#महाभारत - पुरोहितवाणी ( भीष्म प्रतिज्ञा )
देवव्रत अपने ही सवालो में घिरे जा रहे है।। उनका हर सवाल उनके अंतर्मन पर हतोड़े सी चोट पड़ रही थी । अब आगे
सुबह उठते ही देवव्रत ने भुजा उठाकर प्रणाय का संकेत दिया, उनका रथ आगे दौड़ चला, रथों के आगे बढ़ते ही अवरोही पीछे पीछे चल पड़े । अगर युद्ध के लिए जाते, तो अन्न और और कई सामान साथ ले जाते, मगर इस बार ऐसा कुछ भी सामान उनके साथ नहीं था ।।
हस्तिनापुर नगर गंगा के निकट था, किन्तु यह राज्य मुख्यत गंगा और यमुना के तट पर बसा हुआ था, दोपहर तक देवव्रत का रथ यमुना के निकट एक ग्राम के बाहर रुक गया, उनके रुकते ही रथ और अश्वरोही भी रुक गए, यमुना तट पर खेलने वाले बच्चे, नहाते हुए स्त्री पुरुष सेनिको को देखकर चोंक उठे, कुछ क्षण स्तंभित रहने के बाद घबराकर गाँव को और भाग गए ।
देवव्रत ने मुस्कुराकर सेनापति की और देखा, " इन्हें अभय कर दो सेनापति "
सेनापति के संकेत पर एक सैनिक ने ऊँचे स्वरों में घोषणा की, ग्राम प्रमुख, पंच एवं सभी माताओ- बहनो, यह कोई सैन्य अभियान नहीं है, जिससे किसी को हानि की आशंका हो, यह हर्ष का अवसर है, कुरुओ के युवराज देवव्रत निजी कार्य से आपके दासदास से मिलने पधारे है।।
देवव्रत ने अमात्य की और देखा " अमात्य नेतृत्व करें ।।
अमात्य राजा शान्तनु के साथ पहले भी आ चुके थे, इसलिए मार्ग से भली भांति परिचित थे , वे आगे आगे चले, और रामदास की कुटीर के सामने आकर खड़े हो गए ।। दासदास ने निकलकर स्वागत किया पधारे युवराज !!
दासराज !! में एक विशेष प्रयोजन से उपस्थित हुआ हूँ , दासदास द्वारा दिए आसन पर बैठने के बाद देवव्रत बोले " आशा है आप मुझे निराश् नहीं करेंगे ।।
युवराज आदेश करें।।
देवव्रत ने वृद्ध दासदास की तरफ देखा उनके चेहरे पर ना कोई चिंता थी, और ना कोई भय, वह अत्यंत निर्द्वन्द भाव से बैठा प्रतीक्षा कर रहा था ।।
में अपने पिता चक्रवर्ती सम्राट शान्तनु की रानी बनाने के लिए आपकी पुत्री देवी सत्यवती की याचना करने आया हूँ।
पुत्री है तो याचक तो आएंगे ही।। दासदास हंसा " वैसे यह मेरा सौभाग्य है कि याचना एक सम्मानित कुल की और से आयी है।
देवव्रत चुपचाप दासदास की और देखते रहे।
थोड़ीदेर में दासदास ने सर उठाकर देवव्रत की और देखा, " यदि में कन्यादान न करूँ, तो याचना का स्वरुप क्या होगा?? " अपहरण ?
देवव्रत को लगा की अपमान से उनका रोम रोम सुलग उठा है , अपहरण ही करना होता, तो इतनी याचना की आवयश्कता ही क्या थी? राजा शान्तनु के संकेत भर से कन्या का अपहरण हो जाता, किन्तु आर्यो की मर्यादा इस चीज़ की अनुमति नहीं देती ।।
दूसरे ही क्षण देवव्रत को लगा, " अपमान या क्रोध " जैसा तो कोई प्रसंग ही नहीं है, दासदास तो खुद अशिक्षित है, यह बोलकर किसी के भावों को क्या जगायेगा?
इधर देवव्रत को अपने ऊपर भी कुछ आश्चर्य हुआ, की वे हर घटना को दो दष्टिकोण से क्यू देखने लगे है?? ऐसा लगता है उनके भीतर ही दो व्यक्ति बैठे है।। जो एक दूसरे के विरोधी है।।
नहीं !! हरण नहीं होगा, देवव्रत ने बहुत स्पष्ठ शब्दो में, बहुत द्रढता के साथ कहा ।। कन्या तभी हमारे साथ जायेगी, जब उनके पिता की आज्ञा हो, स्त्रियों का हरण करना, यह हम आर्यो की मर्यादा के अनुकूल नहीं है दासदास ।।
और यदि में स्वेच्छा से कन्यादान ना करूँ, तो आप वापस लौट जाएंगे??
