्व में बंगाल-आसाम से और दक्षिण में केरल से चली इस्लामिक तलवार हमारी गर्दन पर कितने दिनों में पहुँचेगी ।

श्रीमान, जो सभ्यता अपने नायकों को भूल जाय उसके पतन में देर नहीं लगती। भारत की षड्यंत्रकारी शिक्षा व्यवस्था के जाल से यदि हम जल्दी नहीं निकले, और झूठी धर्मनिरपेक्षता का चोला हमने उतार कर नहीं फेंका तो शायद पचास साल ही काफी होंगे हमारे लिए।

भाई साहब, उठिए... इस जाल से निकलने का प्रयास कीजिये, स्वयं को बचाने का प्रयास कीजिये। हम उस आखिरी पीढ़ी से हैं जो प्रतिरोध कर सकती है, हमारे बाद की पीढ़ी इस लायक भी नहीं बचेगी कि प्रतिकार कर सके।
आगे आपकी मर्जी......

rajeev dixit ke 4 नियम जो आपकी लाइफ बदल देंगे

beautiful art work

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fanatical Muslims who blew up the Buddha statues in Afghanistan.


महात्मागांधी ( मोहनदास करमचंद गांधी )

हिन्दुओ के अप्रत्यक्ष शत्रु ----- महात्मागांधी ( मोहनदास करमचंद गांधी )
भारत जब आजाद हुआ , तो एक आध गद्दारो को छोड़ , सभी हिन्दू नेता राष्ट्र और धर्म को लेकर गद्दार नहीं थे , अब ऐसे देशभक्तो के बीच फुट डालने का काम , और अपनी गद्दारी को सफल बनाने का काम किया  गांधी ने ,
कई गवाहों का आग्रहपूर्वक कहना था की पाकिस्तान को ५५ करोड़ रुपया देना , गलत है , पर यह नहीं माना , हम हिन्दुओ का धन , उन्हें दिया , जो पाकिस्तान में हमारे हिंदू भाइयो का गला काट रहे थे , उनके परिवार की स्त्रियों का अपमान कर रहे थे, उनकी लज्जा भंग कर रहे थे , हमारी बच्चियों को रखैल बनाने वालों को ५५ करोड़ देने की जिद में गांधी अड़ गया , यही इसके वध का प्रमुख कारण भी था। यह निर्णय मंत्रिमंडल में भी पास हो गया था की एक फूटी कोड़ी पाकिस्तान को नहीं देनी , पर यह नहीं माना , जैसे आज कश्मीर में भी ऐसे ही हम हिन्दुओ का पैसा ही पानी की तरह बहाया जा रहा है , अब दो रूपये किलो फ्री में चावल खा के, हराम के खाने वाले, सेना को पत्थर नहीं मारेंगे , तो और क्या करेंगे ???
हमारे गाँव में , गाँव के पास , कितनी ही बलिदानी फोजी भाइयो की विधवाएं है , उन्हें आकर देखिये सत्ता में बेठे लोगो , तुम्हारे बाप का क्या जाता है , धन तो हम हिन्दुओ का है , सोचिये , हमारे भाइयो को पत्त्थर मारने वाले को सबकुछ सस्ता मिलता है , और दिन रात अपने राष्ट्र के लिए जीने और मरने वाले " राजस्थानियों " का अपमान, उनकी संस्कृति का अपमान ही सरकार और गद्दार फिल्मीजगत के व्यापारी करते रहे है , पुरे भारत में किसी को दुःख नहीं था ,

राष्ट्र भक्ति हमारी बेजोड़ है
पुरे भारत में वामपंथ फैला, पर राजस्थान में आज भी ऐसी किसी पार्टी ने पैर जमाने की कोशिश नहीं की
हमने कभी दिल्ली को दूसरा नहीं समझा ,  हमारे राज्य में आकर , पशु-पक्षियों की निर्मम हत्या करने वालो को स्टार , और ह्यूमन बिंग कहा जाने लगा , पतंगे साथ उड़ती रही , अब हत्यारा तो हत्यारा ही है , जब खुद दिल्ली ने उस हत्यारे की औकात देखी , तो उनसे दूर हुई , पर हमारे राजस्थान के लोगो की भावना का एक बार भी ख्याल दिल्ली ने नहीं किया।
  राजस्थानी , आज भी किसी दंगे में नहीं फंसते ,
हाँ तो बात गांधी की --- यह बैठ गया अनसन पर , की हिन्दुओ के हत्यारो को तो इसका इनाम ५५ करोड़ मिलने ही चहिये। और इस अनशन का तो प्रभाव पड़ना ही था , क्यू की मुर्ख सेक्युलर हमारे पूर्वज इस गलीच के साथ हो गए
प्यारेलाल जी नाम के एक लेखक ने उन्हें पुछा , " गुजरात में स्टेसनो पर हिन्दुओ पर हुए हमलो , हिन्दुओ के हुए नरसंघारो के बाद भी क्या पाकिस्तान को रूपये देना उचित है ???? गांधी ने कहां जो भी हो --- मुझे सत्य मार्ग के कोई विचलित नहीं कर सकता ---
सत्य क्या होता है मित्रो ??/ क्या वाणी की सत्यता ही सत्य है ? ?
अगर सिर्फ वाणी की सत्यता ही " सत्य " होती , तो योगेश्वर श्री कृष्ण कभी वाणी से भी असत्य नहीं बोलते। . सत्य नाम है " सतनाम " ईश्वर का। ईश्वर को प्रेम और शांति ही पसंद है , हाँ शांति के लिए ही तो वो अपने पास हथियार रखते है , इतने बड़े बड़े युद्ध खुद धरती पर आकर करते है , , जबकि गांधी ने सत्य के नियम ही बदल दिए , मानसिक तोर पर जन्मजात अशांत लोगो को ५५ करोड़ देकर , हिन्दुओ का दुःखद भविष्य तय कर दिया।
पाकिस्तान को यह राशि प्रदान करने के बाद गाडगिल ( उस समय केंद्रीय मंत्री ) महाराष्ट्र गए थे , जहाँ लोगो ने गांधी की इस नीति को दुत्कार दिया था , महाराष्ट्र के लोगो में गांधी को लेकर केवल घृणा थी , उसके बाद गाडगिल ने गांधी वध के बाद कहा " ५५ करोड़ दोगे , यह यही गोलियों की ही प्रतिध्वनि आएगी "
जिस समय पाकिस्तान के मुसलमान पुरे भारत पर ही कब्ज़ा करने के लिए अपनी सैनिक शक्ति को दूरस्थ कर रहे थे , हमारा देश भी खुद बहुत ही कठिन अवस्था में था , पाकिस्तान पुरे भारत में जिहाद करने के लिए सैन्य तोर पर तैयारी कर रहा था , उसी समय ५५ करोड़ अपने सत्रुओ को देना।
हिन्दुओ आज तक हम अपने ही हत्या की साजिश रचने वाले को हम " बापू " जैसे पवित्र शब्द से पूजते आये है , बंद करो यह पूजन। .बुड्डा कहता था , की अगर पाकिस्तान को ५५ करोड़ नहीं दिए , तो हमारा नैतिक पतन हो जाएगा , और ५५ करोड़ दिए , उसका परिणाम ही कश्मीर और अन्य राज्य है। यह तो नाथूराम गोडसे की गोली से मर गया , अगर ५५ करोड़ नहीं दते , तो यह बुडढा आत्मग्लानि में रो रो कर मर जाता , यह तो इसके हत्या की मूल वजह। .
अब इसके जीवन चरित्र पर एक नजर ----
यह ठरकी बुड्ढा कहता था की वो अब ब्रह्मचर्य का पालन कर रहा है , और इसके ब्रमचर्य के विषय में इसने कहां
" मेरे बह्मचर्य का अर्थ इस प्रकार है , ऐसा व्यक्ति जो लगातार भगवान् के ध्यान में रहकर इस योग्य हो गया है , की वह नारियो को निवस्त्र कर, खुद नारियो निवस्त्र होकर नारियो के साथ सो सके , चाहे वह नारी कितनी भी सुन्दर क्यू ना हो , इसके बावजूद किसी तरह की कोई उत्तेजना ना हो ,
अब इसका बह्मचर्य का भांडा फोड़ा निर्मल कुमार बोस ने , उसने साफ़ कहा , की ब्रह्मचर्य के नाम पर गांधी अपना मुँह ही काला कर रहा है , वह इसका निजी सचिव था , और अंतरात्मा की आवाज के बाद इसने गांधी की नोकरी भी छोड़ दी। किन्तु बुड्ढे को तो इस रंगीन बह्मचर्य की आदत पड़ गयी थी , अपने नाराज अनुयाइयो को फटकार कर इसने कहा
" चाहे सारा संसार ही मुझे त्याग कर दे , में इस " काम" का त्याग नहीं करूँगा , जो सकता है यह बह्मचर्य का प्रयोग एक भरम-जाल ही हो , किन्तु अगर ऐसा भी है , तो यह साधना में स्वम करूँगा , यह एक सच्चाई है , इसका त्याग में नहीं कर सकता , चाहे आप मेरे साथ रहे या न रहे ---
गांधी की गाथा जारी है ------

