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Tuesday, January 17, 2017

Ramayan bhag 5

रामायण -  पुरोहितवाणी  दिवस 5

क्या करें विश्वामित्र आखिर , और किसके पास जाए ?? दसरथ के पास , या जनक के पास ? या दोनों के पास।  क्या जनक और दसरथ में मित्रता नहीं हो सकती ??  विश्वामित्र को तो कुछ करना ही होगा , उधम शून्य बैठने से क्या लाभ।  क्या ईश्वर ने आर्य समाज  राक्षसों के भक्षण के लिए बनाया था,  ,  कहीं अब इसीलिए तो ब्राह्मणों पर से लोगो का भरोषा तो नै उठ गया है की , हम अपनी संस्कृति की रक्षा ही नहीं कर पा रहे , और जब अपनी रक्षा ही नहीं कर सके , तो  हमारा दिया हुआ कितना भी सुन्दर ज्ञान किस काम का , एक दिन तो लुप्त हो ही जाएगा सब कुछ।

नहीं मुझे सक्रीय होना ही होगा , राजा शक्रिय हो ना हो , एक ऋषि को तो सक्रीय होना ही पड़ेगा।

ऋषि - एक अयोध्या में बैठा है बसिष्ठ , और जनकपुरी में बैठा है सतानंद।

वसिष्ठ।  आर्य शुद्धता का प्रतिक , आर्यत्व का साम्प्रदायिक रूप देने का उपक्रम।  जो आर्य संस्कृति के प्रसार में सबसे बड़ी बाधा  है , वसिष्ठ आर्यो को आर्योतर जातियो के संपर्क में नहीं आने देना चाहता , इसलिए वह आर्य राजाओ को आर्यवर्त राजाओ को आर्यवत  से बाहर निकलने के लिए प्रोत्साहित नहीं करेगा , ब्रह्मतेज के गौरव    पर जीने वाला या वसिष्ठ राजाओ को कूप - कंटुप  बनाकर छोड़ेगा , और सतांनद , निरीह सतानंद , एक तो अनाशक्त शीरध्वज की छत्रछाया में रहने वाला , आध्यत्मिक चिंतन करने वाला ऋषि , जिसे राजनीती से कुछ नहीं लेना देना , और ऊपर से माता पिता के पार्थव से पीड़ित ,  गौतम अहल्या को छोड़ नए आश्रम में जा रहे है , और अहिल्या समाज से तिरस्कृत अपना एकांत जीवन जी रही है , शतानंद में इतना भी साहस नहीं की अपनी माँ को सामजिक न्याय दिलवा सके , उसका पवित्र ब्राह्मणी के रूप में सामजिक अभिषेक कर सके।

तो फिर विश्वामित्र को ही कर्मरत होना पड़ेगा ,

विस्वामित्र की आँखे चमक उठी , आकृति पर एक ढ्र्ढ्ता आ विराजी , सारे शरीर की मांसपेशिया  कुछ करने को उद्धत थी , बहुत दिनों बाद शरीर की शिथिलता समाप्त हुई थी।

कुटिया में गंभीर आवाज गुंजी , में कल अयोध्या जा रहा हूँ , उचित व्यवस्था कर दी जाए।

जो आज्ञा गुरुदेव कहते कुछ शिष्य व्यवस्था में लग गए।

विश्वामित्र अब दसरथ के दरबार में पहुँच चुके थे , राजदरबार सूर्यवंसी राजा के अनुकूल ही सुसज्जित थी , दसरथ अपने सिंहासन पर बैठे थे , निकट ही मंत्री परिषद् भी उपस्थित थी , सामने एक ऊँचे स्थान पर वसिष्ठ और उसके अनुयायी बैठे थे , एक और सेनापति थे , और दूसरी और सामंत।  राजसभा में पूर्ण शांति थी , जैसे चलती हुई बात कहीं रुक गयी हो।  किन्ही कारणों से सभा स्तब्ध रह गयी हो।

तो गुरुदेव का क्या आदेश है ??? सम्राट का स्वर गूंजा।

शायद उस समय राम के विवाह की बात चल रही थी।  विश्वामित्र को देखते ही बूढे  दसरथ का चेहरा शुष्क हो गया , क्यू की विस्वामित्र निसपरियोज नहीं आते , नारद के समान भृमण करना उनका स्वाभाव नहीं है , विशेषकर दसरथ की सभा में जहाँ आसन पर वसिष्ठ बैठे है , वहां विश्वामित्र का आना अत्यंत गंभीर घटना है।

दसरथ ने विश्वामित्र को उनके स्थान पर बैठाया ,

राजन तुम शकुशल तो हो ?? तुम्हारा धान्य बंधू परिजन , मंत्री प्रजा सब सुखी है ?? तुम्हारे शत्रु तुम्हारे अधीन है ?? तुम्हारे सेनापति तुम्हारी आज्ञा में तो है ??  तुम देवयज्ञ  इतियादी मानवीय कार्य ठीक से सम्पन्न कर रहे हो ??

दसरथ मस्तक झुका  कर बोले , सब आपकी कृपा है गुरुदेव।

विश्वामित्र सहसा  वसिष्ठ की और मुड़े , आप प्रशन्न तो है न ब्रह्मऋषि ??

वे जानते थे , वसिष्ठ उनके आने से प्रशन्न  नहीं हो सकते थे , उनके शिष्य नृप  की सभा में कोई अन्य ऋषि सम्मान पाए , यह उन्हें कैसे प्रिय होगा , यदि ऋषियों , विद्धवानो , बुद्धिजीवियों , चिंतको  में इस प्रकार अहंकार और परस्पर द्वेष ना होता , तो जम्बूद्वीप की यह दशा नहीं होती , यदि मन में द्वेष ना होता , तो बसिष्ठ दसरथ के साथ मिलकर उनके स्वागत के लिए बाहर आये होते , और अभी भी यू कर्तव्यविमूढ़ होकर बैठे रह गए होते।

बस बसिष्ठ ने जवाब में थोड़ा सा मुस्कुरा दिया।

दसरथ क्रमशः  साहस बटोरकर बोले , महर्षि आपने यहाँ पधारकर मुझ दीन  पर अत्यंत कृपा की है , आदेश दे में आपकी क्या सेवा करूँ , में अपनी पूरी क्षमता  और अपने राज्य के साथ आपकी सेवा में प्रस्तुत हूँ।  आज्ञा करें।

राजन विश्वामित्र के मुख पर मंद हास  था , कुछ मांगने आया हूँ , दोगे  ??

आज्ञा करें ऋषिश्रेष्ठ।  "

प्रतिशुत  होते हो ??

प्रतिज्ञा करता हूँ ऋषिवर

तो सुनो राजन।  विश्वामित्र की वाणी में अपने लिए आश्वषित और दसरथ के प्रति व्ययंग  था  " में नहीं जानता तुम्हारी सभा में कितनी चर्चा राजनीति की होती ही , और कितनी ब्रह्मवाद की , पर तुम्हे शायद सुचना हो , जम्बूदीप के दक्षिण में एक राक्षस रावण बसता  है।

रावण का नाम कौन नहीं जानता ऋषिवर , दसरथ का धयान विश्वामित्र के व्ययंग  की और नहीं था , उसने देवलोक तक आक्रमण किया है ( देवलोक संभवत आज का कराची हो सकता है , क्यू की इसी कराची का नाम १००० साल पहले देवालय भी था )  सारा विश्व उससे काँप रहा है , एक बार उसने अयोद्धया पर भी आक्रमण किया था। ..

क्रमशः

आगे का भाग कल

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