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Monday, January 16, 2017

Mahabharat bhag 3

महाभारत  ( पुरोहितवाणी  भाग - ३ )

महाराज सांतनु से भेंट के पश्चात देवव्रत अपने महल में लौट आये , उनका मन माता पिता के प्रसाद में ही रह गया था , पिता क्या इस बात से चिंतित है की उनका एक ही पुत्र है ???  और वह किसी दिन युद्ध में वीरगति को प्राप्त कर जाएगा ??  जिनके दो पुत्र होते है क्या उन्हें यह चिन्ता नहीं सताती ??  दो पुत्र भी तो युद्ध में वीर गति पा सकते है , २ ही क्या सेंकडो पुत्र भी तो रगति पा सकते है।  अगर किसी राजा के १०० पुत्र और सारे के सारे मारे जाए तो ??  वंश का वंस  हो जाएगा , युद्ध क्यू , बिना युद्ध के भी - सगर  के पुत्र कपिल मुनि के एक शाप से ही भस्म हो गए थे ,  पुत्रो की संख्या कितनी हो , की व्यक्ति यह निश्चिन्त हो सके , की उनके वंश का नाश नहीं होगा ??

देवव्रत को लगा की उनके मस्तिक में हमेशा घुम्मकड़ों वाले प्रश्नों के चक्रव्हवु में फंसते जा रहे है।   ऐसे ही प्रश्न  उनके मन में हमेशा घूमते रहते थे ,  व्यक्ति का जीवन क्या है , वह क्यू जीना  चाहता है ?? वह क्यू डरता है म्रत्यु से ???

युद्धरत जातियो को सैनिक की आवश्यकता  होती है , तथापित सम्भवत इसीलिए इस प्रकार सिद्धान्त बनाये थे , की पुत्र नहीं रहा तो सद्गति नहीं होगी , पर यह तो युद्धरत समाज का चिंतन हो सकता है , पुत्र के रूप में तो मनुष्य अपने ही जीवन का विकाश करता है।  बुढापे में वह दुर्वल और असह्य हो जाता है , तो वह देखता है की पुत्र उसकी सेवा कर रहे है , और यदि निर्धन है , तो उनका भरण पोषण कर रहे है।  तो अपनी सुखसुविधा के लिए ही तो पुत्र चाहता है वह।  अगर कुटुंब या समाज के लोग वृद्धावस्था में देखभाल की व्यवस्था कर  दे तो , तो क्या तब भी समाज इतना ही प्रगतिशील होता ??

देवव्रत जब स्वमं  अपने मन को टटोलते है तो उन्हें वंश की कोई व्यग्रता दिखाई नहीं पड़ती , सन्यासियों को अपने वंश को बढ़ाने की कोई चिंता नहीं होती , राजाओ को होती है , राजपाठ छोड़कर , धन धान्य  और विलास छोड़कर मरने का मन नहीं होता इन राजाओ का , और काल से तो स्वमं  लड़ नहीं सकते, इसलिए यह मार्ग चुना है उन्होंने , इतना संतोष तो रहे की अपनी धन सम्पति अपने पुत्रो के हाथ में छोड़ कर आये है , कम से कम उनके मरने के भी  बाद संसार से उनका नाम ही खत्म ना हो , क्या  इसलिए पुत्र चाहते है ? अगर नाम के लिए ही वंश बढ़ाना है , तो वो तो सत्कर्म करके भी बढ़  सकता है।