पुरुष_सिंह_श्री_राम ( रामायण

पुरुष_सिंह_श्री_राम ( रामायण
ताड़का वध के बाद लक्ष्मण राम को देखकर सिर्फ मुस्कुरा रहे थे , तापस मण्डली का उत्साह समाप्त हुआ , कुछ बाद के आक्रमण से डरे हुए थे , और कुछ राष्ट्रवादी आर्य और युद्ध की आशा कर रहे थे , कुछ लोग तो समझ नहीं पा रहे थे , की ताड़का के वध के बाद खुश हो , या दुखी हो , यह ताड़का वध पाकिस्तान में हुए सर्जिकल स्ट्राइक जैसा ही था , ताड़का और उसके साथियो को देख सबसे ज़्यादा निडर राम थे , ताड़का को देखकर भी राम के चेहरे पर कोई उत्तेजना नहीं थी , चिंता की कोई हल्की रेखा भी नहीं थी। विश्वामित्र ने कहा -- हे राम -- तुम्हारे जितना निडर तो में भी नहीं हूँ।
शाम को सूरज ढलते ढलते ताड़का के वध के बाद सारी टोली आश्रम पहुँच गयी ,
विश्वामित्र --- अब तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पा रहा की रात्रि के समय अब राक्षस आक्रमण करेंगे या नहीं , अगर ताड़का के वध के बाद वे क्षुब्द हुए तो रात्रि में ही आक्रमण के लिए चल पड़ेंगे , और वैसे भी रात्रि में युद्ध भी उनकी प्रवर्ति के अनुसार अनुकूल पड़ता है , पर शायद यह भी हो , की ताड़का के वध के बाद वह इतने भयभीत हो , की आक्रमण करने की सोचे भी नहीं।
राम अपनी सहज मंद मुस्कान से साथ मुस्कुराये - गुरुदेव आप निश्चिन्त रहिये , राक्षस चाहे रात्रि के आक्रमण करें या प्रातः , आपकी कृपा से आपका राम किसी भी समय, किसी भी जगह, उनसे युद्ध करने में समर्थ और तत्पर है। प्रश्न यह नहीं है गुरुदेव की राक्षस कब आक्रमण करेंगे , यह तो उनका निर्णय होगा, की वो दिन में मरना चाहते है, या रात्रि में ही मेरे हाथो मरना चाहते है।
विश्वामित्र राम को सुनते ही रह गए , जैसे राम विश्वामित्र के गुरु हो - अत्यंत आश्वस्त भाव से वे राम को निहारते रहे , राक्षसों को लेकर ऐसी बात कहने वाला पृथ्वी पर पहला पुरुष ही विश्वामित्र को राम ही मिले। अब तक तो उन्होंने राक्षसों के नाम पर आँखे लिली कर के लोगो को भागते ही देखा था
स्नेह से भरी वाणी में विश्वामित्र राम से बोले " तुम्हारी शक्ति, वीरता , न्यायबुद्धि , तथा निर्णय लेने की क्षमता , यह सब राक्षसों के काल है , पर पुत्र मुझे और भी अधिक सोचना है ,
मुझे आश्रमवाशियो को युद्ध के लिए तयार करना है।
राम मुस्कुराये , गुरुदेव उसकी कोई आवश्यकता नहीं है , आपका दूसरा शिष्य अकेला लक्षमण ही उन राक्षसों के लिए पर्याप्त है , क्यू लक्ष्मण ???
लक्ष्मण का मुख उल्लास से खिल गया , राम ने तो उनके मन की बात कह दी , वो बोले , पर्याप्त तो भैया राम ही बहुत है , पर हम दोनों मिल के तो पुरे
ब्रह्मांड के राक्षसों का नाश कर सकते है ,
विश्वामित्र शून्य में घूर रहे थे , जैसे साक्षात् भविष्य को अपनी आँखों से देख रहे हो। बोले तुम दोनों भाइयो के कथन में ज़रा में मुझे संदेह नहीं है , किन्तु यह युद्ध न्याय का है , मात्र तुम्हारे और लक्ष्मण के लड़ लेने से ही लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होगी , इस क्षेत्र में समस्त प्रजाजन राक्षसों तथा उनके सहयोगियों के अत्याचारो को सहते सहते निष्क्रिय , कायर और सहिस्णु हो गए है , न्याय के प्रति अपनी निष्ठा और तेज आत्मविश्वाश भी आज के आर्य खो चुके राम। अगर उनके सहयोग के बिना ही तुम राक्षसों का नाश कर दोगे ---- तो उनका तेज कैसे लौटेगा राम ??/
जब भी फिर कोई नया राक्षस जन्म लेगा , लोग उससे कैसे लड़ेंगे ?? अगर तुमने ही उनका नाश कर दिया , तो हर कार्य में बार बार वो तुम्हारी ही प्रतीक्षा करेंगे। उनका आत्मविश्वाश कभी नहीं लौट पायेगा।
राम तुम राक्षसों का नाश करने के साथ साथ लोगो के आत्मविश्वाश को भी जगाओगे। न्याय में जो आस्था खो चुकी है , उसे आप वापस लोटाये।
तुम अपना राम राज्य स्थापित करोगे राम ---- तुम किसी अवतार की तरह व्यव्हार मत करो --- तेजस्वी प्रजा अपने आप में ईश्वर होती है , अत प्रजा की दीक्षा भी अत्यंत महत्वपूर्ण है , अवतार की आशा ही तो आर्यो को निर्बल बना चुकी है , तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे पुत्र -- की लोगो को तुम पर अति-विश्वाश हो जाए , और सारा भार तुम पर ही छोड़ के खुद निश्चिन्त हो जाए।
राम स्वीकृति में मुस्कुराये --- जैसी आपकी आज्ञा गुरुदेव। .
कमशः

