राम के सामने अभी विकट परीक्षा है , एक और मारीच ने यज्ञ की तरफ मांस का टुकड़ा फेंक दिया है , और दूसरी और वायु की गति से राम की और खडग लेकर दौड़ा।
निमिष मात्र में अब शरीर और मस्तिक को एक साथ काम करना था , राम ने कान तक धनुष की प्रतनच्या तान एक साधारण बाण मारा , बाण ने शक्तिशाली पक्षी के समान झपटते हुए उस मांस खड़ को यज्ञ वेदी से बहुत दूर उसे वायु में ही रोक दिया।
किन्तु मारीच ---- राम ने तूणीर से दूसरा बाण खींचा और लाघवपूर्ण इसे कम अंतराल में चला दिया। मानो दोनों बाण साथ साथ ही छोड़े गए हो , किन्तु मारीच को लगते ही राम समझ गए की यह बाण मारीच के लिए उपयुक्त नहीं , वह शीतेसु नामक मानवास्त्र था , साधारण मनुष्य के लिए यह अस्त्र यम का दूत था , किन्तु मारीच जैसे बलवान राक्षस के लिए कदाचित इसकी शक्ति अप्रयाप्त थी।
सितेषु ने मारीच की छाती पर आघात किया , राम लक्ष्य से सुई की नोक पर भी नहीं भटका था , वह जानता था , की कौनसा अस्त्र उसे कहाँ छोड़ना है। लंबी चीख निकलते हुए मारीच झाड़ियो में जा फंसा।
कुछ समय राम ने मारीच की प्रतीक्षा की , किन्तु उसके लौटने का अब कोई चिन्ह नहीं था , सुबाहु ने भी अब आक्रमण का कोई प्रयत्न नहीं किया , वह भोच्चका होकर राम मारीच युद्ध देख रहा था , इससे पूर्व उसने किसी मानव को राक्षसों के विरुद्ध युद्ध करते नहीं देखा था , वह मारे भय के मारीच के लौटने की प्रतीक्षा कर रहा था। किन्तु मारीच के लौटने का कोई आभास नहीं था , या तो वह मर चुका था , या गंभीर घाव खा कहीं पड़ा था , सुबाहु अपनी स्तिथि के प्रति सजग हुआ , जहाँ वह आश्रम में अपने शत्रुओ से घिरा हुआ था , सामने राम थे , और दूसरी और लक्ष्मण। लक्ष्मण बच्चा था , किन्तु राम साधारण मानव नहीं थे। उन्होंने ताड़का और मारीच जैसे राक्षसों को मार गिराया था।
राम अपने तीसरे बाण के साथ अब प्रस्तुत थे , इस बार वे संयोग पर निर्भर नहीं थे , चयन का अवसर मिल गया था , उन्होंने इस बार [ पर आग्नयस्त्र धारण किया , इस अस्त्र का प्रहार सुबाहु नहीं झेल सकता , यह राम जानते थे।
सुबाहु ने अपना खड्ग तान राम की और दौड़े , ह
इस बार राम को कोई जल्दी नहीं थी , पूर्ण योजना के अनुसार राम ने धनुष ताना और तीर अग्निअस्त्र छोड़ दिया ,
यह तीर भी सीधा सुबाहु की छाती पर जाकर लगा , रक्त का उत्स फूटा , सुबाहु का शरीर निमिष-भर काँपा और पृथ्वी गिर पड़ा , उसकी गर्दन तनिक सी हिली माथे पर पीड़ा की रेखाएं प्रकट हुई , और मुह से रक्त बह निकला , मरते हुए पशु के समान वह पीड़ा में डकराया और उसने अपना निष्चेश्ट शरीर भूमि पर टेक दिया।
राम ने मारीच के आने की प्रतीक्षा की , पर मारीच कहीं दिखाई नहीं दे रहा था ,
इधर राक्षसों की सेना ने लक्ष्मण पर आक्रमण कर दिया , अपने स्वाभाव के अनुसार कदाचित उन्होंने गुप्त प्रहार किया , किन्तु लक्ष्मण अपनी टोली के साथ पूर्णतः सावधान थे , राक्षस लगभग वैसे ही भयंकर थे , जैसे मारीच और सुबाहु थे , किन्तु आकर में थोड़े छोटे थे , और उनके शरीर पर महंगे आभूषण भी नहीं थे।
उन्होंने आक्रमण के साथ ही मारीच और सुबाहु का परिणाम भी देख लिया था , मुख पर क्रूरता तथा भय दोनों व्याप्त था , भय से मुक्त होने के लिए वह जोर जोर से चिल्ला रहे थे , व्यव्हार में आक्रमक होने का प्रयत्न कर रहे थे , किसी निश्चित योजना के हिसाब से व्याकुल होकर इधर उधर भाग रहे थे ,
लक्ष्मण चुन चुन कर राक्षसों को मार रहे थे , राक्षशो की संख्या लगातार कम हो रही थी , आज सभी आर्य एक होकर राक्षसों का सामना कर रहे थे , और एकता के बल का परिणाम भी उनके सामने था।
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