#हमारा_धर्मयुद्ध ----- विश्वविजयी राम की सच्ची गाथा
विश्वामित्र राम को कहते है की अगर वो उनकी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरेतो तो दोनों को वापस अयोध्या भज देंगे , अब आगे
राम वैदिक सभ्यता ( कलयुग में जिसे हिन्दू संस्कृति कहते है ) को निगलने लंका में " रावण " नाम का योद्धा तैयार हो चूका है , शिक्षा , दीक्षा , जन्म सब से श्रेष्ठ कुल से था , किन्तु अपने व्यव्हार और आचरण से खुद को उसने राक्षस रूप में परिवर्तित कर लिया है , और आर्य राजाओ के लिए , रावण लंका में बैठा है , आर्यो को लगता है , लंका पृथ्वी पर नहीं किसी और ब्रह्माण्ड में है , लेकिन रावण के लिए कुछ भी दूर नहीं , ना देवाश्रम , न अयोध्या , ना सिद्धार्थाश्रम। उसके अग्रदूत राक्षसी मनोवर्ती और चिंतन देकर बहुत दूर दूर तक आर्य संस्कृति को चुन चुन कर दीमक के समान चाट कर खा रहे है , जहाँ जहाँ अभी " रावण " का साम्राज्य है , वहां वहां कभी आर्य राजाओ का ही शासन था। रावण लंका में बैठा इन राक्षसों को संचालित कर रहा है , उसके सैनिक शिविर कार्यकरताओ की नाक तक पहुँच चुके है।
राम जरा भी विचलित नहीं हुए , वे उसी प्रकार सहज बने रहे " रावण के सैनिक अभियान को आप अत्याचार क्यू कहते है ऋषिश्रेष्ठ ? " आर्य राजा भी तो सैनिक अभियान करते है , अश्वमेवयज्ञ क्या सैनिक अभियान नहीं ??? क्या वह अनावश्यक हिंसा नहीं ??
तुम ठीक कहते हो राम , विश्वामित्र का मुख प्रफुल्लित हो उठा " तुम मेरी आकांशाओ पर पूरा उतर रहे हो बेटा " . तुम उद्दंड नहीं हो किन्तु बड़ो की बातों को बिना अपनी कसौटी पर तोले स्वीकार भी करते , इस बात का लक्षण यह है की तुम आगे बढ़ोगे , अपने पिता से , और अपने गुरु विश्वामित्र से।
वे क्षण भर के लिए गहरी सांस लेकर बोले , बात हिंसा या अहिंसा की नहीं है , बात सैनिक अभियान की भी नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह है की उस सैनिक अभियान के मूल में कौनसा दर्शन काम कर रहा है , हम वैदिक संस्कृति को मानने वाले आर्य या राजा किसी पर तभी आक्रमण करते है , जब हमें वहां की न्याय व्यवश्था में सुधार करना हो , लेकिन इन असुरो का न्याय व्यस्था स्थापित करने का द्वंद नहीं है उसका - उसका शाशन एक व्यक्ति को ही सर्वशक्तिमान मान अधिनायक संपन्न का शाशन है। वह ना तो किसी मंत्रिपरिषद की सलाह मानता है , ना किसी विद्धवान की , निर्धन प्रजा की कोई सुनवाई नही है , जब की खुद वो सोने की लंका में बैठता है। उसके मूल में स्वर्ण और धन है पुत्र , वह सामजिक कल्याण के लिए कभी कुछ नहीं करता , उसके कारण कन्याओ का सम्मान सुरक्षित नहीं , बुद्धिजीवियों के प्राण सुरक्षित नहीं , उसकी राजनीती अन्याय की राजनीती है पुत्र , वो अपने भाई-बंधू के तनिक से स्वार्थ के लिए , अपना पेट भरने के लिए , विलाश की इक्छा पूर्ति के लिए , जिसे चाहे वह नोच ले , उसने कभी भी दलित-पीड़ितों के लिए कभी कोई सामजिक कार्य नहीं किया , जिससे उनका उत्थान हो सके , बल्कि आर्यो के खिलाफ ही उन पीड़ितों के मन में वो भावना उसने जाग्रत कर दी है , की उन पीड़ित दलितों की इस अवस्था के लिए , हम आर्य जिम्मेदार है , अब दलित लोगो ने अपनी पीड़ा और अपमान को ही अपना धर्म मान आर्यो और खुद का नाश करने पर उतारू हो गए है।
