रामायण भाग 6- #पुरोहितवाणी
दसरथ विश्वमित्र से कहते है की वो रावण के बारे में भली भांति जानते है ,
विश्वामित्र खुल के मुस्कुरआये " इतना सब जानते हुए भी तुम निश्चन्त नहीं हो राजन , मुझे आश्चर्य है। उधर रावण है की अपने सैनिक शिवरो का जाल फैलाकर आर्यवर्त को घेर रहा है , ताकि एक बार में ई सब कुछ ग्रस सके। खुद मेरे आश्रम में रावण के आदर्शो अनुयायी आतंकी घटनाओ को अंजाम देते है , उसी वन में राक्षसी ताड़का , उसका पुत्र मारीच , और उसके सहायक , शस्त्र सेनिको के साथ रहते है , उनके शाशन में रहने वाला हर एक राक्षस रावण के लिए अपने प्राण देने को तत्पर है , उनका एकमात्र लक्ष्य वैदिक संस्कृति को निगलना ही है राजन , यह लोग रावण की प्रेरणा से दिन रात मुझे तंग करते है , प्रताड़ित करते है , में जब भी राष्ट्रहित या समाजहित के लिए यज्ञ प्रारम्भ करता हूँ , वे मेरे आश्रम में रक्त और मांस की वर्षा कर देते है , मेरे आश्रम के निकट ही गोहत्या करते है। लगातार इनके अत्याचार और विरोध के कारण ना जाने राष्ट्रहित के लिए किये जाने वाले यज्ञ ना तुम कर सके , ना में।
राक्षस चाहते है की में शास्त्रो और अस्त्रो का प्रयोग बिलकुल ना करूँ , जो दिव्यास्त्र मेरे पास है , यह में उन्हें दान कर दूँ , जब तक यह दिव्यास्त्र में उन्हें नहीं दे देता , वो मेरी हत्या नहीं करेंगे , और देने के बाद जीवित भी एक क्षण के लिए नहीं छोड़ेंगे। किन्तु अगर मेने उन्हें दिव्यास्त्र दे दिए तो वे सारे समाज की प्रताड़ित करेंगे।
मै उन राक्षसों के विरुद्ध तुमसे सहायता लेने आया हूँ।
दसरथ वचन देने के समान दृढ़ नहीं रह पाए , रावण उनका ही नहीं सारे देवलोक का ही आतंक था , ताड़का , मारीच , और सुभाहु का विरोध , मतलब रावण का विरोध। रावण से अब उन्हें लड़ना होगा , उस रावण से जिससे स्वम् इंद्र भी डरते है।
दसरथ का मन डोल गया था , अब क्या फ़ायदा , वो अपना वचन हार चुके थे ,
दसरथ ने कई क्षण सोचने में लगा दिए , फिर कुछ समय पश्चात सोचकर बोले , सीमा चौकी पर सेनानायक बहुलाश्व स्वम् विराजमान है , क्या उसने आपकी सहायता नहीं की ?? दसरथ के स्वर में आत्मबल नहीं था।
वह केवल अपने स्वार्थो की रक्षा कर रहा है राजन , ऐसे लोग कभी न्याय की रक्षा नहीं कर सकते , विश्वामित्र ने बड़े कटु शब्दो में सम्राट को कह दिया।
इस बार दसरथ ने अगला प्रश्न नहीं किया , सम्भतः बाहुसलव के व्यव्हार से पूर्व में ही परिचित हो।
इस बार दसरथ बड़े संकुचित स्वर बोले , में स्वम् चतुरंगनी सेना लेकर आपके आश्रम की रक्षा करूँगा ऋषिवर , में सेना को अभी तैयार होने का आदेश दे देता हूँ , आप कब चलना चाहेंगे। दसरथ के शब्दो में जितनी तत्परता थी , वाणी तथा चेहरे की आकृति में ततपरता का उतना ही अभाव।
