रामायण ----- ( #सिंह_पुरुष_श्री_राम )
ताड़का वध के बाद राम की अद्भु वीरता का यश चारो और फेल चुका है , विश्वामित्र अब जनसभा को संबोधित करने आये , की आज तक राक्षसों से केवल हमारा संघर्ष चल रहा था , अब युद्ध की घोषणा हो चुकी है , यह युद्ध केवल राम को नहीं , प्रत्येक देशवाशी को लड़ना है , अब में यह नहीं कह सकता की राक्षसों का आक्रमण रात्रि में होगा या दिन में , किन्तु हमें इसी समय से पूर्ण सावधान रहना होगा। जिसके पास जो भी शस्त्र हो उसे वह धारण करें , और जिसके पास सस्त्र नहीं है , वो शस्त्र का स्वम् निर्माण करें या म्रत्यु के लिए सज्ज रहे , क्यू की राक्षसो को शाश्त्र नहीं , शस्त्र ही समझ में आते है।
विश्वामित्र ने एक शिष्य को कहा , की अब नगर नगर जाकर लोगो को जागरूक करने का काम तुम्हारा है --- ग्राम वालो को सुचना दो की ताड़का का वध हो चूका है , और बाकी के शाशको के विरुद्ध धर्मयुद्ध करने के लिए यथा शीघ्र पहुंचना है।
इसी बीच राम बोले - गुरुदेव मुझे रात्रि के आक्रमण की कोई सम्भावना नहीं दिखती ,
सम्भावना सचमुच बहुत कम है राम , किन्तु सावधानी तो आवयशक है ही , किन्तु आज से पहले आश्रम की यह अवस्था नहीं थी राम , आश्रम के आस-पास राक्षस नर की बलि लेने , उनकी हड्डिया चबाने को घूमते ही रहते थे , आश्रम के आस-पास मदिरा की दुर्गन्ध आती थी , अब चारो और शांति है पुत्र , ना उनके आखेट के स्वर , और ना ही उनके नृत्य का , ताड़का के वध के बाद वे भयभीत हो गए है , वे अत्याचारी है , वीर नहीं।
गुरु अब वापस कुटिया की पड़े , राम आश्रम की रक्षा करने के लिए कुटिया के बाहर ही खड़े रहे।
वहीँ एक १० वर्ष का ब्रह्मचारी ब्राह्मण बड़ी देर से राम को आँखे भर भर के देख रहा था , राम ने उसे देखकर पुछा - क्या नाम है तुम्हारा बालक।
" सत्यप्रिय "
राम हंसे - तुम तो सत्यप्रिय हो , युद्ध प्रिय तो नहीं , फिर युद्ध करने क्यू आये हो ?
बालक ने संकुचित होकर उत्तर दिया , आर्य में सत्यप्रिय हूँ , और ब्राह्मण हूँ , इसीलिए युद्ध करना अब मेरा कर्तव्य है , असत्यप्रिय होता , तो राक्षसों के भवनों में जाकर सुख से सो रहा होता।
उस बालक के हाथ में केवल एक लकड़ी थी , राम ने फिर पुछा , तो क्या इस लकड़ी से तुम राक्षसों से कैसे लड़ोगे ??
मै इसे जलाकर राक्षसों की ढाढ़ीया झुलसा दूंगा ,
लक्षमण इतने समय चुप बैठे थे , किन्तु इस बार वे स्वम् को रोक नहीं सके , उन्होंने जोर का अट्टहास किया ,--- सत्यप्रिय यह युद्ध बड़ा ही मनोरंजक होने वाला है। सारे राक्षस अपनी जलती दाढियो से व्याकुल इधर उधर भागते हुए नज़र आएंगे।
राम मंद मंद मुस्कुरा रहे थे
सुबह जब गुरु स्नान करने आये , तो आश्रम का वातवरण ही बदल चुका था , आसपास के लगते सभी ग्रामो के लोग कुछ ना कुछ हथियार लेकर सैनिक रूप धारण कर चुके थे , यह वह लोग थे , जो गुरु के बार बार आह्वाहन करने पर भी घरो से निकलने को राजी नहीं थे , उन्होंने तो राक्षसों के डर से अपने घरो को छोड़ छोड़ कर पलायन करना शुरू कर दिया था , राक्षस नाम सुनते ही जिनके मुह पिले पड़ जाते थे , वही आज राक्षसों से लड़ने को आक्रामक मुद्रा में बैठे थे।
गुरुअपनी गरिमापूर्ण सहज गति से तेजी से आगे बढे , मध्य में बैठे राम और लक्ष्मण के पास पहुंचे ,
