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Friday, February 3, 2017

महात्मागांधी ( मोहनदास करमचंद गांधी )

हिन्दुओ के अप्रत्यक्ष शत्रु ----- महात्मागांधी ( मोहनदास करमचंद गांधी )
भारत जब आजाद हुआ , तो एक आध गद्दारो को छोड़ , सभी हिन्दू नेता राष्ट्र और धर्म को लेकर गद्दार नहीं थे , अब ऐसे देशभक्तो के बीच फुट डालने का काम , और अपनी गद्दारी को सफल बनाने का काम किया  गांधी ने ,
कई गवाहों का आग्रहपूर्वक कहना था की पाकिस्तान को ५५ करोड़ रुपया देना , गलत है , पर यह नहीं माना , हम हिन्दुओ का धन , उन्हें दिया , जो पाकिस्तान में हमारे हिंदू भाइयो का गला काट रहे थे , उनके परिवार की स्त्रियों का अपमान कर रहे थे, उनकी लज्जा भंग कर रहे थे , हमारी बच्चियों को रखैल बनाने वालों को ५५ करोड़ देने की जिद में गांधी अड़ गया , यही इसके वध का प्रमुख कारण भी था। यह निर्णय मंत्रिमंडल में भी पास हो गया था की एक फूटी कोड़ी पाकिस्तान को नहीं देनी , पर यह नहीं माना , जैसे आज कश्मीर में भी ऐसे ही हम हिन्दुओ का पैसा ही पानी की तरह बहाया जा रहा है , अब दो रूपये किलो फ्री में चावल खा के, हराम के खाने वाले, सेना को पत्थर नहीं मारेंगे , तो और क्या करेंगे ???
हमारे गाँव में , गाँव के पास , कितनी ही बलिदानी फोजी भाइयो की विधवाएं है , उन्हें आकर देखिये सत्ता में बेठे लोगो , तुम्हारे बाप का क्या जाता है , धन तो हम हिन्दुओ का है , सोचिये , हमारे भाइयो को पत्त्थर मारने वाले को सबकुछ सस्ता मिलता है , और दिन रात अपने राष्ट्र के लिए जीने और मरने वाले " राजस्थानियों " का अपमान, उनकी संस्कृति का अपमान ही सरकार और गद्दार फिल्मीजगत के व्यापारी करते रहे है , पुरे भारत में किसी को दुःख नहीं था ,

