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Tuesday, January 31, 2017

विश्वामित्र अयोध्या त्याग का वचन राम से चाहते है अब आगे --- #रामायण भाग - ९

विश्वामित्र अयोध्या त्याग का वचन राम से चाहते है अब आगे --- #रामायण भाग - ९
राम के मन में विभिन्न दिशाओ में व्याकुल टक्कर मारती , ऊर्जा की क्षुब्द चपलटाओ में जैसे सामजंस्य स्थापित हो रहा था , एक आकर ग्रहण करती जा रही थी , पर राम के भीतर कुछ कर गुजरने का संतोष जैसे आधार पाकर उस पर टिक शांत होता जा रहा था।
राम उसी प्रकार सरल मुख से मन्द मन्द मुस्कुराये , और उसी मुसकान के साथ पहले से अधिक कहीं सहज भाव में बोले , " ऋषिवर कोई चेतावनी देनी हो तो दे दीजिये , कोई मार्ग में बाधा आती है, तो वो भी जता दीजिये , बड़ी से बड़ी और भी कोई बाधा आप मेरे समक्ष प्रस्तुत कर दीजिये , वचन में उसके पश्चात ही आपको दूंगा।
सहसा राम का मुस्कुराता हुआ मुख आवेश से आरक्त हो गया , उनके मुख पर सात्विक तेज उद्भासित होने लगा , स्वर की गंभीरता अधिक प्रखर हो उठी , उ उनका स्वर जैसे आकाश से बिजली की तरह गुंजकर आ रहा था।
ऋषिवर। ... मै आपको वचन देता हूँ , मेरे जीवन का लक्ष्य राज-भोग नहीं न्याय का पक्ष लेकर लड़ना , अन्याय का विरोध करना , व्यक्तिगत स्वार्थो का त्याग कर जनकल्याण के मार्ग पर आने वाली बाधाओ का नाश कर सबके हितो की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पण करता हूँ मै आपको वचन देता हूँ , में स्वम् तपस्वियों के पास जाऊँगा , जिन्होंने अपने सत्य और न्याय के चिंतन में साधना में ज्ञान और विज्ञान की बृद्धि में जीवन खपा दिया है। जो अपनी रक्षा का वचन लेने मुझ तक नहीं आ सकते , में उन तक पहुंचूंगा , और अन्याय की सारी शाखाओ को उसकी जड़ के साथ समाप्त करूँगा।
मेने जीवन का अब यही एक लक्ष्य मान लिया है गुरुदेव। मेरी ऊर्जा अब मधुर संगीत राजदरबारों , और परिवार की लालसा मोह को छोड़ , किसी सार्थक धर्महित के काम में खर्च होगी। अब इससे मुझे कोई नहीं रोक सकता , चाहे वह मेरे माता पिता हो , या भाई बंधू हो , और गुरुवर मेरे राज्य की अपेक्षा ना करें, मुझे राज्य मिलेगा, ऐसी अपेक्षा अयोध्या में किसी को नहीं है।
लक्ष्मण बीच में ही बोल पड़े , गुरुवर जो वचन भैया राम ने दिए है ---- वह मेरे भी वचन है , भैया राम जहाँ भी संघर्ष करेंगे , उनकी परछाई बन के में सदैव उनके साथ रहूँगा , वो चाहे घने जंगलो का निवास हो , या राजप्रसादो का आनंद , मेरा जीवन में आज और अभी से भैया राम के वचनों को पूरा करने के लिए समर्पित करता हूँ।
विश्वामित्र ने देखा - दोनों ही बालक क्षत्रिय धर्म की पूर्ण उग्रता के रूप में मूर्तिमान थे , लक्ष्मण तो इस संघर्ष के लिए राम से भी अधिक व्याकुल दिखाई दे रहे है , उनके नेत्र में अपने बड़े भाई राम के लिए एक पिता के समान श्रद्धा और सम्मोहन का भाव था।
विश्वामित्र शिथिल नहीं हुए , उन्होंने जैसे एक तृप्त धातु पर धन-बहार किया , राम। में तुम्हे अंत में एक कटु बात कहना चाहता हूँ , तुम्हारे वंश में पत्नी प्रेम बहुत प्रसिद्ध है , यदि तुम्हारे मार्ग में बाधा स्वरूप तुम्हारी पत्नी आ गयी तो ?/
भाभी ?// लक्ष्मण कौतुकपूर्व हंसे .
राम के सरल मुख की आभा लजाकर लाल हो गयी , गुरु ठीक कह रहे थे , राम की आँखों के सम्मुख दसरथ का चेहरा घूमने लगा , गुरु ने बड़ा कोमल किन्तु सार्थक सवाल पूछा था।
" इस विषय में मुझे मौन ही रहने दीजिये गुरुवर। जो चीज़ अभी मेरे जीवन में आयी ही नहीं , उसके विरुद्ध अभी से में पूर्वाग्रह एकत्र्तित नहीं करना चाहता , किन्तु आपकी सामयिक चेतावनी व्यर्थ नहीं जायेगी , इतना वचन तो में दे ही सकता हूँ।
लक्ष्मण का मन भाई की बात की गंभीरता से हटकर विवाह की और बहक गया था , वे राम के लजाये चेहरे को देख देख कर मुस्कुरा रहे थे।
विश्वामित्र हंस पड़े - उनकी मन की सारी दुविधाएं मिट गयी , ह्रदय निर्मल हो उठा।
वे राम को देख रहे थे , राम पत्नी की बात नहीं करना चाहते , अपने वंश पत्नी प्रेम का प्रतिवादन उन्होंने नहीं किया , एक प्रकार से वचन ही तो दे दिया।
विश्वामित्र की कल्पना इधर उधर नहीं भटकती , वे निर्णय ले चुके है , राम को वैसी पत्नी नहीं चाहिए, जैसी दसरथ चाहते है , राम की पत्नी भिन्न होनी चाहिए , इंदुमती से भिन्न , कौशल्या , सुमित्रा , और कैकेयी से भिन्न , साधारण कन्या, किन्तु राजसी संस्कारो से परिपूर्ण , उसके लिए उनके मन में बार बार जनकपुर का राजप्रासाद ही घूमता है।
राम की वीर गाथा जारी है ----- शेष कल के भाग में

Monday, January 30, 2017

हिन्दुओ के अप्रत्यक्ष शत्रु -- #रंगीला_गांधी ( भाग -1)

हिन्दुओ के अप्रत्यक्ष शत्रु --  #रंगीला_गांधी  ( भाग -1)

दोस्तों इस पोस्ट पोस्ट को  सिर्फ १८ साल के ऊपर के वयस्क लोग ही पढ़े, हाँ अगर कोई जिम्मेदार किशोर राष्ट्र और हिन्दू धर्म का भार  अपने सर पर लेना चाहता है , वो १५ साल का भी युवा पढ़ सकता है , कासिम का वध १६ साल की २ ब्राह्मण बालाओ  ने की थी , अगर कर्म से कोई ब्राह्मण बाला  भी सबसे ऊपर धर्म और राष्ट्र को रखती है, तो उन्हें भी यह पोस्ट जरूर पढ़नी चाहिए।

 पंजाब उच्च न्यायलय के एक न्यायमूर्ति श्री जी डी खोसला ने एक किताब लिखी है , THE STREN RECKONING .  इस पुस्तक में विभाजन और विभाजन तक हुई घटनाओ के बारे में जानकारी मिलती है , इसके भयवाह परिणामो का वर्णन श्री कपूर ने इस पुस्तक में किया है।

११ दिसंबर १९४५ में डॉन  समाचार पत्र ( पाकिस्तान) में जिन्ना ने कहा है की " यदि वे लोग स्वेच्छा से स्थानांतरण चाहते है तो ऐसा हो सकता है , वे लोकमत को टालना चाहते थे , जो प्रान्त पाकिस्तान में जाने वाले थे , वहां के हिन्दुओ की इसमें सहमति नहीं थी , किन्तु मुस्लिम लीग को इस स्थानांतरण योजना का किर्यान्वय तुरंत चाहिए था।  वे लोकमत को टटोलना चाहते थे , क्यू की इससे पाकिस्तान का विरोध करने वाले को उतर मिलने वाला था , पंजाब , उतरी पश्चिमी प्रांतो के हिन्दू अपना व्यवसाय छोड़ने को तैयार नहीं थे , यह व्यापर उनकी वर्षो की पीढियो ने खड़े किये थे ,  मुसलमान  जिन्ना की मन की लहर पर उन्हें भिखमंगे होना या भटकना स्वीकार नहीं था , दूसरी और उत्तरप्रदेश , बम्बई, मद्रास, बिहार, मध्यप्रदेश आदि प्रान्तों के मुसलमानो को भी अपना घरबार छोड़ना जंचता नहीं था , इस कठिनाई का हल ढूंढने के लिए मुस्लिम लीग को सोचना अनिवार्य हो गया था।

कलकत्ता में हिन्दुओ का भयंकर नरसंघार हुआ , अकेले लालबाजार एरिया ( कलकाता ) में ३००० हिन्दुओ को काटकर रोड पर बिछा  दिया गया , यह तो सरकारी आंकड़े है , बाकी आप खुद अनुमान  लगा लीजिये, ३०० मरते है, तो ३० बताया  जाता है, एक या २ जीरो कम करने की आदत हमेशा से ही रही है।

 अब इस हत्याकांड से निर्मित आतंक ने हिन्दुओ को घर छोड़ने पर मजबूर किया , एक ऐसा प्रयोग नोआखाली और टिप्पेरा भाग में सफल हुआ , बिहार में इसकी प्रतिक्रिया हुई , और यहाँ के मुसलमानो को सिंध जाना पड़ा।

पंजाब में हिन्दू नेता ताराचंद सिंह जी ने भी इस विभाजन का जब विरोध किया, मुस्लमान तो केवल हिंसा का बहाना ही ढूंढते थे , रावलपिंडी में हुए हत्याकांडो का वर्णन " रावलपिंडी का बलात्कार " के नाम से जाना जाता है , अपनी प्राणरक्षा के लिए हिन्दुओ को इस्लाम धर्म स्वीकार करना पड़ा , हिन्दू और सिख स्त्रियों ने भारी  मात्रा में अग्नि में प्रवेश कर  जोहर की प्रथा निभायी , उन्होंने कुंओ में छलांग लगाकर आत्मबलिदान किया , अपनी बच्चियों को उन्होंने अपने आप मार डाला।  अपनी लज्जा रक्षा का उनके पास केवल यही उपाय था।  गाड़िया भर भर कर निर्वासित हिन्दू  भारत आने लगे , उसका ब्यौरा भी ह्रदय बिचलित कर देने वाला है।  डिब्बो में साँस लेने तक का स्थान नहीं था , डिब्बो की  छत  भी खंचाखच भरी रहती थी।  पंजाब के मुसलमानो का आग्रह था की लोगो का स्थानांतरण होना चाहिए , परन्तु वह इतने सीधे ढंग से , बिना किसी छल  के हो यह बर्दास्त नहीं था , इन हिन्दुओ को जाते  समय भयानकता , क्रूरता, पशुता , अमानुषिकता , अवहेलना भावो का अनुभव मिलना  ही चाहिए था , ऐसी उनकी कामना थी, और वैसा ही व्यवहार विभाजन के समय हर जगह के मुसलमानो ने किया , जहाँ वे बहुसंख्यक थे।

पानी के नल तोड़ दिए गए , बच्चे भूख और प्यास में छटपटा कर मरे, यह तो अलग समश्या  थी , माता पिता अपने बच्चो को जिन्दा रखने के लिए, उनकी प्यास बुझाने के लिए मूत्र तक पिला कर जिन्दा रखने की कोशिश कर रहे थे।  वहां से लौटने वाली हर हिन्दू कन्या और जवान स्त्रियों का बलात्कार हुआ, या वहीँ उन्हें गुलाम बनाकर रख लिया गया।  बूढ़े बुजुर्ग लोग भागते भागते सांस फूलकर ही मर जाते थे।  यह तो था  हिन्दुओ के साथ मुसलमानो  का हम हिन्दुओ के साथ व्यव्हार , जो यह बात स्पष्ठ करती है , मुसलमान  हिन्दुओ के कभी नहीं हुए, यह कोम  हमेशा हमें खत्म करने की साजिशें, और हम पर जुल्म ही करती रही है।

विभाजन में मोहनदास करमचंद गांधी यानी महात्मा की भी बहुत बड़ी भूमिका थी , हिन्दुओ के कत्ले आम में उनका कम योगदान नहीं था , उसकी चर्चा करते है, किन्तु पहले आप जानिये इस गांधी का जीवन चरित्र ( बोले तो रंगीन जिंदगी रसूल सी )

इस पाखण्डी के जीवन काल में डॉ भीम राव आंबेडकर , नेताजी बोस, विट्टल भाई पटेल, लाला लाजपतराय , भगत सिंह, और अन्य क्रान्तिकारियो ने कड़ी शब्दो में आलोचना की , परंतु इसकी हत्या के बाद इसे हीरो बना दिया गया , कम्युनिस्ट जो कभी गांधी को पुंजिपतियो का समर्थक कहते थे , वे इस सम्बन्ध में अब चुप रहते है, क्यू की गांधी पर बोलने से मुस्लिम वोट उनके छीन  जायँगे, क्यू की मुसलमानो ने मिनी-पैगम्बर मोहनदास ने हिन्दुओ के कत्लेआम में अप्रत्यक्ष रूप से उनकी हद से बाहर जाकर ही मदद की थी।   भारत में एक मुगलशासक ने हिन्दुओ की जितनी हत्याएं करवाई , गांधी तो उस मुग़ल से भी कहीं श्रेष्ठ निकला।

सच्चाई वास्तब में यह है की गांधी एक बहुत बड़ा पाखंडी , ढोंगी , पुंजिपतियो व् विसेषाधिकारियो का रक्षक , मजदूरो , दलितो, का शत्रु था , देशभक्तो और राष्ट्रवादियो का प्रथम शत्रु , और समाजवाद का सबसे बड़ा विरोधी था।

  हिन्दू धर्म का सारा संत समुदाय  हमें कामवासना से बचने  के लिए इन्द्रियों के दमन की बात करते है , इसने ब्रह्मचर्य ढोंग शुरू किया , अर्ताथ ब्रह्मचर्य की आड़ में कामाचार का पूरा आनंद इसने जीवन भर उठाया।

एक सनातनी के लिए मनु महाराज के आदेश है

माता, बहन, और पुत्री के साथ कभी एकांत में ना रहे , क्यू की बलवान इन्द्रिया विद्धवानो को भी अपने बस  में कर लेती है , स्त्रियों का यह स्वाभाव है  की इस संसार में अपने आकर्षक सौन्दर्य द्धारा  पुरषो में बुराइया उतपन्न कर देती है , इसलिए विद्धवान  पुरषो को स्त्रियों के मामले में सचेत रहना चाहिए।

अब मनु के आदेसो के अनुसार को विद्धवान  महात्मा मोहन दास को सनातन परम्परा का पालन करते हुए एकांत में रहना चाहिए था , यह ढोंगी संत समुदाय का समर्थक भी था , और सन्त कबीर कहते है।

नारी की है झांई पडत , अँधा होत  भुजंग
कह कबीर तिन  की गति ,जो नित नारी संग

 अर्थात नारी की छाया पड़ने से तो सांप भी अँधा हो जाता है  तो उनकी दशा क्या होगी, जो सदैव स्त्री-संग रहता है।

 यह ढोंगी ना केवल उन्हें स्पर्श करता था , बल्कि खुद निवस्त्र होकर उनसे मसाज करवाता था , और  लड़कियों को निवस्त्र कर अपने पास सुलाता था ---

गाँधी की पाप गाथा जारी है --------

आवयश्यक सुचना - कुछ दिन से सारा सिस्टम ही अस्त-व्यस्त हो गया है , कल से  मेरी पोस्ट दिन में सिर्फ ३ आएगी

१ - रामायण
२- मेरा राष्ट्रवाद
३ - हिन्दुओ  अप्रयत्क्ष शत्रु

जुड़े रहिये और अपने अंदर के राष्ट्रवादी क्षत्रिय को जगाये , आप जाग गए , उसी को शिव का तीसरा नेत्र कहा जाएगा।

