सुप्रीम कोर्ट में हिंदी में लिखी याचिका स्वीकार नहीं की जाती, लेकिन
राष्ट्रभाषा के पक्षधर बिहार के एक वकील ने इस परंपरा का विरोध किया और
हिंदी में अपनी याचिका दायर कर दी।
हिन्दी में लिखी याचिका को देखते
ही सुप्रीम कोर्ट का रजिस्ट्रार कार्यालय भड़क गया। कहा गया पहले वे अपनी
याचिका का अंग्रेजी में अनुवाद कराएं। लेकिन, राष्ट्र भाषा के पक्षधर
प्रसाद ऐसा करने को तैयार नहीं हुए।
तब रजिस्ट्रार ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 348 की बाध्यता के कारण हिन्दी याचिका नहीं दायर हो सकती। है। याचिकाकर्ता
वकील ब्रह्मदेव प्रसाद ने उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 300, 351 के
साथ-साथ मूल अधिकार से जुड़े अनुच्छेद 13 एवं 19 भी दिखाए, जिनमें हिन्दी
के साथ भेदभाव करने से मना किया गया है। आखिरकार उन्होने ने अपनी बात मनवा
ली।
अब समस्या ये भी है कि
सुप्रीम कोर्ट में में बहस भी हिंदी में नहीं होती लेकिन अब पहली बार शायद
वहाँ के जज को हिंदी में सुनना पड़ेगा।
दोस्तों अगर सुप्रीम कोर्ट ही
इस तरह अंग्रेजियत की गुलाम हो तो किस बात पर देश में राष्ट्रभाषा के
बढ़ावा के लिये इतने सेमीनार और बड़ी बड़ी बातें की जाती है .. मुझे तो आज इस
समाचार से पता चल रहा है कि वहाँ हिंदी लिखने बोलने की अनुमति नहीं है।
29जनवरी 2016 की
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