महाभारत - #पुरोहितवाणी एपीसोड -6
देवव्रत दासदास से कहते है कि सत्यवती का पुत्र ही राजा बनेगा अब आगे ।।
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दासदास देवव्रत से कहता है आप जो कह रहे है, ऊसका मतलब भी समझते है युवराज ?
मै पुरी तरह से समझ रहा हूँ दासदास , देवव्रत दासदास की और देखकर मुस्करा दिये ।
आप यूवराज नही रहेगे , पिता के पश्वात् आपको राज्य नही मिलेगा., आप एक साधारण जन हो जाएगे कूरूओ का यह विशाल साम्राज्य आपका नही रहेगा ।।
देवव्रत को लगा की वह दासदास की कुटिया मे नही बेठे है । वे किसी खुले स्थान पर आ बेठे है, जहाँ कोई सीमा नही है , बन्धन नही है , स्वार्थ नही है, अर्जन नही है , यहा पृथ्वी का आकर्षण नही है, वायू का दबाव नही है मन मे कोई लोभ का ग्रहण नही है ।
उनके मन मे ही एक नारी की मुर्ति उभरी , जो फेलते फेलते उनके समीकरण में समां गई . और दशो दिशाओ से ऊसका स्वर फैला ' देवव्रत तू बच गया ।। तेरा मन मुक्त हुआ ।। तू प्रपचं से छूट गया ।। तू सुखी रहेगा पुत्र , त्याग ही सातिवक सुख है पुत्र ।। मै तो तूझे इस मोहचक्र से तभी मुक्त कर देती पुत्र., पर तुम्हारे पिता ने एसा हौने ना दिया ।।
देवव्रत को लगा वह नारीमुर्ति माँ ही थी ।।
दासदास देवव्रत को देखेते रहे , शायद देवव्रतको समझ मे आ जाए की वह क्या छोङ् रहे है ।। पर देवव्रत मे कोई प्रतिक्रिया ना जागी ।। उन्का चहरा अधिक से अधिक शांत होता गया , उन्की आत्मा अधिक से अधिक प्रशन्न होती चली गयी ।।
पर मै कैसे इसका विश्वास करू , अतं मे दासदास चिन्तत स्वर में बोला ।।
मै आपको वचन दे रहा हूँ ।।
मैरे पास आपके वचन का मान रखने के अलावा उपाय भी तो नही है ।।
दासदास !! कूरूवंसीयो का वचन ही प्रमाण होता है ।। एसा ना होता तो चक्रवति स्वयं आपको वचन देकर कन्या ले जाते ।। तब देवव्रत के यहा आने की कोई आवयश्कता नही थी.।।
शान्त हो युवराज !! दासदास ने दीन मुद्रा मे हाथ जोङ लिए , " दासदास ने अपना जीवन कूरूबशीयो मे नही बिताया जिनका वचन ही प्रमाण हेाता है ।। यह तो आठो पहर उन लोगो मे रहता आया है, जिनका वचन केवल पाखण्ड है, वचन को सत्य मान लेने का अभ्यास मुझमे नही है युवराज" ।।
देवव्रत का स्वर अब भी आहत था ।। किसी पर तो भरोषा करना चाहिए दासदास ।।
आपने कूछ समय पहले क्या कहा था युवराज ?? की आपका वचन पिता नही दे सकते थे, इसलिए आपको आना पड़ा, इसका अर्थ ये भी हूआ की पिता का वचन भी तो आप दे नही सकते ।। अगर आपके पिता ने आपके वचनो की रक्षा नही की तो ??
देवव्रत हसाँ और कहाँ , कूरूवशं मे पिता कभी पुत्रो के साथ अन्याय नही करता ।।
दासराज कूछ क्षणो तक मौन बैठा रहा , कुछ क्षण बाद बोला , युवराज कल को आपके पुत्र होगे , तब क्या पिता अपने पुत्रो से अन्याय कर जाएगा ।। अगर कल आपके होने वाले पुत्रो ने आपके इस निर्णय को अस्वीकार कर दिया तो ??