Thursday, February 2, 2017

इरफ़ान हबीब जैसे इतिहासकार

इरफ़ान हबीब जैसे इतिहासकार 
सिर्फ़ एक व्यक्ति भर नहीं,बल्कि एक मानसिकता हैं,जिनका एकमात्र उद्देश्य भारतीय इतिहास को विकृत कर राष्ट्रीय सोच की जड़ें कमज़ोर करना है,ये नहीं चाहते कि भारत एक बार फिर अपने गौरव को प्राप्त करे,भारतीय मनीषा एक बार फिर अपने मूल सांस्कृतिक उत्स तक पहुँचे,अस्तित्वविहीन,पहचानविहीन,आत्मविस्मृत,
स्वाभिमानशून्य राष्ट्र दुनिया से आँखों से आँखें मिलाना तो दूर,अपनी रीढ़ पर खड़ा भी नहीं रह सकता|इसलिए तमाम वामपंथी इतिहासकारों ने एक राष्ट्र के रूप में भारत की पारंपरिक पहचान को मिटाने की निरंतर कुचेष्टा की,परंतु लगभग हर सदी में कोई-न-कोई मनीषी ऐसा आता है जो भारत को उसके मूल से परिचित करा जाता है|किसी भी प्राचीन एवं जीवित राष्ट्र का अपना इतिहास होता है,सुख-दुःख,जय-पराजय,गौरव या शर्म के साझे अनुभव होते हैं,उल्लास एवं पीड़ा की सामूहिक अनुभूतियाँ होती हैं,वे कौन हैं जिन्हें पद्मिनी के चरित्र-हनन से प्रसन्नता होती है,प्रताप की हार से जिन्हें सुखद अनुभूतियाँ होती हैं,वे कौन हैं जिन्हें ग़जनी,गोरी,ख़िलजी,तैमूर,नादिरशाह पर फक्र है,अब इसकी पहचान ज़रूरी है और इन सबकी जड़ों में जो विचारधारा काम कर रही है-उसका नाम है-वामपंथ,उसे जानना,उसे जड़ से समाप्त करना बहुत ज़रूरी हो गया है|
                        वामपंथ जिहादी मानसिकता और विचारधारा से भी अधिक घातक है|ये कुतर्क और अनर्गल प्रलाप के स्वयंभू ठेकेदार हैं!रक्तरंजित क्रांति के नाम पर इसने जितना खून बहाया है,मानवता का जितना गला घोंटा है,उतना शायद ही किसी अन्य विचारधारा ने किया हो|जिन-जिन देशों में वामपंथी शासन है,वहाँ गरीबों-मज़लूमों,सत्यान्वेषियों-विरोधियों आदि की आवाज़ को किस क़दर दबाया-कुचला गया है,उसके स्मरण मात्र से ही सिहरन पैदा होती है|यह भी शोध का विषय है कि रूस और चीन पोषित इस विचारधारा ने अपनी विस्तारवादी नीति के तहत इसके प्रचार-प्रसार के लिए कितने घिनौने हथकंडे अपनाए?वामपंथी शासन वाले देशों में न्यूनतम लोकतांत्रिक अधिकार भी जनसामान्य को नहीं दिए गए,परंतु दूसरे देशों में इनके पिछलग्गू लोकतांत्रिक मूल्यों की दुहाई देकर जनता को भ्रमित करने की कुचेष्टा करते रहते हैं|
             भारत में तो वामपंथियों का इतिहास इसके उद्भव-काल से ही देश और संस्कृति विरोधी रहा है,क्योंकि भारत की सनातन समन्वयवादी जीवन-दृष्टि और दर्शन इनके फलने-फूलने के लिए अनुकूल नहीं है|भारतीय संस्कृति और जीवन-दर्शन में परस्पर विरोधी विचारों में समन्वय और संतुलन साधने की अद्भुत शक्ति रही है|इसलिए इन्हें लगा कि भारतीय संस्कृति और जीवन-दर्शन के प्रभावी चलन के बीच इनकी दाल नहीं गलने वाली,इसलिए इन्होंने बड़ी योजनापूर्वक भारतीय संस्कृति और सनातन जीवन-मूल्यों पर हमले शुरू किए|जब तक राष्ट्रीय राजनीति में, नेतृत्व गाँधी-सुभाष जैसे राष्ट्रवादियों के हाथ रहा,इनकी एक न चली,न ही जनसामान्य ने इन्हें समर्थन दिया|गाँधी धर्म से प्रेरणा ग्रहण करते रहे और ये कहने को तो धर्म को अफीम की गोली मानते रहे,पर छद्म धर्मनिरपेक्षता के नाम पर अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण में कभी पीछे नहीं रहे,यहाँ तक कि राष्ट्र की इनकी अवधारणा और जिन्ना व मुस्लिम लीग की अवधारणा में कोई ख़ास फ़र्क नहीं रहा,ये भी द्विराष्ट्रवाद का समर्थन करते रहे और कालांतर में तो इन्होंने बहुराष्ट्रवाद का समर्थन करते हुए इस सोच को बल दिया कि भारत अनेक संस्कृति और राष्ट्रों का अस्वाभाविक गठजोड़ भर है|इनकी राष्ट्र-विरोधी सोच के कारण ही नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जैसे प्रखर देशभक्त राष्ट्रनेताओं ने इन्हें कभी भाव नहीं दिया , इनकी कुत्सित मानसिकता का सबसे बड़ा उदाहरण तो उनका वह घृणित वक्तव्य है जिसमें इन्होंने नेताजी को 'तोजो का कुत्ता' कहकर संबोधित किया था |जब यह मुल्क आज़ाद हुआ,तब देश में इनका प्रभाव नाम-मात्र को भी नहीं था|जबरन इन्होंने शहीदे आज़म भगत सिंह को अपना आइकन बनाने का अभियान छेड़ रखा है|सच तो यह है कि इन्हें भारत में अपना पाँव जमाने का मौका नेहरू के शासन-काल में मिला|नेहरू का वामपंथी झुकाव किसी से छुपा नहीं है|वे दुर्घटनावश स्वयं को हिंदू यानी भारतीय मानते थे|नेहरू की जड़ें भारत से कम और विदेशों से अधिक जुड़ी रहीं,उनकी परवरिश और शिक्षा-दीक्षा भी पश्चिमी परिवेश में अधिक हुई|भारत की जड़ों और संस्कारों से कटा-छँटा व्यक्ति,जो कि दुर्भाग्य से ताकतवर भी था,इन्हें अपने विचारों के वाहक के रूप में सर्वाधिक उपयुक्त लगा!और उनकी इन्हीं कमज़ोरी का फ़ायदा उठाकर इन्होंने सभी अकादमिक-साहित्यिक-सांस्कृतिक या अन्य प्रमुख संस्थाओं के शीर्ष पदों पर अपने लोगों को बिठाना शुरू कर दिया जो उनकी बेटी 'इंदिरा' के कार्यकाल तक बदस्तूर ज़ारी रहा|यह अकारण नहीं है कि ज़्यादातर वामपंथी नेहरू और इंदिरा की तारीफ़ में क़सीदे पढ़ते नज़र आते हैं|और तो और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने तो इंदिरा द्वारा देश पर आपातकाल थोपे जाने का समर्थन तक किया था,वे तत्कालीन सरकार के साझीदार थे|यह भी शोध का विषय है कि दो प्रखर राष्ट्रवादी नेताओं सुभाषचन्द्र बोस और लाल बहादुर शास्त्री की मौत इनकी विचारधारा को पोषण देने वाले शासन व राष्ट्र रूस में ही क्यों हुआ?
     भारत के विकास की गाथा जब भी लिखी जाएगी उसमें सबसे बड़े अवरोधक के रूप में वामपंथी आंदोलनकारियों का नाम सुस्पष्ट अक्षरों में लिखा जाएगा|बंगाल को इन्होंने एक विकसित राज्य से बीमारू राज्य में तब्दील कर दिया,केरल को अपने राजनीतिक विरोधियों की हत्या का अखाड़ा बनाकर रख दिया,त्रिपुरा को धर्मांतरण की प्रयोगशाला बनाने में इन्होंने कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी|आप सर्वेक्षण और शोध करके देख लीजिए इन्होंने कभी पर्यावरण तो कभी मानवाधिकार के नाम पर विकास के कार्यक्रम में केवल अड़ंगे  लगाए हैं और आम करदाताओं के पैसे से चलने वाली समयबद्ध योजनाओं को अधर में लटकाया है या उसकी प्रस्तावित लागत में वृद्धि करवाई है|इनके मजदूर संगठनों ने तमाम फैक्ट्रियों पर ताले जड़वा दिए, रातों-रात लोगों को पलायन करने पर मजबूर कर दिया|भोले-भाले मासूम आदिवासियों, वनवासियों और वंचितों को बरगलाकर इन्होंने उनके हाथों में बंदूकें थमा उगाही और फ़िरौती की दुकानें खोल लीं|अपने प्रभाव-क्षेत्र के इलाकों को स्कूल,शिक्षा,चिकित्सा,सेवा के विभिन्न  योजनाओं और प्रकल्पों के लाभ से वंचित कर दिया!और ये अपना शिकार किसे बनाते हैं,साधारण पुलिसवाले को,सेना में नौकरी कर अपनी आजीविका चला रहे कर्तव्यपरायण जवानों को,शिक्षकों को|
