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Monday, January 16, 2017

Mahabharat bhag 2

महाभारत #पुरोहितवाणी  ( २ )

पिता के राजभवन आने के बाद स्वाभाव में एकदम अजीब सा परिवर्तन था, देवव्रत का मन खुद ही पीड़ा से भर जाता है, और खुद को समझा भी लेता है, पिता भी आखेट से 7 -8 दिन बाद वापस हस्तिनापुर राजभवन लौट आये है, इस बार उल्लास वैसा नहीं था, मंत्रियो, सेनापतियों अधिकारियो , कुटुम्बियों, और सेवको की भीड़ वहां नहीं थी, ना ही  खुशियों का कोई  वातावरण था, चित्रित देवव्रत कठोर कदमो से चलते हुए  द्वारपाल तक आये, , और कहा पिताजी के चरणों में मेरा प्रणाम निवेदित करो ।।

चाहकर की उनके मुंह से चक्रवर्ती या राजा जैसा कोई शब्द उनके मुँह से नहीं निकला , इस बार देवव्रत का मन पिता के लिए आंदोलित था, चक्रवर्ती की चिंता को देवव्रत को कभी नहीं थी ।।
युवराज !! द्वारपाल का कथन इसबार अनुशाश्नत्मक ना होकर आत्मीय था, चक्रवर्ती सम्राट स्वस्थ नहीं है ।।
देवब्रत का अनुमान ठीक ही था,  द्वारपाल अभी तक भीतर नहीं गया, इसका मतलब पिताजी बहुत ही अस्वस्थ है ।। देवव्रत ने पूछा क्या राजवैध को सुचना दी??
द्वारपाल ने सर झुककर कहा, नहीं युवराज ।।  देवब्रत ने कहा कि अमात्य कहा है??  वो तो पिताजी के साथ ही आखेट पर गये थे, साथ में ना खुद आये, ना  राजवैध को बुलाया ।।

सब अनुमान से तो सब कुछ नहीं जाना सकता , देवव्रत बिना अनुमति लिए ही अब पिता के कक्ष में प्रवेश कर गए,  पिता कोई रोगी की भांति नहीं लेते थे, वह अपने पलंग पर औंधे मुंह पड़े थे,

पहली दृष्टि में देवव्रत को लगा की कितनी पीड़ा में पिताजी रो रहे  है , कितनी पीड़ा में है पिताजी, हस्तिनापुर के सम्राट और असहाय पीड़ा में रो रहे है?? मनुष्य कितना भी बलवान साहसी   सम्राट क्यू ना हो, होता तो मनुष्य ही है, शरीर और मन के नियम से संसार भर सुख दुख की प्राप्ति नहीं की जा सकती, तो कोई जीवन में सुख और दुःख मानता ही क्यू है???  मनुष्य इस जीवन को कार्यकरण के अधीन क्यू नहीं समझता ??  जब सब कुछ अवश्यभावी है, तो हाथ पैर पटककर क्या फायदा ??  क्यू लपकता है मनुष्य लोभ और लालच की और !! चक्रवर्ती सम्राट मृगया का शिकार करने गए थे, क्या सुख मिला ?? पड़े हुए मृग के समान अब खुद हाथ पाँव पटक रहे है ।। यह कैसी पीड़ा है पिता को??

कहीं आखेट में तो गहरा घाव नहीं खा गए?? अगर घाव खाते तो चिकित्सको का जमावड़ा लगा होता,

सहसा शान्तनु ने करवट बदली,  और दो चार मुक्के अपनी छाती पर लगाए, जहाँ ह्रदय होता है,

अब देवव्रत को यह तो पता चल चुका था, की पिताजी शारीरिक रूप से अस्वस्थ नहीं थे, उनका मन उद्गीन था, पर उद्गिनता भी तो रोग ही.......

पिताजी देवव्रत आगे बढे, और उनके चरण छुए  , शान्तनु ने ना तो उठकर पुत्र को गले लगाया, ना आशीर्वाद दिया, बस औपचारिकता भरा सर हाथ पर रख दिया ।।

देवव्रत को लगा की वो पिताजी से अवहेलना की शिकायत नहीं कर पायेंगेक्स इस प्रकार की पीड़ा में तड़पता हुआ मनुष्य दुसरो की भावनाओं का क्या सम्मान कर पायेगा?? और यह तो देवव्रत ने बहुत पहले ही समझ लिया था, की वह पिता से स्नेह की अब कोई उपेक्षा नहीं रखेंगे, पिता से क्या, वो किसी से कोई प्रेम की उपेक्षा नहीं करेंगे ।।

आप स्वस्थ है पिताजी ??

