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Thursday, January 19, 2017

Ramayan bhag 7

रामायण - #पुरोहितवाणी  - रामायण श्रंखला -7

राजा दसरथ की आंतरिक दुर्बलता देख विश्वामित्र राजभवन में आपा खो   देते है अब आगे ----

दसरथ।  ..  विश्वामित्र के उग्र स्वर से राजसभा थर्रा उठी ,  " वीर तो में तुम्हे पहले ही नहीं मानता था , किन्तु आज तुम यह भी सिद्ध करना चाहते हो , की तुम अपने वचनों की भी रक्षा नहीं कर सकते।  तुम वचन देकर पीछे हट  जाओगे।, इसकी आशा मुझे नहीं थी। तुम वचन देने  आतुर क्यू रहते हो।  तुम्हरा नाश बिना सोचे समझे आतुरता से ही होगा।  आज सारे आर्यवर्त में जो चर्चा रही है , वह गलत नहीं  है , आर्यवर्त   सारे ऋषी मुनि , जो सत्य  लिए रघुवंशियो देखा करते थे , उन सब को तुमने अपने आचरण से  निराश कर दिया है।  हम सब ने तुम्हे निश्चिन्त होकर तुम्हे शाशन सोंप दिया , और तुम शाशक वर्ग  समझते हो की हो की प्रजा तुम्हारे भोग  साधन मात्र है।  दसरथ  में तुम्हे यह बताने आया हूँ , हमारी रक्षा कर तुम कोई हमपर उपकार नहीं करते , यह तुम्हारा कर्तव्य है , जिससे आज तुम विमुख हो रहे हो।  अब में कुशिकानन्द  विश्वामित्र स्पष्ठ  हूँ की , हम अनाशक्त बुद्धिजीवियों  क्षमता  है , की किसी कर्मठ आर्य को दिव्यास्त्र का  देकर राजा बना सकते  है।  मै  प्रतिज्ञा करता हूँ ---------

शांत हो भरतश्रेष्ठ , वसिष्ठ सारे वार्तालाप में पहली बार कुछ बोले -  आप कोई प्रतिज्ञा ना करें , सम्राट प्रति उदार हो , सम्राट अपने वचन  हट  रहे , वह  अपनी सेना लेकर आपकी सेवा में प्रस्तुत है , किन्तु आप राम  ही ले जाना चाहते है , तो अव्य्श्य ले जाए , सम्राट बाधा  नहीं देंगे , उनके संकोच का कारण पुत्र मोह है , कर्तव्य शून्यता नहीं। में राम आपको सोंपता हूँ किन्तु ---

गुरुदेव।  दसरथ मुँह   निकल गया -

 उदग्निन ना हो सम्राट , वसिष्ठ ने उन्हें सांत्वना दी और फिर विश्वामित्र से संबोधित हुए , मै  आपके यज्ञ की रक्षा हेतु , दस दिनों के लिए राम को आपको सोंपता हूँ , किन्तु उनकी रक्षा के उत्तरदायी आप होंगे , राजकुमार को शकुशल लौटाना आपका कर्तव्य होगा

मुझे स्वीकार है।  विश्वामित्र बोले

दसरथ बूढा  मन सोच  नहीं पा रहा था , की वो हंसे या रोये , वचन तो वो पहले ही हार चुके थे , अब वशिस्ट भी राम को देने के लिए तैयार हो गए।  पर गुरुदेव में स्पष्ठ कर दिया की अवधि केवल १० दिन की होगी , और उसकी रक्षा का दायित्व भी विश्वामित्र का होगा , पर क्या वे मान ले की राम १० दिन बाद सुरक्षित लौट आएगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो ??

दसरथ का मन कहीं न कहीं खुद से खिंच गया , इस प्रकार आतुर होकर मुझे वचन देने की क्या आवश्यकता थी , और सत्यवादी बनकर उन्हें करना ही क्या है , वे ऋषि को स्पष्ठ क्यू नहीं कह देते की आश्रम में वो उनके साथ राम को नहीं भेज सकते।   गुरु वसिष्ठ ने राम को भी बुलावा भेज दिया , दसरत अंदर ही अंदर टूट चुके थे।

कौशल्या को सुचना मिली -  वह धक् ही रह गयी - राम राक्षसों से लड़ने जा रहा है , अभी तो वह केवल २५ वर्ष का हुआ है , किसकी बुद्धि ऐसी दुष्ट घटनाओ का सर्जन कर रही है , कैकयी , दसरथ , या वसिष्ठ , किन्तु विश्वामित्र इस षड्यंत्र में कैसे शामिल हो गए।

कौशल्या का मन आज रह रह कर वापस लौट रहा है , वे किसी प्रकार स्वम् को रोक नही पा रही है , , सारी  घटनाये उनके आँखों के सामने घूम रही है , जीवित , जीवांत।