महारानी पद्मिनी के जौहर के कारण ----- पढ़िए।

Image result for rajput joharमहारानी पद्मिनी के जौहर के कारण ----- पढ़िए।
मुस्लिम शाशन में प्रत्येक दिन हिन्दुओ को लुटा और अपमानित ही किया जाता रहा है , असभ्य मुसलमान आज भी इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है , जुल्फिकार भुट्टो ने जब भारतीय हिन्दुओ को " कुत्ता " कहा था , तो वह केवल अपने मालिको की पूर्व परंपरा को ही निभा रहा था , हर भारतीय मुसलमान , और मुसलमानो के धर्म ग्रन्थ हिन्दुओ के विरुद्ध नफरत और घ्रणा की ही शिक्षा देते है , उसी का परिणाम यह है की आज अखंड भारत, सोने की चिड़िया भारत टूट फुट के छिन्न भिन्न हो गया , जिस जमीन को हमारे पूर्वजो ने अपने खून से सींच कर पावन बनाया, वो सारी जमीन अपराधी राष्ट्रद्रोही कोम मुस्लमान ने अपने अधिकार में ले ली , जो पावन हिन्द की भूमि न्याय का मंदिर मानी जाती थी , वह आज आतंक का गढ़ बन चुकी है , वजह सिर्फ एक है ---- " मुसलमान "
यह इस्लाम और मुसलमानो ने हम हिन्दुओ के घावों को भरने ही नहीं दिया , हमेशा छल कपट की नुकीली तलवार से हम हिन्दुओ के घावों की दरारों को मुसलमान चौड़ा करते रहे है , ताकि रक्त बहने की गति कभी कम ना हो ।। तलवारो के भी अलग अलग नाम है , सबसे बड़ी तलवार का नाम कांग्रेस है , यह तलवार कहीं जंग लगकर खत्म हो जाए, तो और भी कई ऐसी तलवारे तैयार हुई है , जो हिन्दुओ के गले काट सके , जैसे सपा, बसपा, आम आदमी , सब के सब हिन्दू विरोधी कार्यो में हमेशा लिप्त पाए गए है , क्यू की एक बात मानकर चलिए, जयचंद पहले भी थे , आज भी है , बीजोपी में भी जयचंदो की कमी नहीं है, यह तो ईश्वर के आशीर्वाद से एक संघी शाशक है , नहीं तो जयचंद यहाँ भी अपना काम करके निकल जाते।
इस समय रानी पद्मिनी पर मूवी को लेकर काफी विवाद शुरू हुआ है , में अल्लाउद्दीन खिलजी की पूरी पाप गाथा लिखूंगा , किन्तु पद्मिनी के पहले उसने और भी कई हिन्दू राजघरानो की देवियो पर अपनी कुदृष्टि डाल चुका था , रानियों को बाल पकड़कर हरम में घसीट चुका था। उनमे से ही एक थी देवल देवी
मुसलमानो की सेनाये अलाउद्दीन खिलजी के नेतृत्व में हिन्दू क्षेत्रो में लूट मचाने निकलती ही थी , इस बार बारी गुजरात की थी , अभियान का भार ऊधुल खान और नुसरत खान के ऊपर था , तबाही के भय से मुस्लिम सेना राजधानी अन्हिलवाड़ को छोड़कर गुजरात के करणराय ने अपनी पुत्री देवल देवी के साथ रामदेव राय की शरण ली , पुरे गुजरात को बहुत ही निर्दयतापूर्ण तरीके से लुटा गया , हिन्दू पुरषो के सर पर हथोड़े मार , गरम सरिये आँखों में घुसा, गला रेंट , लोगो को डराकर मुसल्मान बनाया गया , इससे कम यह तो स्पष्ठ है भारत के मुसलमान उन्ही सताये गए , बलपूर्वक मुसलमान बनाये गए पूर्व हिन्दुओ की ही संताने है।
इधर रानी कमलदेवी अन्तःपुर की अन्य रानियों के साथ मुसलमानो के हत्थे चढ़ गयी , सभी का निर्दयतापूर्ण बलात्कार हुआ , कुख्यात नुसरत खान फिर खमबायत की और बढ़ा , उस सम्पन्न नगर के सारे हिन्दुओ को लूट लिया गया , यहाँ एक खूबसूरत हिन्दू बालक भी अल्लाउदीन खिलजी के हाथ लगा , जिससे वह अप्राकृतिक काम करता था , अलाउदीन एक समलैंगिक था , दोस्ताना जैसी मूवी सबसे पहले उसी पर बननी भी चाहिए थी ,
करन देव ने देवगिरि में शरण ली थी , अतः एक तो अपने शत्रु को शरण देने के कारण , और दूसरा हिन्दू होने कारण अब देवगिरि पर हमला करना जरुरी हो गया था ,
१३०६ में दक्षिण को लूटने के लिए मलिक काफूर के अधीन अलाउद्दीन ने एक सैनिक अभियान की शुरुवात की , गुजरात में स्तिथ एक दूसरे सेनापति अलप खा को ससैन्य मालिक काफूर से मिलने का आदेश दिया गया , इस बहाने से की देवगिरि के राजा रामदेव राय ने वार्षिक नजराना नहीं भेजा है , दूसरी महत्वपूर्ण बात यह थी की पहले अभियान में अलाउदीन केवल गुजरात के राजा करनवीर की पत्नी का ही बलात्कार कर पाया था , उस मुसलमान को तो करणवीर की पुत्री का भी बलात्कार करना था , किन्तु वह अपने पिता के साथ भागकर महाराष्ट्र के राजा राजा रामदेव राय के पास शरण लेने आ चुकी थी। इस बार कोमल तन राजकुमारी देवल देवी को पकड़कर , वहीँ उनका सामूहिक बलात्कार कर , खिज्र खान के हरम में भेज दिया गया , सारा का सारा महाराष्ट्र कुचला गया , अनेक मंदिर मस्जिदों में बदल दिए गए मंदिर मस्जिद में बदल दिए गए।
एक हिन्दू रानी और राजकुमारी का का बलात्कार करने वाले अलाउदीन खिलजी को एक नायक के रूप में दिखाकर बॉलीवुड क्या चाहता है , यह अब हिन्दू खुद समझे

rani padmavati ka jouhar

रानी पद्मिनी ----- जरूर पढ़िए।

अब पढ़िए माँ पद्मावती की जोहर गाथा , बाकी की बात पोस्ट करे बाद करते है।
इस्लाम के नाम पर हिन्दू सरो को कलम करना , नोवी शताब्दी से ही धर्मन्त मुस्लिम लुटेरो का एक खुनी विभस्त इतिहास रहा है , उसका नाम चाहे जो भी रहा हो , अकबर बाबर या अलाउद्दीन खिलजी , प्रत्येक मुस्लिम शाशक कपट और छलता का एक साक्षात अवतार था , सभी एक दूसरे से बढ़कर शैतान थे , इस सच्चाई को जान्ने से पहले आपको अपनी आत्मा को गुलामी से मुक्त करना होगा , , , ऐसा ही एक काला इतिहास है , मुसलमान अलाउद्दीन खिलजी का , जिसकी चर्चा करना आज जरुरी है , इसके बारे में आप सारा सच आजतक इसलिए नहीं जान पाए की , भारत की पहली जनतांत्रिक सरकार का पहला शिक्षा मंत्री एक मुसलमान था , प्रधानमंत्री खुद संभवतः एक मुसलमान ही था , इसके बाद इसकी पुत्री थी , वह भी मुसलमान ही थी , अर्थात मुसलमानो की पार्टी और कटकतिथ सेक्युलर या सवमकतिथ सेक्युलर पार्टी कांग्रेस ही थी , जिसके कारण आप और हम आज तक सच्चा इतिहास नहीं जान पाए , इस लुटरे कांग्रेसी चक्के में एक एक बाद इसके सहपुरजे और हिन्दुविरोधी , सपा, बसपा, कांग्रेस, आमआदमी , लालू यादव , यह सब इस लुटेरी गैंग में अपना योगदान पूरी निष्ठा के साथ दिए , इतना तो उन पुराने मुसलमानो ने ही नहीं लुटा होगा , जितना इन नए मुसलमानो ने अब तक तो ;लूट लिया है , और आगे भी निरंतर जारी है , ना जाने हिन्दुओ की मर्दांगनी किस दिन जागेगी , की इन देशद्रोही ताक़तों को जड़ से उखाड़ फेकेंगे।
जुलाई १२६६ में अलाउदीन खिलजी ने दिल्ली से अपने चाचा और ससुर को लोभ लालच देकर दूर कर्रा में बुलाकर उसकी हत्या कर दी , अब अलाउदीन दिल्ली का सुल्तान था , हाँ इसके बिच में भी इसका बहुत लूटमार का कारनामा रहा है , किन्तु उसकी विस्तृत चर्चा में आपसे कर पाऊं, ऐसा मेरा सोभाग्य नहीं है।
अल्लाउद्दीन की ताजपोशी के एक वर्ष बाद ही मुग़ल सेना सिंध को पार कर पंजाब प्रांत को कुचलने लगी थी , यहाँ से खिलजी ने अपनी सेना को रवाना किया , जालंधर के निकट भीषण संग्राम हुआ , मुस्लिम सेना के हाथ आये सभी मुगलो को काट फेंका गया , गधो और ऊँटो पर लादकर इनकी कटी हुई मुंडियों को गधो और ऊँटो पर लादकर पार्सल कर दिया , अफ्रीका की जंगली जातीया अपने शत्रु का सर गले में डालकर बड़ी इठलाती हुई घूमती है , उन लोगो की सभ्यता की यही निशानी है। जालंधर से वापस लौटते समय सभी मंदिरो को तोड़कर मस्जिद में परिवर्तित कर दिया , हिन्दू स्त्रियों का शील भंग कर बाल पकड़कर उनके हरम वेश्यावर्ती के लिया घसीटा गया।
१२६९ में अलाउदीन की सेनाये नए हिन्दू क्षेत्र की वार्षिक लूट और नरसंघार पर निकली , इस बार गुजरात की बारी थी , अभियान का भार उलुघ खान और नुसरत खान पर था , तबाही फैलाने वाली मुस्लिम सेना के सामने राजधानी अन्हिलवाड़ को छोड़कर गुजरात के करनराय ने अपनी पुत्री देवल देवी के साथ देवगिरि के रामदेव राय की शरण ली थी , अन्हिलवाड़ और गुजरात को निर्विरोध निर्दयतापूर्ण लुटा गया , रानी कमलदेवी अनन्तपुर की अन्य नारियो के साथ मुसलमानो के हाथो पड़ गयी , उन सभी का बलात्कार हुआ , बरनी लिखता है सारा गुजरात आक्रमणकारियो का शिकार हो गया , मुहम्मद गजनवी की लूट के बाद पुनर्स्थापित शिव की प्रतिमा को दिल्ली लाया गया , और लोगो के चलने के लिए नीचे फैला दिया गया था। प्रत्येक मुस्लिम शासक ने बार बार इन कुकर्मो को दोहराया है। सभी के सभी हिन्दू मंदिर आज भी मस्जिद बने हुए है , इस युद्ध में एक सुन्दर हिन्दू बालक भी खिलजी के हाथो पड़ चुका था , जो उसके अप्राकृतिक दुष्कर्म के काम आता था।
इसके कर्मो की लेखनी में बरनी लिखता है " अलाउदीन का हिन्दू विरोधी पाशविक कानून सभी शहरो और गाँवों में बड़ी कठोरता से लागू किया जाता था , चौधरी और मुकादम घोड़े पर नहीं चढ़ सकते थे , शस्त्र नहीं रख सकते थे ,
" नजराना जमा करने के समय यह कानून सभी पर लागू किया जाता था , लोगो को हुक्म का ऐसा गुलाम बना दिया , की एक एक अधिकारियो के साथ बीस - बीस चौधरियो की गर्दन बांधकर लात-मुक्को से भुगतान वसूला जाता है। कोई भी हिन्दू अपना सर ऊँचा नहीं रख सकता था , पगड़ी पहनने तक, और सोने चांदी के बर्तन और जवाहरात रखने पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। लोग नजराना वसूल करने वाले अधिकारी को बुखार से भी बुरा समझते थे , मुंशीगिरी एक बहुत बड़ा अपराध समझा जाता था , कोई भी मुंशी क्लर्क को अपनी बेटी नहीं देता था।
नजराना भी इस प्रकार डरा कर लिया जाता , अगर कोई अधिकारी चांदी मांगे तो उसे सवर्ण देना होगा , अगर कोई अधिकारी मुँह पर धूल फेंके तो बिना किसी हिचकिचाहट धूल खाने के लिए मुँह खोल लेना होगा। इसी तरह इस्लाम का गौरव बढ़ता था , आज भी हम हिन्दुओ का किसी ना किसी माध्यम से अपमान करवा कर ही इस्लाम पवित्रता और महानता हासिल करता है। हिन्दुओ को दबाकर रखना , इन लोगो का परम् धार्मिक कर्तव्य है , क्यू की हिन्दू मुहम्मद पैगम्बर के कट्टर शत्रु है। पैगम्बर ने इन मुसलमानो को हिन्दुओ का कत्ल करने की , उन्हें गुलाम बनाने के आज्ञा जो दी है। हिन्दुओ को मुसलमान में बदल देना , उनकी स्त्रियों को लूटकर लौंडी बना लेना , अपने हरम के लिए , यह कुरआन का आदेश है।
काजी तू बड़ा समझदार है , विद्धवान है , इस्लाम का कानून हिन्दुओ को कुचलकर और दबाकर रखना चाहिए , हिन्दू लोग तब तक हुक्म नहीं मानेंगे, समर्पण नहीं करेंगे , जबतक उन लोगो को एकदम गरीब ना बना दिया जाए , रणथंबोर से लूटने के बाद भी सुल्तान दिल्ली की जनता से बहुत बुरी तरह पेश आया।
रानी माँ पद्मावती
१३०३ में अलाउद्दीन ने चितोड़ पर चढ़ाई कर दी , रति के समान सुन्दर सौन्दर्य देवी रानी पद्मिनी को पाने की लालशा उसके मन में थी , मुस्लिम सेना पर भयंकर प्रहार करते हुए राजपूतो ने दुराचारी मुस्लिम शत्रुओ को अतुलनीय क्षति पहुंचाई , इसी बीच अलाउदीन को दिल्ली में अनुपस्तिथ पाकर मुगल सेना ने दिल्ली पर धावा बोल दिया , इसी वजह से इस बार यहाँ से डेरा उठाकर उसे फिर से दिल्ली भागना पड़ा। मुगलो से युद्ध करने को अलाउद्दीन तैयार नहीं था , उसकी उत्तमसेनावाहिनी को राजपूतो ने काट फेंका था , अतएव यह संयोग की बात है की उसे वापस आते देख मुग़ल सेना निराशा से ऐसे ही भाग खड़ी हुई।
ठीक इसी समय अलाउदीन के दुराचारो से ऊबकर दिल्ली के मुसलमानो ने ही इसका विद्रोह कर दिया , चालीस हजार आदमियो को इसने काट फेंका। यह कहा जाता है की चितोड़ के आक्रमण के बाद अलाउदीन की सारी आशाएं धूल में मिल गयी , शाशक राणा रतन सिंह के पास उसने यह समाचार भेजा की वह दर्पण में पद्मिनी की एक झलक देखकर संतुष्ठ हो , घेरा उठा , दिल्ली लौट जाएगा।
दर्पण में पद्मिनी की झलक देखने के बाद उसकी लालसा और भड़क उठी , उसने धोखा देने की गाँठ बाँध ली , अपने अतिथियों का पूरा मान-सम्मान करने वाले उदार राजपूतो ने दुर्ग के बाहर तक अलाउद्दीन का साथ दिया , राजपूत शाशक राणा रत्न सिंह स्वम् अलाउदीन खिलजी के साथ तम्बू तक बाहर आया , कपटी और मायावी अलाउदीन ने राणा रतनसिंह को उसके अंगरक्षको के साथ ही गिरफ्तार कर लिया , इसके बाद उसने दुर्ग में समाचार भेज दिया , की यदि रानी पद्मावती उन्हें नहीं सौंपी गयी , तो वह राणा रत्न सिंह को तड़पा तड़पा कर मार देगा।
इसके उतर में वीर साहसी राजपूतो ने एक योजना बनायी , उन्होंने अलाउदीन के पास यह समाचार भेज दिया की अन्य राजपूत दासियो के साथ पद्मिनी भी अलाउद्दीन के तम्बू तक पहुंचा दी जायेगी , इस लड़ाई का नेतृत्व अब खुद रानी पद्मावती कर रही थी , इसके बाद दासियो के वेश में वीर प्रवीण और ससस्त्र राजपूत छिपकर पालकियों में बैठ गए , ७०० पालकियों का यह कारवां अलाउदीन के पड़ाव के पास पहुंचा , तब अलाउदीन से यह निवेदन किया गया की अंतिम विदाई देने के लिए , पद्मिनी को राणा रतनसिंह से मिलने का आखिरी अवसर दिया जाए ,
अपने द्धार पर उपस्थित ७०० राजपूत रमणियों के साथ भावी -कामकेलि की कल्पना से अत्यंत आनंदित होकर अल्लाउद्दीन ने राणा रत्न सिंह को मुक्त कर दिया गया , राणा रतनसिंह ज्यो ही राजपूत कारवां के पास पहुंचे , चुनिंदा वीर राजपूतो की सुरक्षा में उन्हें चित्तोड़ भेज दिया , साथ ही अन्य राजपूत वीरो ने अपना असल सिंह स्वरूप धारण कर लिया , और जय एकलिंग की सिंह गर्जना के साथ हिन्दू रोष से अलाउदीन के पड़ाव पर टूट पड़े, अनेक शताब्दियों से लूटने , बर्बाद और अपमानित करने वाले तुर्की , अरबी, अफगानी , आदि गुंडों के सिर पैर गाजर-मूली की तरह काट कर फेकने लगे।

मुस्लिम दुस्तता के घोर अंधकार में सूर्य की भाँती चमकती वीर राजपूत तलवारो की देशभक्ति इस मध्यकालीन वीरगाथा में २ वीर राजपूत नक्षत्रो की भाँती चमक उठे , उसी समय वे दोनों वीर पौराणिक हो उठे , उ उनकी देशभक्ति और निष्ठा महान बलिदान राजस्थान के लोक गीतों में अमर हो गया -------
आगे के भाग में --- रानी पद्मावती का चेहरा कभी अलाउद्दीन ने देखा ही नहीं
और रानी पद्मावती का जोहर --

