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Wednesday, January 18, 2017

ved ek ascharya ki paheli

आज पूरे विश्व के लिए " वेद " एक आश्चर्य की बड़ी पहेली बने हुए है।। वे क्या है, कितने है, उसकी रचना और संग्लन किस प्रकार किया, उनका विषय क्या है, वेदों का नाम लेते ही ऐसे प्रश्न तो सामने आते ही हैं।। जैसे ईश्वर की ही एक अबूझ पहेली हो वेद ।।
आखिर वैद है क्या??
"इस विराट विश्व की समूची सर्वांगीण यंत्रणा का ज्ञान भंडार ही वेद है "। अनन्ता वे वेदा : ऐसा वचन है ।।
इस विराट विश्व के कर्ता धर्ता, और निर्माता जो ईश्वर उर्फ़ देव है , उन्ही के द्वारा यह वैद नामक ज्ञान भंडार मानव को प्राप्त हुआ है ।
कुछ लोग यह सोचते है, इस आद्यत्मिक किताब को इतिहास में क्यू स्थान दिया गया, तो ज़रा तो एक बात पर विचार करे, अनन्त कोटि ब्रह्मांड वाला यह असीम विश्व क्या अपने आप में एक चमत्कार नहीं है ? अंतरिक्ष में निराधार गोल घूमने वाली पृथ्वी को हम स्थिर और समतल समझकर जीवन बिताते है, क्या यह चमत्कार नहीं ?? जब ऐसे चमत्कारी विश्व का इतिहास ही हम लिखते है, तो सबसे पहले वेदों के अलावा और चर्चा किसी की, की भी कैसे जा सकती है ?
मगर सिर्फ इतना कहने से काम चलेगा??? नहीं, हमें और तर्क देने होंगे ।।
देव और वेद
देव और वेद इन दो शब्दों पर कुछ समय के लिए धयान केंद्रित कीजिये, दोनों ही एक दूसरे के पूरक है, दीव यानि प्रकाशमान, देव वे होते है, जो स्वम् प्रकाशमान या ऊर्जा की भांति स्वम् चेतना के पुंज होते हैम देवदत्त ज्ञान भंडार - यानि वेद । अतः जो भी ज्ञानतेज जो देवो में है, उन्हें लिखित रूप से वेदों में उतारा गया है ।।
वेद हर किसी को क्यू समझ में नहीं आते ?
हाँ , यक़ीनन यह ज्ञान का भंडार है, और यह समझ में भी नहीं आते , यह सुनकर आपको थोड़ा आश्चर्य हुआ होगा, किन्तु इसमें आश्चर्य जैसी तो कोई बात नहीं, यंत्र की रचना और कार्यतंत्र को प्रस्तुत करने वाली पुस्तिका सबके समझ के बाहर होना स्वाभाविक सी बात है।। आप टीवी अपने घर लाते है, तो क्या उसे खोल के देखते है? कि वो कैसे बना, क्या क्या तकनीक इस्तमाल हुई आपको मतलब सिर्फ टीवी देखने से होता है, इसी तरह हम मान बैठे है, की वेद ज्ञान का भंडार है, बिना पढ़े ही ।। जब स्वमं आप ईश्वर का तेज पाने निकालते हो तो उसके लिए आपको सब कुछ समर्पण तो करना ही होगा, ईश्वर से मिलन के लिए नहीं, उनके जैसी श्रेष्ठता हासिल करने के लिए ।। आर्यो को ईश्वर ने अपना पुत्र कहा है, और कौन पिता नहीं चाहेगा, की उनके पुत्र उनसे आगे ना निकले इसी लिए वेदों की रचना भी हुई।
अगर वेदों का ही ज्ञान चाहिए तो, सबसे बड़ी शर्त यह है, एक ज्ञानपिसाचु व्यक्ति योगी भी होना चाहिए, जो कुछ समय के लिए ही क्यू ना हो, इस जड़ जगत की सारी चिंताओ और व्यवधानों को भूलकर वैदिक रचनाओं के चिंतन में तल्लीन और समाधिस्त हो सके ।।
आइये ।।। वेदों की और फिर से लौटे
#पुरोहितवाणी
वेद को पढ़ने का आदेश स्वमं परमपिता परमेश्वर का है ।।
महाभारत तक तो सारा विश्व ही वेदों का पाठ करता था । युद्ध के बाद इसके घटते स्वर सिर्फ भारत तक रह गए, भारत की भूमि का कुछ भाग मुसलमान खा जाने के बाद यह लघुभारत रह गया है।। और यहाँ लघुभारत में में भी वेदों की पठन की व्यवस्था नहीं की गयी । जबकि पीढ़ी दर पीढ़ी अपने कुटुंब को वेद पढ़ाने की परंपरा हमारे समाज में थी ।। वेदों से ज्ञान प्राप्त करने वालो का रहन सहन बहुत सादा था , आज भी हम हिन्दू वेद पठन को बड़ी सुद्धता से और निस्वार्थ भाव से इसका पठन करते है , और उसी परंपरा को चला रहे हैं ।।। क्या यह चमत्कार नहीं है ??
भारत में जब अंग्रेजो का प्रभुत्व था, तो यूरोपीय गोरे पादरियों ने वेदों का अनुवाद कर सारे अर्थो का अनर्थ कर दिया, वेदों का अनुवाद तो किसी भाषा में नहीं किया सकता, क्यू की एक एक संस्कृत विविध अर्थ अनुवाद करने पर वह लुप्त हो जाएंगे, और मुर्ख गोरो ने वेदों के अनुवाद को बच्चो का खेल समझ लिया । उन अधर्मियों की बातें आज भी सच्ची मानकर हमारा समाज वेदों से दूर हो रहा है ।। उन्ही की तरह हमारे आर्य भी खुद को दलित या अन्य किसी का अनुयायी बताकर खुद को राक्षसों की टोली में शामिल कर रहे है।।

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