कौशल्या से विवाह के कुछ ही दिन पश्चात दसरथ ने सुमित्रा से विवाह कर लिया , सुमित्रा अद्भुत सुन्दर थी , उन्हें डेख  के आँखे चोंधिया जाती थी ,  यह सब देखकर दसरथ को भी उनकी प्रसंशा करनी पड़ती थी , परंतु दसरथ ने उनका रूप देखा था , उनका मन नहीं देख पाए ,  सुमित्रा प्रज्ज्वलित अग्नि थी , पूर्ण तीव्रता में जलती हुई , अग्नि की पराकाष्ठा , वह आलोक भी देती थी , और ताप भी , उन्होंने पहले दिन ही स्पष्ठ कर दिया था , की एक पत्नी के रहते , दसरथ का दूसरा विवाह करना उचित नहीं था।  मगध के अयोध्या के अधीन होने के बाद भयपूर्वक सुमित्रा का विवाह उनसे कर दिया गया , इसलिए वह उनसे विवाह कर यहाँ आ गयी थी , वह दसरथ की धर्म पत्नी थी , किन्तु वह उनकी ना कांता  प्रेमिका ना तो है , और ना बनना चाहती है।  वह पत्नी के रूप में खुद को कुलवधू की मर्यादा को मानकर चलती थी , किन्तु रहती हमेशा निडर सिंघनी के सामान थी।

इसी बीच  दसरथ अनेक स्त्रियों के संपर्क में आये , उन्होंने और भी विवाह किये , किन्तु अपने मन के असंतोष के कारण अब भी झटपट ही रहे थे, वे स्थिर नहीं थे , इसी छटपटाहट के कारण दसरथ ने विदेशो में भी विजयी अभियान चला दिए थे।

दसरथ की सेना जिधर जाती , अपने पदभागो  से पर्वतो को पीसकर चूर्ण बना देती थी , दसरथ की तलवार ने भूगोल की सारी  बाधाओ  को खण्ड खण्ड करके फेंक दिया था , देवासुर संग्राम में लड़ने वाले दसरथ इंद्र से भी कम शक्तिशाली नहीं माने जाते थे।

ऐसे समय में दसरथ की कोशल सेना , केकई  के देश में घुस गयी , वीर तथा प्रतापी माने जाना केकई  का राजा भी दसरथ के सामने सर्वथा असक्षम सिद्ध हुआ , केकई  नरेश ने आत्मसमर्पण किया और दसरथ ने पूरा महल कब्जे में ले लिया।

कोई नहीं जानता था की केकई  नरेश और उनके परिवार का क्या होगा , क्यू की उन्होंने दसरथ के लड़ने की मूर्खता और की थी , युद्ध की सुरुवात भी उन्ही की तरफ से थी , वे नहीं जानते थे , की अब वह बंदी होंगे , या उनका वध होगा , उन्हें पता था , की दसरथ उन्हें कभी क्षमा  नहीं करने वाले।

दसरथ का ह्रदय  बहुत बड़ा था , उन्होंने केकयी के नरेश से पूछा संधि करोगे ?? , केकयी नरेश के लिए इससे प्रशन्नता की बात और क्या होती , वो सिर्फ दसरथ की और देखते ही रह गए , इसी प्रकार संधि और मित्रता घनिस्ट रहे , इस विश्वाश के लिए केकयी का विवाह दसरथ से किया गया।

केकयी कोई साधारण राजकुमारी नहीं थी -  वह असाधारण थी ,  हठीली , उमरतेजस्विनी , महत्वकांशी और असाधारण सुंदरी।

वह अपनी राष्ट्र , परिवार , और समाज की सुरक्षा के लिए अपना सब कुछ त्याग कर सकती थी ,  मान , सम्मान यहाँ तक की अपने प्राण देने को भी हर समय तत्पर रहती थी।

राम को उसके सारे भाई पितातुल्य मानकर आदर देते है , केकयी की गोद  में खेलकर ही राम ने अपना ज़्यादा से ज़्यादा बचपन काटा  था , राम की वीरता और गुण  देखकर केकयी ने हमेशा भरत से ज़्यादा स्नेह राम को दिया , अपनी सारी  शिक्षा और ज्ञान वह राम को घूंटी  दे दे कर पिलाती थी , कौशल्या ने सोचा , कहीं यह  तपस्वी नारी उस पराजय का बदला तो इतने वर्षो पश्चात नहीं ले रही ???

अब राम को दसरथ वन भेज भी रहे है , और पीड़ा भी दिखा रहे है , यह प्रेम है या आडम्बर , कौशल्या कुछ नहीं समझ पा  रही थी , पर विश्वामित्र इस षड्यंत्र में कैसे शामिल हो गये ??

नहीं।  विश्वामित्र विश्व में सबसे भिन्न है , वे किसी भी प्रलोभन में कोई भी गलत काम नहीं कर सकते , उन्होंने तो स्वम् अपनी इच्छा से राज्य का दान किया था , उन्हें धन पद और मोह का कोई लोभ नहीं हो सकता , वे किसी षड्यंत्र का हिस्सा नहीं बन सकते ,  वे राम के हाथो राक्षसों का नाश करवाना चाहते है।

पर क्या राम इतना बड़ा और वीर हो गया है , हाँ राम वीर और योद्धा अवश्य है , पर क्या राक्षसों का मुकाबला कर पायेगा , राम पर तो भरोषा नहीं है कौशल्या को , पर विश्वामित्र पर पूरा भरोसा है।

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