Search This Blog

Thursday, February 2, 2017

सिंहपुरुष_राम --- रामायण

#सिंहपुरुष_राम --- रामायण  

असमंजस  से शून्य से स्वर में विश्वामित्र बोले - राम का वचन कर्म का प्रमाण है , अब मेरे मन में कोई दुविधा नहीं है , राम तुमने ऋषि मुनियो के संकेत पर चलने का वचन दिया है , और लक्ष्मण तुम्हारे भाई ने भी इसका वचन दिया है , तुम्हारा समर्तन किया है , शेष कार्य तो स्वतः तुम्हारे मार्ग में आगेंगे और तुम उन्हें पूर्ण करोगे , अब प्रस्तुत हो जाओ , मै  चाहता हूँ, जितने भी दिव्यास्त्र मेरे पास  है , उन सब का ज्ञान में तुम्हे दूँ , तुम्हारा प्रक्षिशण आरम्भ होता है पुत्र , इस प्रशिक्षण के बाद तुम राक्षसों को मारने में पूर्णतः समर्थ हो जाओगे।  उठो राम धनुष उठाओ।

और गुरु ने पीछे की और गर्दन मुड़कर आदेश दिया , , नाविक. नोका घाट पर लगाओ ,

घाट  से कुछ दूर चलकर वन के भीतर राम  ने खुला स्थान देखकर विश्वामित्र के साथ प्रशिक्षण किया , रघुनंदन तुम्हारा कल्याण हो
यह दिव्य और महान दण्डचक्र , यह धर्मचक्र, यह विष्णुचक्र , तथा अत्यंत ही भयंकर इंद्र चक्र है राम।  और यह शिव का श्रेष्ठ त्रिशूल ,  यह इंद्र का बह्रमास्त्र, और यह ब्रह्मा का ब्रह्मअस्त्र, पुत्र यह मोदकी और सिदकी  नामक गदाये  है ,

पुरुष सिंह श्री राम , यह धर्मपाश, कामपाश, और वरुणपाश नामक उत्तम अस्त्र है , तामसी , महाबली , सोमन , संवर्त , दुर्जय , मोसया , सत्य, और मायामम  उत्तम अस्त्र में भी में तुम्हे अर्पित करता हूँ , सूर्य का तेज प्रथम अस्त्र भी में आपको अर्पित करता हूँ , विश्वश्रेष्ठ राष्ट्रवादी राम।  सोम का सिथिर नामक अस्त्र भी तुम लो , और महाबाहु , अब इनके प्रयोग की विधि भी सीख  लो।

 राम जैसे स्वप्न लोक  में आ गए ,  क्षत्रियो  को स्वादिस्ट भोजन से भी ज़्यादा शस्त्र प्यारे होते है , वही राम के साथ था , कितनी विचित्र बात थी , अपने पूर्ब  की शिक्षा काल में , इन शस्त्रो की चर्चा तक कभी नहीं हुई थी।  और विश्वामित्र वे अस्त्र उन्हें दे रहे थे।  - साक्षात

अस्त्र प्रशिक्षण के बाद पदयात्रा शुरू हुई।  बार बार वे  सूर्य की और देख रहे थे , और चारो और फैले वन को भी परख रहे थे , कुछ ही दूर चले की विश्वामित्र की गति धीमी हुई और वे रुक गए , राम  लक्ष्मण और बाकी शिष्य भी उनके साथ ही रुके , सभी लोग प्रश्न भाव लेकर  गुरु के  मुख की और देखने लगे।

विश्वामित्र ने गहन मन्द स्वरों में कहना शुरू किया , यह जो वन है ,  जिसके अंदर इस समय है ,  इसी का नाम ताड़का वन है राम।

गुरु की बात पूरी होती ही की बालक लक्ष्मण ने धनुष उठाकर कमान से तीर निकाल लिया , वे लोग ताड़का वन में थे , और इसी में  ताड़का रहती थी।

पर विश्वामित्र युद्ध की मुद्रा में नहीं थे , वे केवल बता रहे थे , यहाँ पहले मसल और कुरुष नाम के दो राज्य हुआ करते थे।  जो अगस्त्य के प्रति शत्रुता के कारण , समस्त ऋषियों को शत्रु बनाकर , जिस समय ताड़का अपने पुत्र और  सैनिक सहायको के सहयोग से यहाँ आयी , उस समय इस वन के स्थान पर सुन्दर वन और जनपद थे , किन्तु वे ताड़का के अनुकूल नहीं पड़ते थे , वे राज्य छोटे मोटे  हिन् पड़ते थे , और शाशक अराजक , राक्षसी सेना के अस्त्रो सस्त्रो का छल  प्रपंचो का सामना वो नहीं कर सके , ताड़का ने मलड और कुरुष राजवंशो की हत्या करवा दी ,  फिर  कितने ही लोगो को ताड़का के सहायक राक्षस  मनुष्यो को खा गए ( मुस्लिम आतंकवादी इंसानो का गोस्त भी खाते पाए गए है )  राजवंश समाप्त हो गए , प्रजा भयभीत होकर भाग गयी , जो नहीं भागे , वे या तो दस्यु राक्षस हो गए, या मार डाले गए , धीरे धीरे भवन नष्ट हो गए ,  अथवा राक्षशो ने उसका मनमाना उपयोग किया , व्रक्ष उगते गए , बढ़ते गए , और अब यह स्थान ताड़का वन हो गया है , जो राक्षसों के दुर्ग का शिविर है , और उनकी बस्ती है , और तब गुरु आवेशपूर्ण हो उठे और बोले ,

छोटे छोटे राज्य इसी प्रकार राक्षसो के उदर में समाते चले गए , और निकट के सम्राट अपनी रानियों के अंचल में छिपे रहे , क्या कर रहा था इस समय दसरथ और वसिष्ठ ???  इन दोनों या बड़े बड़े राजनीतिग्यो को ज़रा सी बात समझ नहीं आयी , इसी तरह आसपास के छोटे छोटे राज्यो को  गटककर यह लोग आर्यवर्त को ही हथिया लेना चाहते है , यह राक्षस शिविर अयोध्या की नाक पर है, यह दसरथ और वशिष्ठ को समझ नहीं आया ??. उन्हें तो होंश तब आएगा , जब राक्षस सेना उनके  कमरो के दरवाजे  तोड़ रही होगी।

 राम में जैसे गुरु की आँखों में राक्षसी जोखिम को देख लिया , मन असंतुष्ट हो उठा , बोले गुरुदेव , हमने इस तरह राक्षशो का शाशन कैसे स्वीकार कर लिया ??

 इन्होंने राक्षशो के अधिकार को युद्ध में हार जाने के  स्वरूप  शाशन स्वीकार कर लिया , और मान लिया , की राक्षशो की भी कभी एक बस्ती हमेशा से थी ,

 लक्ष्मण बोले, अरण्य की हत्या कर रावण ने अयोध्या भी तो जीती थी , तो दसरथ महाराज अब अयोध्या भी रावण को दे देंगे ??

No comments: