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Monday, January 16, 2017

Ramayan bhag 3

रामायण  - पुरोहितवाणी भाग 3

पिछली पोस्ट में आपने पढ़ा था कि किस तरह नक्षत्र की राक्षसों द्वारा निर्मम हत्या  और आम जनों पर राक्षसों के आम जन पर अत्याचार की लगातार खबरों के बाद विश्वमित्र का मन अशांत हो चूका था,  अब आगे ------

इतनी बर्बरता के बाद जब राजा दशरथ से गुहार लगायी गयी , तो वहां से भी सिर्फ आस्वाशन मात्र ही मिला, क्यू की उनके स्वमं के राज्य में उनको अपने ही लोगो से खतरा था जो वैदिक संस्कृति छोड़ राक्षसी संस्कृति से प्रभावित थे  , खुद दसरथ के राज्य  आंतरिक हालात नाजुक ही थे।।   परायी स्त्री और धन की लालसा में आर्यो पर अत्याचार बढ़ता ही जा रहा था,  ग्रामीण जब सेनापति के पास जाते तो उलटे उन्हें ही फटकार कर। भगा दिया जाता, रात्रि में राक्षस और सेनापति मिलकर साथ में मदिरापान करते थे।।

विश्वमित्र अपनी कुटिया में टहले जा रहे थे, किसी निर्णय पर पहुँचते, तो उसे त्याग कर देते, निर्विविद रूप से एक निर्णय पर नहीं पहुँच पा रहे थे।। क्या करें??
प्रश्न : प्रश्नः प्रश्नः ।।

देवासुर संग्राम अतीत की बात हो चुकी थी, अपनी अत्यधिक वैज्ञानिक उन्नति के कारण देवताओं ने बहुत अधिक धन, तथा सत्ता प्राप्त हुई थी, यह विलास कितना आत्मघाती सिद्ध हुआ, जल- पलायन में सारी देवशक्ति नष्ट हो चुकी है, देवशक्ति के छिण होते ही राक्षसों से सर उठाना प्रारम्भ कर दिया था अब तो उन्हें " रावण " जैसा नेता भी मिल चुका था, यह बात भी ठीक थी की राक्षस विज्ञानं और तकनीक में निपुण तो नहीं है  किन्तु अश्त्र शस्त्र उनके पास ज़्यादा है।।

रावण इतना ताक़तवर है वो जम्बूद्वीप तो क्या , अभी अभी देवलोक तक धावा बोल कर आया है, यह राक्षसों की उन्नत अस्त्र शक्ति का प्रमाण था,  रावण में लंका को अपना केंद्र बना, जम्बूद्वीप के लगभग सारे द्वीप जीत लिए, मानो रावण के काल में पातळ के सारे राक्षस पातळ लोक से अब धरती पर आ गए हो,  इस्लाम जब यह कहता है क़यामत के दिन हमारे मुर्दे भी जमीन में से आ जाएंगे, तो मुझे इन्ही राक्षसों का स्मरण होता है ।।

रावण सारी भूगोल व्यवस्था भी समझता है, उसके थल और वायु सेना के अलावा जल सेना भी है, आर्यवत के किसी राजा के पास यह शक्ति नहीं है ।।

विश्वमित्र की आँखे अनजाने भय से विस्फोटित हो उठी, कितना असुरक्षित है यह आर्यवत  ।। आर्यवत ही क्यू सारे जम्बूद्वीप दक्षिण में कोई शक्तिशाली राजा नहीं है, वहां के निवासी अर्धविकसित जाति के है, वे हाथ के नाख़ून, लकड़िया, तथा पत्थरो के साथ लड़ते है, क्या उनके साथ मिलकर सुसज्जित शस्त्र  रावण की सेना को रोक पाएंगे?? कोई भी तो नहीं, एक बालि था, उसने भी रावण से मित्रता कर ली, और बाली युद्ध करेगा भी क्यू?? न तो वह महत्वकांशी है, ना ही विस्तारवादी , वह दूसरों के साथ अन्याय न हो, इसे लेकर सजग ही कहाँ है?? उसे केवल अपने अधिकारों की परवाह है, वो रावण के विरुद्ध युद्ध क्यू करेगा, हाँ किसी समय  रावण का उपकरण जरूर बन सकता है ।।  रावण कितने सुनियोजित तरीके से अपनी सेना को आगे बढ़ाने का काम किया है, जम्बूदीप के पास पंचवटी के निकट उसने कितना बड़ा सैन्य शिविर लगाया है, वहां उसकी बहन सुपर्णखा है, और सेनापति खर-दूषण है।।