असली रूप —– कुतुबुद्दीन ऐबक

 असली रूप —– कुतुबुद्दीन ऐबक
यह विधाता का कैसा क्रूर व्ययंग है , की प्रथम विदेशी राजा जिसने भारतीयों को गुलाम बनाया , जिसने इस्लाम के नाम पर पाश्विक अत्याचार कर दिल्ली के प्राचीन हिन्दू राजसिहांसन को अपवित्र किया , स्वम् एक गुलाम था , इसे पश्चिमी एशिया के इस्लामिक देशो में कई बार ख़रीदा बेचा  गया था।
उसका नाम कुत्तूबुद्दीन  ऐबक था , इतिहास तबकात – ए  – नासिरी का कहना है की उसकी छोटी अंगुली तोड़ दी गयी थी , इसलिए इसका नाम ऐबक पड़ा था , ऐबक यानी ” हाथ से पंगु ” कुछ इतिहासकार विश्वाश करते है की ऐबक नाम की एक जाति  की उपाधि होनी चाहिए , दूसरे कहते है की मूल पाठ का बयान सही नहीं हो सकता।  इससे स्पष्ठ है की मुस्लिम इतिहास की पुस्तके झूठे बायनो  की पिटारी है।
       
           इन्ही झूठे  इतिहासों  पर आधारित इतिहास पुस्तके जनता और सरकार  को पथभृष्ट करती है , की मुस्लिम शाशको और कुलीनों की लंबी वंश परंपरा जिन्होंने आतंक और अत्याचार की झड़ी लगा दी , जिसके हजार बर्षो के शाशन काल का हर एक दिन खून से चिपचिपा है , उस लंबी वंश परंपरा के सभी वंशज दयालु, न्यायी और सभ्य थे।
 
  उदहारण के लिए इसी पंगु को लेते है , कुतुबुद्दीन ऐबक को — जो गुणों का प्रमाण-पत्र  दिया जाता है उसे परखेंगे।  फिर हम जांचेंगे की उसके गुणों का मिलान उसके जीवन चरित्र से होता है की नहीं।
तबकात के अनुसार —— ” सुल्तान कुतुबुद्दीन दूसरा हातिम था , वह एक बहादुर और उदार राजा था , पूरब से पश्चिम तक उसके समान  कोई राजा नहीं था , जब भी सर्वशक्तिमान खुदा अपने लोगो के सामने महानता और भव्यता का नमूना पेश करना चाहते है , वे वीरता और उदारता के गुण  अपने किसी एक  गुलाम में भी भर देते है ‘ ‘ ‘ अतएव राजा दिलेर और दरियादिल था , और हिंदुस्तान के सारे क्षेत्र मित्रो यानि  मुसलमानो से भर गए थे , और शत्रु ( मतलब हिन्दू ) साफ़ हो गए थे।  उसकी लूट और कत्लेआम मुसलसल था।  



इस उदारहण से स्पष्ठ   है की  मुस्लिम इतिहास और यतार्थ में सारे मुस्लमान हिंदुस्तान के हिन्दुओ के लगातार क़त्लेआम का ( स्पष्ठ ही इसमें स्त्रियों के बलात्कार उनकी सम्पति लूट , और उनके बच्चो का  हरण   भी शामिल है ) ऊँचे दर्जे की उदारता धार्मिकता , वीरता और महानता  का काम मानते है।  साम्प्रदायिकता से सरोबार और राजनीती से दुर्गन्धित भारतीय इतिहास ने बलात्कार , लूट , और हरण से अपनी आँखे मूंद  ली है।  उन्होंने केवल उन्ही शब्दो को   जकड कर पकड़ रखा है की मुस्लिम शाशक उदार और कुलीन थे।
इसलिए हम हिन्दुओ को तो  कम  से कम अवश्य ही यह महसूस करना चहिये की बिना किसी एक अपवाद के भारत का प्रत्येक मुस्लिम शाशक नृशंस और अत्याचारी ही था , उसके दुष्कर्मो से मनुष्य ही नहीं पशु की गर्दन शर्म से झुक जाती है।  हम हिन्दुओ को इनकी झूटी प्रस्तुति और मनगढंत गप्पबाजी में डुबकी नहीं लगानी चाहिए।

कुतुबुद्दीन एक गुलाम था , अब उसकी जन्मतिथि में कौन सिर  खपाये ? इसलिए इतिहास को उसकी जन्मतिथि का ज्ञान नहीं है।  इतिहास को सिर्फ इतना ज्ञान है की वो एक तुर्क था।  उसके परिवार को मुस्लिम धर्म मानना  पड़ा था , गुलामी से श्रापित उसे अनेक लोगो के साथ भेड़  की भांति  बेचने के लिए हांका  गया था।
इसका पहला खरीददार अज्ञात है , मगर उसे निमिषपुर में खरीदकर ओने पोन दामो में बेच दिया गया था , यहाँ उनसे एक काजी से कुरआन की शिक्षा भी ली , की किस प्रकार काफ़िर हिन्दुओ का कत्ल किया जाए।
कुरूप और ऊपर से पंगु होने के कारन काजी ने इसे एक सौदागर दल के हाथों बेच दिया , आज के व्यापारियों की भांति मुस्लिमो के पास काला  धन तो नहीं  था , किन्तु लाल धन अव्य्श्य था , जो उन्होंने हिन्दुओ का रक्त बहाकर  इकठ्ठा किया था।
कुत्तुबउद्दीन अब किशोर अवस्था को प्राप्त कर रहा था , उसका मूल्य भी बढ़ रहा था , क्यू की उसकी डाका डालने , हत्या करने की क्षमता  में वृद्धि हो रही थी।
भारत के सभी मुस्लिम बादशाह रात में ही नहीं ,  बल्कि दिन में भी शराब के नशे में आमोद और प्रमाद में , वासना में व्यतीत करते थे , उसी परंपरा में प्रायः गोरी भी ” संगीत और आनंद ” में डूब  जाता था , एक रात उसने पार्टी दी और आनन्दोसत्व के बीच  उसने नोकरो को सोने और चांदी  के सिक्के बड़ी उदारता से दिए , उसमे से कुछ कुत्तुबउद्दीन ऐबक को भी मिले , जब कुतुबुद्दीन जब पहली बार गोरी की सेवा में आया था , उस समय तक उसके पास कोई उल्लेखनीय विवेक नही था ,  कोई भी काम कितना भी गन्दा व घिनोना क्यू ना हो , वह तैयार  रहता था।  इससे उसको नियमहीन स्वामी की कृपा प्राप्त हो गयी।
कुतुबुद्दीन एक घुड़सवार नायक था , और खुरासान के विरुद्ध युद्ध में भी उसे एक अभियान में भाग लेना पड़ा था , इसमें तीन शाशको ने भाग लिया था , गोर , गजनी , और बामियान।  बामियान अफगानिस्तान में ही है , जहाँ बुद्ध की बहुत विशाल मूर्ति भी थी , इसे बाद में तालिबानियों ने उड़ा  भी दिया था , अब इसका दुबारा निर्माण हुआ है , चीन की मदद से।
कुतुबुद्दीन ने इस अभियान के बाद  के अभियानों के बाद के अभियानों में व्यावहारिक ज्ञान पाया , इससे उसे भारत में नृशंग  और खूंखार चक्र चलाने में बहुत सहायता मिली।
सबसे पहली बार कुतुबुद्दीन ने ११६१ ईश्वी में भारत के मगध पर आक्रमण किया , सारे दुर्ग विदेशी मुसलमानो ने बनाये है
, इस प्रचलित इतिहास को झूठा  साबित करता हुआ ” ताजुल-मा -आसिर ( पृष्ठ २१६ ग्रन्थ २ इलियट एवम डाउसन )  कहता है — ” जब वह मेरठ पहुंचा , जो सागर जितनी छोड़ी और गहरी खाई , बनावट और नींव की मजबूती के लिए भारत  भर में एक प्रसिद्द दुर्ग था , तब उसके देश के आश्रित  शाशको की भेजी हुई सेना उससे आकर मिल गयी , दुर्ग उनसे ले लिया गया , दुर्ग में एक कोतवाल की नियुक्ति की गयी , सभी मूर्ति मंदिरो को मस्जिद बना दिया गया )

कितने दुःख की बात है की प्रत्येक मुस्लमान इतिहासकार इस प्रकार बार बार जोरदार आवाज में घोषणा करता है की  हिन्दू मंदिरो को , महलो को मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया , इसके बावजूद फ़िल्मी भांड और सरकारी मुस्लिम चापलूस और भोली जनता का ढ्र्ढ्ता से यही मानना है  की इन सबका निर्माण मुसलमानो ने किया।

एक मुस्लिमइतिहासकार  कहता है की मेरठ लेने के बाद कुतुबुद्दीन दिल्ली की और बढ़ चला , जो ” सम्पति और स्रोत का आगार  था।  विदेशी मुस्लिम विजेता  कुतिबुद्दिन ने उस शहर को विध्वंश कर नस्ट- भ्रस्ट कर दिया ,   शहर और उसके निकटवर्ती क्षेत्र को मूर्तिपूजको से मुक्त कर देव स्थान आदि जगहों पर मस्जिदों का निर्माण किया।
क़ुतुब मीनार —– आजकल दिल्ली में जिसे हम कुतुबमीनार कहते है , वह राजा विक्रमादित्य के राज्यकाल  का प्राचिन हिंदी नक्षत्र निरिक्षण स्तम्भ है , जब कुतुबुद्दीन ने इसपर धावा किया था , तो इसके चारो और मजबूत दीवारे थी , विनाश के एक नंगे नाच के बाद जिसमे प्रतिमाओ को बाहर फेंक उसी मंदिर को  क्वातुल इस्लाम की मस्जिद बनाया जा रहा था , कुतुबुद्दीन ने पूछा इसका मतलब क्या है ?// उसे अरबी भाषा में बताया गया की यह स्तम्भ एक क़ुतुब मीनार है , यानि उतरी धुव  के निरिक्षण का केंद्र।
इस मुस्लिम लुटेरे ने केवल चार वर्ष शाशन किया , इस स्तम्भ के निर्माण के लिए केवल ४ वर्ष का समय पर्याप्त नहीं है , इस बात को अगर छोड़ भी दे, तो भी कुतुबुद्दीन ने कभी यह नहीं कहा की उसके इस स्तम्भ का निर्माता वो खुद है।  दिल्ली विजय के बाद उसे पता चला की पृथ्वीराज चौहान के भाई हेमराज ने हिन्दू-स्वाधीनता का झंडा बुलन्द किया है , उसने मुस्लिम अधिकृत रणथम्बोर  दुर्ग को घेर लिया , उसने अजमेर की और भी कुच करने की धमकी दी है , जहाँ की मुसलमानो से पराजित पृथ्वीराज के पुत्र का शाशन था , हेमराज    के प्रयास तो सफल नहीं हुए , मगर कुतुबुद्दीन ने इसका खूब फायदा  उठाया , उसने अधिक से अधिक धन पृथ्वीराज के पुत्र से निचोड़ा , पृथ्वीराज चौहान का कायर पुत्र भी इसकी धमकियों से डर  इस नीच को मालामाल कर दिया।  ३ सोने से बने तरबूज कुटूबुद्दीन  ऐबक को भिजवाये गए , अब इससे पता चलता है , की इन अरबियो और मुस्लमान शाशको के पास इतना धन आया कहाँ से।
अभी अजमेर में मुस्लिम शक्ति का सिक्का जमा ही था की दिल्ली के हिन्दू शाशक , ने जिसे हटाकर  मुसलमानो ने दिल्ली छीनी  थी , उसने अपनी सेना एकत्रित कर ली है , और वह सीधा कुतुबुदीन की और बढ़ चला आ रहा है , घिर जाने के डर  से कुतुबुद्दीन अजमेर से बाहर निकल आया — घमासान युद्ध हुआ , दिल्ली का राजपूत शाशक वीरता से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ  कायर मुसलमानो ने ” धड़ से उसके सिर  को तरास  दिया ,  और उसकी राजधानी और  निवाश स्थान दिल्ली भेज दिया , इसके बाद अपनी सफलता का लंबा चौड़ा विवरण उसने गजनी भी भिजवाया , वहां से उसको गोरी का निमंत्रण मिला , अपने स्वामी का निमंत्रण पाकर कुतुबुद्दीन दूर गजनी पहुंचा , उसके आगमन पर एक उत्सव का आयोजन किया गया , और उपहार के रूप में बहुमूल्य रत्न और प्रचुर धन उसे प्राप्त हुआ ,
मगर कुतुबुद्दीन इस महान  सम्मानजनक भोज का उपयोग नहीं कर पाया , और वह बीमार पड़  गया , वह दरबार के मंत्री जिया-उल-मुल्क के साथ ठहरा हुआ था , संभव है उसी ने जलन से इसे जहर दे दिया हो , बाद में इसे गौरी के मेहमानखाने में लाया गया , अभी भी वह स्वस्थ महसूस नहीं कर रहा था , उसने हिंदुस्तान वापस लौटने का निर्णय किया।
वापस लौटने के  समय इसने काबुल और बन्नू के बिच बंगाल देश के कारमन  नाम के एक स्थान पर अपना पड़ाव डाला , वहां के मुखिया को धमकाकर उसकी पुत्री के अपने घ्रणित गुलामी के हरम में घसीट लिया  गया , दिल्ली लौटकर अपने पुराने इस्लामी स्वाभाव से जनता को  सताने लगा , ११६४ में उसने वाराणसी की और कूच  किया — ताजुल-मा- आसिर के अनुसार ___ कोल हिन्द का सर्वाधिक विख्यात दुर्ग था , वहां की रक्षक टुकड़ी में जो बुद्धिमान थे , उनका इस्लाम धर्म में परिवर्तन हुआ , मगर जो प्राचीन धर्म में  डटे  रहे, उन्हें हलाल कर दिया गया , अब इससे यह तो स्पष्ठ है की भारत के मुस्लमान उन्ही कायरो की  औलाद है। जिनके माँ बाप को सता सता कर मुस्लमान बनाया गया है।
मुस्लिम गिरोह ने दुर्ग में प्रविष्ट होकर भरपूर खजाना और अनगिनत लूट का माल जमा किया , जिसमे एक हजार घोड़े भी थे , यह सब मुसलमानो का चरित्र ही तो प्रदशित करते है।  मुस्लिम इतिहासकार लेकिन यह लिखने के कतरा  जाता है की इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया , मुस्लिम  धावे के बड़े नुक्सान को झेलकर भी अविजित खड़ा रहा।  इस घटना को जीत जरूर बताते है , मगर आगे के इतिहास में बार बार मुस्लिम उसी दुर्ग पर हमले भी करते है ,
इसी बीच  गोरी मुस्लिम लुटेरो का एक गिरोह भारत में घुस आया , अपनी गुलामी के नजराने के तोर पर स्वेत चांदी  और सोने से लदा हांथी और १००० घोड़े उपहार स्वरुप दिए गए , इन सब धन को हिन्दू घरो से ही लुटा गया था कैसी विडम्बना है की एक डाकू , अपने डाकू सरदार को अपनी पाप की कमाई नजराना भेंट दे रहा है।   यह दोनों सेनाये मिलकर मुस्लिम गिरोहों का विशाल डाकूदल  तैयार हो गया , इसमें पचास हजार तो सिर्फ घुड़सवार सेना ही थी , अब पैदल सेना का अनुमान लगा लीजिये , जिसमे पूर्व हिन्दू भी शामिल थे , जिन्हें कोड़े की मार और तलवार की धार पर मुस्लमान बनाया गया था ,
मुसलमान लुटेरों की पाप गाथा —- कुतुबुद्दीन ऐबक
इस पोस्ट को पढ़ने से पहले इसका पहला भाग जरूर पढ़ ले, मेरी वाल पर ही है।
देशद्रोही जय चंद  – कुतुबुद्दीन जो की गोरी का गुलाम मात्र था , और भारत के हिन्दुओ पर एक गुलाम  अत्याचार कर रहा था , गोरी ने अपनी एक सेना की टुकड़ी भेज दी , इस सेना का काम था असुरक्षित नगरो को लूटना , खलियानो को जला  देना , कड़ी फसल कुचल देना , जलाशयों में जहर घोल देना , हिन्दू स्त्रियों को मुसलमानो के हरम में बाल पकड़ कर घसीट के लाना , हिन्दुओ के मंदिरो को अपवित्र करना , और आने वाली हिन्दू रुकावटो  को हलाल कर देना , अपना पूरा काम कर कुतुबुद्दीन वापस लौटकर गौरी से आ मिला।
 जैचंद का विरोधी राजा पृथ्वीराज था , उसका राज्य कन्नौज से वाराणसी तक फैला  हुआ था , वीर पृथ्वीराज से लड़ने के लिए धोखेबाज लालची और विदेशी मल्लेछो   को भारत आने का निमंत्रण दे इसने भयंकर भूल की थी ,  यह मादरचोद अब हक्का बक्का होकर देख रहा था , की मुस्लमान तो हर हिन्दू का ही शत्रु है  , एक एक को नष्ठ करना ही मुसलमानो का परम कर्तव्य है , मुहम्मद गोरी की तन मन धन से सहायता करने वाले हरामी सुंवर  की औलाद जैचंद ने देखा की मुस्लिम सुल्तान उसके फलते फूलते क्षेत्रो को ही रौंदकर संतुष्ठ नहीं है , बल्कि उसको बंदी बनाकर मारने पर तुला हुआ है , विश्वश्घाती मुस्लिम दोस्त की धोखेबाजी से कुपित हो जैचंद अपनी सेना लेकर उससे जा टकराया , विषाक्त मुस्लिम बाण से वह होदे से नीचे  गिर गया , भाले की नोक पर उस मादरचोद के सिर  को उठाकर सेनापति के पास लाया गया , उसके शरीर को घ्रणा की धूल में मिला दिया गया , तलवार की धार से बुतपरस्ती को साफ़ किया गया।  और देश को अधर्म और अन्धविश्वाश से मुक्त किया।  ठाठ के साथ हर मुसलमान  यह कहते हुए नहीं शरमाता।