राम तुमने चमत्कार किया है पुत्र -- यह शोषित और दलित प्रजा आज आर्य बन चुकी है , आज यह लोग कितने समर्थ लग रहे है , मै आज मान गया हूँ , प्रजा ना तो कायर होती है न आलसी , पर उचित नेतृत्व का निरंतर अभाव उन्हें कायर और निर्बल बना देता है, और जनता अन्यायों के प्रति सहिष्णु हो जाती है । उचित नेतृत्व मिलते ही , ठन्डे गीले प्रदार्थ में आग लग जाती है , उसका तेज जाग्रत हो जाता है।
तुम समर्थ हो राम। तुम समर्थ हो ------
आपकी ही महिमा है गुरुदेव , राम ने मस्तक झुकाते हुए नम्र वाणी में कहा , अब आपसे एक प्रार्थना है , युद्ध का आह्वाहन अब हम करे गुरुदेव में लक्ष्मण और सारी प्रजा युद्ध के लिए सज्ज है गुरुदेव। तबी एक संदेशवाहक ने कहा ---- गुरुदेव --- राक्षस अपने शिविर से आश्रम की और निकलते दिखाई पड़ रहे है , राम और लक्ष्मण तुरंत चौकन्ने हो गए।
मारीच और सुबाहु ------ किसी ने टोली में से बिच में ही कहा ,
राक्षस बड़ी तेजी के साथ बढ़ते हुए आश्रम की और आ रहे है , तभी राक्षसों की टोली की नज़र राम पर पड़ी , उनकी लाल लाल आँखे , मुछ कटी हुई ढाढ़ी , आँखे जैसे क्रोध के मारे निकालकर कटोरो की भांति हो चुकी थी ,
विकत हुंकार कर मारीच ने मांस खंड उस और उन्चाल दिया, जिस और विश्वामित्र अन्य ऋषियों के साथ यज्ञ कर रहे थे , और मांस का टुकड़ा उन्चालकर स्वम राम की और खडक तानकर भागा।
राम के लिए यह परीक्षा की घडी थी , क्यू की उन्होंने ऐसे मायावी राक्षसों का सामना कभी नहीं किया था , अगर मारीच को रोकते तो यज्ञ अपवित्र हो जाता , और मांस के टुकड़े को रोकते , तो मारीच खड्ग से उनपर वार कर देता।
ताड़का वध के बाद राम की अद्भु वीरता का यश चारो और फेल चुका है , विश्वामित्र अब जनसभा को संबोधित करने आये , की आज तक राक्षसों से केवल हमारा संघर्ष चल रहा था , अब युद्ध की घोषणा हो चुकी है , यह युद्ध केवल राम को नहीं , प्रत्येक देशवाशी को लड़ना है , अब में यह नहीं कह सकता की राक्षसों का आक्रमण रात्रि में होगा या दिन में , किन्तु हमें इसी समय से पूर्ण सावधान रहना होगा। जिसके पास जो भी शस्त्र हो उसे वह धारण करें , और जिसके पास सस्त्र नहीं है , वो शस्त्र का स्वम् निर्माण करें या म्रत्यु के लिए सज्ज रहे , क्यू की राक्षसो को शाश्त्र नहीं , शस्त्र ही समझ में आते है।
विश्वामित्र ने एक शिष्य को कहा , की अब नगर नगर जाकर लोगो को जागरूक करने का काम तुम्हारा है --- ग्राम वालो को सुचना दो की ताड़का का वध हो चूका है , और बाकी के शाशको के विरुद्ध धर्मयुद्ध करने के लिए यथा शीघ्र पहुंचना है।
इसी बीच राम बोले - गुरुदेव मुझे रात्रि के आक्रमण की कोई सम्भावना नहीं दिखती ,
सम्भावना सचमुच बहुत कम है राम , किन्तु सावधानी तो आवयशक है ही , किन्तु आज से पहले आश्रम की यह अवस्था नहीं थी राम , आश्रम के आस-पास राक्षस नर की बलि लेने , उनकी हड्डिया चबाने को घूमते ही रहते थे , आश्रम के आस-पास मदिरा की दुर्गन्ध आती थी , अब चारो और शांति है पुत्र , ना उनके आखेट के स्वर , और ना ही उनके नृत्य का , ताड़का के वध के बाद वे भयभीत हो गए है , वे अत्याचारी है , वीर नहीं।
गुरु अब वापस कुटिया की पड़े , राम आश्रम की रक्षा करने के लिए कुटिया के बाहर ही खड़े रहे।
वहीँ एक १० वर्ष का ब्रह्मचारी ब्राह्मण बड़ी देर से राम को आँखे भर भर के देख रहा था , राम ने उसे देखकर पुछा - क्या नाम है तुम्हारा बालक।
" सत्यप्रिय "
राम हंसे - तुम तो सत्यप्रिय हो , युद्ध प्रिय तो नहीं , फिर युद्ध करने क्यू आये हो ?