       शिक्षा और पाठ्यक्रम में इन्होंने ऐसे-ऐसे वैचारिक प्रयोग किए कि आज वह कचरे के ढेर में तब्दील हो गया है|आधुनिक शिक्षित व्यक्ति अपनी ही परंपराओं,जीवन-मूल्यों,आदर्शों और मान-बिंदुओं से बुरी तरह कटा है,उदासीन है,कुंठित है|वह अपने ही देश और मान्य मान्यताओं के प्रति विद्रोही हो चुका है|इन्होंने उन्हें ऐसे विदेशी रंग में रंग दिया है कि वे आक्रमणकारियों के प्रति गौरव-बोध और अपने प्रति हीनता-ग्रन्थि से भर उठे हैं|भारत माता की जय बोलने पर इन्हें आपत्ति है,वंदे मातरम् बोलने से इनकी धर्मनिरपेक्षता ख़तरे में पड़ जाती है,गेरुआ तो इन्हें ढोंगी-बलात्कारी ही नज़र आता है,शिष्टाचार और विनम्रता इनके लिए ओढ़ा हुआ व्यवहार है,छत्रपति शिवाजी,महाराणा प्रताप,गुरु गोविंद सिंह,वीर सावरकर जैसे महापुरुष इनके लिए अस्पृश्य हैं,राम-कृष्ण मिथक हैं,पूजा-प्रार्थना बाह्याडंबर हैं,देशभक्ति उन्माद है,सांस्कृतिक अखण्डता कपोल-कल्पना है,वेद गड़ेरियों द्वारा गाया जाने वाला गीत है,पुराण गल्प हैं,उपनिषद जटिल दर्शन भर हैं,परंपराएँ रूढ़ियाँ हैं,परिवार शोषण का अड्डा है,सभी धनी अपराधी हैं,भारतीय शौर्य गाथाएँ चारणों और भाटों की गायीं विरुदावलियाँ हैं,यहाँ सदियों से रचा-बसा बहुसंख्यक समाज असली आक्रांता है,देश भिन्न-भिन्न अस्मिताओं का गठजोड़ है,गरीबी भी इनके यहाँ जातियों के साँचे में ढली है,हिंदू दर्शन,कला,स्थापत्य इनके लिए कोई मायने नहीं रखते,उन्हें ये पिछड़ेपन का प्रतीक मानते हैं,पर इस्लाम को अमन और भाईचारे का पैगाम,हिंदू स्त्रियाँ इन्हें भयानक शोषण की शिकार नज़र आती हैं,पर मुस्लिम स्त्रियाँ जन्नत की परी, इनके लिए प्रगतिशीलता मतलब अपने शास्त्रों-पुरखों को गरियाना है....वगैरह-वग़ैरह!यानी जो-जो चिंतन और मान्यताएँ देश को बाँट और कमज़ोर कर सकती हैं,ये उसे ही प्रचारित-प्रसारित करेंगे|प्रोपेगेंडा और झूठ फ़ैलाने में इन्हें महारत हासिल है|
        निजी जीवन में आकंठ भोग में डूबे इनके नीति-नियंता सार्वजनिक जीवन में शुचिता और त्याग की लफ़्फ़ाज़ी करते नज़र आते हैं|पंचसितारा सुविधाओं से लैस वातानुकूलित कक्षों में बर्फ और सोडे के साथ रंगीन पेय से गला तर करते हुए देश-विदेश का तख्ता-पलट करने का दंभ भरने वाले इन नकली क्रांतिकारियों की वास्तविकता सुई चुभे गुब्बारे जैसी है|ये सामान्य-सा वैचारिक प्रतिरोध नहीं झेल सकते,हिंसा इनका सुरक्षा-कवच है !मेहनतकश लोगों के पसीने से इन्हें बू आती है,उनके साथ खड़े होकर उनकी भाषा में बात करना इन्हें पिछड़ापन लगता है,येन-केन-प्रकारेण सत्ता से चिपककर सुविधाएँ लपक लेने की लोलुप मनोवृत्ति ने इनकी रही-सही धार भी कुंद कर दी है|वर्ग-विहीन समाज की स्थापना एक यूटोपिया है,जिसके आसान शिकार भोले-भाले युवा बनते हैं,जो जीवन की वास्तविकताओं से अनभिज्ञ होते हैं|
           इतना ही नहीं,अर्थशास्त्र के तमाम विद्वान एक स्वर से साम्यवादी अर्थव्यवस्था की आत्मघाती विसंगतियों और कमजोरियों के बारे में लिख चुके हैं, यह व्यवस्था अप्राकृतिक और अस्थिर होती है। जड़ से ही खोखली इन आर्थिक नीतियों के कारण तमाम साम्यवादी देशों और राज्यों की अर्थव्यवस्था का बुरा हाल रहता है और इसकी सबसे ज्यादा कीमत निम्न और मध्यम वर्ग के लोग चुकाते हैं। और फिर अगर इस अन्यायपूर्ण व्यवस्था के खिलाफ लोगों में असंतोष उभरता है तो उसकी अभिव्यक्ति तक होने से पहले ही उनका क्रूरता से दमन कर दिया जाता है। जिस माओ के नाम पर बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ और बिहार-झारखंड में यहां के प्रगतिवादी वामपंथी खूनी खेल खेल रहे हैं, चीन में उसी माओ के शासनकाल में दो करोड़ से भी ज्यादा लोग सरकारी नीतियों से उपजे अकाल में मारे गए और लगभग पच्चीस लाख लोगों को वहां की इकलौती पार्टी के गुर्गों ने मार डाला। सोवियत रूस में स्तालिन ने भी सर्वहारा हित के नाम पर लगभग 30 लाख लोगों को साइबेरिया के गुलाग आर्किपेलागो में बने लेबर कैंपों में भेजकर अमानवीय स्थितियों में कठोर श्रम करवाकर मार डाला, ऊपर से लगभग साढे सात लाख लोगों को, विशेषकर यहूदियों को, बिना कोई मुकदमा चलाए मार डाला गया। इनमें से अधिकांश के  परिजनों को 1990 तक पता भी नहीं चला कि वे कहाँ गायब हो गए। पूर्वी जर्मनी, चेकोस्लोवाकिया, हंगरी आदि ईस्टर्न ब्लाॅक के यूरोपीय देश जो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद रूस की रेड आर्मी के कब्जे में थे और जहाँ रूस ने अपने टट्टू शासन में बिठा रखे थे, वहां भी कमोबेश यही स्थिति थी। पूर्वी जर्मनी में तो स्टासी ने हर नागरिक की पूरी जिंदगी की ही जासूसी कर रखी थी। इन सब देशों में कुल मिलाकर इन 'समाजवादी' सरकारों ने भय और प्रोपागैंडा के बल पर नागरिकों के मुंह खोलने पर पूरी पाबंदी लगा रखी थी और पूरा iron curtain बना रखा था- बिना पोलितब्यूरो की हरी झंडी के लोग देश के बाहर जाना-आना भी नहीं कर सकते थे, कहीं सच्चाई बाहर न चली जाए। इन सब जगहों पर कहने को चुनाव होते थे पर उनमें एक ही पार्टी खड़ी होती थी- कम्युनिस्ट पार्टी। अखबार, पत्रिकाएँ, टीवी, सिनेमा, साहित्य, विज्ञान, कला और यहां तक कि संगीत में भी जो भी कुछ होता था वो पोलितब्यूरो तय करती थी। Eisenstein और Tarkovsky जैसे अद्भुत फिल्मकारों से लेकर  Solzhenitsyn और Pasternak जैसे लेखक हों या Mosolov, Shostakovich और Rostropovich जैसे महान संगीत कलाकार, सबको अधपढ़े और असभ्य कम्युनिस्टों ने यातनाएं दीं- कुछ मारे गए, कुछ मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गए, कुछ ने डर से पोलितब्यूरो का एजेंडा अपना लिया और कुछ, जो नसीब वाले थे, अमेरिका और पश्चिमी यूरोप भाग गए। वैज्ञानिक और खिलाड़ी भी इस दमनकारी व्यवस्था से बचे नहीं, कितने ही लोग अंतरिक्ष में और चांद पर जाने की सोवियत मुहिम में मारे गए जिनके अस्तित्व के सारे सुबूत केजीबी ने मिटा दिए, हारनेवाले ऐथलीट भी कठोर सजा के हकदार बनते थे।इनके आदर्श 'सर्वहारा सेवकों' की सत्तालोलुपता और ऐय्याशी का वर्णन करते शब्द कम पड़ जाएंगे। जैसे ही कोई नेता कमजोर पड़ा कि गुटबंदी करके एक उसको मरवाकर खुद शासक बन जाता था। फिर उसके कल तक बाकियों से कैसे भी संबंध हो, निरंकुश शासन करने में जिस किसी के भी बाधक बन सकने का जरा सा शक भी होता था, उसपर 'सर्वहारा का दुश्मन' होने का आरोप लगाकर उसकी दिखावटी सुनवाई करके (अक्सर वो भी नहीं) उसे फायरिंग स्क्वाड के हवाले कर दिया जाता था। खुद स्तालिन ने 139 केंद्रीय समिति सदस्यों में 93 और 103 जेनरलों में 81 को मरवा दिया था, कई को सिर्फ शक के आधार पर। बाद में पुरानी तस्वीरों और फिल्मों में से भी उन्हें मिटा दिया जाता था। ऊपर से स्तालिन हो या अपने ज्योति बसु या आज के सीताराम येचुरी जैसे वामी नमूने- इनके अपने व्यक्तिगत जीवन में भव्य महल जैसे निवास, महंगी विदेशी गाड़ियाँ, क्यूबन सिगार, महंगी शराब और औरतों की बहुतायत मिलेगी, भले ही दावा ये मजदूरों की लड़ाई लड़ने का करते हों। जब ऐसी घृणास्पद विरासत के उत्तराधिकारी ये कम्युनिस्ट मानवाधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जनहित जैसे शब्द अपनी जबान पर बेशर्मी से लाते हैं, तो इनकी असलियत जाननेवालों को तो कोफ्त होगी ही।
 परिवर्तन प्रकृति का नियम है|वामपंथ अपनी आख़िरी साँसें गिन रहा है|समय इसे छोड़कर आगे बढ़ चला है|अब तय आपको करना है कि आप बदलते दौर में विकास की राह पर आगे बढ़ना चाहते हैं या पतन की अंधी सुरंग की ओर!
C&P
राष्ट्रवादी  राम से भगवान राम बनने  तक का रघुकुलनंदन का संघर्ष ----- रामायण - भाग - 12  ( ताड़का का वध )