” बेशुमार लूट मिली , कई सो हांथी कब्जे में आये , और मुस्लिम सेना ने उसके दुर्ग को भी कब्जे में ले लिया , जहाँ राय का खजाना था।
जयचंद  हार गया —- मारा  गया , वाराणसी का प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर असुरक्षित हो गया , मुस्लिम सेना वाराणसी की और बढ़ी , एक हजार मंदिरो को मस्जिद बना दिया गया , यह वाराणसी में उनकी दूसरी पवित्र लूट और ह्त्या थी।  पहली बार मुहम्मद गजनवी की मौत के तुरंत बाद अहमद नाम के मुसलमान  ने इसे लुटा था।  सिर्फ औरन्जेब  को ही पवित्र वाराणसी का विनाश का कारण  बताना बेकार है , जिस भी मुस्लिम ने यहाँ प्रवेश किया , इस पावन नगरी के मंदिरो को तोड़कर मस्जिद बनाया ,,, मुस्लिम सुंवरो  की इस बढ़ती कतार में खुद अकबर भी है।
 जब जब वाराणसी पर आक्रमण हुआ , यहब के प्रसिद्द काशी-विश्वनाथ के मंदिर को लुटा गया , मगर हिन्दुओ ने बार बार एकता दिखाकर कम  से कम इस मंदिर को तो आजाद रखा ,, लेकिन कब तक —- औरन्गजेब ने इसे तोड़कर आखिर मस्जिद बना ही दिया।   और यह कब तक मस्जिद बना रहता है , यह हमारी मर्दाग्नि पर निर्भर करता है।
आस पास के क्षेत्रो पर भी इन मुसलमानो अत्याचार और आतंक  का नंगा नाच हुआ ,  इसके बाद मुहम्मद गोरी वापस गजनी लौट गया।   अब तक यह कोल को जीत नहीं सके थे ,अतः  पंगु मुस्लमान कुत्तूबुद्दीन  ने वाराणसी से लौटते समय दुबारा इसपर आक्रमण किया , इस बार यहाँ सभी हिन्दुओ को खत्म कर दिया गया , या मुसलमान  बना दिया गया
११६२ में मुहम्मद गोरी फिर भारत आया , कुत्तूबुद्दीन  फिर उसकी सेना से जा मिलता है , दोनों मुसलमान  मिलकर हिन्दुओ के दुर्ग बयाना को घेर लेते है , मगर यहाँ सेना से लड़ने की जगह मुसलमान  ओरतो और बच्चो पर अपनी बहादुरी दिखाते है अपनी संकटग्रस्त प्रजा को बचाने  के लिए कुंवर पाल आत्मसमर्पण कर देते है।
अब इन मुसलमानो का काफिला ग्वालियर की और बढ़ा , इसका शाशक सुलक्षण पाल  था , इसने ऐसा संग्राम किया की गोरी का सारा गौरव चकनाचूर हो गया , उसे वापस बमुश्किल जान बचाकर भागना पड़ा , इस डूब  मरने  वाली हार को मुसलमान  झूठे इतिहासकरो ने गाल बजाकर ढकने का प्रयास किया है , इस युद्ध के बाद गौरी तो भागकर गजनी पहुँच गया , और ऐबक दिल्ली।
प्रायः इसी समय देशभक्त हिन्दू सेना एकत्रित होने लगी थी ,  विदेशी मुसलमानो को ललकारा गया , पंगु चारो और से घिर गया , जीवन समाप्ति की और ही था , यहाँ से उसने सारे खलीफाओं को सन्देश भेज दिया , बहुत विशाल सेना आयी भी , किन्तु वापस एक भी नहीं लौटा  , हिन्दुओ ने सभी को जमीन  में गाड़ दिया , फिर जैसे तैसे  कुतुबुद्दीन अपनी जान बचाकर भागा।
अन्हिलवाड़ शाशक के कुशल  नेतृत्व में हिन्दू सेना फिर एकत्र  हो गयी थी , फिर मुस्लिम शाशको को ललकारा गया इस बार भी जीवन लीला समाप्त होने को ही थी , की कमबख्त दिल्ली भाग खड़ा हुआ , उसने ताबड़तोड़ अपने मालिक मुहम्मद गोरी से सहायता की मांग की , गोरी का भोजन और आहार लूट ही था , कुतुबुद्दीन इसे हिंदुस्तान से इकट्ठा करके गजनी भेजता था , अतः  उसने देखा की कुतुबुदीन की समाप्ति के बाद तो उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा , लुटेरो का एक विशाल गिरोह उसने अन्हिलवाड़ भेज दिया , आबू पर्वत के निचे संकर्रे रास्ते पर राय  कर्ण और अन्य राजपूत राजाओ के अधीन एक शशक्त हिन्दू सेना तैयार थी।
उस  सशक्त  स्तिथि में आक्रमण करने का साहस मुसलमान  नहीं बटोर सके , विशेषकर उसी स्थान पर बार बार गोरी भी बहुत बार मार खा कर गया था , अतः  मारे भय के वह पीछे ही डटे  रहे , तब  हिन्दू सेनाओ ने अपने पर्वतीय स्थानों को छोड़ दिया, और मुस्लिम सेना उनपर टूट पड़ी , खुले मैदानों में आमने सामने की लड़ाई हुई , हमेशा की तरह मुसलमानो ने विजय का दावा किया है , परंतु इस पंक्तियों को पढ़ने के बाद पता चलता है , की मुस्लिम सेना ने हारकर अजमेर में शरण ली , और फिर दिल्ली लौट गयी।
अशिक्षित दरबारों में चक्कर काटने वाले खुशामदी लेखक मोटी  रकम लेकर हार को जीत लिखने के लिए तैयार  ही बैठे थे , इसलिए हम हिन्दुओ और साधारण जनता को इनके झूठ के प्रति जागरूक हो जाना चाहिए , इन लोगो का वास्तविक निर्णय स्वम् ही निकाला जाना चाहिए।
१२०२ में एक दूसरे युद्ध में पालतू गुलाम अल्ततमश के साथ कुतुबुद्दीन ने कालिंजर दुर्ग घेर लिया , यह दुर्ग परमार राजाओ की राजधानी था , सदा की भाँती चापलूस मुस्लिम इतिहासकार दावा करते है की हिन्दू राजा पराजित हुआ, और भाग गया।  और कर आदि देने की संधि होने के बाद राज्य राजा को लौटा  दिया गया , किन्तु आगे वह यह भी जोड़ देता है की उसने स्वाभाविक म्रत्यु पायी , और शांति संधि की किसी भी शर्त को पूरा नहीं किया।  इन तथ्यों से साफ़ पता चलता है , की कालिंजर से भी कुतुबुद्दीन हार कर ही लौटा।  हालांकि हमेशा की भाँती अपनी हार की मार छिपाने के लिए पालतू मुस्लिम इतिहासकारो ने इस मुठभेड़ पर अपनी मुस्लिम जीत  का रंग चढाने  का पूरा प्रयास किया है।
दूसरी बार फिर बड़ी सेना लेकर इस दुर्ग पर आक्रमण हुआ , इस बार की स्थायी सेना में हजारो मुसलमानो का ही नहीं , वरन  नए विदेशी मुस्लिम लुटेरो को भी भरा गया , मृत शाशक के मुख्यमंत्री अजदेव ने बड़ी वीरता से दुर्ग की रक्षा की।  
   बाद में दुर्ग आतंक , माया , और धोखे से कब्जे में हुआ , फिर सदा की भांति मंदिरो को मस्जिद बनाया गया , और बुतो ( देवी – प्रतिमाओ ) का नामोनिशान तक मिटा दिया , पचासहजार लोगो के गले में गुलामी का फंदा डाला गया , और हिन्दुओ के रक्त से सारी  भूमि रंजित हो गयी इस तरह इस्लाम के नाम पर गुलामी के गीत गाये गए , और गुलामी के नाम पर इस्लाम की शोभा बढ़ाई  गयी।
अब कुतुबुद्दीन महोबा से जा टकराया , मगर इतिहासकारो की चुप्पी से साबित होता है की वहां उन लुटेरो को काफी नुकसान का सामना करना पड़ा था , इसी प्रकार का एक प्रयास बंदायू पर भी किया गया ,  जो नगरो की जननी और हिन्द देश के प्रमुख नगरो में से एक था , इसलिए हिन्दुओ को बेवकूफी से भरा यह विचार  दिमाग़ से एकदम निकाल देना चाहिए की इन नगरो का निर्माण मुसलमानो ने किया है , वरन  इसके विपरीत मुसलमानो ने इसे नस्ट और बर्बाद ही किया है। बंदायू अभियान भी बड़ी बुरी  तरीके से कुचला गया था।
इसी समय एक दूसरा मुस्लिम पिसाच कुतुबुद्दीन के गिरोह में आ  मिला।  वह एक शैतान लुटेरा और पालतू गुलाम था , बाद में इसी ने पूर्वी बिहार के साथ साथ नालंदा का भी नाश किया।  इससे पहले इसकी हिन्दुओ की हत्या , नर-संघार  , और लूट की शक्ति को नापा , और परखा गया , संतोषजनक पाने पर इसे मुहम्मद गोरी ने गुलाम गिरोह नेताओ के केबिनेट का सदश्य बना लुटेरे दल  में शामिल कर दिया।   ( बख्तियार खिलजी )
महोबा और बंदायू में हिन्दू तलवारो से हुए घावों को चाटता  भीगी बिल्ली सा कुतुबुद्दीन दिल्ली वापस लोटा , १२०३  में भारत पर अपने घावों के क्रम  को कायम रखते हुए , गजनी से चला , मार्ग में खिता की हिन्दू सेना ने इसे रोककर ललकारा , अनखुद की सीमा पर संग्राम छिड़ गया , परिणाम में गोरी को बुरी तरह कुचलकर हराया गया , वह भय से काँपता मैदान से भाग खड़ा हुआ , अपवाह तो यहाँ तक थी, की वह युद्ध में ही मारा  गया , इस भगदड़ में उसने एक महत्वकांशी गुलाम ऐबक ने मौके  को सुंघा , और एक टोली लेकर वह मुल्तान पहुँच गया , फिर गर्वनर के कानो में गुप्त सुचना देने के बहाने उसकी हत्या कर दी।
 कुतुबुद्दीन और उसके स्वामी  गौरी को कई बार भारत के वीर देशभक्त हिन्दुओ ने कई बार हराया था , अतः  अब उसमे इतना साहस  नहीं था , की सीधे हिन्दुओ से जा भिड़े , जब तक गोरी का सर कटकर नहीं गिरा, तब तक कुत्तूबुद्दीन  गोरी का एक पालतू कुत्ता ही था ,
नवम्बर १२१० ईश्वी के प्रारंभिक दिनों में लाहौर में चौगान खेलते समय कुतुबुद्दीन घोड़े से गिर गया , घोड़े की जीन  के पायदान का नुकीला भाग उसकी छाती में धंस गया , और मर गया , यह दारुन और दोगला मुस्लिम पशु एक पशु के हाथ से ही मारा गया।

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने भी माना भारतीय गणतंत्र का लोहा, तिरंगे के रंग में रंग गया व्हाइट हाऊस

which one would u like

भंसाली... दम है तो 'कफूर-खिलजी : एक अमर प्रेम' फिल्म बनाओ


यह संजय भंसाली क्या पिटा कि सारे तथाकथित सेक्युलर, बुद्धिजीवी, कलाकार और फ़िल्मी जमात ‘सृजनात्मकता का अधिकार’, सिनेमेटिक क्रिएटिविटी का झंडा बुलन्द किये कूद पड़े है.




प्रसिद्ध इतिहासकार 'इरफ़ान हबीब' ने रानी पद्मावती को कवि मलिक मोहम्मद जायसी की रचना पद्मावत का एक काल्पनिक पात्र कहकर हम हिंदुओं की भावनाओं को आहत किया है ...
मैं इरफ़ान हबीब से पूछना चाहता हूँ ..
क्या चित्तौड़ का जौहर कुंड झूठा है ..
क्या महारावल रतनसिंह मेवाड़ नरेश नही थे ..
क्या योद्धा गोरा बादल काल्पनिक हैं ..
क्या सदियों से लग रहा जौहर मेला झूठा है ..
क्या आततायी खिलजी झूठा है ...
अगर ये सब झूठा नहीं है तो माता पद्मिनी की कहानी भी झूठी नही हो सकती ...

क्या ये रानी पद्मिनी का किरदार निभाने लायक है, इन फिल्मबाजो का विरोध करो, अपने बच्चों को इन फिल्मबाजों से दूर रखो आप अपनी बेटियों को दीपिका पादुकोण नहीं बनाना चाहते तो इन फिल्मबाजो का विरोध करो

क्या ये रानी पद्मिनी का किरदार निभाने लायक है, इन फिल्मबाजो का विरोध करो, अपने बच्चों को इन फिल्मबाजों से दूर रखो

यहाँ देखिये महारानी पद्मावती की कथा

स्वामी ओउम फिर बचे मार कहते पब्लिक ने घेरा

पंजाब में मोदी ने की केजरीवाल की धुलाई

राजपूत करनी सेना ने भंसाली पर लगाया आरोप

देखिये कैसे संजय लीला भंसाली की हुई पिटाई

Sunday, January 29, 2017

सुप्रीम कोर्ट में हिंदी

सुप्रीम कोर्ट में हिंदी में लिखी याचिका स्वीकार नहीं की जाती, लेकिन राष्ट्रभाषा के पक्षधर बिहार के एक वकील ने इस परंपरा का विरोध किया और हिंदी में अपनी याचिका दायर कर दी।
हिन्दी में लिखी याचिका को देखते ही सुप्रीम कोर्ट का रजिस्ट्रार कार्यालय भड़क गया। कहा गया पहले वे अपनी याचिका का अंग्रेजी में अनुवाद कराएं। लेकिन, राष्ट्र भाषा के पक्षधर प्रसाद ऐसा करने को तैयार नहीं हुए।
तब रजिस्ट्रार ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 348 की बाध्यता के कारण हिन्दी याचिका नहीं दायर हो सकती। है। याचिकाकर्ता वकील ब्रह्मदेव प्रसाद ने उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 300, 351 के साथ-साथ मूल अधिकार से जुड़े अनुच्छेद 13 एवं 19 भी दिखाए, जिनमें हिन्दी के साथ भेदभाव करने से मना किया गया है। आखिरकार उन्होने ने अपनी बात मनवा ली।
अब समस्या ये भी है कि सुप्रीम कोर्ट में में बहस भी हिंदी में नहीं होती लेकिन अब पहली बार शायद वहाँ के जज को हिंदी में सुनना पड़ेगा।
दोस्तों अगर सुप्रीम कोर्ट ही इस तरह अंग्रेजियत की गुलाम हो तो किस बात पर देश में राष्ट्रभाषा के बढ़ावा के लिये इतने सेमीनार और बड़ी बड़ी बातें की जाती है .. मुझे तो आज इस समाचार से पता चल रहा है कि वहाँ हिंदी लिखने बोलने की अनुमति नहीं है।
29जनवरी 2016 की