राष्ट्र भक्ति हमारी बेजोड़ है
पुरे भारत में वामपंथ फैला, पर राजस्थान में आज भी ऐसी किसी पार्टी ने पैर जमाने की कोशिश नहीं की
हमने कभी दिल्ली को दूसरा नहीं समझा ,  हमारे राज्य में आकर , पशु-पक्षियों की निर्मम हत्या करने वालो को स्टार , और ह्यूमन बिंग कहा जाने लगा , पतंगे साथ उड़ती रही , अब हत्यारा तो हत्यारा ही है , जब खुद दिल्ली ने उस हत्यारे की औकात देखी , तो उनसे दूर हुई , पर हमारे राजस्थान के लोगो की भावना का एक बार भी ख्याल दिल्ली ने नहीं किया।
  राजस्थानी , आज भी किसी दंगे में नहीं फंसते ,
हाँ तो बात गांधी की --- यह बैठ गया अनसन पर , की हिन्दुओ के हत्यारो को तो इसका इनाम ५५ करोड़ मिलने ही चहिये। और इस अनशन का तो प्रभाव पड़ना ही था , क्यू की मुर्ख सेक्युलर हमारे पूर्वज इस गलीच के साथ हो गए
प्यारेलाल जी नाम के एक लेखक ने उन्हें पुछा , " गुजरात में स्टेसनो पर हिन्दुओ पर हुए हमलो , हिन्दुओ के हुए नरसंघारो के बाद भी क्या पाकिस्तान को रूपये देना उचित है ???? गांधी ने कहां जो भी हो --- मुझे सत्य मार्ग के कोई विचलित नहीं कर सकता ---
सत्य क्या होता है मित्रो ??/ क्या वाणी की सत्यता ही सत्य है ? ?
अगर सिर्फ वाणी की सत्यता ही " सत्य " होती , तो योगेश्वर श्री कृष्ण कभी वाणी से भी असत्य नहीं बोलते। . सत्य नाम है " सतनाम " ईश्वर का। ईश्वर को प्रेम और शांति ही पसंद है , हाँ शांति के लिए ही तो वो अपने पास हथियार रखते है , इतने बड़े बड़े युद्ध खुद धरती पर आकर करते है , , जबकि गांधी ने सत्य के नियम ही बदल दिए , मानसिक तोर पर जन्मजात अशांत लोगो को ५५ करोड़ देकर , हिन्दुओ का दुःखद भविष्य तय कर दिया।
पाकिस्तान को यह राशि प्रदान करने के बाद गाडगिल ( उस समय केंद्रीय मंत्री ) महाराष्ट्र गए थे , जहाँ लोगो ने गांधी की इस नीति को दुत्कार दिया था , महाराष्ट्र के लोगो में गांधी को लेकर केवल घृणा थी , उसके बाद गाडगिल ने गांधी वध के बाद कहा " ५५ करोड़ दोगे , यह यही गोलियों की ही प्रतिध्वनि आएगी "
जिस समय पाकिस्तान के मुसलमान पुरे भारत पर ही कब्ज़ा करने के लिए अपनी सैनिक शक्ति को दूरस्थ कर रहे थे , हमारा देश भी खुद बहुत ही कठिन अवस्था में था , पाकिस्तान पुरे भारत में जिहाद करने के लिए सैन्य तोर पर तैयारी कर रहा था , उसी समय ५५ करोड़ अपने सत्रुओ को देना।
हिन्दुओ आज तक हम अपने ही हत्या की साजिश रचने वाले को हम " बापू " जैसे पवित्र शब्द से पूजते आये है , बंद करो यह पूजन। .बुड्डा कहता था , की अगर पाकिस्तान को ५५ करोड़ नहीं दिए , तो हमारा नैतिक पतन हो जाएगा , और ५५ करोड़ दिए , उसका परिणाम ही कश्मीर और अन्य राज्य है। यह तो नाथूराम गोडसे की गोली से मर गया , अगर ५५ करोड़ नहीं दते , तो यह बुडढा आत्मग्लानि में रो रो कर मर जाता , यह तो इसके हत्या की मूल वजह। .
अब इसके जीवन चरित्र पर एक नजर ----
यह ठरकी बुड्ढा कहता था की वो अब ब्रह्मचर्य का पालन कर रहा है , और इसके ब्रमचर्य के विषय में इसने कहां
" मेरे बह्मचर्य का अर्थ इस प्रकार है , ऐसा व्यक्ति जो लगातार भगवान् के ध्यान में रहकर इस योग्य हो गया है , की वह नारियो को निवस्त्र कर, खुद नारियो निवस्त्र होकर नारियो के साथ सो सके , चाहे वह नारी कितनी भी सुन्दर क्यू ना हो , इसके बावजूद किसी तरह की कोई उत्तेजना ना हो ,
अब इसका बह्मचर्य का भांडा फोड़ा निर्मल कुमार बोस ने , उसने साफ़ कहा , की ब्रह्मचर्य के नाम पर गांधी अपना मुँह ही काला कर रहा है , वह इसका निजी सचिव था , और अंतरात्मा की आवाज के बाद इसने गांधी की नोकरी भी छोड़ दी। किन्तु बुड्ढे को तो इस रंगीन बह्मचर्य की आदत पड़ गयी थी , अपने नाराज अनुयाइयो को फटकार कर इसने कहा
" चाहे सारा संसार ही मुझे त्याग कर दे , में इस " काम" का त्याग नहीं करूँगा , जो सकता है यह बह्मचर्य का प्रयोग एक भरम-जाल ही हो , किन्तु अगर ऐसा भी है , तो यह साधना में स्वम करूँगा , यह एक सच्चाई है , इसका त्याग में नहीं कर सकता , चाहे आप मेरे साथ रहे या न रहे ---
गांधी की गाथा जारी है ------

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