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Thursday, February 2, 2017

राष्ट्रवादी राम से भगवान राम बनने तक का रघुकुलनंदन का संघर्ष ----- रामायण - ( ताड़का का वध )

राष्ट्रवादी  राम से भगवान राम बनने  तक का रघुकुलनंदन का संघर्ष ----- रामायण - ( ताड़का का वध )

गुरु विश्ममित्र राम से बोले , आज राक्षसों की सेना यहाँ पूरी तरह से जम  चुकी है , वे आसपास के सभी ग्रामो और  जनपदों को वे पीड़ित और आतंकित करते रहते है , , ताड़कावन में तो कोई शाशन है ही नहीं , पडोसी राज्यो के शाशक और शाशन प्रतिनिधि भी शीथल हो चुके है , आदर्श , सिद्धांत , और मर्यादा का लोप  होता जा रहा है , पाशविक शक्तिया और विलासता चारो और फेल रही है , राक्षश संस्कृति जब हमारे समाज को भीतर से खोखला कर देगी , तब राक्षसी सेना बाहर से आक्रमण कर अन्य राजाओ और सम्राट के साथ , मानवीय संस्कृति को भी सदा के लिए नष्ट कर देगी।

 आप चिंतित ना हो गुरुदेव।  राम है न , राम विश्वाश  साथ मुस्कुराये , संकेत सा करते हुए , उन्होंने लक्ष्मण को देखा और धनुष कंधे से उतार लिया।

लक्ष्मण के मुख पर उल्लास ही उल्लास था।

वे पुनः वन की और चल पड़े , आगे आगे विश्वामित्र ,  ताड़का ने इन दोनों धनुषधारियो को विश्वामित्र के साथ  देख लिया।

शस्त्रधारी ???? ताड़का की आँखे रक्तिम हो गयी , उसने अपना घूंसा ताना और आघात करने के लिए  झपटी, उसके साथी अपने अपने  स्थान पर खड़े होकर हंस रहे थे।

राम  इसे मारो , विश्वामित्र ने निष्कम्प  वाणी में आदेश दिया।

ताड़का भयंकर शब्द उतपन्न करती हुई अपनी उग्र चेस्टाओ से धूल मिटटी , पत्थर और बृक्षो  की  शाखाये , पत्ते उड़ाती हुई हुई आंधी तूफ़ान के समान  झपटती आ रही थी।

राम की अंगुलियों  ने परतनच्यां छोड़ दी , कालचक्र प्रतिरोधविहीन वायुवेग से बढ़ता हुआ ताड़का के वक्ष में जा में जा धंसा , ताड़का ने कर्णभेदी चीत्कार किया , और अपने ही वेग में अपने स्थान से उछल पड़ी , उसके सिर  के ऊपर के बृक्षो शाखाओ से रगड़ खाता हुआ किसी शेल संग के सामान  स्थूल शरीर धम से जमीन पर आ गिरा , उसके मुख से रक्त वमन  किया और अपना सर पृथ्वी पर टेक दिया ,

राक्षसों की हो-हो सहसा थम गयी , वे कौतुक में भरे निश्चिन्त जोखिम की  संभावनाओ से दूर आँख मूंदे , ताड़का का खिलवाड़ देख रहे थे , , और कदाचित राम , लक्ष्मण और विश्वामित्र की म्रत्यु में निश्चित मान चुके थे , किन्तु ताड़का को धरती पर गिरा  देख वह स्तब्ध रह गए , ऐसी घटना की उम्मीद ही राक्षसों को कभी नहीं थी ,  उन्होंने पीड़ा-मिश्रित भय तथा आश्चर्य से राम को देखा , ऐसा रूप,  ऐसा शौर्य , और ऐसी शस्त्र दक्षता उन्होंने पहले कभी नहीं देखी  थी।   वे वहां रुक नहीं पाए , ताड़का के शरीर को वहीँ पड़ा छोड़ , उलटे पैरो से घने जंगलो में विलीन हो गए।

लक्षमण कुछ दूर तक उनका पीछा  करते दौड़े, फिर विश्वामित्र ने उन्हें हंस के बुलाया , आ जाओ  लक्ष्मण , जीवन में तुम्हे भी ऐसे बहुत अवसर मिलेंगे।  आ जाओ पुत्र , उनका पीछा  कर सामान्य लोगो की हत्या करना उचित नहीं।   इधर राम ताड़का को मारकर इतने सहज भाव से खड़े थे , जैसे कुछ हुआ ही ना हो।

राम तुम्हारी जय हो    ......  विश्वामित्र ने जयघोष किया , किन्तु उसके स्वर में कोई विशेष उल्लास नहीं था , वे गंभीर तथा  चिंतित थे , " तुमने अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध आज संग्राम छेड़  दिया है राम , न्याय का संघर्ष एक बार मनुष्य  शुरू कर देता है , तो वह फिर कभी भी उससे पीछे नहीं हट पाता , उससे ना तो समझौता होता है , और ना ही उसे स्थगित किया जा सकता है , अब तुमने जोखिम मोल लिया है , तो तुम्हे इसे अंत तक निभाना होगा ,

राक्षस अभी भाग गए है , वे चकित है, और भयभीत भी , इस वन में कौई ऐसा वीर भी है, इसकी कल्पना उन्हें नहीं थी , आश्रम के किसी भी व्यक्ति ने उनपर पहले कभी आक्रमण नहीं किया था , आश्रम में भी कोई ऐसा शिष्य नहीं था , जिसको में दिव्यअस्त्रो  का ज्ञान दे पाता।  अब तक आक्रमण एकपक्षीय थे , वे जब चाहते थे , हम पर आक्रमण कर  देते थे , कभी कभी उनका प्रतिरोध जरूर होता था , किन्तु पहले प्रतिआक्रमण कभी नही हुआ , राक्षस सदा निर्भय थे , तुम्हारे यहाँ आने की सुचना अब तक उन्हें नहीं थी , वे अपनी शक्ति के मद में इतने आश्वश्त थे , की उन्होंने गौर ही नहीं किया कभी , की आश्रम में कौन आया , और कौन गया।  अब वे जाकर मारीच और सुभाह को सूचित करेंगे , संभव है, प्रतिशोध  के लिए वह तत्काल ही आक्रमण कर दे , इस खुले वन  में हम जोखिमो से    भरे है ,

पुत्र हमें जल्दी ही आश्रम पहुंचना होगा।  यह अतिआवश्यक है।

क्रमशः

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