कुतुबुद्दीन ऐबक का अंत --- पोस्ट पार्ट -3

कुतुबुद्दीन ऐबक का अंत --- पोस्ट पार्ट -3
अन्हिलवाड़ शाशक के कुशल नेतृत्व में हिन्दू सेना फिर एकत्र हो गयी थी , फिर मुस्लिम शाशको को ललकारा गया इस बार भी जीवन लीला समाप्त होने को ही थी , की कमबख्त दिल्ली भाग खड़ा हुआ , उसने ताबड़तोड़ अपने मालिक मुहम्मद गोरी से सहायता की मांग की , गोरी का भोजन और आहार लूट ही था , कुतुबुद्दीन इसे हिंदुस्तान से इकट्ठा करके गजनी भेजता था , अतः उसने देखा की कुतुबुदीन की समाप्ति के बाद तो उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा , लुटेरो का एक विशाल गिरोह उसने अन्हिलवाड़ भेज दिया , आबू पर्वत के निचे संकर्रे रास्ते पर राय कर्ण और अन्य राजपूत राजाओ के अधीन एक शशक्त हिन्दू सेना तैयार थी।
उस सशक्त स्तिथि में आक्रमण करने का साहस मुसलमान नहीं बटोर सके , विशेषकर उसी स्थान पर बार बार गोरी भी बहुत बार मार खा कर गया था , अतः मारे भय के वह पीछे ही डटे रहे , तब हिन्दू सेनाओ ने अपने पर्वतीय स्थानों को छोड़ दिया, और मुस्लिम सेना उनपर टूट पड़ी , खुले मैदानों में आमने सामने की लड़ाई हुई , हमेशा की तरह मुसलमानो ने विजय का दावा किया है , परंतु इस पंक्तियों को पढ़ने के बाद पता चलता है , की मुस्लिम सेना ने हारकर अजमेर में शरण ली , और फिर दिल्ली लौट गयी।
अशिक्षित दरबारों में चक्कर काटने वाले खुशामदी लेखक मोटी रकम लेकर हार को जीत लिखने के लिए तैयार ही बैठे थे , इसलिए हम हिन्दुओ और साधारण जनता को इनके झूठ के प्रति जागरूक हो जाना चाहिए , इन लोगो का वास्तविक निर्णय स्वम् ही निकाला जाना चाहिए।
१२०२ में एक दूसरे युद्ध में पालतू गुलाम अल्ततमश के साथ कुतुबुद्दीन ने कालिंजर दुर्ग घेर लिया , यह दुर्ग परमार राजाओ की राजधानी था , सदा की भाँती चापलूस मुस्लिम इतिहासकार दावा करते है की हिन्दू राजा पराजित हुआ, और भाग गया। और कर आदि देने की संधि होने के बाद राज्य राजा को लौटा दिया गया , किन्तु आगे वह यह भी जोड़ देता है की उसने स्वाभाविक म्रत्यु पायी , और शांति संधि की किसी भी शर्त को पूरा नहीं किया। इन तथ्यों से साफ़ पता चलता है , की कालिंजर से भी कुतुबुद्दीन हार कर ही लौटा। हालांकि हमेशा की भाँती अपनी हार की मार छिपाने के लिए पालतू मुस्लिम इतिहासकारो ने इस मुठभेड़ पर अपनी मुस्लिम जीत का रंग चढाने का पूरा प्रयास किया है।
दूसरी बार फिर बड़ी सेना लेकर इस दुर्ग पर आक्रमण हुआ , इस बार की स्थायी सेना में हजारो मुसलमानो का ही नहीं , वरन नए विदेशी मुस्लिम लुटेरो को भी भरा गया , मृत शाशक के मुख्यमंत्री अजदेव ने बड़ी वीरता से दुर्ग की रक्षा की।
बाद में दुर्ग आतंक , माया , और धोखे से कब्जे में हुआ , फिर सदा की भांति मंदिरो को मस्जिद बनाया गया , और बुतो ( देवी - प्रतिमाओ ) का नामोनिशान तक मिटा दिया , पचासहजार लोगो के गले में गुलामी का फंदा डाला गया , और हिन्दुओ के रक्त से सारी भूमि रंजित हो गयी इस तरह इस्लाम के नाम पर गुलामी के गीत गाये गए , और गुलामी के नाम पर इस्लाम की शोभा बढ़ाई गयी।
अब कुतुबुद्दीन महोबा से जा टकराया , मगर इतिहासकारो की चुप्पी से साबित होता है की वहां उन लुटेरो को काफी नुकसान का सामना करना पड़ा था , इसी प्रकार का एक प्रयास बंदायू पर भी किया गया , जो नगरो की जननी और हिन्द देश के प्रमुख नगरो में से एक था , इसलिए हिन्दुओ को बेवकूफी से भरा यह विचार दिमाग़ से एकदम निकाल देना चाहिए की इन नगरो का निर्माण मुसलमानो ने किया है , वरन इसके विपरीत मुसलमानो ने इसे नस्ट और बर्बाद ही किया है। बंदायू अभियान भी बड़ी बुरी तरीके से कुचला गया था।
इसी समय एक दूसरा मुस्लिम पिसाच कुतुबुद्दीन के गिरोह में आ मिला। वह एक शैतान लुटेरा और पालतू गुलाम था , बाद में इसी ने पूर्वी बिहार के साथ साथ नालंदा का भी नाश किया। इससे पहले इसकी हिन्दुओ की हत्या , नर-संघार , और लूट की शक्ति को नापा , और परखा गया , संतोषजनक पाने पर इसे मुहम्मद गोरी ने गुलाम गिरोह नेताओ के केबिनेट का सदश्य बना लुटेरे दल में शामिल कर दिया। ( बख्तियार खिलजी )
महोबा और बंदायू में हिन्दू तलवारो से हुए घावों को चाटता भीगी बिल्ली सा कुतुबुद्दीन दिल्ली वापस लोटा , १२०३ में भारत पर अपने घावों के क्रम को कायम रखते हुए , गजनी से चला , मार्ग में खिता की हिन्दू सेना ने इसे रोककर ललकारा , अनखुद की सीमा पर संग्राम छिड़ गया , परिणाम में गोरी को बुरी तरह कुचलकर हराया गया , वह भय से काँपता मैदान से भाग खड़ा हुआ , अपवाह तो यहाँ तक थी, की वह युद्ध में ही मारा गया , इस भगदड़ में उसने एक महत्वकांशी गुलाम ऐबक ने मौके को सुंघा , और एक टोली लेकर वह मुल्तान पहुँच गया , फिर गर्वनर के कानो में गुप्त सुचना देने के बहाने उसकी हत्या कर दी।
कुतुबुद्दीन और उसके स्वामी गौरी को कई बार भारत के वीर देशभक्त हिन्दुओ ने कई बार हराया था , अतः अब उसमे इतना साहस नहीं था , की सीधे हिन्दुओ से जा भिड़े , जब तक गोरी का सर कटकर नहीं गिरा, तब तक कुत्तूबुद्दीन गोरी का एक पालतू कुत्ता ही था ,
नवम्बर १२१० ईश्वी के प्रारंभिक दिनों में लाहौर में चौगान खेलते समय कुतुबुद्दीन घोड़े से गिर गया , घोड़े की जीन के पायदान का नुकीला भाग उसकी छाती में धंस गया , और मर गया , यह दारुन और दोगला मुस्लिम पशु एक पशु के हाथ से ही मारा गया

लुटेरों की पाप गाथा ---- कुतुबुद्दीन ऐबक

 लुटेरों की पाप गाथा ---- कुतुबुद्दीन ऐबक
इस पोस्ट को पढ़ने से पहले इसका पहला भाग जरूर पढ़ ले, मेरी वाल पर ही है।
देशद्रोही जय चंद - कुतुबुद्दीन जो की गोरी का गुलाम मात्र था , और भारत के हिन्दुओ पर एक गुलाम अत्याचार कर रहा था , गोरी ने अपनी एक सेना की टुकड़ी भेज दी , इस सेना का काम था असुरक्षित नगरो को लूटना , खलियानो को जला देना , कड़ी फसल कुचल देना , जलाशयों में जहर घोल देना , हिन्दू स्त्रियों को मुसलमानो के हरम में बाल पकड़ कर घसीट के लाना , हिन्दुओ के मंदिरो को अपवित्र करना , और आने वाली हिन्दू रुकावटो को हलाल कर देना , अपना पूरा काम कर कुतुबुद्दीन वापस लौटकर गौरी से आ मिला।
जैचंद का विरोधी राजा पृथ्वीराज था , उसका राज्य कन्नौज से वाराणसी तक फैला हुआ था , वीर पृथ्वीराज से लड़ने के लिए धोखेबाज लालची और विदेशी मल्लेछो को भारत आने का निमंत्रण दे इसने भयंकर भूल की थी , यह मादरचोद अब हक्का बक्का होकर देख रहा था , की मुस्लमान तो हर हिन्दू का ही शत्रु है , एक एक को नष्ठ करना ही मुसलमानो का परम कर्तव्य है , मुहम्मद गोरी की तन मन धन से सहायता करने वाले हरामी सुंवर की औलाद जैचंद ने देखा की मुस्लिम सुल्तान उसके फलते फूलते क्षेत्रो को ही रौंदकर संतुष्ठ नहीं है , बल्कि उसको बंदी बनाकर मारने पर तुला हुआ है , विश्वश्घाती मुस्लिम दोस्त की धोखेबाजी से कुपित हो जैचंद अपनी सेना लेकर उससे जा टकराया , विषाक्त मुस्लिम बाण से वह होदे से नीचे गिर गया , भाले की नोक पर उस मादरचोद के सिर को उठाकर सेनापति के पास लाया गया , उसके शरीर को घ्रणा की धूल में मिला दिया गया , तलवार की धार से बुतपरस्ती को साफ़ किया गया। और देश को अधर्म और अन्धविश्वाश से मुक्त किया। ठाठ के साथ हर मुसलमान यह कहते हुए नहीं शरमाता।
" बेशुमार लूट मिली , कई सो हांथी कब्जे में आये , और मुस्लिम सेना ने उसके दुर्ग को भी कब्जे में ले लिया , जहाँ राय का खजाना था।
जयचंद हार गया ---- मारा गया , वाराणसी का प्रसिद्ध हिन्दू मंदिर असुरक्षित हो गया , मुस्लिम सेना वाराणसी की और बढ़ी , एक हजार मंदिरो को मस्जिद बना दिया गया , यह वाराणसी में उनकी दूसरी पवित्र लूट और ह्त्या थी। पहली बार मुहम्मद गजनवी की मौत के तुरंत बाद अहमद नाम के मुसलमान ने इसे लुटा था। सिर्फ औरन्जेब को ही पवित्र वाराणसी का विनाश का कारण बताना बेकार है , जिस भी मुस्लिम ने यहाँ प्रवेश किया , इस पावन नगरी के मंदिरो को तोड़कर मस्जिद बनाया ,,, मुस्लिम सुंवरो की इस बढ़ती कतार में खुद अकबर भी है।
जब जब वाराणसी पर आक्रमण हुआ , यहब के प्रसिद्द काशी-विश्वनाथ के मंदिर को लुटा गया , मगर हिन्दुओ ने बार बार एकता दिखाकर कम से कम इस मंदिर को तो आजाद रखा ,, लेकिन कब तक ---- औरन्गजेब ने इसे तोड़कर आखिर मस्जिद बना ही दिया। और यह कब तक मस्जिद बना रहता है , यह हमारी मर्दाग्नि पर निर्भर करता है।
आस पास के क्षेत्रो पर भी इन मुसलमानो अत्याचार और आतंक का नंगा नाच हुआ , इसके बाद मुहम्मद गोरी वापस गजनी लौट गया। अब तक यह कोल को जीत नहीं सके थे ,अतः पंगु मुस्लमान कुत्तूबुद्दीन ने वाराणसी से लौटते समय दुबारा इसपर आक्रमण किया , इस बार यहाँ सभी हिन्दुओ को खत्म कर दिया गया , या मुसलमान बना दिया गया
११६२ में मुहम्मद गोरी फिर भारत आया , कुत्तूबुद्दीन फिर उसकी सेना से जा मिलता है , दोनों मुसलमान मिलकर हिन्दुओ के दुर्ग बयाना को घेर लेते है , मगर यहाँ सेना से लड़ने की जगह मुसलमान ओरतो और बच्चो पर अपनी बहादुरी दिखाते है अपनी संकटग्रस्त प्रजा को बचाने के लिए कुंवर पाल आत्मसमर्पण कर देते है।
अब इन मुसलमानो का काफिला ग्वालियर की और बढ़ा , इसका शाशक सुलक्षण पाल था , इसने ऐसा संग्राम किया की गोरी का सारा गौरव चकनाचूर हो गया , उसे वापस बमुश्किल जान बचाकर भागना पड़ा , इस डूब मरने वाली हार को मुसलमान झूठे इतिहासकरो ने गाल बजाकर ढकने का प्रयास किया है , इस युद्ध के बाद गौरी तो भागकर गजनी पहुँच गया , और ऐबक दिल्ली।
प्रायः इसी समय देशभक्त हिन्दू सेना एकत्रित होने लगी थी , विदेशी मुसलमानो को ललकारा गया , पंगु चारो और से घिर गया , जीवन समाप्ति की और ही था , यहाँ से उसने सारे खलीफाओं को सन्देश भेज दिया , बहुत विशाल सेना आयी भी , किन्तु वापस एक भी नहीं लौटा , हिन्दुओ ने सभी को जमीन में गाड़ दिया , फिर जैसे तैसे कुतुबुद्दीन अपनी जान बचाकर भागा।
आगे का भाग कल -----

Saturday, January 28, 2017

हमारा_धर्मयुद्ध ------ विश्वविजयी राम की वीर गाथा

#हमारा_धर्मयुद्ध ------ विश्वविजयी राम की वीर गाथा 

आश्रम बस कुछ दुरी  पर है ,  इस पड़ाव को पार  करने के बाद हम सिद्धार्थाश्रम पहुँच जाएंगे राम , अब अंतिम चरण है , तब तुम्हे ताड़का , सुभाहु  और मारीच का वध करना है , पर युद्ध से पहले तुम्हे समर्थ बनाने  के लिए में तुम्हे कुछ दिव्यास्त्रों का ज्ञान देना चाहता  हूँ, किन्तु एक द्वन्द  है पुत्र --  तुम्हे दिव्यास्त्र देकर कहीं में भूल तो नहीं कर रहा ???  कहीं तुम रास्ता भटक कर निष्क्रिय हो जाओ , और उन हथियारों का अनुचित प्रयोग कर उसका नाश ना कर दो।

ऐसा कभी नहीं होगा।  राम के बोलने से पहले ही लक्ष्मण बोले ' मेरी माता कहती है , राम ना तो कभी अनुचित करते है , और ना कभी निष्क्रिय रहते है , गुरुवर राम केवल हमारे भैया नहीं है , मेरे भैया तो सबके राम है , " राम" का मतलब यह नहीं की पीड़ित और दुखियारे आकर उनसे न्याय मांगे , मेरे भैया राम खुद पीड़ित और दुखियारे  के निकट जाकर खुद उनका दुःख हर लेते है।

लक्षमण की बात पूरी होते ही  राम ने  गुरु की और देखा और मुस्कुराये " मै  अपनी और से आपको पूर्ण आस्वश्त करता हूँ गुरुदेव।  कहिये , में आपकी शंकाएं कैसे दूर कर सकता हूँ।

विश्वामित्र बोले - राम  मै  तो तुम्हारे वचन मात्र से ही आश्वस्त हो जाऊँगा , किन्तु में किसी स्वार्थी ऋषि के समान  बिना स्तिथि स्पष्ठ किये तुमसे कोई वचन नहीं लेना चाहता , तुम सोच समझकर फिर बुद्धि से वचन दो , ऐसा ना हो , वचन देने के बाद तुम्हारे मन में द्वन्द विराजे।

राम अब और प्रसन्न थे , एक दम  आत्मविश्वास से भरी मुस्कान उभरी " आप कैसा वचन चाहते है ऋषिवर ??

विश्वामित्र बोले -- मेने प्रायः स्तिथि  तुम्हारे आगे स्पष्ठ कर दी है राम , पर अभी भी बहुत कुछ ऐसा है , जो बताया नहीं जा सकता है , तुम स्वम् उस और बढ़ोगे , उस मार्ग पर चलोगे , तो अपने आप देखोगे , मै  तो केवल संकेत मात्र दे रहा हूँ।   फिर ऋषि सात्विक तेज स्वर में बोले " मै  भविष्य  के प्रति तुमसे आश्वासन चाहता हूँ , की इन दिव्यास्त्रों का ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात अयोध्या के सम्राट बनकर सुख- सुविधापूर्ण जीवन व्यतीत करने का लोभ मन में नहीं लाओगे।

राम उत्सुकता में विचलित होते हुए बोले --- आप मुझसे क्या करवाना चाहते हैगुरुदेव ?

ऋषि बोले -- सामान्य शब्दो में कहूंगा अन्याय का विरोध।   प्रत्येक मूल्य पर अन्याय का विरोध , वह अन्याय चाहे तुम्हारे परिवार में हो , अपने राज्य में हो , या अपने राज्य के बाहर हो।  और विशेष रूप से यह कहूंगा , ऋषि तथा उनके आश्रम असुरक्षित है , जिस भी समय कोई राक्षस चाहता है , उनपर आक्रमण कर उनकी हत्या कर देता है , इस देश में ऋषियों का स्वतंत्र मौलिक चिंतन समाप्त हो गया है , सदाचरण और संस्कृति समाप्त हो गयी है ,  में इन सभी चीज़ों की रक्षा का वचन चाहता हूँ राम।

राम उन्मुक्त मन से हंसे।  बोले ---- ऋषिवर - अपने मन के अनुरूप इस कर्म के लिए वचन देते समय मुझे सोचना क्या है ??