गुरु विश्ममित्र राम से बोले , आज राक्षसों की सेना यहाँ पूरी तरह से जम  चुकी है , वे आसपास के सभी ग्रामो और  जनपदों को वे पीड़ित और आतंकित करते रहते है , , ताड़कावन में तो कोई शाशन है ही नहीं , पडोसी राज्यो के शाशक और शाशन प्रतिनिधि भी शीथल हो चुके है , आदर्श , सिद्धांत , और मर्यादा का लोप  होता जा रहा है , पाशविक शक्तिया और विलासता चारो और फेल रही है , राक्षश संस्कृति जब हमारे समाज को भीतर से खोखला कर देगी , तब राक्षसी सेना बाहर से आक्रमण कर अन्य राजाओ और सम्राट के साथ , मानवीय संस्कृति को भी सदा के लिए नष्ट कर देगी।

 आप चिंतित ना हो गुरुदेव।  राम है न , राम विश्वाश  साथ मुस्कुराये , संकेत सा करते हुए , उन्होंने लक्ष्मण को देखा और धनुष कंधे से उतार लिया।

लक्ष्मण के मुख पर उल्लास ही उल्लास था।

वे पुनः वन की और चल पड़े , आगे आगे विश्वामित्र ,  ताड़का ने इन दोनों धनुषधारियो को विश्वामित्र के साथ  देख लिया।

शस्त्रधारी ???? ताड़का की आँखे रक्तिम हो गयी , उसने अपना घूंसा ताना और आघात करने के लिए  झपटी, उसके साथी अपने अपने  स्थान पर खड़े होकर हंस रहे थे।

राम  इसे मारो , विश्वामित्र ने निष्कम्प  वाणी में आदेश दिया।

ताड़का भयंकर शब्द उतपन्न करती हुई अपनी उग्र चेस्टाओ से धूल मिटटी , पत्थर और बृक्षो  की  शाखाये , पत्ते उड़ाती हुई हुई आंधी तूफ़ान के समान  झपटती आ रही थी।

राम की अंगुलियों  ने परतनच्यां छोड़ दी , कालचक्र प्रतिरोधविहीन वायुवेग से बढ़ता हुआ ताड़का के वक्ष में जा में जा धंसा , ताड़का ने कर्णभेदी चीत्कार किया , और अपने ही वेग में अपने स्थान से उछल पड़ी , उसके सिर  के ऊपर के बृक्षो शाखाओ से रगड़ खाता हुआ किसी शेल संग के सामान  स्थूल शरीर धम से जमीन पर आ गिरा , उसके मुख से रक्त वमन  किया और अपना सर पृथ्वी पर टेक दिया ,

