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Tuesday, January 31, 2017

विश्वामित्र अयोध्या त्याग का वचन राम से चाहते है अब आगे --- #रामायण भाग - ९

विश्वामित्र अयोध्या त्याग का वचन राम से चाहते है अब आगे --- #रामायण भाग - ९
राम के मन में विभिन्न दिशाओ में व्याकुल टक्कर मारती , ऊर्जा की क्षुब्द चपलटाओ में जैसे सामजंस्य स्थापित हो रहा था , एक आकर ग्रहण करती जा रही थी , पर राम के भीतर कुछ कर गुजरने का संतोष जैसे आधार पाकर उस पर टिक शांत होता जा रहा था।
राम उसी प्रकार सरल मुख से मन्द मन्द मुस्कुराये , और उसी मुसकान के साथ पहले से अधिक कहीं सहज भाव में बोले , " ऋषिवर कोई चेतावनी देनी हो तो दे दीजिये , कोई मार्ग में बाधा आती है, तो वो भी जता दीजिये , बड़ी से बड़ी और भी कोई बाधा आप मेरे समक्ष प्रस्तुत कर दीजिये , वचन में उसके पश्चात ही आपको दूंगा।
सहसा राम का मुस्कुराता हुआ मुख आवेश से आरक्त हो गया , उनके मुख पर सात्विक तेज उद्भासित होने लगा , स्वर की गंभीरता अधिक प्रखर हो उठी , उ उनका स्वर जैसे आकाश से बिजली की तरह गुंजकर आ रहा था।
ऋषिवर। ... मै आपको वचन देता हूँ , मेरे जीवन का लक्ष्य राज-भोग नहीं न्याय का पक्ष लेकर लड़ना , अन्याय का विरोध करना , व्यक्तिगत स्वार्थो का त्याग कर जनकल्याण के मार्ग पर आने वाली बाधाओ का नाश कर सबके हितो की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पण करता हूँ मै आपको वचन देता हूँ , में स्वम् तपस्वियों के पास जाऊँगा , जिन्होंने अपने सत्य और न्याय के चिंतन में साधना में ज्ञान और विज्ञान की बृद्धि में जीवन खपा दिया है। जो अपनी रक्षा का वचन लेने मुझ तक नहीं आ सकते , में उन तक पहुंचूंगा , और अन्याय की सारी शाखाओ को उसकी जड़ के साथ समाप्त करूँगा।
मेने जीवन का अब यही एक लक्ष्य मान लिया है गुरुदेव। मेरी ऊर्जा अब मधुर संगीत राजदरबारों , और परिवार की लालसा मोह को छोड़ , किसी सार्थक धर्महित के काम में खर्च होगी। अब इससे मुझे कोई नहीं रोक सकता , चाहे वह मेरे माता पिता हो , या भाई बंधू हो , और गुरुवर मेरे राज्य की अपेक्षा ना करें, मुझे राज्य मिलेगा, ऐसी अपेक्षा अयोध्या में किसी को नहीं है।
लक्ष्मण बीच में ही बोल पड़े , गुरुवर जो वचन भैया राम ने दिए है ---- वह मेरे भी वचन है , भैया राम जहाँ भी संघर्ष करेंगे , उनकी परछाई बन के में सदैव उनके साथ रहूँगा , वो चाहे घने जंगलो का निवास हो , या राजप्रसादो का आनंद , मेरा जीवन में आज और अभी से भैया राम के वचनों को पूरा करने के लिए समर्पित करता हूँ।
विश्वामित्र ने देखा - दोनों ही बालक क्षत्रिय धर्म की पूर्ण उग्रता के रूप में मूर्तिमान थे , लक्ष्मण तो इस संघर्ष के लिए राम से भी अधिक व्याकुल दिखाई दे रहे है , उनके नेत्र में अपने बड़े भाई राम के लिए एक पिता के समान श्रद्धा और सम्मोहन का भाव था।
विश्वामित्र शिथिल नहीं हुए , उन्होंने जैसे एक तृप्त धातु पर धन-बहार किया , राम। में तुम्हे अंत में एक कटु बात कहना चाहता हूँ , तुम्हारे वंश में पत्नी प्रेम बहुत प्रसिद्ध है , यदि तुम्हारे मार्ग में बाधा स्वरूप तुम्हारी पत्नी आ गयी तो ?/
भाभी ?// लक्ष्मण कौतुकपूर्व हंसे .
राम के सरल मुख की आभा लजाकर लाल हो गयी , गुरु ठीक कह रहे थे , राम की आँखों के सम्मुख दसरथ का चेहरा घूमने लगा , गुरु ने बड़ा कोमल किन्तु सार्थक सवाल पूछा था।
" इस विषय में मुझे मौन ही रहने दीजिये गुरुवर। जो चीज़ अभी मेरे जीवन में आयी ही नहीं , उसके विरुद्ध अभी से में पूर्वाग्रह एकत्र्तित नहीं करना चाहता , किन्तु आपकी सामयिक चेतावनी व्यर्थ नहीं जायेगी , इतना वचन तो में दे ही सकता हूँ।
लक्ष्मण का मन भाई की बात की गंभीरता से हटकर विवाह की और बहक गया था , वे राम के लजाये चेहरे को देख देख कर मुस्कुरा रहे थे।
विश्वामित्र हंस पड़े - उनकी मन की सारी दुविधाएं मिट गयी , ह्रदय निर्मल हो उठा।
वे राम को देख रहे थे , राम पत्नी की बात नहीं करना चाहते , अपने वंश पत्नी प्रेम का प्रतिवादन उन्होंने नहीं किया , एक प्रकार से वचन ही तो दे दिया।
विश्वामित्र की कल्पना इधर उधर नहीं भटकती , वे निर्णय ले चुके है , राम को वैसी पत्नी नहीं चाहिए, जैसी दसरथ चाहते है , राम की पत्नी भिन्न होनी चाहिए , इंदुमती से भिन्न , कौशल्या , सुमित्रा , और कैकेयी से भिन्न , साधारण कन्या, किन्तु राजसी संस्कारो से परिपूर्ण , उसके लिए उनके मन में बार बार जनकपुर का राजप्रासाद ही घूमता है।
राम की वीर गाथा जारी है ----- शेष कल के भाग में

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