लक्ष्मण भी इधर चेहरे पर प्रफुल्लित मुस्कान लेकर राम की बात का समर्थन कर रहे है।

सोचना है पुत्र - क्यू की  राजसिहांसन पर बैठकर अपनी प्रजा की रक्षा करने में , और दूसरे राज्यो पर आक्रमण करने में बहुत फर्क है राम , जो कार्य में सोच चूका हूँ , जिसे करने की ठान चूका हूँ , वह रास्ता बहुत ही कठिन और विकट  है , उसके लिए तुम्हे अपना राज्य छोड़कर वनों में रहना होगा , जहाँ ऋषि तुमसे पहले ही जा चुके है ,  तुम्हे उनका शोध  कर उन तक पहुंचना होगा , आदर्श शाशन व्यवस्था नागरिको तक पहुंचकर उनका कष्ठ पूछती है , तुम मुझे वचन दो , तुम ऐसा ही करोगे , अपने राज्य ही नहीं , विदेशी राज्यो में भी तुम आदर्श शाशन व्यवस्था स्थापित करोगे--- एक राजा के रूप में भी और एक मनुष्य के रूप में भी।
ना केवल तुम ऋषियों की रक्षा करोगे , बल्कि उनके शत्रुओ का समूल नाश भी करोगे।   तुम इस बात की प्रतीक्षा नहीं करोगे की राक्षस उन्हें पीड़ित करे , तुम रुके नहीं रहोगे, की राक्षस उन पर आक्रमण करें ,  तुम स्वम् अन्याय का नाश करने का प्रण  लेकर घर से निकल पड़ोगे

गुरुदेव ---- राम कुछ कहने को उत्सुक हुए

ऋषि ने अपने हाथ के संकेत से निवारण किया , और बोलते गए " राम पहले पूरी बात सुन लो , चपलता में कोई वचन मुझे मत दो , तुम घर छोड़ने की बात सोचोगे , तुम्हारे माता पिता , भाई बंधू तुम्हारे मार्ग में बाधा  बन जाएंगे ,  में जानता हूँ भीतर की दुर्बलता को तुम एक क्षण  में पराजित कर देते हो , किन्तु यह बाहर की बाधाये  तुम्हे वन नही जाने देगी , आज तक तुमने सुना है कोई राजा अन्याय का विरोध करने राजमहल छोड़ जंगल चला गया हो ???  माता पिता बंधुओ को बहुत कष्ठ  होगा , और तुम्हे उन्हें त्यागना बहुत कठिन , यह सब बेड़िया समान  लिपट जायँगे , तुम झटका देकर अपने चरण छुड़ा सकोगें ??  तुम अच्छी  तरह सोच लो , सैनिक अभियान ही अगर यह होता , तो में सेना मांगता , किन्तु उन वनों में पर्वतो पर सैनिक अभियान संभव नहीं है पुत्र ,  वहां तो एकाकी , पदादी  ही जाना होगा    , और में जिनकी रक्षा की बात कर रहा हूँ ,, वो तुम्हारे प्रजाजन भी नहीं है , संभव है , एक राजा के रूप में वह तुम्हे सम्मान ना भी दे , ऐसा भी संभव है ,  तुम मानवीय कर्म में सदा बिना सम्मान  की इच्छा के केवल तुम्हे कर्म करना है। ..

अब तुम मुझे सोच समझकर वचन दे सकते हो पुत्र।

कुतुबुद्दीन ऐबक

----- कुतुबुद्दीन ऐबक

यह विधाता का कैसा क्रूर व्ययंग है , की प्रथम विदेशी राजा जिसने भारतीयों को गुलाम बनाया , जिसने इस्लाम के नाम पर पाश्विक अत्याचार कर दिल्ली के प्राचीन हिन्दू राजसिहांसन को अपवित्र किया , स्वम् एक गुलाम था , इसे पश्चिमी एशिया के इस्लामिक देशो में कई बार ख़रीदा बेचा  गया था।

उसका नाम कुत्तूबुद्दीन  ऐबक था , इतिहास तबकात - ए  - नासिरी का कहना है की उसकी छोटी अंगुली तोड़ दी गयी थी , इसलिए इसका नाम ऐबक पड़ा था , ऐबक यानी " हाथ से पंगु " कुछ इतिहासकार विश्वाश करते है की ऐबक नाम की एक जाति  की उपाधि होनी चाहिए , दूसरे कहते है की मूल पाठ का बयान सही नहीं हो सकता।  इससे स्पष्ठ है की मुस्लिम इतिहास की पुस्तके झूठे बायनो  की पिटारी है।

       इन्ही झूठे  इतिहासों  पर आधारित इतिहास पुस्तके जनता और सरकार  को पथभृष्ट करती है , की मुस्लिम शाशको और कुलीनों की लंबी वंश परंपरा जिन्होंने आतंक और अत्याचार की झड़ी लगा दी , जिसके हजार बर्षो के शाशन काल का हर एक दिन खून से चिपचिपा है , उस लंबी वंश परंपरा के सभी वंशज दयालु, न्यायी और सभ्य थे।

     उदहारण के लिए इसी पंगु को लेते है , कुतुबुद्दीन ऐबक को --- जो गुणों का प्रमाण-पत्र  दिया जाता है उसे परखेंगे।  फिर हम जांचेंगे की उसके गुणों का मिलान उसके जीवन चरित्र से होता है की नहीं।

तबकात के अनुसार ------ " सुल्तान कुतुबुद्दीन दूसरा हातिम था , वह एक बहादुर और उदार राजा था , पूरब से पश्चिम तक उसके समान  कोई राजा नहीं था , जब भी सर्वशक्तिमान खुदा अपने लोगो के सामने महानता और भव्यता का नमूना पेश करना चाहते है , वे वीरता और उदारता के गुण  अपने किसी एक  गुलाम में भी भर देते है ' ' ' अतएव राजा दिलेर और दरियादिल था , और हिंदुस्तान के सारे क्षेत्र मित्रो यानि  मुसलमानो से भर गए थे , और शत्रु ( मतलब हिन्दू ) साफ़ हो गए थे।  उसकी लूट और कत्लेआम मुसलसल था।

इस उदारहण से स्पष्ठ   है की  मुस्लिम इतिहास और यतार्थ में सारे मुस्लमान हिंदुस्तान के हिन्दुओ के लगातार क़त्लेआम का ( स्पष्ठ ही इसमें स्त्रियों के बलात्कार उनकी सम्पति लूट , और उनके बच्चो का  हरण   भी शामिल है ) ऊँचे दर्जे की उदारता धार्मिकता , वीरता और महानता  का काम मानते है।  साम्प्रदायिकता से सरोबार और राजनीती से दुर्गन्धित भारतीय इतिहास ने बलात्कार , लूट , और हरण से अपनी आँखे मूंद  ली है।  उन्होंने केवल उन्ही शब्दो को   जकड कर पकड़ रखा है की मुस्लिम शाशक उदार और कुलीन थे।

इसलिए हम हिन्दुओ को तो  कम  से कम अवश्य ही यह महसूस करना चहिये की बिना किसी एक अपवाद के भारत का प्रत्येक मुस्लिम शाशक नृशंस और अत्याचारी ही था , उसके दुष्कर्मो से मनुष्य ही नहीं पशु की गर्दन शर्म से झुक जाती है।  हम हिन्दुओ को इनकी झूटी प्रस्तुति और मनगढंत गप्पबाजी में डुबकी नहीं लगानी चाहिए।

कुतुबुद्दीन एक गुलाम था , अब उसकी जन्मतिथि में कौन सिर  खपाये ? इसलिए इतिहास को उसकी जन्मतिथि का ज्ञान नहीं है।  इतिहास को सिर्फ इतना ज्ञान है की वो एक तुर्क था।  उसके परिवार को मुस्लिम धर्म मानना  पड़ा था , गुलामी से श्रापित उसे अनेक लोगो के साथ भेड़  की भांति  बेचने के लिए हांका  गया था।

इसका पहला खरीददार अज्ञात है , मगर उसे निमिषपुर में खरीदकर ओने पोन दामो में बेच दिया गया था , यहाँ उनसे एक काजी से कुरआन की शिक्षा भी ली , की किस प्रकार काफ़िर हिन्दुओ का कत्ल किया जाए।

कुरूप और ऊपर से पंगु होने के कारन काजी ने इसे एक सौदागर दल के हाथों बेच दिया , आज के व्यापारियों की भांति मुस्लिमो के पास काला  धन तो नहीं  था , किन्तु लाल धन अव्य्श्य था , जो उन्होंने हिन्दुओ का रक्त बहाकर  इकठ्ठा किया था।

कुत्तुबउद्दीन अब किशोर अवस्था को प्राप्त कर रहा था , उसका मूल्य भी बढ़ रहा था , क्यू की उसकी डाका डालने , हत्या करने की क्षमता  में वृद्धि हो रही थी।

भारत के सभी मुस्लिम बादशाह रात में ही नहीं ,  बल्कि दिन में भी शराब के नशे में आमोद और प्रमाद में , वासना में व्यतीत करते थे , उसी परंपरा में प्रायः गोरी भी " संगीत और आनंद " में डूब  जाता था , एक रात उसने पार्टी दी और आनन्दोसत्व के बीच  उसने नोकरो को सोने और चांदी  के सिक्के बड़ी उदारता से दिए , उसमे से कुछ कुत्तुबउद्दीन ऐबक को भी मिले , जब कुतुबुद्दीन जब पहली बार गोरी की सेवा में आया था , उस समय तक उसके पास कोई उल्लेखनीय विवेक नही था ,  कोई भी काम कितना भी गन्दा व घिनोना क्यू ना हो , वह तैयार  रहता था।  इससे उसको नियमहीन स्वामी की कृपा प्राप्त हो गयी।

कुतुबुद्दीन एक घुड़सवार नायक था , और खुरासान के विरुद्ध युद्ध में भी उसे एक अभियान में भाग लेना पड़ा था , इसमें तीन शाशको ने भाग लिया था , गोर , गजनी , और बामियान।  बामियान अफगानिस्तान में ही है , जहाँ बुद्ध की बहुत विशाल मूर्ति भी थी , इसे बाद में तालिबानियों ने उड़ा  भी दिया था , अब इसका दुबारा निर्माण हुआ है , चीन की मदद से।

कुतुबुद्दीन ने इस अभियान के बाद  के अभियानों के बाद के अभियानों में व्यावहारिक ज्ञान पाया , इससे उसे भारत में नृशंग  और खूंखार चक्र चलाने में बहुत सहायता मिली।

सबसे पहली बार कुतुबुद्दीन ने ११६१ ईश्वी में भारत के मगध पर आक्रमण किया , सारे दुर्ग विदेशी मुसलमानो ने बनाये है , इस प्रचलित इतिहास को झूठा  साबित करता हुआ " ताजुल-मा -आसिर ( पृष्ठ २१६ ग्रन्थ २ इलियट एवम डाउसन )  कहता है --- " जब वह मेरठ पहुंचा , जो सागर जितनी छोड़ी और गहरी खाई , बनावट और नींव की मजबूती के लिए भारत  भर में एक प्रसिद्द दुर्ग था , तब उसके देश के आश्रित  शाशको की भेजी हुई सेना उससे आकर मिल गयी , दुर्ग उनसे ले लिया गया , दुर्ग में एक कोतवाल की नियुक्ति की गयी , सभी मूर्ति मंदिरो को मस्जिद बना दिया गया )

कितने दुःख की बात है की प्रत्येक मुस्लमान इतिहासकार इस प्रकार बार बार जोरदार आवाज में घोषणा करता है की  हिन्दू मंदिरो को , महलो को मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया , इसके बावजूद फ़िल्मी भांड और सरकारी मुस्लिम चापलूस और भोली जनता का ढ्र्ढ्ता से यही मानना है  की इन सबका निर्माण मुसलमानो ने किया।

एक मुस्लिमइतिहासकार  कहता है की मेरठ लेने के बाद कुतुबुद्दीन दिल्ली की और बढ़ चला , जो " सम्पति और स्रोत का आगार  था।  विदेशी मुस्लिम विजेता  कुतिबुद्दिन ने उस शहर को विध्वंश कर नस्ट- भ्रस्ट कर दिया ,   शहर और उसके निकटवर्ती क्षेत्र को मूर्तिपूजको से मुक्त कर देव स्थान आदि जगहों पर मस्जिदों का निर्माण किया।

क़ुतुब मीनार ----- आजकल दिल्ली में जिसे हम कुतुबमीनार कहते है , वह राजा विक्रमादित्य के राज्यकाल  का प्राचिन हिंदी नक्षत्र निरिक्षण स्तम्भ है , जब कुतुबुद्दीन ने इसपर धावा किया था , तो इसके चारो और मजबूत दीवारे थी , विनाश के एक नंगे नाच के बाद जिसमे प्रतिमाओ को बाहर फेंक उसी मंदिर को  क्वातुल इस्लाम की मस्जिद बनाया जा रहा था , कुतुबुद्दीन ने पूछा इसका मतलब क्या है ?// उसे अरबी भाषा में बताया गया की यह स्तम्भ एक क़ुतुब मीनार है , यानि उतरी धुव  के निरिक्षण का केंद्र।

इस मुस्लिम लुटेरे ने केवल चार वर्ष शाशन किया , इस स्तम्भ के निर्माण के लिए केवल ४ वर्ष का समय पर्याप्त नहीं है , इस बात को अगर छोड़ भी दे, तो भी कुतुबुद्दीन ने कभी यह नहीं कहा की उसके इस स्तम्भ का निर्माता वो खुद है।  दिल्ली विजय के बाद उसे पता चला की पृथ्वीराज चौहान के भाई हेमराज ने हिन्दू-स्वाधीनता का झंडा बुलन्द किया है , उसने मुस्लिम अधिकृत रणथम्बोर  दुर्ग को घेर लिया , उसने अजमेर की और भी कुच करने की धमकी दी है , जहाँ की मुसलमानो से पराजित पृथ्वीराज के पुत्र का शाशन था , हेमराज    के प्रयास तो सफल नहीं हुए , मगर कुतुबुद्दीन ने इसका खूब फायदा  उठाया , उसने अधिक से अधिक धन पृथ्वीराज के पुत्र से निचोड़ा , पृथ्वीराज चौहान का कायर पुत्र भी इसकी धमकियों से डर  इस नीच को मालामाल कर दिया।  ३ सोने से बने तरबूज कुटूबुद्दीन  ऐबक को भिजवाये गए , अब इससे पता चलता है , की इन अरबियो और मुस्लमान शाशको के पास इतना धन आया कहाँ से।

अभी अजमेर में मुस्लिम शक्ति का सिक्का जमा ही था की दिल्ली के हिन्दू शाशक , ने जिसे हटाकर  मुसलमानो ने दिल्ली छीनी  थी , उसने अपनी सेना एकत्रित कर ली है , और वह सीधा कुतुबुदीन की और बढ़ चला आ रहा है , घिर जाने के डर  से कुतुबुद्दीन अजमेर से बाहर निकल आया --- घमासान युद्ध हुआ , दिल्ली का राजपूत शाशक वीरता से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ  कायर मुसलमानो ने " धड़ से उसके सिर  को तरास  दिया ,  और उसकी राजधानी और  निवाश स्थान दिल्ली भेज दिया , इसके बाद अपनी सफलता का लंबा चौड़ा विवरण उसने गजनी भी भिजवाया , वहां से उसको गोरी का निमंत्रण मिला , अपने स्वामी का निमंत्रण पाकर कुतुबुद्दीन दूर गजनी पहुंचा , उसके आगमन पर एक उत्सव का आयोजन किया गया , और उपहार के रूप में बहुमूल्य रत्न और प्रचुर धन उसे प्राप्त हुआ ,

मगर कुतुबुद्दीन इस महान  सम्मानजनक भोज का उपयोग नहीं कर पाया , और वह बीमार पड़  गया , वह दरबार के मंत्री जिया-उल-मुल्क के साथ ठहरा हुआ था , संभव है उसी ने जलन से इसे जहर दे दिया हो , बाद में इसे गौरी के मेहमानखाने में लाया गया , अभी भी वह स्वस्थ महसूस नहीं कर रहा था , उसने हिंदुस्तान वापस लौटने का निर्णय किया।

वापस लौटने के  समय इसने काबुल और बन्नू के बिच बंगाल देश के कारमन  नाम के एक स्थान पर अपना पड़ाव डाला , वहां के मुखिया को धमकाकर उसकी पुत्री के अपने घ्रणित गुलामी के हरम में घसीट लिया  गया , दिल्ली लौटकर अपने पुराने इस्लामी स्वाभाव से जनता को  सताने लगा , ११६४ में उसने वाराणसी की और कूच  किया --- ताजुल-मा- आसिर के अनुसार ___ कोल हिन्द का सर्वाधिक विख्यात दुर्ग था , वहां की रक्षक टुकड़ी में जो बुद्धिमान थे , उनका इस्लाम धर्म में परिवर्तन हुआ , मगर जो प्राचीन धर्म में  डटे  रहे, उन्हें हलाल कर दिया गया , अब इससे यह तो स्पष्ठ है की भारत के मुस्लमान उन्ही कायरो की  औलाद है। जिनके माँ बाप को सता सता कर मुस्लमान बनाया गया है।

मुस्लिम गिरोह ने दुर्ग में प्रविष्ट होकर भरपूर खजाना और अनगिनत लूट का माल जमा किया , जिसमे एक हजार घोड़े भी थे , यह सब मुसलमानो का चरित्र ही तो प्रदशित करते है।  मुस्लिम इतिहासकार लेकिन यह लिखने के कतरा  जाता है की इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया , मुस्लिम  धावे के बड़े नुक्सान को झेलकर भी अविजित खड़ा रहा।  इस घटना को जीत जरूर बताते है , मगर आगे के इतिहास में बार बार मुस्लिम उसी दुर्ग पर हमले भी करते है ,

