हिन्दुओ की शौर्य गाथा ( प्रथम )
इतिहास में पहली बार , जिसे मौत और हार का डर ना हो , जीत उसके मुकद्दर में तय होती थी , जिसने ना केवल पूर्वोत्तर में हिन्दू धर्म की रक्षा की , बल्कि मुगलो के गरूर को भी कुचल डाला।
वो नाम था ------ the legend of lachit Borphukan
भारत का वो हिस्सा जहाँ सूरज सबसे पहले दस्तक देता है , पूर्वोत्तर , जिसे आज हम आसाम कहते है , इसकी राजधानी हुआ करता था रोमपुर , शिवसागर , यहाँ मुग्लो की पैरवी करते हुए मीर जुमला ने राजा जयधरत सिन्हा को परास्त कर किया , इस दुख में उनकी अकाल म्रत्यु हो गयी ,जिसके पश्चात् चक्रध्वज सिन्हा विराजमान हुए , जिन्होंने अपने राज्य के प्रधानमंत्री अतुन बोरा गुहाई , जो बेहद चतुर और हर काम में निपुण एक कूटनीतिज्ञ के साथ मिलकर नए दुर्गों का निर्माण किया , अपनी सेना को संगठित बनाने के लिए उन्होने वीर योद्धा लासित वीरफूकन को अपनी सेना का सेना पति नियुक्त किया , जो हर तरह के युद्ध में पारंगत थे , सेनापति नियुक्त करते समय राजा ने उन्हें सोने की तलवार भेंट की।
राजा चक्रध्वज सिन्हा ने धीरे धीरे पडोसी राज्यो के साथ मित्रता बढ़ानी शुरू की , मुग़लो के साथ की गयी संधियों को तोडना शुरू कर दिया , यह देखकर मुगलो के फोजदार फिरोज खान ने चक्रध्वज सिन्हा पर दबाव बनाना शुरू किया और कहा की अगर तुमने हमारी संधि तोड़ी तो इसके बहुत ही विनाशकारी परिणाम तुम्हे भुगतने होंगे।
इधर इन बातों की परवाह किये बिना ओटन गुहा प्रधानमंत्री और लासित वीरफूकन के साथ मिलकर पहले छोटी जगहों पर जीत हासिल की , फिर अगस्त 1667 में गुवाहाटी पर ही फतह हासिल कर ली , और मुगलो की सेना को पीछे हटना पड़ा तब राजा चक्रध्वज ने कहा था ,
" अब में दो मुट्ठी चावल सुकून से खा सकूँगा ,
वहीँ दिल्ली में बैठा औरेंगजेब इस बात से बोखला गया , और 19 दिसंबर 1667 को उसने विशाल सेना जिसमे
5000 बंदूकधारी
1000 तोपे
नावो का बहुत बड़ा बेडा
30 ,000 पैदल सैनिक
15000 तीरंदाज
18000 तुर्की घुड़सवार थे , जिसकी कमान रामसिंह को देकर औरन्जेब ने कहा जाओ और जो हमारे सामने सर उठाये उसका सर कुचल दो ,
फ़रवरी तक रामसिंह की सेना ने गुवाहाटी पहुँच कर उसपर फिर से कब्ज़ा कर लिया। तब लाचित ने कहा था ,
" यह बड़े दुःख की बात है की मेरे प्रधानसेनापति रहते मेरा देश भयंकर समश्या से झूझ रहा है , अपने राजा और प्रजा को कैसे इस संकट से दूर करूँ , मैं में पूर्वजो की मान सम्मान की रक्षा कैसे करूँ , उसी दौरान रामसिंह ने कूटनीतिक चाल चलते हुए चक्रध्वज को सन्देश पहुँचाया की वीफकन ने गुवाहाटी खाली करने की एवज में १ लाख रूपये लिए है , मगर यह चाल प्रधानमंत्री ने कामयाब ना होने दी , इसके पीछे की एक ठोस वजह थी , लाचित का देशप्रेम और और उनका त्याग ,