देवव्रत विचित्र मन: स्तिथि में फंस गए थे , पिताजी ने कहा की तुम्हारी माता के बाद मेने दूसरा विवाह नहीं किया , क्यू नहीं किया ?? क्या अपनी उस स्तिथि में बिना स्त्री के ही वो ज़्यादा खुश थे ??  पिताजी ने गंगा तट  पर माता को देखा और , तत्काल मुग्ध  हो गए , कोई जांच पड़ताल नहीं की , की कौन है , क्या है ?? कहाँ रहती है ? इसके अभिवावक कौन है ?  माता से विवाह के लिए उन्होंने किसी की अनुमति नहीं ली , और ना ही कुछ सोचा।   रक्त की सुद्धता  के लिए , आर्यो के इस सम्राट  ने मा  के कुल गोत्र को जानने  का प्रयत्न भी  नहीं किया ,  आर्य लोग नारी  को स्वतन्त्र नहीं मानते , मनु कहते है की नारी अपने पिता , पति या पुत्र के अधीन होती है , पिताजी ने यह भी नहीं जानना चाहा  की माता किसके अधीन थी , माँ के सौन्दर्य को देखकर पिताजी इतने अभिभूत हुए की तत्काल उनसे विवाह कर लिया।

देवव्रत के सम्मुख  जब भी किसी सुन्दर नारी का चित्रण आता तो  उनका विवेक जैसे कशाघात करने लगता , सावधान।  सावधान  #PUROHITWANI
सुंदर नारी बदन ही क्यू ,  देवव्रत को संसार की प्रत्येक वस्तु एक चेतावनी लगती थी ,  देवव्रत को सदा यह लगता था , यह सौन्दर्य तो फंदा  है , " बहरीये  का जाल "  भोला पंक्षी जाल चुगने के लिए आता है , और इस जाल में फंस जाता है , और उस जाल का उसे तब पता चलता है , जब उसे पता चल जाता है की अब वह उड़ने में असमर्थ हो चूका है।  आत्मा मुक्त होने को फड़फड़ा रही है , विवेक बार बार चेतावनी दे रहा है , और आँखे मुग्ध भाव  से बार बार दाने को देख रही है।  माता ने शायद इसलिए तो अपने पुत्रो को नहीं मार दिया , की वो नहीं चाहती थी , की इन अहंकारी राजदरबारों में वो पले , और मै  जीवित इसलिए हूँ , की वो मुझे अपने साथ इनसे दूर ले गयी , माता वास्तव में गंगा ही थी , जो मानव शरीर धारण कर आयी थी।

अगला दिन -  व्रद्ध अमात्य  का व्यवहार पिता जी के व्यव्हार से भी अप्रत्याशित  था , अमात्य के चहेरे पर चिंता का एक भाव भी नहीं था , उनका व्यव्हार सर्वदा की भाँती सामान्य ही था , जैसे चक्रवर्ती किसी परेशानी में ना ओ , या अमात्य का चक्रवर्ती की अवस्था से कोई संमंध ना हो।

अमात्य ने देवव्रत को संमानोचित  आसन देकर कहा , बेठिये युवराज , कहिये कैसे आने का कस्ट किया ??

चक्रवर्ती स्वस्थ नहीं है , देवव्रत से धीरे स्वर में कहा।

मुझे मालुम है युवराज ,

तो फिर उनके उपचार की व्यवस्था क्यू नहीं की ???

कौन करता युवराज ?
क्यों आप करते ?
उपचार मेरे वश का नहीं है युवराज।

राजवैध के वश का तो है ,

उनके वश माँ भी नहीं है ,

तो किसके वश का है अमात्य ??

युवराज महाराज काम-ज्वर से पीड़ित है , इसलिए उनका कोई उपचार नहीं है ,

कौन है वह स्त्री ??  जिसने इतने वर्षो पश्चात् पिताजी की भावना को फिर से जगा दिया है ?? और पिताजी ने इसके विषय में मुझसे कुछ क्यू नहीं कहा ??

वयस्क पुत्र के समीप कौन अपनी  काम भावना प्रकट करता है युवराज ??

क्या ??? क्या महाराज एक स्त्री के बिना जीवित नहीं रह पाएंगे ?? और केवल विवाह इसलिए नहीं कर  पा रहे की उनका एक वयस्क पुत्र भी है ??  पहले भी तो प्रौढ़ राजाओ ने विवाह किये है , इसबार ऐसा कौनसा पहाड़ टूट पड़ा ????

आगे का कल

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