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Friday, February 3, 2017

पुरुष_सिंह_श्री_राम ( रामायण

पुरुष_सिंह_श्री_राम ( रामायण
ताड़का वध के बाद लक्ष्मण राम को देखकर सिर्फ मुस्कुरा रहे थे , तापस मण्डली का उत्साह समाप्त हुआ , कुछ बाद के आक्रमण से डरे हुए थे , और कुछ राष्ट्रवादी आर्य और युद्ध की आशा कर रहे थे , कुछ लोग तो समझ नहीं पा रहे थे , की ताड़का के वध के बाद खुश हो , या दुखी हो , यह ताड़का वध पाकिस्तान में हुए सर्जिकल स्ट्राइक जैसा ही था , ताड़का और उसके साथियो को देख सबसे ज़्यादा निडर राम थे , ताड़का को देखकर भी राम के चेहरे पर कोई उत्तेजना नहीं थी , चिंता की कोई हल्की रेखा भी नहीं थी। विश्वामित्र ने कहा -- हे राम -- तुम्हारे जितना निडर तो में भी नहीं हूँ।
शाम को सूरज ढलते ढलते ताड़का के वध के बाद सारी टोली आश्रम पहुँच गयी ,
विश्वामित्र --- अब तक किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पा रहा की रात्रि के समय अब राक्षस आक्रमण करेंगे या नहीं , अगर ताड़का के वध के बाद वे क्षुब्द हुए तो रात्रि में ही आक्रमण के लिए चल पड़ेंगे , और वैसे भी रात्रि में युद्ध भी उनकी प्रवर्ति के अनुसार अनुकूल पड़ता है , पर शायद यह भी हो , की ताड़का के वध के बाद वह इतने भयभीत हो , की आक्रमण करने की सोचे भी नहीं।
राम अपनी सहज मंद मुस्कान से साथ मुस्कुराये - गुरुदेव आप निश्चिन्त रहिये , राक्षस चाहे रात्रि के आक्रमण करें या प्रातः , आपकी कृपा से आपका राम किसी भी समय, किसी भी जगह, उनसे युद्ध करने में समर्थ और तत्पर है। प्रश्न यह नहीं है गुरुदेव की राक्षस कब आक्रमण करेंगे , यह तो उनका निर्णय होगा, की वो दिन में मरना चाहते है, या रात्रि में ही मेरे हाथो मरना चाहते है।
विश्वामित्र राम को सुनते ही रह गए , जैसे राम विश्वामित्र के गुरु हो - अत्यंत आश्वस्त भाव से वे राम को निहारते रहे , राक्षसों को लेकर ऐसी बात कहने वाला पृथ्वी पर पहला पुरुष ही विश्वामित्र को राम ही मिले। अब तक तो उन्होंने राक्षसों के नाम पर आँखे लिली कर के लोगो को भागते ही देखा था
स्नेह से भरी वाणी में विश्वामित्र राम से बोले " तुम्हारी शक्ति, वीरता , न्यायबुद्धि , तथा निर्णय लेने की क्षमता , यह सब राक्षसों के काल है , पर पुत्र मुझे और भी अधिक सोचना है ,
मुझे आश्रमवाशियो को युद्ध के लिए तयार करना है।
राम मुस्कुराये , गुरुदेव उसकी कोई आवश्यकता नहीं है , आपका दूसरा शिष्य अकेला लक्षमण ही उन राक्षसों के लिए पर्याप्त है , क्यू लक्ष्मण ???
लक्ष्मण का मुख उल्लास से खिल गया , राम ने तो उनके मन की बात कह दी , वो बोले , पर्याप्त तो भैया राम ही बहुत है , पर हम दोनों मिल के तो पुरे
ब्रह्मांड के राक्षसों का नाश कर सकते है ,
विश्वामित्र शून्य में घूर रहे थे , जैसे साक्षात् भविष्य को अपनी आँखों से देख रहे हो। बोले तुम दोनों भाइयो के कथन में ज़रा में मुझे संदेह नहीं है , किन्तु यह युद्ध न्याय का है , मात्र तुम्हारे और लक्ष्मण के लड़ लेने से ही लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होगी , इस क्षेत्र में समस्त प्रजाजन राक्षसों तथा उनके सहयोगियों के अत्याचारो को सहते सहते निष्क्रिय , कायर और सहिस्णु हो गए है , न्याय के प्रति अपनी निष्ठा और तेज आत्मविश्वाश भी आज के आर्य खो चुके राम। अगर उनके सहयोग के बिना ही तुम राक्षसों का नाश कर दोगे ---- तो उनका तेज कैसे लौटेगा राम ??/
जब भी फिर कोई नया राक्षस जन्म लेगा , लोग उससे कैसे लड़ेंगे ?? अगर तुमने ही उनका नाश कर दिया , तो हर कार्य में बार बार वो तुम्हारी ही प्रतीक्षा करेंगे। उनका आत्मविश्वाश कभी नहीं लौट पायेगा।
राम तुम राक्षसों का नाश करने के साथ साथ लोगो के आत्मविश्वाश को भी जगाओगे। न्याय में जो आस्था खो चुकी है , उसे आप वापस लोटाये।
तुम अपना राम राज्य स्थापित करोगे राम ---- तुम किसी अवतार की तरह व्यव्हार मत करो --- तेजस्वी प्रजा अपने आप में ईश्वर होती है , अत प्रजा की दीक्षा भी अत्यंत महत्वपूर्ण है , अवतार की आशा ही तो आर्यो को निर्बल बना चुकी है , तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे पुत्र -- की लोगो को तुम पर अति-विश्वाश हो जाए , और सारा भार तुम पर ही छोड़ के खुद निश्चिन्त हो जाए।
राम स्वीकृति में मुस्कुराये --- जैसी आपकी आज्ञा गुरुदेव। .
कमशः

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