सहस्त्र राक्षस जम्बूद्वीप में आकर बस गए है,  जो शस्त्र से सुसज्जित है, रावण के कथनों को ही धर्म मानते है, और रावण की भक्ति में बिना सोचे समझे जान देने को ततपर रहते है,  और बार बार आर्यवत में आतंक मचा कर भाग जाने के लिए लंका भी दूर नहीं है, एकमात्र जल सेना भी केवल राक्षसों के पास ही है।।

दक्षिण जम्बूद्वीप में उसके शाशक हिंसक पशु की भांति चारो और उन्माद फैलाये हुए है, ऋषियों मुनियो, तपस्वियों , आर्य बुद्धिजीवियों तथा दुर्बल - प्राणियों की हड्डी चबाना ही उनका नित्यकर्म हो गया है,  कोई भी उनसे छुटकारा तभी पाता है, या तो वो म्रत्यु को गले लगा ले, या खुद भी राक्षसी सेना में शामिल हो जाए,  राक्षस् नहीं चाहते की पिछड़े लोगो को ऋषियों तथा ज्ञानियों का नेतृत्व मिले, इसलिए किसी भी ऋषि को देखते ही या तो उन्हें फाड़ डालने की सोचते है या उसे कच्चा चबाने की ।।

यह सोच सोच कर विश्वमित्र सिहर उठे, की अगर यह राक्षस आर्यवत में घुस आये तो क्या होगा?? आर्यवत के ग्राम जला दिए जाएंगे, पुरषो की हत्याए होंगी, और सुन्दर महिलाएं राक्षसों की दासिया बन कर रह जायेगी,  उच्च चिंतन, उच्च संस्कृति, सब कुछ अग्नि धूल, रक्त और मांस के कीचड़ में विलीन हो जाएगा । इसके ताजा ही चित्रण के लिए हम सीरिया तथा इराक के पिछले कुछ सालों के हालातों को याद कर सकते है, समझने में भी आसानी रहेगी,  वहां कैसे इस्लाम के अनुयायियों ने, पवित्र कुरान शरीफ के सच्चे पाठको ने 300 सड़कों वाली रोम साम्रज्य की सबसे सुंदर नगरी में से एक, जिसकी चर्चा हर वहां जाने वाला करता था ,  बड़े बड़े वहां बंदरगाह थे, जहाँ से इम्पोर्ट एक्सपोर्ट का काम होता था ।। वहां यजीदी महिलाएं पहाड़ो, जंगलो , रेगिस्तानों में अपनी जान और अपने बच्चो की जान बचाने के लिए भाग रही है,  नन्हे से बच्चे को दूध भी कहाँ से पिलाये, isis के प्रकोप से कई दिनों से इतनी भूखी है, की दौड़ते दौड़ते स्तन का दूध भी सुख गया है। बहुत मुश्किल से वो जान बचाकर भागती फिरती है, और आगे भी किसी काले कपडे वाले अल्ला के नारे लगाने वाले मिल जाते है।। वही भूखी स्त्री उनके भोग के लिए प्रशाद बनती है, और जिसके लिए जिस बच्चे के लिए वो दौड़ रही थी, उसे पिंजरे में कैद करके जला दिया जाता है।।  अभी तो कुछ वीडियो ऐसे भी आये है, की इस्लाम के अनुयायी कहलाने वाले आतंकी, इंसानों को मार मार कर खा रहे है, कोई मौलवी खुले तौर में बुलन्द आवाज करके इन दुस्टो के विरुद्ध एक शब्द नही कहता ।। क्या यह मनुष्यो का कर्म है??