राक्षसों की हो-हो सहसा थम गयी , वे कौतुक में भरे निश्चिन्त जोखिम की  संभावनाओ से दूर आँख मूंदे , ताड़का का खिलवाड़ देख रहे थे , , और कदाचित राम , लक्ष्मण और विश्वामित्र की म्रत्यु में निश्चित मान चुके थे , किन्तु ताड़का को धरती पर गिरा  देख वह स्तब्ध रह गए , ऐसी घटना की उम्मीद ही राक्षसों को कभी नहीं थी ,  उन्होंने पीड़ा-मिश्रित भय तथा आश्चर्य से राम को देखा , ऐसा रूप,  ऐसा शौर्य , और ऐसी शस्त्र दक्षता उन्होंने पहले कभी नहीं देखी  थी।   वे वहां रुक नहीं पाए , ताड़का के शरीर को वहीँ पड़ा छोड़ , उलटे पैरो से घने जंगलो में विलीन हो गए।

लक्षमण कुछ दूर तक उनका पीछा  करते दौड़े, फिर विश्वामित्र ने उन्हें हंस के बुलाया , आ जाओ  लक्ष्मण , जीवन में तुम्हे भी ऐसे बहुत अवसर मिलेंगे।  आ जाओ पुत्र , उनका पीछा  कर सामान्य लोगो की हत्या करना उचित नहीं।   इधर राम ताड़का को मारकर इतने सहज भाव से खड़े थे , जैसे कुछ हुआ ही ना हो।

राम तुम्हारी जय हो    ......  विश्वामित्र ने जयघोष किया , किन्तु उसके स्वर में कोई विशेष उल्लास नहीं था , वे गंभीर तथा  चिंतित थे , " तुमने अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध आज संग्राम छेड़  दिया है राम , न्याय का संघर्ष एक बार मनुष्य  शुरू कर देता है , तो वह फिर कभी भी उससे पीछे नहीं हट पाता , उससे ना तो समझौता होता है , और ना ही उसे स्थगित किया जा सकता है , अब तुमने जोखिम मोल लिया है , तो तुम्हे इसे अंत तक निभाना होगा ,

राक्षस अभी भाग गए है , वे चकित है, और भयभीत भी , इस वन में कौई ऐसा वीर भी है, इसकी कल्पना उन्हें नहीं थी , आश्रम के किसी भी व्यक्ति ने उनपर पहले कभी आक्रमण नहीं किया था , आश्रम में भी कोई ऐसा शिष्य नहीं था , जिसको में दिव्यअस्त्रो  का ज्ञान दे पाता।  अब तक आक्रमण एकपक्षीय थे , वे जब चाहते थे , हम पर आक्रमण कर  देते थे , कभी कभी उनका प्रतिरोध जरूर होता था , किन्तु पहले प्रतिआक्रमण कभी नही हुआ , राक्षस सदा निर्भय थे , तुम्हारे यहाँ आने की सुचना अब तक उन्हें नहीं थी , वे अपनी शक्ति के मद में इतने आश्वश्त थे , की उन्होंने गौर ही नहीं किया कभी , की आश्रम में कौन आया , और कौन गया।  अब वे जाकर मारीच और सुभाह को सूचित करेंगे , संभव है, प्रतिशोध  के लिए वह तत्काल ही आक्रमण कर दे , इस खुले वन  में हम जोखिमो से    भरे है ,

पुत्र हमें जल्दी ही आश्रम पहुंचना होगा।  यह अतिआवश्यक है।

क्रमशः

राष्ट्रवादी राम से भगवान राम बनने तक का रघुकुलनंदन का संघर्ष ----- रामायण - ( ताड़का का वध )

राष्ट्रवादी  राम से भगवान राम बनने  तक का रघुकुलनंदन का संघर्ष ----- रामायण - ( ताड़का का वध )

गुरु विश्ममित्र राम से बोले , आज राक्षसों की सेना यहाँ पूरी तरह से जम  चुकी है , वे आसपास के सभी ग्रामो और  जनपदों को वे पीड़ित और आतंकित करते रहते है , , ताड़कावन में तो कोई शाशन है ही नहीं , पडोसी राज्यो के शाशक और शाशन प्रतिनिधि भी शीथल हो चुके है , आदर्श , सिद्धांत , और मर्यादा का लोप  होता जा रहा है , पाशविक शक्तिया और विलासता चारो और फेल रही है , राक्षश संस्कृति जब हमारे समाज को भीतर से खोखला कर देगी , तब राक्षसी सेना बाहर से आक्रमण कर अन्य राजाओ और सम्राट के साथ , मानवीय संस्कृति को भी सदा के लिए नष्ट कर देगी।

 आप चिंतित ना हो गुरुदेव।  राम है न , राम विश्वाश  साथ मुस्कुराये , संकेत सा करते हुए , उन्होंने लक्ष्मण को देखा और धनुष कंधे से उतार लिया।

लक्ष्मण के मुख पर उल्लास ही उल्लास था।

वे पुनः वन की और चल पड़े , आगे आगे विश्वामित्र ,  ताड़का ने इन दोनों धनुषधारियो को विश्वामित्र के साथ  देख लिया।

शस्त्रधारी ???? ताड़का की आँखे रक्तिम हो गयी , उसने अपना घूंसा ताना और आघात करने के लिए  झपटी, उसके साथी अपने अपने  स्थान पर खड़े होकर हंस रहे थे।

राम  इसे मारो , विश्वामित्र ने निष्कम्प  वाणी में आदेश दिया।

ताड़का भयंकर शब्द उतपन्न करती हुई अपनी उग्र चेस्टाओ से धूल मिटटी , पत्थर और बृक्षो  की  शाखाये , पत्ते उड़ाती हुई हुई आंधी तूफ़ान के समान  झपटती आ रही थी।

राम की अंगुलियों  ने परतनच्यां छोड़ दी , कालचक्र प्रतिरोधविहीन वायुवेग से बढ़ता हुआ ताड़का के वक्ष में जा में जा धंसा , ताड़का ने कर्णभेदी चीत्कार किया , और अपने ही वेग में अपने स्थान से उछल पड़ी , उसके सिर  के ऊपर के बृक्षो शाखाओ से रगड़ खाता हुआ किसी शेल संग के सामान  स्थूल शरीर धम से जमीन पर आ गिरा , उसके मुख से रक्त वमन  किया और अपना सर पृथ्वी पर टेक दिया ,

राक्षसों की हो-हो सहसा थम गयी , वे कौतुक में भरे निश्चिन्त जोखिम की  संभावनाओ से दूर आँख मूंदे , ताड़का का खिलवाड़ देख रहे थे , , और कदाचित राम , लक्ष्मण और विश्वामित्र की म्रत्यु में निश्चित मान चुके थे , किन्तु ताड़का को धरती पर गिरा  देख वह स्तब्ध रह गए , ऐसी घटना की उम्मीद ही राक्षसों को कभी नहीं थी ,  उन्होंने पीड़ा-मिश्रित भय तथा आश्चर्य से राम को देखा , ऐसा रूप,  ऐसा शौर्य , और ऐसी शस्त्र दक्षता उन्होंने पहले कभी नहीं देखी  थी।   वे वहां रुक नहीं पाए , ताड़का के शरीर को वहीँ पड़ा छोड़ , उलटे पैरो से घने जंगलो में विलीन हो गए।

लक्षमण कुछ दूर तक उनका पीछा  करते दौड़े, फिर विश्वामित्र ने उन्हें हंस के बुलाया , आ जाओ  लक्ष्मण , जीवन में तुम्हे भी ऐसे बहुत अवसर मिलेंगे।  आ जाओ पुत्र , उनका पीछा  कर सामान्य लोगो की हत्या करना उचित नहीं।   इधर राम ताड़का को मारकर इतने सहज भाव से खड़े थे , जैसे कुछ हुआ ही ना हो।