फिर आप अपने पुत्रो के स्थान पर वचन क्यूँ दे रहे है ।।
दासदास की दृष्टि देवव्रत पर टीकी थी ।। क्या कहते है अब युवराज ।।
वो सिर्फ यह देख रहा था की या तो देवव्रत मोन रह जाएंगे , या हंस कर इस बात को टाल देंगे।
और देवव्रत स्वपन लोक में जाकर पिता के चरणों में आ बैठे , पिताजी मेने आपको कामसुख अभाव में पीड़ित देखा , मेने आपको कामयातना में पीड़ित देखा , मेने आपको कामशक्ति में तड़पते और असंतुलित होते देखा , आपने मुझे समझाया की काम-सुख सुख नहीं है , यह तो सुख का प्रपंच है , यह तो म्रग तर्पणा है , प्राणी अपनी कामना में कष्ठ पाता है , अपने विवेक का वध कर क्षणिक सुख भोगता है , और फिर उस भोग के मूल्य " दुःख " को सहन कर पुनः सुख की कामना में तड़पता है , आपने मुझे इस दुःख चक्र से मुक्त कर दिया पिताजी। शायद में स्वम् अपने बल पर यह बंधन नहीं तोड़ पाता , कदाचित में भी उस पाश में बंधा बलि-पशु के समान ऐंठता और तड़पता रहता , फिर पत्नी और संतान के मोहबंधन में फंसता और इन दुःखो से कभी बाहर ही नहीं निकल पाता , आपने मुझे यह यातना प्रयत्क्ष दिखाई , उसका स्वरुप समझने में सहायता की , और अंत में मुझे इस यातना से सदा के लिए मुक्त हो जाने का अवसर प्रदान कर रहे है , पिताजी। ... में आपको प्रणाम करता हूँ।
युवराज। . देवव्रत के शब्दो में कोई ध्वनि ना पाकर दासदास ने फिर उन्हें पुकारा।
देवव्रत की आँखों में शून्य के स्थान पर दासदास की पहचान लोटी , उनके मुख पर एक सहज मुस्कान आयी , और उन्होंने उल्लसित शब्दो में कहा , दासदास ..... में आपको वचन देता हूँ , मेरा , पुत्र , पोत्र , कोई भी कभी भी , आपसे , मुझसे , आपकी पुत्री की संतान से पैतृक राज्याधिकारी की मांग नहीं कर करेगा , वे बिना रुके ही कहते रहे ,
" में सूर्य , पृथ्वी , और पवन को साक्षी मानकर प्रतिज्ञा करता हूँ , में आजीवन अविवाहित रहूँगा। .
अमात्य के शरीर में जैसे बिजली कोंध गयी। गांगेय। . युवराज। . यह क्या किया आपने।
देवव्रत के होंठो पर एक जीवित मुस्कान थी , " मेने स्वम् को बचा लिया अमात्य प्रवर। अब मेरे लिए जीवन ना तो यमपाश है , ना कामपाश , मेरे मन में ना तो स्त्री की कामना है , ना सम्पति की , ना अधिकार की , माता मुझे जीवन मुक्त कर इन्ही दुखो से ही तो बचाना चाहती थी
देवव्रत उदास नहीं थे , ना उनके चहरे पर कोई पश्याताप था , न द्वंद का अंधकार , उनके चेहरे पर सफलता और मुक्ति का उल्लास था।
दासदास ने हाथ जोड़ लिए। युवराज। आप मनुष्य नहीं है ,, आप देवता है , आप सचमुच पवित्र गंगा के पुत्र है , वो धरती के मल से केवल इसलिए बहती है , की दोनों किनारो को सींच सके , भूखी जनता को अन्न धन और भोजन और जीवन दे सके , आप धन्य है देव। उसका स्वर भर्रा आया , " और में ऐसा चांडाल हूँ , जिसने आप जैसे देवपुरुष का जीवन सुख छीन लिया , मेने आपका सबकुछ छीन लिया।
देवव्रत दासदास के कंधे पर प्रेमपूर्वक हाथ रखा , " आप नहीं जानते दासदास , की आपने मुझे क्या क्या दे दिया , उठिये मोह त्यागिये , अपनी पुत्री और मेरी माँ देवी सत्यवती की विदाई की तैयारियां कीजिये।
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