मुगलो की युद्ध नीति पर नजर रखने के लिए गुवाहाटी के नजदीक दुर्ग बनाने की ज़िम्मेदारी अपने मामा को दी , और कहा की एक ही रात में दुर्ग तैयार ऑन चाहिए , मामा ने कहा आप निश्चिन्त होकर सोइये , दुर्ग तैयार हो जाएगा, आधी रात को लाचित की बेचैनी बढ़ गयी वो रह नहीं पाए और दुर्ग का काम देखने चले गए , जाकर देखा तो मामा और मजदुर सो रहे थे , यह देखकर वीरफूकन आग बबूला हो गए , और कहा तुम्हारी मातृभूमि , माँ बहनो की इज्जत खतरे में है और तूम सो रहे हो ??? एक ही वार में मामा की गर्दन अलग करते हुए कहा की देश से बड़ा मामा नहीं। फिर खुद खड़े रहकर दुर्ग का काम पूरा करवाया, इसी वजह से मुगलो को जलयुद्ध करना पड़ा , जिसमे वो पारंगत नहीं थे , बल्कि बहुत ही कमजोर थे।
इधर युद्ध से पहले लाचित बहुत ही बीमार थे , राजा ने कहा आप युद्ध पर ना जाए , पर लाचित गए और शुरू हुआ , हिन्दू और मुसलमानो के बीच ---सरायघाट का युद्ध
लाचित के पास सेना कम थी इसलिए आसाम की सेना पीछे हटने लगी तब लाचित ने सेना से कहा ---
' हे आसाम के वीर सेनिको , अगर तुममे कोई युद्ध छोड़कर जाना चाहता है अवश्य जाए , किन्तु मेरे राजा ने मुझे दायित्व दिया है , इसलिए जब तक मेरे अंदर प्राण बाकी है में लड़ूंगा , अगर मुग़ल मुझे बंदी बनाकर ले जाना चाहे तो बेशक ले जाए , तुम जाकर राजा से कह देना में उनकी आज्ञा का पालन करते हुए आखिरी वक़्त तक लड़ा , तब लाचित की सेना में ऊर्जा का तीव्र संचार हुआ , मुग़ल सेना परास्त हुई , इस युद्ध के एक साल बाद लंबी बीमारी के कारण इस वीर हिन्दू का देहांत हो गया , आज भी इतिहास में इनके जोड़ का कोई यौद्धा नहीं पैदा हुआ। आसाम में हर साल २४ दिसंबर को लासित दिवस बनाया जाता है।
रक्षा अकादमी के रक्षा के लिए सर्वश्रेष्ठ पुरुस्कार का नाम भी वीरफूकन के नाम से ही दिया जाता है।
इतिहास के इस वीर हिन्दू यौद्धा को मेरा शत शत नमन
इतिहास में पहली बार , जिसे मौत और हार का डर ना हो , जीत उसके मुकद्दर में तय होती थी , जिसने ना केवल पूर्वोत्तर में हिन्दू धर्म की रक्षा की , बल्कि मुगलो के गरूर को भी कुचल डाला।
वो नाम था ------ the legend of lachit Borphukan
भारत का वो हिस्सा जहाँ सूरज सबसे पहले दस्तक देता है , पूर्वोत्तर , जिसे आज हम आसाम कहते है , इसकी राजधानी हुआ करता था रोमपुर , शिवसागर , यहाँ मुग्लो की पैरवी करते हुए मीर जुमला ने राजा जयधरत सिन्हा को परास्त कर किया , इस दुख में उनकी अकाल म्रत्यु हो गयी ,जिसके पश्चात् चक्रध्वज सिन्हा विराजमान हुए , जिन्होंने अपने राज्य के प्रधानमंत्री अतुन बोरा गुहाई , जो बेहद चतुर और हर काम में निपुण एक कूटनीतिज्ञ के साथ मिलकर नए दुर्गों का निर्माण किया , अपनी सेना को संगठित बनाने के लिए उन्होने वीर योद्धा लासित वीरफूकन को अपनी सेना का सेना पति नियुक्त किया , जो हर तरह के युद्ध में पारंगत थे , सेनापति नियुक्त करते समय राजा ने उन्हें सोने की तलवार भेंट की।
राजा चक्रध्वज सिन्हा ने धीरे धीरे पडोसी राज्यो के साथ मित्रता बढ़ानी शुरू की , मुग़लो के साथ की गयी संधियों को तोडना शुरू कर दिया , यह देखकर मुगलो के फोजदार फिरोज खान ने चक्रध्वज सिन्हा पर दबाव बनाना शुरू किया और कहा की अगर तुमने हमारी संधि तोड़ी तो इसके बहुत ही विनाशकारी परिणाम तुम्हे भुगतने होंगे।
इधर इन बातों की परवाह किये बिना ओटन गुहा प्रधानमंत्री और लासित वीरफूकन के साथ मिलकर पहले छोटी जगहों पर जीत हासिल की , फिर अगस्त 1667 में गुवाहाटी पर ही फतह हासिल कर ली , और मुगलो की सेना को पीछे हटना पड़ा तब राजा चक्रध्वज ने कहा था ,