शान्तनु एकदम से खुद को अस्त व्यस्त कर उठ खड़े हुए, और सवाल को टालते रहे, देवव्रत से एक दम पूछ बैठे  अच्छा पुत्र एक बात बताओ,  तुम शस्त्रधारी यौद्धा हो पुत्र,  पृथ्वी पर तुम्हारे जैसा कोई योद्धा नहीं ।।  सदा युद्ध के लिए तुम सनन्द रहते हो, पर कुशल से कुशल यौद्धा भी किसी दिन वीरगति प्राप्त कर जाता है, अगर किसी दिन तुम्हे वीरगति मिल गयी तो?? मेरा क्या होगा पुत्र?? मेरी सदगति कैसे होगी ??

देवव्रत के कान खड़े हो गए,  क्या पिताजी अब उनका विवाह करवाना चाहते है?? क्या वंशवृद्धि के नामपर पिता उनके घेरकर गृहस्त जीवन की बेड़िया पहनाना चाहते है?? देवव्रत ने आजतक अपने माता पिता के विषय में जो जाना है, उनका अब गृहस्त जीवन में कोई आकर्षण नहीं रह गया है, माता पिता की पीड़ा का स्मरण होते ही देवव्रत का मन इन बंधनों से फड़फड़ाकर उड़ जाना चाहता था ।। देवव्रत ने कभी खुद के अंदर यह विलक्षण महसूस नहीं किया कि उन्हें कभी किसी नारी की आवश्यकता है ।।  नारी का आकर्षक से आकर्षक स्वरुप भी देवव्रत के मन को विलक्षित कर जाता,  किसी नारी का रूप ऐसा नहीं बना जो देवव्रत को रात रात भर जगा सके,  विवाह !! यह विवाह !! बार बार उनके मन में यही प्रश्न उठ रहे थे, विवाह क्यू करता है इंसान ?? शारीरिक सुख पाने के लिए?? वंश बढ़ाने के लिए ?? समाज के लिए , या राष्ट्र के लिए ??  किसके लिए यह हाहाकार ??

शान्तनु ने एकाएक कहा , देवव्रत मेने गंगा के बाद किसी से विवाह नहीं किया और ना में आज तक करना चाहता था,  मगर तुम मेरे एक ही पुत्र हो, तुम्हे कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा ??

देवव्रत अभी भी पिता से सहमत नहीं  हो पा रहे थे, पिता को अपनी चिंता है या पुत्र की??  अपने वंश को वो क्यू चलाना चाहते है?? अपनी सद्गति के लिए?? पिता ने कभी यह चिंता क्यू नहीं की , की अगर वो चले गए, तो उनके पुत्र का  सरंक्षण कौन करेगा ??  पिताजी यह क्यू नहीं सोचते जब स्वमं खुद ही नहीं रहे, तो वंश का क्या करना है उन्हें ? जब पुत्र ही नहीं रहा, तो साम्रज्य किसके लिए चाहिए उन्हें??

आप चिंता ना करें महाराज, संसार में ऐसा कोई पुरुष पैदा नहीं हुआ, जो मुझे वीर गति देने का सामर्थ्य रख सके ।।

तुम्हारी वाणी सत्य हो पुत्र, पर अभी भी पिता के भाव शुष्क ही थे ,

आप विश्राम करें पिताजी, देवव्रत बोले, मृगया की थकान दूर हो जायेगी तो आपका मन भी स्थिर हो जाएगा, शरीर की अत्यधिक थकान से भी कभी कभी मनोस्थिति दुर्बल हो जाती है ।।

पर देवव्रत स्पष्ठ देख रहे ठेस उनके इस वाक्य से पिता पर कोई प्रभाव नहीं छोड़ा था, उनकी आँखे तो देवव्रत को वैसे ही देख रही थी ।।

शान्तनु बोले, तुम मेरी बात क्यू  नही समझते देवव्रत ???

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