यह आर्य शाशन के नियम नहीं है राम , जो शाशन रावण कर रहा है।
आर्य शाशन पद्दति से में परिचित हूँ तात। राम बोले , पर राक्षसी तंत्र का ज्ञान मुझे नहीं है।
यह वसिष्ठ की शुुद्धतावादी प्रणाली का परिणाम है पुत्र , विश्वामित्र शून्य में घूरते हुए , हल्ले क्रोध में बोले " रावण ने आर्यवर्त के बाहर के राजाओ से या तो उन्हें की राक्षसी संस्कृति का पालन करवा के उनसे मित्रता कर ली है , या फिर उन्हें मार डाला है , किसिकन्दा का राजा " बाली " स्वम् दुष्ट ना होते हुए भी रावण का मित्र है , महस्मती का दुस्ट आर्य सम्राट सहस्त्रार्जुन रावण का मित्र था , किन्तु भार्गव परशुराम ने उसका वध कर दिया अन्यता रावण और सहस्त्रार्जुन मिलकर अनर्थ कर देते। रावण शिव का परम भक्त है ( मक्का में भी शिवलिंग आज भी है ) , और शिव उस पर अत्यंत कृपालु भी है , देवताओ को वह पराजित कर चूका है , और आर्य राजाओ को त्रस्त , इसका अर्थ तो यह हुआ की अब कोई भी शक्ति रावण का प्रतिकार करने नहीं आएगी , दुर्बल जन समुदाय रावण के अत्याचारो से पीड़ित होता रहेगा , वह अगर आर्यवर्त में घुस आया तो मानवीय सभ्यता के सिद्धांत पर बड़ा शाशन तंत्र समाप्त हो जाएगा और उसके स्थान पर धन और पशुशक्ति पर आश्रित शाशन स्थापित होगा , कन्याओ का उन्मुक्त व्यापर होगा , और मदिरा की अवाध धारा बहेगी
विश्वामित्र की आकृति एक संभावित भय से एकदम पीली पड़ गयी
राम एक दम चिंतित स्वर में बोले , यह परत तो अब जम चुकी है तात , किसी आर्य राजाओ ने इसका विरोध क्यू नहीं किया ???
कौन करे पुत्र ??
आर्य सम्राट के गुरु के पद पर बसिष्ठ बैठा है , जो मानव मात्र को सामान नहीं ,, मानता , आर्यो से ब्राह्मणों को श्रेष्ठ मानता है , और पुरुषो को नारियो से श्रेष्ठ मानता है , उसे दूर दूर तक और अपने ही राज्य में रह रही , पीड़ित जातियो पर अत्याचार का कोई ज्ञान नहीं है , उल्टा आर्यो के मन में उसकी वजह से यह भाव और पैदा हो गया है , की ब्राह्मण उनसे श्रेष्ठ है , इससे हमारा समाज एकदम बिखर गया है राम , हम में आपसी मतभेद है , हम साथ मिलकर भी तो कोई लड़ाई इस समय नहीं लड़ सकते। दूसरी और रावण की सारी आसुरी शक्तिया एक है , संगठित है।
राम इस बार पहली बार उत्तेजित हुए - आर्य लोग म्रत्यु के भय से अपने घर में घुसने की प्रतीक्षा कर रहे है गुरुदेव , क्या वे यह नहीं जानते की शत्रु हमारे घर में घुसने का साहस करें , हमें उनके घर में घुसकर उनका नाश कर देना चाहिए।
आगे का भाग शाम को ----
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