" अब में दो मुट्ठी चावल सुकून से खा सकूँगा ,
वहीँ दिल्ली में बैठा औरेंगजेब इस बात से बोखला गया , और 19 दिसंबर 1667 को उसने विशाल सेना जिसमे
5000 बंदूकधारी
1000 तोपे
नावो का बहुत बड़ा बेडा
30 ,000 पैदल सैनिक
15000 तीरंदाज
18000 तुर्की घुड़सवार थे , जिसकी कमान रामसिंह को देकर औरन्जेब ने कहा जाओ और जो हमारे सामने सर उठाये उसका सर कुचल दो ,
फ़रवरी तक रामसिंह की सेना ने गुवाहाटी पहुँच कर उसपर फिर से कब्ज़ा कर लिया। तब लाचित ने कहा था ,
" यह बड़े दुःख की बात है की मेरे प्रधानसेनापति रहते मेरा देश भयंकर समश्या से झूझ रहा है , अपने राजा और प्रजा को कैसे इस संकट से दूर करूँ , मैं में पूर्वजो की मान सम्मान की रक्षा कैसे करूँ , उसी दौरान रामसिंह ने कूटनीतिक चाल चलते हुए चक्रध्वज को सन्देश पहुँचाया की वीफकन ने गुवाहाटी खाली करने की एवज में १ लाख रूपये लिए है , मगर यह चाल प्रधानमंत्री ने कामयाब ना होने दी , इसके पीछे की एक ठोस वजह थी , लाचित का देशप्रेम और और उनका त्याग ,
मुगलो की युद्ध नीति पर नजर रखने के लिए गुवाहाटी के नजदीक दुर्ग बनाने की ज़िम्मेदारी अपने मामा को दी , और कहा की एक ही रात में दुर्ग तैयार ऑन चाहिए , मामा ने कहा आप निश्चिन्त होकर सोइये , दुर्ग तैयार हो जाएगा, आधी रात को लाचित की बेचैनी बढ़ गयी वो रह नहीं पाए और दुर्ग का काम देखने चले गए , जाकर देखा तो मामा और मजदुर सो रहे थे , यह देखकर वीरफूकन आग बबूला हो गए , और कहा तुम्हारी मातृभूमि , माँ बहनो की इज्जत खतरे में है और तूम सो रहे हो ??? एक ही वार में मामा की गर्दन अलग करते हुए कहा की देश से बड़ा मामा नहीं। फिर खुद खड़े रहकर दुर्ग का काम पूरा करवाया, इसी वजह से मुगलो को जलयुद्ध करना पड़ा , जिसमे वो पारंगत नहीं थे , बल्कि बहुत ही कमजोर थे।
इधर युद्ध से पहले लाचित बहुत ही बीमार थे , राजा ने कहा आप युद्ध पर ना जाए , पर लाचित गए और शुरू हुआ , हिन्दू और मुसलमानो के बीच ---सरायघाट का युद्ध
लाचित के पास सेना कम थी इसलिए आसाम की सेना पीछे हटने लगी तब लाचित ने सेना से कहा ---
' हे आसाम के वीर सेनिको , अगर तुममे कोई युद्ध छोड़कर जाना चाहता है अवश्य जाए , किन्तु मेरे राजा ने मुझे दायित्व दिया है , इसलिए जब तक मेरे अंदर प्राण बाकी है में लड़ूंगा , अगर मुग़ल मुझे बंदी बनाकर ले जाना चाहे तो बेशक ले जाए , तुम जाकर राजा से कह देना में उनकी आज्ञा का पालन करते हुए आखिरी वक़्त तक लड़ा , तब लाचित की सेना में ऊर्जा का तीव्र संचार हुआ , मुग़ल सेना परास्त हुई , इस युद्ध के एक साल बाद लंबी बीमारी के कारण इस वीर हिन्दू का देहांत हो गया , आज भी इतिहास में इनके जोड़ का कोई यौद्धा नहीं पैदा हुआ। आसाम में हर साल २४ दिसंबर को लासित दिवस बनाया जाता है।
रक्षा अकादमी के रक्षा के लिए सर्वश्रेष्ठ पुरुस्कार का नाम भी वीरफूकन के नाम से ही दिया जाता है।
इतिहास के इस वीर हिन्दू यौद्धा को मेरा शत शत नमन
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