राम तुम्हारी जय हो    ......  विश्वामित्र ने जयघोष किया , किन्तु उसके स्वर में कोई विशेष उल्लास नहीं था , वे गंभीर तथा  चिंतित थे , " तुमने अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध आज संग्राम छेड़  दिया है राम , न्याय का संघर्ष एक बार मनुष्य  शुरू कर देता है , तो वह फिर कभी भी उससे पीछे नहीं हट पाता , उससे ना तो समझौता होता है , और ना ही उसे स्थगित किया जा सकता है , अब तुमने जोखिम मोल लिया है , तो तुम्हे इसे अंत तक निभाना होगा ,

राक्षस अभी भाग गए है , वे चकित है, और भयभीत भी , इस वन में कौई ऐसा वीर भी है, इसकी कल्पना उन्हें नहीं थी , आश्रम के किसी भी व्यक्ति ने उनपर पहले कभी आक्रमण नहीं किया था , आश्रम में भी कोई ऐसा शिष्य नहीं था , जिसको में दिव्यअस्त्रो  का ज्ञान दे पाता।  अब तक आक्रमण एकपक्षीय थे , वे जब चाहते थे , हम पर आक्रमण कर  देते थे , कभी कभी उनका प्रतिरोध जरूर होता था , किन्तु पहले प्रतिआक्रमण कभी नही हुआ , राक्षस सदा निर्भय थे , तुम्हारे यहाँ आने की सुचना अब तक उन्हें नहीं थी , वे अपनी शक्ति के मद में इतने आश्वश्त थे , की उन्होंने गौर ही नहीं किया कभी , की आश्रम में कौन आया , और कौन गया।  अब वे जाकर मारीच और सुभाह को सूचित करेंगे , संभव है, प्रतिशोध  के लिए वह तत्काल ही आक्रमण कर दे , इस खुले वन  में हम जोखिमो से    भरे है ,

पुत्र हमें जल्दी ही आश्रम पहुंचना होगा।  यह अतिआवश्यक है।

क्रमशः

सिंहपुरुष_राम --- रामायण

#सिंहपुरुष_राम --- रामायण  

असमंजस  से शून्य से स्वर में विश्वामित्र बोले - राम का वचन कर्म का प्रमाण है , अब मेरे मन में कोई दुविधा नहीं है , राम तुमने ऋषि मुनियो के संकेत पर चलने का वचन दिया है , और लक्ष्मण तुम्हारे भाई ने भी इसका वचन दिया है , तुम्हारा समर्तन किया है , शेष कार्य तो स्वतः तुम्हारे मार्ग में आगेंगे और तुम उन्हें पूर्ण करोगे , अब प्रस्तुत हो जाओ , मै  चाहता हूँ, जितने भी दिव्यास्त्र मेरे पास  है , उन सब का ज्ञान में तुम्हे दूँ , तुम्हारा प्रक्षिशण आरम्भ होता है पुत्र , इस प्रशिक्षण के बाद तुम राक्षसों को मारने में पूर्णतः समर्थ हो जाओगे।  उठो राम धनुष उठाओ।

और गुरु ने पीछे की और गर्दन मुड़कर आदेश दिया , , नाविक. नोका घाट पर लगाओ ,

घाट  से कुछ दूर चलकर वन के भीतर राम  ने खुला स्थान देखकर विश्वामित्र के साथ प्रशिक्षण किया , रघुनंदन तुम्हारा कल्याण हो
यह दिव्य और महान दण्डचक्र , यह धर्मचक्र, यह विष्णुचक्र , तथा अत्यंत ही भयंकर इंद्र चक्र है राम।  और यह शिव का श्रेष्ठ त्रिशूल ,  यह इंद्र का बह्रमास्त्र, और यह ब्रह्मा का ब्रह्मअस्त्र, पुत्र यह मोदकी और सिदकी  नामक गदाये  है ,

पुरुष सिंह श्री राम , यह धर्मपाश, कामपाश, और वरुणपाश नामक उत्तम अस्त्र है , तामसी , महाबली , सोमन , संवर्त , दुर्जय , मोसया , सत्य, और मायामम  उत्तम अस्त्र में भी में तुम्हे अर्पित करता हूँ , सूर्य का तेज प्रथम अस्त्र भी में आपको अर्पित करता हूँ , विश्वश्रेष्ठ राष्ट्रवादी राम।  सोम का सिथिर नामक अस्त्र भी तुम लो , और महाबाहु , अब इनके प्रयोग की विधि भी सीख  लो।

 राम जैसे स्वप्न लोक  में आ गए ,  क्षत्रियो  को स्वादिस्ट भोजन से भी ज़्यादा शस्त्र प्यारे होते है , वही राम के साथ था , कितनी विचित्र बात थी , अपने पूर्ब  की शिक्षा काल में , इन शस्त्रो की चर्चा तक कभी नहीं हुई थी।  और विश्वामित्र वे अस्त्र उन्हें दे रहे थे।  - साक्षात

अस्त्र प्रशिक्षण के बाद पदयात्रा शुरू हुई।  बार बार वे  सूर्य की और देख रहे थे , और चारो और फैले वन को भी परख रहे थे , कुछ ही दूर चले की विश्वामित्र की गति धीमी हुई और वे रुक गए , राम  लक्ष्मण और बाकी शिष्य भी उनके साथ ही रुके , सभी लोग प्रश्न भाव लेकर  गुरु के  मुख की और देखने लगे।

विश्वामित्र ने गहन मन्द स्वरों में कहना शुरू किया , यह जो वन है ,  जिसके अंदर इस समय है ,  इसी का नाम ताड़का वन है राम।

गुरु की बात पूरी होती ही की बालक लक्ष्मण ने धनुष उठाकर कमान से तीर निकाल लिया , वे लोग ताड़का वन में थे , और इसी में  ताड़का रहती थी।

पर विश्वामित्र युद्ध की मुद्रा में नहीं थे , वे केवल बता रहे थे , यहाँ पहले मसल और कुरुष नाम के दो राज्य हुआ करते थे।  जो अगस्त्य के प्रति शत्रुता के कारण , समस्त ऋषियों को शत्रु बनाकर , जिस समय ताड़का अपने पुत्र और  सैनिक सहायको के सहयोग से यहाँ आयी , उस समय इस वन के स्थान पर सुन्दर वन और जनपद थे , किन्तु वे ताड़का के अनुकूल नहीं पड़ते थे , वे राज्य छोटे मोटे  हिन् पड़ते थे , और शाशक अराजक , राक्षसी सेना के अस्त्रो सस्त्रो का छल  प्रपंचो का सामना वो नहीं कर सके , ताड़का ने मलड और कुरुष राजवंशो की हत्या करवा दी ,  फिर  कितने ही लोगो को ताड़का के सहायक राक्षस  मनुष्यो को खा गए ( मुस्लिम आतंकवादी इंसानो का गोस्त भी खाते पाए गए है )  राजवंश समाप्त हो गए , प्रजा भयभीत होकर भाग गयी , जो नहीं भागे , वे या तो दस्यु राक्षस हो गए, या मार डाले गए , धीरे धीरे भवन नष्ट हो गए ,  अथवा राक्षशो ने उसका मनमाना उपयोग किया , व्रक्ष उगते गए , बढ़ते गए , और अब यह स्थान ताड़का वन हो गया है , जो राक्षसों के दुर्ग का शिविर है , और उनकी बस्ती है , और तब गुरु आवेशपूर्ण हो उठे और बोले ,

छोटे छोटे राज्य इसी प्रकार राक्षसो के उदर में समाते चले गए , और निकट के सम्राट अपनी रानियों के अंचल में छिपे रहे , क्या कर रहा था इस समय दसरथ और वसिष्ठ ???  इन दोनों या बड़े बड़े राजनीतिग्यो को ज़रा सी बात समझ नहीं आयी , इसी तरह आसपास के छोटे छोटे राज्यो को  गटककर यह लोग आर्यवर्त को ही हथिया लेना चाहते है , यह राक्षस शिविर अयोध्या की नाक पर है, यह दसरथ और वशिष्ठ को समझ नहीं आया ??. उन्हें तो होंश तब आएगा , जब राक्षस सेना उनके  कमरो के दरवाजे  तोड़ रही होगी।

 राम में जैसे गुरु की आँखों में राक्षसी जोखिम को देख लिया , मन असंतुष्ट हो उठा , बोले गुरुदेव , हमने इस तरह राक्षशो का शाशन कैसे स्वीकार कर लिया ??