बालक ने संकुचित होकर उत्तर दिया , आर्य में सत्यप्रिय हूँ , और ब्राह्मण हूँ , इसीलिए युद्ध करना अब मेरा कर्तव्य है , असत्यप्रिय होता , तो राक्षसों के भवनों में जाकर सुख से सो रहा होता।
उस बालक के हाथ में केवल एक लकड़ी थी , राम ने फिर पुछा , तो क्या इस लकड़ी से तुम राक्षसों से कैसे लड़ोगे ??
मै इसे जलाकर राक्षसों की ढाढ़ीया झुलसा दूंगा ,
लक्षमण इतने समय चुप बैठे थे , किन्तु इस बार वे स्वम् को रोक नहीं सके , उन्होंने जोर का अट्टहास किया ,--- सत्यप्रिय यह युद्ध बड़ा ही मनोरंजक होने वाला है। सारे राक्षस अपनी जलती दाढियो से व्याकुल इधर उधर भागते हुए नज़र आएंगे।
राम मंद मंद मुस्कुरा रहे थे
सुबह जब गुरु स्नान करने आये , तो आश्रम का वातवरण ही बदल चुका था , आसपास के लगते सभी ग्रामो के लोग कुछ ना कुछ हथियार लेकर सैनिक रूप धारण कर चुके थे , यह वह लोग थे , जो गुरु के बार बार आह्वाहन करने पर भी घरो से निकलने को राजी नहीं थे , उन्होंने तो राक्षसों के डर से अपने घरो को छोड़ छोड़ कर पलायन करना शुरू कर दिया था , राक्षस नाम सुनते ही जिनके मुह पिले पड़ जाते थे , वही आज राक्षसों से लड़ने को आक्रामक मुद्रा में बैठे थे।
गुरुअपनी गरिमापूर्ण सहज गति से तेजी से आगे बढे , मध्य में बैठे राम और लक्ष्मण के पास पहुंचे ,
राम तुमने चमत्कार किया है पुत्र -- यह शोषित और दलित प्रजा आज आर्य बन चुकी है , आज यह लोग कितने समर्थ लग रहे है , मै आज मान गया हूँ , प्रजा ना तो कायर होती है न आलसी , पर उचित नेतृत्व का निरंतर अभाव उन्हें कायर और निर्बल बना देता है, और जनता अन्यायों के प्रति सहिष्णु हो जाती है । उचित नेतृत्व मिलते ही , ठन्डे गीले प्रदार्थ में आग लग जाती है , उसका तेज जाग्रत हो जाता है।
तुम समर्थ हो राम। तुम समर्थ हो ------
आपकी ही महिमा है गुरुदेव , राम ने मस्तक झुकाते हुए नम्र वाणी में कहा , अब आपसे एक प्रार्थना है , युद्ध का आह्वाहन अब हम करे गुरुदेव में लक्ष्मण और सारी प्रजा युद्ध के लिए सज्ज है गुरुदेव। तबी एक संदेशवाहक ने कहा ---- गुरुदेव --- राक्षस अपने शिविर से आश्रम की और निकलते दिखाई पड़ रहे है , राम और लक्ष्मण तुरंत चौकन्ने हो गए।
मारीच और सुबाहु ------ किसी ने टोली में से बिच में ही कहा ,
राक्षस बड़ी तेजी के साथ बढ़ते हुए आश्रम की और आ रहे है , तभी राक्षसों की टोली की नज़र राम पर पड़ी , उनकी लाल लाल आँखे , मुछ कटी हुई ढाढ़ी , आँखे जैसे क्रोध के मारे निकालकर कटोरो की भांति हो चुकी थी ,
विकत हुंकार कर मारीच ने मांस खंड उस और उन्चाल दिया, जिस और विश्वामित्र अन्य ऋषियों के साथ यज्ञ कर रहे थे , और मांस का टुकड़ा उन्चालकर स्वम राम की और खडक तानकर भागा।
राम के लिए यह परीक्षा की घडी थी , क्यू की उन्होंने ऐसे मायावी राक्षसों का सामना कभी नहीं किया था , अगर मारीच को रोकते तो यज्ञ अपवित्र हो जाता , और मांस के टुकड़े को रोकते , तो मारीच खड्ग से उनपर वार कर देता।
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