विश्वामित्र हंस पड़े , इतना कष्ठ ना करो सम्राट , में तुम्हे और तुम्हारी सेना को लेने नहीं आया हूँ , तुम्हारी सेना इतनी ही समर्थ होती तो मुझे यहाँ आना ही क्यू पड़ता , फिर तुम्हे अपनी और अयोध्या की रक्षा करने के लिए भी सेना चाहिए , तुम राजधानी में रहो राजन , राजधानी तुम्हारे लिए अत्यंत आवश्यक है , और तुम राजधानी के लिए। वन्य जीवन तुम्हारे लिए असहनीय होगा सम्राट , तुम बहुत कोमल हो चुके हो। मेरे यज्ञ की रक्षा के लिए दस दिन की अवधि के लिए केवल अपने पुत्र राम को मुझे दे दो।
यह किस कुघड़ी में आ गए तुम विश्वामित्र , में तो अपनी छोटी सी गृहस्ती में प्रशन्न था , कोई आकांशा लेकर जोखिम का काम मेने स्वम् कभी नहीं सोचा , अब अपने राम को में राक्षसों के मुह में धकेलकर अपने आप को नहीं बचाना चाहता ,
और सहसा ही दसरथ खुद से अपरिचित होते जा रहे है , इस दसरथ को तो उन्होंने पहले कभी देखा ही नहीं , जिसे राम के प्रति इतना मोह हो , राम के प्रति मोह - कौशल्या के बेटे के प्रति, इस मोह को तो उन्होंने पहले कभी नहीं जाना , पर अब वे साफ़ साफ़ देख रहे थे , राम कौशल्या का ही नहीं , अब उनका भी पुत्र था , वरन राम में वे स्वम् ही युवाअवस्था की और बढ़ रहे थे ,
अपनी आरम्भ युवावस्था में दसरथ का रूप भी ऐसा ही था , लगभग इतनी ही लंबाई , इतने ही चौड़े कंधे , ऐसा ही स्फीत और बलशाली वक्ष , वहीँ तीखी नाक और गुलाबी आँखे , हाँ राम की तरह दसरथ का रंग श्यामल नहीं था , यह राम को कौशल्या से मिला था , और दसरथ में ऐसा कठिन आत्मविश्वास भी नहीं था , जो राम में है , राम को देखकर उन्हें कभी नहीं लगता था , की वे व्रद्ध और दुर्बल हो रहे है , दसरथ को लगता था की राम के रूप में वे स्वम सेना पर निर्यंत्रण कर रहे है , और मंत्रियो के साथ मंत्रणा कर रहे है स्वम प्रशाशन की देखभाल कर रहे है , राम दसरथ के व्यक्तित्व के अंतरंग तत्व हो गए है
दसरथ की आँखे डबडबा गयी ,. अत्यंत दीन स्वर में बोले , ऋषिवर जिस रावण से में जीवन भर डरता रहा , जिसके भय से मेने रघुवंश के पराजय के प्रतिशोध की बात नहीं सोची , उसके विरुद्ध अपने पुत्र को कैसे भेज दूँ ?? में तो उसके विवाह की बात ,,,,,,,,
विश्वामित्र ने बात पूरी नहीं होने दी , दसरथ , आर्य सम्राट , अब क्या छोटी बालिकाओ के समान गुड्डे गुदड़ियों से ही खेलते रहेंगे ?? उनकी महत्वकांशा विवाह करके पुत्र उत्प्पन करने तक ही रह जायेगी ?? अगर राम को जोखिम में नहीं डालना चाहते , तो आर्यवर्त के भविष्य के विषय में सोचने की जिम्मेदारी किसे दे दी है तुमने ??
दसरथ की आँखों ने आंसू निकल आये। ऋषिवर मेरे पुत्र की रक्षा करो , उसे असमय काल के मुख में मत धकेलो ,
विश्वामित्र के नेत्र कमशः रक्तिम हो उठे , वह अपना दीर्घ परीक्षित आत्म नियंत्रन खो चुके थे , वे भूल गए की दसरथ सभा में बैठे है , देश और काल का भान उन्हें नहीं था , इस समय वे शुद्ध सत्य थे , कर्तव्य थे।
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