 इन्होंने राक्षशो के अधिकार को युद्ध में हार जाने के  स्वरूप  शाशन स्वीकार कर लिया , और मान लिया , की राक्षशो की भी कभी एक बस्ती हमेशा से थी ,

 लक्ष्मण बोले, अरण्य की हत्या कर रावण ने अयोध्या भी तो जीती थी , तो दसरथ महाराज अब अयोध्या भी रावण को दे देंगे ??

Wednesday, February 1, 2017

हिमाचल को सेब दिए

हिमाचल को सेब दिए
1947 से पहले हिन्दुस्तान उस क़ैद चिड़िया की तरह था, जिसे ना समय पर खाना मिल रहा था और ना ही पानी. अंग्रेज सिर्फ़ शोषण ही कर रहे थे. अंग्रेज़ हमें मारना नहीं, तड़पाना चाह रहे थे. यूं तो अंग्रेज़ों के शोषण के ख़िलाफ़ देश के कई सपूतों ने अपनी आवाज़ उठाई, मगर इस आज़ादी में स्वदेशी नेताओं के अलावा विदेशी नेताओं ने भी अहम योगदान दिया. हालांकि, एनी बेसेंट को छोड़ दें, तो बड़े विदेशी नेताओं को कोई नहीं जानता. लेकिन हम आज आपको ऐसे विदेशी नेता से मिलवाने जा रहे हैं, जिनका आज़ादी में बहुत ही ज़्यादा योगदान था. वो हैं अमेरिकी नागरिक सैमुएल एवान स्टोक्स उर्फ़ सत्यानंद स्टोक्स!

सैमुएल के बारे में महत्वपूर्ण बातें

  • सैमुएल ही वो आदमी हैं, जिन्होंने हिमाचल को सेब दिए और भारत के स्वाधीनता संग्राम में महात्मा गांधी को पूरा सहयोग दिया.
  • सैमुएल गांधी जी के विचारों से काफ़ी प्रभावित थे.
  • सैमुएल ही वो पहले विदेशी थे, जिन्होंने स्वाधीनता के समय खादी पहनी थी.
  • सैमुएल शारीरिक रूप से भले ही अमेरिकी थे, मगर वो हिन्दुस्तानी बन कर रहना चाहते थे.
  • उन्होंने भारतीय लड़की से शादी की और एंग्लो-इंडियन की जगह भारतीय कहलाना पसंद किया.
  • भारत को अपनी मातृभूमि मानते थे.
  • हिन्दुस्तान को समझने के लिए उन्होंने संस्कृत और हिन्दी सीखी.
  • साल 1932 में उन्होंने हिंदू धर्म अपना लिया और अपना नाम भी सैमुएल से बदल कर सत्यानंद रख लिया.

22 साल की उम्र में शिमला आए और यहीं के होकर रह गए.

सैम के पिता अमेरिका में एक सफ़ल बिजनेसमैन थे, लेकिन सैम का बिजनेस में कोई इंटरेस्ट नहीं था. वे अपने पिता के साथ 1904 में शिमला आए थे. उस समय सैम की उम्र महज़ 22 साल ही थी.

आम लोग 'ईसाई संन्यासी' कहते थे

भारत आकर सैमुएल लैप्रोसी (कोढ़) से जूझ रहे मरीजों की सेवा करने लगे. इस बात से उनके माता-पिता बहुत नाराज़ थे, लेकिन बाद में उन्हें अहसास हुआ कि सैमुएल अच्छा काम कर रहे हैं. इस बाबत वो अपने बेटे की आर्थिक मदद करने लगे. सैमुएल के अच्छे काम को देख कर गांव वाले उन्हें 'ईसाई सन्यासी' कह कर बुलाने लगे.

हिमाचल में 'आर्थिक क्रांति' की हुई शुरुआत

हिमाचल में समय बिताने के बाद सैमुएल को अहसास हो गया कि लोगों की दिक्कत सिर्फ़ बीमारी नहीं, बल्कि गरीबी भी है. इससे निजात दिलाने के लिए सैम ने हिमाचल की जलवायु के अनुकूल सेबों की खेती करने की ठानी. उन्होंने साल 1916 में फिलेडेल्फिया से सेब के कुछ पौधे और बीज मंगाए. सैम का ये कदम हिमाचल के लिए एक आर्थिक क्रांति की शुरुआत थी.

आज़ादी में सैमुएल का योगदान

सच पूछा जाए, तो सैमुएल का जन्म हिन्दुस्तान के लिए ही हुआ था. कुछ समय बाद उन्हें अहसास हुआ कि भारत की उन्नति तो उसकी आज़ादी है. इसके लिए उन्होंने भारत की आज़ादी के समर्थन में अख़बारों में लिखना भी शुरू कर दिया था.

गांधी और सैमुएल

जब सैम भारत की आज़ादी का समर्थन कर रहे थे, उसी दौरान उनकी मुलाक़ात गांधी से हुई. असल में गांधी के दोस्त सीएफ एंड्रयूज और स्टोक्स के दादाजी अच्छे दोस्त थे और इसी के चलते गांधी से सैम की मुलाक़ात हुई.

सैमुएल और कांग्रेस

साल 1919 में अप्रैल महीने में जलियावाला बाग़ हत्याकांड हुआ, जिससे सैम को गहरा आघात पहुंचा और उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन करने का फैसला कर लिया. वो कांग्रेस में काफी एक्टिव रहे. गांधी ने भी सैम की सक्रियता देखकर उन्हें सभी मीटिंग्स में बुलाना शुरू कर दिया.

हिन्दुस्तान के असली 'अमरीकी नायक'

सैम इस दौरान कई बार गिरफ़्तार भी हुए और महीनों जेल में भी बिताये. जेल में भारतीयों और यूरोपीय लोगों को अलग-अलग जेल में रखा जाता था, लेकिन उन्होंने इस स्पेशल ट्रीटमेंट के लिए भी मना कर दिया.

सैमुएल ने अपनी पूरी ज़िंदगी हिन्दुस्तान की आज़ादी में लगा दी. वे अंग्रेजों से लड़ते रहे ताकि इस देश का भला हो सके. हालांकि, उनकी एक तमन्ना अधूरी रह गई. वो हिन्दुस्तान को आज़ाद होते हुए देखना चाहते थे, मगर 1946 में 63 साल की उम्र में बीमार की वजह से चल बसे. हालांकि, सैमुएल का अहसान इस देश पर हमेशा बना रहेगा. सैमुएल की कोशिशों और योगदान को कलमबद्ध नहीं किया जा सकता है. 

वो थे, हैं और हमेशा रहेंगे...