सहसा विश्वमित्र को लगा की उसके मन में राक्षसों को लेकर जो भय  छोभ है, उससे कहीं अधिक  छोभ आर्यवत के राजाओं को लेकर है,  आज वह समय क्यू नहीं है, जब सारी सेना एक सेनापति के अधीन होकर युद्ध करती थी । आर्यवत के लोगो के पास पार्थिव अस्त्रों को कोई कमी नहीं थी, भाला, ढाल, तलवार, फरसा यह सब प्रचुर मात्रा में थे, पर इनसे रावण जैसे शक्तिशाली राक्षस को तो नहीं हराया जा सकता था, राक्षसों के पास अनेक मायावी दिव्यास्त्र थे, जो उन्हें देवशक्तियों से मिले थे, राजा जनक के पास शिव का धनुष पड़ा है , जो किसी प्रयोग में ही नहीं आ रहा, हाँ उसकी नित्य पूजा जरूर हो रही थी ।।  राक्षसों के साथ विभिन्न युद्धों में भी जनक ने इस धनुष का प्रयोग यह सोचकर नहीं किया,  की यह चल गया तो अनर्थ हो जाएगा ।।

विश्वमित्र सोचे जा रहे थे , कोई एक बात तो नहीं थी, विचारों का प्रवाह था कि थम ही नहीं रहा था । आर्य की राजा और प्रजा, दोनों ही भोगी हो जा रही थी,  स्त्रीप्रेम, सुख और भोग में आर्य लिप्त हो गए, थोड़ी थोड़ी सेनाएं लेकर अपनी राजधानियों में पड़े थे । दसरथ चक्रवती सम्राट कहलाते है, पर आज तक उन्होंने कभी सागर पर करना तो दूर, जम्बूद्वीप के भी वो राज्य स्वतंत्र ना करवा सके, जो कभी आर्यवत का ही हिस्सा थे ।।  जल सेना से विहीन इन सब आर्यवत के राजाओं की पहुँच से दूर,  रावण है, उसका जहां मन करता है, वहां विजय हासिल करता है, और उत्पात मचाता है ।। आर्यवत के राजाओं और तथा प्रजा में स्वमं न्याय करने की क्षमता नही रही,  साहस नहीं रहा, राजनितिक सूझबूझ नहीं रही, सजगता और चेतना नहीं रही ।।

नगरों में निरतंर खेदजनक समाचार आ रहे है,  शाशन तंत्र ढीला है,  भीतर और बाहर के शत्रु सर उठाने लगे है, मानव की पशुप्रवति गौरवान्वित हो रही है, संसार में जो हिंसक तथा दुस्ट है, वही प्रसन्न है,   नगरों में बेरोजगारी है,  खाने में अन्न की कमी है,  कहीं बाढ़ या प्राकृतिक आपदा है, तो कहीं राक्षस उत्पात मचा रहे है, राक्षसों से घुस लेकर सेनापति कारवाही की जगह केवल शोध करते है ।। व्यापारी वर्ग प्रचुर मात्र में धन कमाकर शाशन वर्ग को देता है, और उसे अपने वश में कर के रखता है,  परिणामतः अब शाशन भी अत्याचार का समर्थन करने लगा है ।।#purohitwani

और यह बेचारे गरीब, किरात, भील, और दक्षिण की वानर जाति के लोग !!  क्या कर लेंगे यह सब रावण का?? इन बेचारो का खुद का क्या होगा, आर्य की रक्षा की तो छोड़िए ।।  राजसी व्यवस्था में सहस्त्र कीटाणु रोज जन्म लेते जा रहे थे ।

आर्य संस्कृति को पछाड़ राक्षसी संस्कृति पनपती ही जा रही थी,  घूसखोरी और हिंसा के माध्यम से वो आर्य को छलपूर्वक या बलपूर्वक राक्षस बना दे रहे थे ।। और दूसरी और राक्षसों में आर्य संस्कृति को पहुँचने ही नहीं दे रहे थे । ऐसी स्तिथि में विश्वमित्र क्या करें??

पर कर्म का समय भी तो यही है,  विश्वामित्र चुक नहीं सकते, चाहे आर्यवत के राजा या प्रजा कोई कुछ ना करें, विश्वमित्र को तो कुछ करना ही होगा ।। #पुरोहितवाणी

क्रमशः ---- आगे का भाग कल

1 comment:

rajesh said...
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