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Friday, January 27, 2017

हमारा_धर्मयुद्ध --- वीर योद्धा राम के विश्वविजयी बनने की कहानी ---

#हमारा_धर्मयुद्ध --- वीर योद्धा राम के विश्वविजयी बनने की कहानी ---

राम विश्वामित्र से कहते   है , की यह कैसे आर्य है , जो अत्याचार के विरुद्ध हथियार नहीं उठाते , अपराधी उनके घर जलाये, इसका इंतजार करने की जगह घर में घुसकर क्यू नहीं वध करते उनका ?  असुरो , दैत्यों , राक्षसों का नाश करना , और समाज का उद्दार करना ही तो आर्यो का प्रथम कर्तव्य है ऋषिवर।

विश्वामित्र  मुग्ध नेत्रो से राम को तन्मय होकर देख रहे थे , जैसे विष्णु के दर्शन पाकर कोई समाधिस्थ हो गए हो , फिर तन्यमयता से बाहर आ , गदगद होकर बोले , " तुम सच्चे क्षत्रिय हो राम।  तुम धन्य हो , मै  खुद आज धन्य हुआ , तुम्ही यह कार्य करोगे पुत्र।  आज प्रण  करो पुत्र ,अपन अपने विरुद्ध हुए अत्याचारो का तुम प्रतिकार करोगे ही , अन्य जनो की पीड़ा भी तुम मिटाओगे -- जहाँ कहीं भी अत्याचार होगा , तुम अपने प्राणों को भी दांव  पर लगाकर उनकी रक्षा करोगे।

" में प्रण  करता हूँ गुरुदेव "
 मै  आश्वस्त हुआ पुत्र।  मै  अब तुम्हे अयोध्या लौटने को नहीं कहूंगा।

" मै  तो ऐसी प्रतिज्ञा रोज करता हूँ गुरुदेव।  मेरी माँ कहती है - मुझे भी आप अपने साथ ले चलोगे न गुरुदेव ?? लक्ष्मण चंचल स्वभाव  से बोले , इस बार विश्वामित्र ने कुछ भी ना कहते हुए लक्ष्मण को ह्रदय से लगा लिया।

तुम और तुम्हारी माँ हमेशा ठीक कहते है लक्ष्मण।

प्रातः विश्वामित्र ने  राम और लक्ष्मण को बहुत जल्दी उठा दिया , क्यू की कम धुप में ज़्यादा से ज़्यादा दुरी तक उन्हें जाना भी है ,  स्थानीय आश्रम ऋषि अब आगे जाने के लिए नोका  का भी प्रबन्ध कर चुके है , गंगा की जलधारा में जो यात्रा करके ताड़कावन जा सके।

नोका  चल पड़ी , प्रवाह  की गति के साथ नोका की भी गति बढ़ती गयी , विश्वामित्र जैसे पहले युद्ध की  की थोड़ी सी घबराहट की वजह से निराश भी थे।

राम ने गंगा की धार से आँखे हटाकर विश्वामित्र की और देखा

गुरुदेव।

विश्वामित्र को राम द्वारा गुरुदेव  पुकारा जाना अच्छा लगा , राम वसिष्ठ के शिष्य थे , इसी कारण वे सामान्यतः  विश्वामित्र ऋषिवर या , ऋषिश्रेष्ठ ही कहते थे , किन्तु राम जब भी गुरुदेव कहकर विश्वामित्र को पुकारते , तो विश्वामित्र का मन कहीं आश्वश्त होता की राम का सम्बोधन औपचारिक नहीं है, वह शील का प्रदर्शन भी नहीं है , और ना ही राम का अभिनय है , राम के ह्रदय और जिब्हा  दोनों में विश्वामित्र के प्रति प्रेम और आदर था , गुरु स्नेह आपलपित  चहेरे से बोले " वत्स राम "

गुरुदेव , मेने राजदरबार के आज तक बहुत ऋषि देखे  है , किन्तु वे तपस्वी मात्र है , वे सिर्फ तपश्या करते है , युद्ध की बात नहीं सोचते , हिंसा कदाचित उनके स्वाभाव में नहीं है , वे कितने शांत दीखते है , आप उनसे बहुत भिन्न है गुरुदेव।

राम ने उनके चिंतन को उकसाया था , और आहत  भी किया था , " मै  भी यही सोच सोच कर उदास हूँ राम , मेने भी ऐसा शांत वातावरण , ऐसा ही शांत आश्रम , तपस्या और त्याग का जीवन चाहा था , , जिसमे कटुता ना हो , संघर्ष ना हो , युद्ध ना हो , मेने अपने क्षत्रिय    कर्म त्याग कर ऋषि धर्म को अंगीकार इसी लिए किया था पुत्र , किन्तु पुत्र में अब शांत नहीं रह सकता , शांति के नाम पर में कर्तव्य से खुद को विमुख नहीं कर सकता।

मै  समझा  नहीं गुरुवर  .....

विश्वामित्र ने कुछ छुपाने का प्रयत्न  अब छोड़ दिया था , उनके मन की पीड़ा अब उनके मुख पर प्रकट हो गयी थी , वत्स , में रक्त पिसाचू  हिंसक पशु नहीं हूँ , युद्ध कभी भी किसी भी सामान्य व्यक्ति को अच्छा नहीं लगता , शांतिप्रिय व्यक्ति तो युद्ध के नाम से ही घृणा  करता है , किन्तु फिर भी मुझे लगता है , युद्ध की , विरोध की , संघर्ष की आवश्कयता होती है , युद्ध की एक समय के साथ जरुरत होती है , चाहे  वह अपने परिवार के लोगो से हो , परिवार के बाहर के लोगो से हो समाज में विरोधी तत्वों से हो , या एक राज्य का दूसरे राज्यो के साथ हो ,

इस बात का विरोध कोन  करता है गुरुदेव , राम बोले

विरोध कोई नहीं करता राम , कम से कम इस सिद्धांत का विरोध तो कोई नहीं करता , किन्तु वत्स आर्यवर्त के राजाओ की मनःस्थिति  इस समय जिस प्रकार है , वह मुझे निराश करती है , युद्ध कभी शारीरिक शक्ति से नहीं होता , यह तो मनोबल से होता है , युद्ध के लिए अस्त्र सस्त्र अनिवार्य उपकरण है , इसके अभाव  में सम्यक युद्ध संभव नही है , , किन्तु इस महत्वपूर्ण उपकरण की जितनी उपेक्षा आर्य राजा और प्रजा कर रही है पुत्र यह अत्यन्त  शोचनीय  है , आर्य राजाओ के पास विश्व के श्रेष्ठ शस्त्र  नहीं है , जो रावण के पास है , और आर्य नागरिको के पास अपने घर में बरछी , ढाल , कटार  कुछ भी नहीं है , यह बात मुझे बहुत चिंतित करती है पुत्र।  हमारे पास नियमित सेना तक नहीं है , जो नागरिको की रक्षा कर सके , राक्षस जब चाहे आर्य घरो पर हमला कर देते है , हमें कोई भय ही नहीं है , की हमारा शत्रु हमें निगलने की तैयारी कर चूका है।

क्रमशः -----------

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