इसी बीच  गोरी मुस्लिम लुटेरो का एक गिरोह भारत में घुस आया , अपनी गुलामी के नजराने के तोर पर स्वेत चांदी  और सोने से लदा हांथी और १००० घोड़े उपहार स्वरुप दिए गए , इन सब धन को हिन्दू घरो से ही लुटा गया था कैसी विडम्बना है की एक डाकू , अपने डाकू सरदार को अपनी पाप की कमाई नजराना भेंट दे रहा है।   यह दोनों सेनाये मिलकर मुस्लिम गिरोहों का विशाल डाकूदल  तैयार हो गया , इसमें पचास हजार तो सिर्फ घुड़सवार सेना ही थी , अब पैदल सेना का अनुमान लगा लीजिये , जिसमे पूर्व हिन्दू भी शामिल थे , जिन्हें कोड़े की मार और तलवार की धार पर मुस्लमान बनाया गया था ,

जयचंद  गद्दार और कुतुबुद्दीन ऐबक की आगे की कहानी आज रात को ही पोस्ट करूँगा ---- फिलहाल उनकी मानसिकता समझिये ---- इन गद्दार कोम  के गाजियों की ---

आगे की पोस्ट खाना बनाने के बाद पोस्ट करता हूँ।

Friday, January 27, 2017

हमारा_धर्मयुद्ध ------ विश्वविजयी राम की अद्भुत शौर्य गाथा ।।

#हमारा_धर्मयुद्ध ------ विश्वविजयी राम की अद्भुत शौर्य गाथा ।।

आर्यो की उदासीनता के कारण रावण के विस्तारवादी मार्ग में अब कोई बाधा  ही नहीं है , जिस समय खुद के दिव्यस्त्रों से लड़ना चाहिए , आपातकाल में आर्य देवताओ के पास जाते है , उन शस्त्रो  के लिए , अपनी रक्षा के लिए भी उन्हें देवताओ के पास ही जाना पड़ता है ,  आर्यो के पास न तो अपनी रक्षा करने का कोई दिव्यस्त्र   नहीं होते , अन्य लोगो से दिव्यअस्त्र  पाना , भले ही वह देव जाति  ही क्यू न हो ,अत्यंत  कठिन है पुत्र ,उसके लिए अत्यंत विकट  तपश्या करनी पड़ती है , देवगण  उस दिव्यास्त्र को देते समय यह नहीं सोचते की वह किसे दे रहे है ,  और उसे प्राप्त करने के बाद उस अस्त्र का प्रयोग किस प्रयोजन से होगा , कभी  कभी यह दिव्यास्त्र अन्यायी , समाज-विरोधी , मानव विरोधी , राक्षसों के हाथ भी पड़  जाते है , और मानवो का उन राक्षसों से लड़ना असंभव हो जाता है , जब शस्त्रो  के लिए हम दुसरो की आश करते है , तो कृपा की बाट  जोहनी पड़ती है , वत्स तब तक सारे काम सम्भव नहीं हो पाते , हाँ कुछ ऋषियों ने अपने ज्ञान से दिव्यास्त्र प्राप्त किये है , और कुछ दिव्यास्त्र मेरे पास भी है , कहते कहते विश्वामित्र के मुख पर करुण  मुस्कान प्रकट हो गयी ,

" किन्तु पुत्र , मेरे दिव्यास्त्र मेरे लिए ही समश्या की जड़ बन गए है , यह दिव्यास्त्र में किसे दूँ , उतावली में किसी ऐसे व्यक्ति को ना दे दूँ , जो बाद में इसका दुरपयोग करे।

राम और लक्षमण अत्यंत भावुक उत्सुक भाव से विश्वामित्र के वचन सुन रहे थे , एक एक सब्द उन्हें मोती लग रहा है , खासकर हथियार का नाम सुनते ही तो लक्ष्मन के मुख पर अलग ही रौनक विश्वामित्र देखते है , वे अधिक जानना चाहते है, और अधिक

ऋषि उनके मन की अवस्था समझ कर मुस्कुराये , बोले वत्स कुछ पूछना चाहते हो ???

राम के ह्रदय  का भी उल्लास फुट पड़ा

गुरूवर आप अद्भुत है , आपकी बातों में सम्मोहन शक्ति है , आप पवित्र ग्रंथो की वाणी नहीं बोलते , आपकी जिब्हा  से स्वम् के अनुभव और उसका सत्य निकलता है , आप अन्य से बहुत भिन्न है गुरुदेव।

गुरु मुस्कुराये,---- तुम कुछ पूछना चाहते हो राम ??

राम बोले -- एक जिज्ञासा है , यदि युद्ध के लिए शस्त्र  का ज्ञान इतना ही आवश्यक है , और आप तो यह ज्ञान जानते भी है , किन्तु स्वम् आप यह युद्ध क्यू नहीं करते , उसके लिए मुझे ही क्यू चुना आपने ?? आपने स्वम् राक्षसों का संघार क्यू नहीं किया ,

लक्षमण के नेत्र बोलते हुए राम भैया की और ही देख रहे है ,

गुरु के गरिमा के बंधनो को मुक्त कर शिथिल  कर विश्वामित्र उन्मुक्त रूप से हंसे --

राम ----- ऐसे ही प्रश्न की अपेक्षा मुझे तुमसे थी , पुत्र --- यह प्रकृति का बड़ा विचित्र न्याय है , प्रकति किसी एक व्यक्ति को सम्पूर्ण शक्ति नहीं देती , दो पक्ष है पुत्र , एक चिंतन , और एक कर्म  , यह भी एक अद्भुत नियम है , जो चिंतन करता है , न्याय अन्याय की बात सोचता है , उस व्यक्तित्व का चिंतन पक्ष जाग्रत होता है , किन्तु कर्म पक्ष उसका पीछे छूट जाता है , तुम देखोगे पुत्र , चिंतक केवल सोचता है ,  वह जानता है की क्या उचित आई , क्या अनुचित , किन्तु अपने चिंतन को कर्म के रूप में परिणत करना सामान्यतः उसके लिए संभव नहीं हो पाता , उसकी कर्म शक्ति ख़तम हो जाती है , वहां केवल मस्तिक रह जाता है , कर्म व्यक्ति को राक्षस बना देता है , और न्याय और अन्याय का विचार मनुष्य को ऋषि और पुत्र , जिनमे कर्म और विचार दोनों की ही शक्ति हो , वास्तव में ऐसे लोग संसार में बहुत कम है , जन  सामान्य ऐसे ही लोगो को ईश्वर का अवतार मान लेते है , जब न्याययुक्त कर्म करने की शक्ति किसी  में आ जाए , तो वह जनसामान्य का नेतृत्व अपने हाथ में लेकर आगे बढ़ अन्यायों का विरोध करे तो प्रकति की अनके  शक्तिया अपनी पूर्णता में साक्षात हो उठती है , वही अवतार कहलाता है।

मुझमे कर्म  जब था , तो चिंतन नहीं था , अब जब चिंतन है ज्ञान है , तो गुरु कहलाता हूँ ,  कर्म करने की शक्ति अब मुझमे नहीं है , सामान्यतः सोचने वाले व्यक्तियों का कर्मशुल  और शरीर शून्य हो जाता है , यह केवल एक सूक्षम विचार है , उसका स्थूल कर्मशील शरीर निष्क्रिय हो जाता है ,

इसलिए मुझे तुम्हारी आवश्कयता पड़ी है राम

मुझे गुरु मानकर मेरे आदेश के अनुसार कर्म करो राम , इससे में  और तुम एक ही कहे जायँगे , तुम न्याय की बात मुझ पर छोड़कर स्वतंत्र होकर कर्म करोगे ,

तो जैसे मेने कहा    तुम मेरे ही अवतार कहलाओगे

राम कुछ ही दुरी पर मेरा आश्रम है , और तुम्हारे युद्ध का समय भी

क्रमश

हमारा_धर्मयुद्ध --- वीर योद्धा राम के विश्वविजयी बनने की कहानी ---

#हमारा_धर्मयुद्ध --- वीर योद्धा राम के विश्वविजयी बनने की कहानी ---

राम विश्वामित्र से कहते   है , की यह कैसे आर्य है , जो अत्याचार के विरुद्ध हथियार नहीं उठाते , अपराधी उनके घर जलाये, इसका इंतजार करने की जगह घर में घुसकर क्यू नहीं वध करते उनका ?  असुरो , दैत्यों , राक्षसों का नाश करना , और समाज का उद्दार करना ही तो आर्यो का प्रथम कर्तव्य है ऋषिवर।

विश्वामित्र  मुग्ध नेत्रो से राम को तन्मय होकर देख रहे थे , जैसे विष्णु के दर्शन पाकर कोई समाधिस्थ हो गए हो , फिर तन्यमयता से बाहर आ , गदगद होकर बोले , " तुम सच्चे क्षत्रिय हो राम।  तुम धन्य हो , मै  खुद आज धन्य हुआ , तुम्ही यह कार्य करोगे पुत्र।  आज प्रण  करो पुत्र ,अपन अपने विरुद्ध हुए अत्याचारो का तुम प्रतिकार करोगे ही , अन्य जनो की पीड़ा भी तुम मिटाओगे -- जहाँ कहीं भी अत्याचार होगा , तुम अपने प्राणों को भी दांव  पर लगाकर उनकी रक्षा करोगे।

" में प्रण  करता हूँ गुरुदेव "
 मै  आश्वस्त हुआ पुत्र।  मै  अब तुम्हे अयोध्या लौटने को नहीं कहूंगा।

" मै  तो ऐसी प्रतिज्ञा रोज करता हूँ गुरुदेव।  मेरी माँ कहती है - मुझे भी आप अपने साथ ले चलोगे न गुरुदेव ?? लक्ष्मण चंचल स्वभाव  से बोले , इस बार विश्वामित्र ने कुछ भी ना कहते हुए लक्ष्मण को ह्रदय से लगा लिया।

तुम और तुम्हारी माँ हमेशा ठीक कहते है लक्ष्मण।

प्रातः विश्वामित्र ने  राम और लक्ष्मण को बहुत जल्दी उठा दिया , क्यू की कम धुप में ज़्यादा से ज़्यादा दुरी तक उन्हें जाना भी है ,  स्थानीय आश्रम ऋषि अब आगे जाने के लिए नोका  का भी प्रबन्ध कर चुके है , गंगा की जलधारा में जो यात्रा करके ताड़कावन जा सके।

नोका  चल पड़ी , प्रवाह  की गति के साथ नोका की भी गति बढ़ती गयी , विश्वामित्र जैसे पहले युद्ध की  की थोड़ी सी घबराहट की वजह से निराश भी थे।

राम ने गंगा की धार से आँखे हटाकर विश्वामित्र की और देखा

गुरुदेव।

विश्वामित्र को राम द्वारा गुरुदेव  पुकारा जाना अच्छा लगा , राम वसिष्ठ के शिष्य थे , इसी कारण वे सामान्यतः  विश्वामित्र ऋषिवर या , ऋषिश्रेष्ठ ही कहते थे , किन्तु राम जब भी गुरुदेव कहकर विश्वामित्र को पुकारते , तो विश्वामित्र का मन कहीं आश्वश्त होता की राम का सम्बोधन औपचारिक नहीं है, वह शील का प्रदर्शन भी नहीं है , और ना ही राम का अभिनय है , राम के ह्रदय और जिब्हा  दोनों में विश्वामित्र के प्रति प्रेम और आदर था , गुरु स्नेह आपलपित  चहेरे से बोले " वत्स राम "

गुरुदेव , मेने राजदरबार के आज तक बहुत ऋषि देखे  है , किन्तु वे तपस्वी मात्र है , वे सिर्फ तपश्या करते है , युद्ध की बात नहीं सोचते , हिंसा कदाचित उनके स्वाभाव में नहीं है , वे कितने शांत दीखते है , आप उनसे बहुत भिन्न है गुरुदेव।

राम ने उनके चिंतन को उकसाया था , और आहत  भी किया था , " मै  भी यही सोच सोच कर उदास हूँ राम , मेने भी ऐसा शांत वातावरण , ऐसा ही शांत आश्रम , तपस्या और त्याग का जीवन चाहा था , , जिसमे कटुता ना हो , संघर्ष ना हो , युद्ध ना हो , मेने अपने क्षत्रिय    कर्म त्याग कर ऋषि धर्म को अंगीकार इसी लिए किया था पुत्र , किन्तु पुत्र में अब शांत नहीं रह सकता , शांति के नाम पर में कर्तव्य से खुद को विमुख नहीं कर सकता।

मै  समझा  नहीं गुरुवर  .....

विश्वामित्र ने कुछ छुपाने का प्रयत्न  अब छोड़ दिया था , उनके मन की पीड़ा अब उनके मुख पर प्रकट हो गयी थी , वत्स , में रक्त पिसाचू  हिंसक पशु नहीं हूँ , युद्ध कभी भी किसी भी सामान्य व्यक्ति को अच्छा नहीं लगता , शांतिप्रिय व्यक्ति तो युद्ध के नाम से ही घृणा  करता है , किन्तु फिर भी मुझे लगता है , युद्ध की , विरोध की , संघर्ष की आवश्कयता होती है , युद्ध की एक समय के साथ जरुरत होती है , चाहे  वह अपने परिवार के लोगो से हो , परिवार के बाहर के लोगो से हो समाज में विरोधी तत्वों से हो , या एक राज्य का दूसरे राज्यो के साथ हो ,

इस बात का विरोध कोन  करता है गुरुदेव , राम बोले

विरोध कोई नहीं करता राम , कम से कम इस सिद्धांत का विरोध तो कोई नहीं करता , किन्तु वत्स आर्यवर्त के राजाओ की मनःस्थिति  इस समय जिस प्रकार है , वह मुझे निराश करती है , युद्ध कभी शारीरिक शक्ति से नहीं होता , यह तो मनोबल से होता है , युद्ध के लिए अस्त्र सस्त्र अनिवार्य उपकरण है , इसके अभाव  में सम्यक युद्ध संभव नही है , , किन्तु इस महत्वपूर्ण उपकरण की जितनी उपेक्षा आर्य राजा और प्रजा कर रही है पुत्र यह अत्यन्त  शोचनीय  है , आर्य राजाओ के पास विश्व के श्रेष्ठ शस्त्र  नहीं है , जो रावण के पास है , और आर्य नागरिको के पास अपने घर में बरछी , ढाल , कटार  कुछ भी नहीं है , यह बात मुझे बहुत चिंतित करती है पुत्र।  हमारे पास नियमित सेना तक नहीं है , जो नागरिको की रक्षा कर सके , राक्षस जब चाहे आर्य घरो पर हमला कर देते है , हमें कोई भय ही नहीं है , की हमारा शत्रु हमें निगलने की तैयारी कर चूका है।

क्रमशः -----------

पाकिस्तानी मीडिया को लगी मिर्च जब तिरंगे के रंग में रंगी बुर्ज खलीफा

Thursday, January 26, 2017

Kis Bhartiya gantantantra ko mana rahe he ap

किस सम्विधान की जन्माष्टमी मना रहे हो बावलों ???

उस सम्विधान की जो सिर्फ एक पक्षीय हैं ??? उस सम्विधान की जो अमीरों के लिए अलग और गरीबो के लिए अलग आयाम तय करता हैं ??? उस सम्विधान की जो महज एक कॉपी पेस्टिया इबारत की इमारत हैं ??? उस सम्विधान की जिसमें लोकतंत्र की अभिव्यक्ति के नाम पर भारत के ही निजाम को कलपा कोसा जाता हैं ??? उस सम्विधान की जहाँ एक नाबालिग को बलात्कार और गुपतांगो में सरिया घुसेड़ने के एवज में उचित रहन सहन खान पीन और रिहा होने के बाद सिलाई मशीन के साथ दस हजार रूपये दिए जाते हैं ?? उस सम्विधान की जहाँ दादरी में अख़लाक़ की मौत सुर्खिया और मालदा पूर्णिया जैसी घटनाए सिर्फ चीखकर रह जाती हैं बहरो के देश में ??? उस सम्विधान की जहाँ कॉलेज केम्पस के होस्टल के कमरे को एक आतंकवादी की मौत के विरोध में निरोध का गुब्बारा फुलाकर मेमोरियल रूम बना दिया जाता हैं और कानून चुप रहता हैं क्योकि सम्विधान के वजीरो का वो एक मोहरा हैं ???

इस सम्विधान की 448 में से कोई एक धारा मुझे बताओ जो आपको अपने हक में लगती हो ???

सिर्फ दीवारों पर और पोस्टरों पर थूकने तक ही आजाद हैं आप !!!

थियेटर में जाकर कामुक फिल्मे देखकर वहाँ के गुटखे की पीक से लाल हुए शौच तक ही सीमित हैं आप !!!

किस भ्रम में जी रहे हैं आप ???

माफ़ कीजियेगा .... मैं ऐसे सम्विधान को सम्मान नही दे सकती जो एक आरोपी सलमान को बरी कर देता हो...
माफ़ कीजियेगा .... मैं ऐसे सम्विधान को कभी सलाम नही कर सकती जो शाहरुख़ खान जैसे दोगुले  द्वारा भारत का अपमान करने के बाद भी एहतराम करता हो ???
माफ़ कीजियेगा .... मैं ऐसे सम्विधान को कभी प्रणाम नही कर सकती जो पूर्व भारतीय टोरिज्म आमिर की लुगाई द्वारा ही इस मिटटी पर ऊँगली उठाती हो ???

