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Friday, February 10, 2017

#महाभारत ---- भाग - 2 #गाथा_निर्मोही_की


#महाभारत ---- भाग - 2  #गाथा_निर्मोही_की
                                           
                                    
देवव्रत सत्यवती को लेकर अपने प हस्तिनापुर लौट चुके है ,  अब आगे ----

सांतनु ने एक लंबे असुविधाजनक मौन के बाद कहा , और सायास ही  देवव्रत की और देखा ,  उन्हें लगा की वह सहज देवव्रत की और नहीं देख पाएंगे , किन्तु  मुह मोड़कर भी वो शांत नहीं रह पाएंगे , वस्तुतः देवव्रत से उनका सम्बन्ध नहीं रहा , जो आज  तक था , उन्होंने अपने इस पुत्र को नहीं जाना था , उन्हे तो केवल समय समय पर यही सुचना मिलती थी  की गंगा का एक पुत्र भी है , जो गुरुकुल में शिक्षा प्राप्त कर एक यौद्धा   बन रहा है।  गंगा की गौद  में एक नन्हा शिशु था , सांतनु को तो उससे प्रेम था ,  वे उसे अपना पुत्र मानकर प्रेम करते थे , दरअसल यह प्रेम था ही नहीं  मोह था।   उस शिशु से मोह था , जिसका नाम देवव्रत था , किन्तु इस  देवव्रत को तो कभी उसके पिता ने समझा ही नहीं।

 सत्यवती को देखने के बाद , उसकी शर्ते सुनने के पश्चात  सांतनु को लगा की उनका कोई पुत्र है ही क्यू , अगर  उसी समय इसे भी मरने दिया होता , तो आज में आराम से विवाह कर सकता था , सांतनु को लगा की देवव्रत उनका परमसुख छीनने ही आया है।

सांतनु ने काम के वेग को तो पहचान लिया , किन्तु देवव्रत को नहीं पहचान पाए , उन्होंने गंगा के जाने के बाद बस अपनी उग्रता को दबा रखा था , किन्तु सत्यवती  की सुंदरता ने उस उग्रता को शांत कर दिया था।  सत्यवती के सौन्दर्य के आगे सांतनु का वास्तविक चरित्र सामने आ गया था।

 और तब  सांतनु को लगा की गांगेय जैसा मेरा कोई पुत्र है ही क्यू ?? अगर उनका कोई पुत्र ना होता तो वह बिना किसी विरोध के सत्यवती से विवाह कर सकते थे ,  विबाह को उनकी आवश्यकता ही नहीं , उनका धर्म भी माना जाता ,  उन्हें लगा गंगा को जाना ही था  , इसीलिए तो वह उन्हें पुत्रो से मुक्त करना चाहती थी , ताकि एक  दूसरे के विवाह में असुविधा ना रहे ,  वे व्यर्थ के मोह में ही फंस गए थे।

 सांतनु को लगा की पुत्र  केवल सुख का  कारण नहीं होता , कभी कभी यह आपके जीवन की सबसे बड़ी बाधा  बन जाता है , उन्हें लगा की देवव्रत ने उन्हें कामाग्नि के झरने के निचे  खड़ा कर दिया है , जहाँ अब उन्हें नित्य जलना ही है।

 मगर आज उनके सामने जो गांगेय बैठा था , वह कितना समर्थ , और कितना बड़ा त्यागी है ,  जैसे कोई  बच्चा जब एड़िया रगड़ रगड़ कर किसी चीज़ की जिद करता है , और समर्थ पिता उसकी जिद पूरी करता है ,  इस बात की चिंता किये बिना की इस वस्तु का मूल्य क्या है , किन्तु आज पुत्र ने ने पिता की  इस जिद को पूरा किया था , ऐसा इतिहास में पहले कभी हुआ ही नहीं था , सृस्टि के नियम के विरुद्ध जाकर  देवव्रत ने अपने जीवन के सारे सुखो को बेचकर अपने पिता की इच्छा पूरी की थी।



 तुमने जो प्रतिज्ञा की है गांगेय    . सांतनु बड़े कठिनाई से बोले , यह सरल नहीं असंभव प्रतिज्ञा है , तुमने भीषण कर्म किया है , मै  तुम्हे क्या दे सकता हूँ पुत्र तुम जैसे पुरुष को कोई क्या दे सकता है ??  मुझे लगता है , तुम्हारा जन्म कुछ लेने के लिए हुआ ही नहीं है ,  तुम आजीवन दोगे  , लोग याचक होंगे , और तुम दाता  होंगे।  जीवन  तुमको कभी कुछ नहीं देगा , हमेशा तुमसे पायेगा ही पायेगा ,  मेने तुम्हे कभी नहीं पहचाना पुत्र , आज मेने तुम्हे देखा है।

 मै  इस अवसर पर तुम्हारा नया नामकरण कर रहा हूँ

तुम इस प्रतिज्ञा के कारण भीष्म कहलाओगे।

देवव्रत ने अपने पिता की और देखा , " मेने केवल अपना पुत्र धर्म निभाया है आर्य।

सांतनु की आँखे डबडबा  गयी , एक ही दृस्टि के भीष्म को देखते रह गए ,  " तुमसे पुत्र पाने की कामना हर पिता करेगा  " सांतनु भारी  गले के कारण   बहुत मुश्किल से अपनी बात कह पा रहे थे ,  तुमसे  कोई पुत्र होता है , तो पिता केवल पुत्र पर गर्व कर सकता है , स्वम् अपने आप पर भी गर्व करने का सहस वह नहीं जुटा  पाता।

 तुम भीष्म हो पुत्र , पूरा संसार तुम्हे भीष्म के नाम  से जानेगा  .

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