नहीं !!देवव्रत के मुख से अकस्मात ही निकल गया , उन्का चेहरा आशक्त हो गया जैसे शरीर का सारा रक्त मस्तिक की और दोङ गया हो । और दुसरे ही क्षण ऊन्का मन शातं हुआ, और वाणी स्थिर " मै जानता हूं, आप हमारी याचना अस्वीकार नही करेगे ।
यूवराज!! दासदास ने कहा " मै कूछ समझ नही पाया , ना तो आप वापस लोटेगे, और ना बल का प्रयोग करेगे । तो क्या करेगे आप ?
दासदास हम कन्या का मुल्य चुकाएगे । देवव्रत का स्वर ढ्ढ़ तथा समझाने के भाव से था । आप कन्या के पिता है, इसलिए कन्यादान तो करेगे ही , बात इतनी सी है , वर आपको अपने अनूकूल का चाहिए ।। मै आपकी कसौटी मे जो बाधाएँ है, ऊन्को दूर करने मे समर्थ हूँ , आप अपनी आपत्ति कहे, !.
दासदास कूछ समय तक देवव्रत का चेहरा देखते रहे , । मै संकोच से गढ़ा जा रहा हूँ, एसा ना हो, किसी के हितो के साथ अन्याय कर बेठू। और वो भी जो ना तो मेरा शत्रू है, और ना ही दुष्ट। अपना हित करने मे दुसरो का अहित तो नही करना चाहिए न युवराज.।।
"न्यायसगंत माँग मे किसीका अहित नही होता दासदास ।। आप अपनी बात कहे"
" एक और चक्रवति सम्राट है, और एक और में कुटीर ।।
इससे क्या फर्क पड़ता है दासदास!!
फर्क पड़ता है युवराज ।। जब पिता पुत्री के लिए वर की याचना करता है, तो वह स्वयं एसा वर ढूढ़ता है, जो ऊसकी पुत्री के हितो की रक्षा करताहै ,और एकाएक सम्राट का यह प्रस्ताव । मूझे तो अपनी पुत्रीके भविष्य की चितां करनी ही होगी ।।
स्पष्ट कहुँ.!! राजा शान्तनू मेरी पुत्री के लिए उपयूक्त नही है , उन्की योग्यता केवल इस बात पर टीकी है की वे किसी देश के राजा है ।
देवव्रत कूछ नही बोले
सत्यवती केवल यह सोचकर राजा की भार्या बनेगी की उसकी दरिद्रावस्था समाप्त होगी , ऊसका पुत्र यमूना की नौकाओ पर ना खेलने वाला बनकर किसी देश का राजा बनेगा ।। पर ..... !!!!
पर क्या? हस्तिनापुर के राज्य पर तो पहले से ही एक यूवराज विधमान है।। वह बुद्धिमान , योद्धा, शक्तिशाली, और लोकप्रिय है।। वह अपने पिता के पश्चात् उनकी सारी धन संपत्ति और राज का मालिक होगा ।। उनके बाद मेरी पुत्री और उनकी संतानों का क्या होगा?? दासीपुत्र का जीवन बिताने से केवट बना रहना क्या बुरा है यूवराज ??
नहीं !! वे दासीपुत्र नहीं होंगे ।।
तो क्या होंगे?
जो आप चाहे !! देवव्रत सहज भाव से बोले ।।
में तो केवल इतना चाहता हूँ, में कन्या का हाथ चक्रवर्ती सम्राट के हाथ में दे रहा हूँ, तो वह चक्रवर्ती रानी ही बनकर रहे। उनकी संतान राजा की संतान हो ।।
ऐसा ही होगा दासदास !!
प्रमाण
क्या प्रमाण चाहते है आप?
सत्यवती का ज्येष्ठ पुत्र हस्तिनापुर का सम्राट बने ।।
स्वीकार है !! ऐसा ही होगा ।।
आश्चर्य से दासदास का मुंह खुल गया ।। आप समझ रहे है यूवराज !! कि में क्या मांग रहा हूँ??
में पूरी तरह से समझ गया हूँ दासदास, देवव्रत ना केवल शांत थे, वरन मुस्कुरा रहे थे।।
क्रमशः।
आगे का भाग भीष्म प्रतिज्ञा कल
#पुरोहितवाणी
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