ऐसा तन्त्र इन्ही गणों को मुबारक !!!

और वैसे भी जिस तारीख में नेहरु और  गांधी का नाम हो वो तारीख मुझे वैसे भी नही सुहाती फिर चाहे 26 जनवरी हो या 15 अगस्त , 14 नवम्बर हो या 2 अक्तूबर !!!

26 जनवरी के साथ भी इस नेहरु का नाम जुड़ा हैं क्योकि 1930 में लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन  नेहरू की अध्यक्षता में हुआ था , अब जहाँ नेहरु होगा वहाँ अगर सुन्दरकाण्ड का पाठ भी होगा तो मुझे अपवित्र लगेगा क्योकि असुरो के मुंह से शंख बजते मेरे कर्णो को अच्छे नही लगते !!!

मुझे इतिहास की वो तारीख पसंद हैं जिसमे भगतसिंह , बटुकेश्वर दत्त , अश्फांकउल्लाह , चंद्रशेखर आजाद , बिस्मिल , नाथूराम गोडसे , खुदीराम बोस , लाला लाजपत राय , लाल बहादुर शास्त्री , अब्दुल कलाम , अब्दुल हमीद को शिद्दत से याद किया जाता हैं !!!

मुहम्मद तुगलक

मुहम्मद तुगलक 

कुछ निष्ठा हीन  भारतीय इतिहासकार उमंग और उत्साह से तुगलक की एक विचारवान मुस्लिम के 
नाम से प्रशंशा करते है , जिसकी सारी  सुधारवादी योजनाए गड़बड़ा गयी थी , मगर कुछ  निष्ठावान इतिहासकार उसे पागल और सनकी करार देते है।  
मुहम्मद तुगलक का २५ वर्षीय शाशनकाल छुरेबाजी अकाल और दमन की लंबी कहानी है , प्रमुख रूप से हिन्दू उसके शिकार थे , और आंशिक रूप से मुस्लमान , जिन्होंने उसके अत्याचारो का विरोध किया था , उसमे पगालपन की भी एक पद्धति थी , एक तरीका था , सलीका था , उसका मुस्लिम दिमाग इस्लामी यातना के नए नए ढंग खोज निकालने में बेजोड़ था।  इन खोजो का उपयोग वह आँख मूंदकर बड़े धड्डले से सभी पर करता था। 
इस्लामी रिवाज़  के अनुसार तख़्त का लोभी तुगलक १३२५ में अपने अपहकर्ता पिता गियासुदीन की हत्या कर गद्दी पर बैठा था।  उसकी हत्या प्रणाली एक अनोखी थी , दिल्ली से एक पड़ाव दूर उसने काष्ठगृह बनाया , उस दिखावी  श्रद्धालु और विनम्र  पुत्र ने अपने पिता को एक रात इसमें आराम फरमाने की प्रार्थना की , सुल्तान गियासुदीन संध्या की शराबी दावत में बेहोश होकर बड़े आनंद से अपने शैतान पुत्र द्वारा तैयार  इस म्रत्यु  जाल में फंसे बेखबर झपकी ले रहे थे , की हांथी की एक टक्कर से सारा खांचा उसके सर पर आकर गिरा , कहीं सिर  चूर चूर होने से बच गया तो ?? इसलिए उसने इस मलबे में आग लगा दी , कहीं बेशर्म जान नहीं जली तो ???  आग बुझाने के बहाने इतना पानी बहाया , की कम से कम वो डूब  तो मरे। 
इन शैतान मुसलमान  सुलतान के चारो और नीच मुस्लिम चापलूस लेखक चांदी  के चंद  सिक्को की खनक पे यह दिन को रात लिखने में भी संकोच नहीं करते थे। इस कुख्यात जाति  के दो खुशामदी टट्टू मुहम्मद तुगलक के पास भी थे।  एक था जियाउदीन बरनी और एक इब्न बतूता , बड़े दुःख के साथ में यह लिख रहा हूँ , की आँख मूंदकर इन बेशर्म  दलालो के झूठे रिकार्डो को भारतीय इतिहास का मूल आधार माना गया है।  इन दलालो और चापलूसों ने नारकीय यातनाओ के हाहाकार के बीच  रहकर भी क्रूर-कारनामो का सिलसिलेवार वर्णन नहीं किया है , फिर भी इन लोगो ने इन सुल्तानों के खुनी कारनामो की कई झांकिया प्रस्तुत की है , जहाँ जहाँ इन खुनी कारनामो का प्रसंग भी है , तो वहां निंदा नहीं।  साथ ही मुसलमानो को न्यायी बुद्धिमान और रहमदिल माना है। 

यह हमारा इतिहास नहीं बाकि हमारे राष्ट्र का अपमान है , भारतीय इतिहास को इन चापलूसों ने कल्पना और चापलूसी की चासनी में ही रंग दिया है , इन खुनी मुसलमान  के झूठे और रंगीन वर्णन किशोर और छात्रों को रोज रटाने चाहिए , जो नरसंघार , बलात्कार और संघार में गर्क रहते थे।  जो समरकंद , गजनी और बुखारा के बाजारों में गुलामो को ओने पोने दामो में बेच देने के लिए हिन्दू स्त्रियों , बच्चो का थोक में निर्यात करते थे , इन सभी कारनामो को ताज पहनाने के लिए दिल्ली की लगभग सभी सड़को के नाम इन्ही दुस्टो के नाम पर रखे गए है।  
किस प्रकार झूठ लिखने के लिए , अपने आप को इतिहासकार मानने वाले इन चापलूसों का पेट और जेब भरी जाती थी इसका रूप इब्न बतूता के सब्दो में ही देखिये , यह मुहम्मद के काले कारनामो को पोतने के लिए अफ्रिका से बुलाया गया था वह लिखता है  ” दिल्ली पहुँचने पर राजा अनुपस्थित थे , मगर राजमाता ने मेरा स्वागत किया , उपहार में मुझे बेहतरीन कपडे , २००० दीनार , और रहने के लिए एक महल मिला , सुल्तान के लौटने पर मेरी और ज़्यादा खातिर हुई , मुझे ५००० दीनार  वार्षिक आय वाले गाँव , १० सुन्दर नारिया ( साफ़ है यह हिन्दू नारिया थी , जिन्हें वेश्यावर्ती के लिए इन्ही मुसलमानो ने घसीटा था , एक सजा सजाया घोडा , और ५००० दीनार  नगद प्राप्त हुए ” 
स्पष्ठ है की  मुस्लिम लेखको पर हिन्दुओ का लुटा हुआ माल समय समय पर बड़ी दरयादिली से न्योछावर किया जाता था , इससे उनका इस्लामी मुड़  बना रहता था , और अपने मालिको की झूठी बढ़ाई  हांकने में भी कमी नही रखते थे।  
मगर अपने निरपेक्ष क्षनो में इब्न बतूता ने लिख मारा  है वही पेज ( ६११ )  मुहम्मद को खून बहाना , सभी बातो में सबसे अधिक पसंद था , , म्रत्युदंड प्राप्त व्यकि हमेशा उसके द्वार पर रखे जा सकते है , उसका उग्र और क्रूर कारनामा विख्यात हो चुका है , सुल्तानी महल के प्रथम भाग के बाहर कई मंच है , जिनपर बैठकर जललाद लोगो को हलाल करते थे , ऐसा रिवाज है की जब कभी सुल्तान किसी आदमी की हत्या की आज्ञा देता सभा होल में लाकर खड़ा कर दिया जाता , जहाँ उसका देह ३ दिन तक पड़ा रहता था , मेने जो कुछ भी उनकी दयालुता और नम्रता के बारे में लिखा है , उसके बावजूद सुलतान को खून खराबा बहुत पसंद है।  मेने प्रायः लोगो को हलाल होते , और वहां उनके पड़े शवो को देखा है  मै  एक दिन महल जा रहा था , की मेरा घोड़ा झिझका , मेने नजर उठायी तो देखा की ३ हिस्सो में एक आदमी का धड़ था , सुल्तान मामूली भूलो पर बड़ी कठोर यातनाये देते था , विध्वान , कुलीन , या धार्मिक किसी को नहीं छोड़ता था , रोजाना सेंकडो लोगो को जंजीरो में जकड़कर सभा हाल में लाया जाता , उनके हाथ पाँव एक दूसरे से बांधकर लाया जाता है , कुछ को मार दिया जाता , और बाकियो को कोड़े से उन्हें पीटा  जाता था। 
कभी कभी स्पेशल ट्रेनिक प्राप्त पशुओ को भी इस काम पर नियुयक्त किया जाता था  ” हक़ के आकार  के आकार  के चाक़ू से भी तीक्ष्ण लोहा नर – हत्यारे हांथियों को पहनाया जाता था , जब आदमी उसके आगे फेंके जाते , तो हांथी उन्हें चारो और उन्हें अपनी सूंड में लपेटकर हवा में उछाल देते थे , और उन्हें फिर अपने दांतो पर रोकर ज़मीन पर दे मारते थे  फिर हांथी उनपर अपना पाँव रख देते थे 
इतना तो खुद बरनी ने भी सच कह ही दिया है,  सुल्तान ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है , अत्यंत आवेश की दुर्बलता में वह बहुत कठोर हो गया था , वह जंगली घास फुस की तरह लोगो को काटता था। 
  अपने पिता का खून अपने मुह पर पोतकर मुहम्मद तुगलक ने गद्दी पर बैठने के साथ ही , ही अपनी रियाया से ५ से १० प्रतिशत अधिक लगान वसूल करना शुरू कर दिया  ( कांग्रेस की धर्म – नीति सरकार  की तरह ) , इस काम में वह तब तक टेक्स बढ़ाता रहा, जब तक की जनता की कमर नहीं टूट गयी।  अपने ऊपर इन भारी  टेक्स के कारण जनता जंगलो में भागने लग गयी , जंगल में लोग रहने भी लगे , वहां भी एक सुखमय बस्ती बन गयी थी , मगर इस जल्लाद ने वहां भी अपने डाकू भेजकर जंगलो में आग लगा दी , वहां कोई भी ज़िंदा नहीं बच सका. कुछ लोगो को तो ज़बरदस्ती ही उसने शहर के बाहर उनकी सम्पति लूट कर निकाल दिया , लेकिन देवगिरि पहुंचकर वे सभी निराश होकर अपनी मौत की कामना करने लगे ” 
अब आपके लिए  जान्ने  लायक जरुरी बात _     देवगिरि  में बेस लोग सुलतान को  पत्र  लिखकर भद्दी भद्दी गालिया देते थे , हिन्दुओ के ही जाबाज उसे दरबार हाल में फ़ेखते , ताकि दूसरा उसे पढ़ ना पाए , जब सुल्तान उसे खोलते तो उन्हें ज्ञात होता की इनमे सिर्फ गालिया ही लिखी है , मुस्लिम इतिहासकार बढ़ाई  करते नहीं हांकते की देवगिरि को  पूर्णरूपी केंद्र बनाने के लिए उन्होंने देवगिरि अपनी राजधानी बदली थी।  इसके उल्ट बात सही यह है की उन गालियो से तंग आकर उसने दिल्ली दरबार को ही तहस नहस करने का मन बना लिया , सुल्तान ने दिल्ली में ढिंढोरा पिटवा दिया की दिल्ली में ३ दिन के बाद कोई ना रहे , , सब कुछ अच्छे से छान लिया की कोई रह तो नहीं गया है , उसके  गुलामो  ने गली में २ आदमियो को खोज निकाला , एक कोढ़ी था , और दूसरा अँधा , उन्होंने कोढ़ी को मारने की आज्ञा दी , और अंधे को दिल्ली से दौलताबाद तक घसीटकर ले जाने की सजा , यह ५० दिन का सफर था , रास्ते में उस बेचारे के अंग अंग बिखर गए , सिर्फ उसका एक पैर ही दौलताबाद पहुँच पाया।  एक दिन दिल्ली का अँधेरा देख के सुल्तान ने कहा , की अब मेरे कलेजे को ठंडक मिली है।  
अब देवगिरि पहुंचकर देवगिरि की हिन्दू जनता के जीवन में इसने विष घोल दिया , , क्रुद्ध होकर हिन्दू जनता ने उसका जीना मुश्किल कर दिया , देवगिरि के आस पास हिन्दुओ की काफी ज़मीनो पर मुसलमानो की कब्र बन गयी थी , और देवगिरि से वापस बहुत थोड़े ही मुस्लिम लुटेरे वापस लौट पाए।  
मुहम्मद ने देखा की उसका पागल प्लान देवगिरि में भी उसे शांति नहीं दे सका , क्यू की उसकी पापी छाया  जहाँ भी लोगो पर पड़ी , वहीँ के लोगो ने बगावत कर दी , फिर उसने दिल्ली कूच  किया , बलपूर्वक देवगिरि से वापस लाये दिल्ली के नागरिको की वापस आते आते ही हत्या या म्रत्यु हो गयी।   अब मुहम्मद में एक नया जोश उतपन्न हुआ , उसने विश्वविजय करने की ठानी , जो असम्भव था , इसलिए उसने ताँबे के सिक्के चलाये , और सोने चांदी  के बदले उनका प्रयोग होने लगा , इस पागल प्लान का उल्टा प्रभाव हुआ , कई नयी टकसाल खुल गयी ,  सोने और ताँबे का भाव बराबर हो गया , लोग सोने  चांदी  के सिक्के जमा करने लगे , और टेक्स ताँबे के सिक्को से भरने लगे।  खजाना ताँबे के सिक्को से भर गया , जब ताँबे के दाम मिटटी से कम हो गए , और उन्हें लेने वाला कोई ना रहा तो , गुस्से में अपना फैशला वापस ले उसने जनता के विरुद्ध ही तलवार निकाल ली ( पेज नंबर २५१ ) 
विश्वलुट  के लिए तयार करने के लिए डाकू सेना इक्क्ठा करने का मुहम्मदी इरादा फ़ैल हो गया , अब इसने इराक़ तथा ईरान पर नजर डाली , अपने मन में उसने यह लड्डू फोड़ लिए की घुश देकर इन देश के अफसरों को अपनी और मिलाया जा सकता है , वे लोग लोबहलुभवन प्रस्ताव लेकर सुल्तान के पास आये , और सुल्तान को ठग लिया , इच्छीत  दरबारी मिलाये नहीं जा सके , और जो मिले , वो किसी काम के नहीं थे , मगर हर हालात में उसका खजाना खाली हो गया।  
हताश होने के बाद भी इस पागल की झुंझलाहट खत्म नहीं हुई , उसने खुरासान के विरुद्ध सेना इक्कठी करने का सोच लिया , , इस भर्ती दफ्तर में तीन दो पछत्तर हजार घोड़े  नामजद हुए , पुरे एक वर्ष तक इनको दाना पानी दिया गया।  मगर बाद में वेतन देने के लिए एक भी पैसा नहीं बचा , सभी ने अपना अपना रास्ता नाप लिया , अब यह विशाल गिद्ध के गिरोह ने हिन्दुओ को लूटना शुरू कर दिया।  #पुरोहितवाणी 
पश्चिम में राज्य विस्तार का चंचल भाव फ़ैल हो गया तो क्या हुआ , अभी पूर्व तो बाकी पड़ा था , उसने तिब्बत पर आक्रमण करने की योजना बनायी , एक विशाल मुस्लिम सेना वहां भेजी गयी , जिस नगर या खेत से यह मुस्लिम सेना गुजरती वहां सिर्फ विनाश ही होता था , घर की बहने और पत्निया इन मुसलमानो की गुलाम या वेश्या बन जाती , इसी काल में हर जगह इसका विरोध होता रहा ,  इसको कहीं हिन्दुओ ने टिक के नहीं रहने दिया , मरते तो थे इनके हाथो , पर इसके कई प्रिय लोगो की कब्र भी हिन्दुओ ने बना दी थी।  यह जब तेलंगाना गया , तो वहां भी इसका प्लेज पहुच गया , पुरे तेलंगाना को इसने निचोड़ दिया , मगर यहाँ उसको दस्त लग गए , इसलिए वहां से इसे लौटना पड़ा , मार्ग में सुल्तान ने राजा भोज की प्राचीन राजधानी धारानगरी में पड़ाव डाला , मुहम्मद एक श्रापित व्यकि ही था , वह जहाँ पहुंचा उधर बर्बादी भी पहुँच गयी , मार्ग की सभी चोकिया और मंदिर उसने नष्ट कर दिए।  इसके काल में वह भुकमरी आ चुकी थी की इब्न बतूता लिखता है  की रास्ते में मेने देखा की एक औरत मरे हुए घोड़े की चमड़ी उतार उतार कर खा रही थी , इसके समय में ऐसा अकाल आया की आदमी आदमी को खा रहा था , और इस हालात में भी इसका हिन्दुओ को लूटना , सताना जारी था , एक तो भूखे, और बिना ही गलती  के उन्ही के  देश में उन्ही को कोड़े मारे जाने लगे।  
 में इसका पूरा विवरण क्या लिखू अब।  मुझमे और हिम्मत नहीं , इसकी दुष्ठता को जो हमारे इतिहासकारो ने छुपा दिया , वो अंत में इसकी म्रत्यु से ३ वर्ष पहले यह खड़ा भी नहीं हो पाता था , और किस हाल में फिर मरा  होगा , कल्पना कीजिये।
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