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Monday, January 30, 2017

rani padmavati ka jouhar

रानी पद्मिनी ----- जरूर पढ़िए।

अब पढ़िए माँ पद्मावती की जोहर गाथा , बाकी की बात पोस्ट करे बाद करते है।
इस्लाम के नाम पर हिन्दू सरो को कलम करना , नोवी शताब्दी से ही धर्मन्त मुस्लिम लुटेरो का एक खुनी विभस्त इतिहास रहा है , उसका नाम चाहे जो भी रहा हो , अकबर बाबर या अलाउद्दीन खिलजी , प्रत्येक मुस्लिम शाशक कपट और छलता का एक साक्षात अवतार था , सभी एक दूसरे से बढ़कर शैतान थे , इस सच्चाई को जान्ने से पहले आपको अपनी आत्मा को गुलामी से मुक्त करना होगा , , , ऐसा ही एक काला इतिहास है , मुसलमान अलाउद्दीन खिलजी का , जिसकी चर्चा करना आज जरुरी है , इसके बारे में आप सारा सच आजतक इसलिए नहीं जान पाए की , भारत की पहली जनतांत्रिक सरकार का पहला शिक्षा मंत्री एक मुसलमान था , प्रधानमंत्री खुद संभवतः एक मुसलमान ही था , इसके बाद इसकी पुत्री थी , वह भी मुसलमान ही थी , अर्थात मुसलमानो की पार्टी और कटकतिथ सेक्युलर या सवमकतिथ सेक्युलर पार्टी कांग्रेस ही थी , जिसके कारण आप और हम आज तक सच्चा इतिहास नहीं जान पाए , इस लुटरे कांग्रेसी चक्के में एक एक बाद इसके सहपुरजे और हिन्दुविरोधी , सपा, बसपा, कांग्रेस, आमआदमी , लालू यादव , यह सब इस लुटेरी गैंग में अपना योगदान पूरी निष्ठा के साथ दिए , इतना तो उन पुराने मुसलमानो ने ही नहीं लुटा होगा , जितना इन नए मुसलमानो ने अब तक तो ;लूट लिया है , और आगे भी निरंतर जारी है , ना जाने हिन्दुओ की मर्दांगनी किस दिन जागेगी , की इन देशद्रोही ताक़तों को जड़ से उखाड़ फेकेंगे।
जुलाई १२६६ में अलाउदीन खिलजी ने दिल्ली से अपने चाचा और ससुर को लोभ लालच देकर दूर कर्रा में बुलाकर उसकी हत्या कर दी , अब अलाउदीन दिल्ली का सुल्तान था , हाँ इसके बिच में भी इसका बहुत लूटमार का कारनामा रहा है , किन्तु उसकी विस्तृत चर्चा में आपसे कर पाऊं, ऐसा मेरा सोभाग्य नहीं है।
अल्लाउद्दीन की ताजपोशी के एक वर्ष बाद ही मुग़ल सेना सिंध को पार कर पंजाब प्रांत को कुचलने लगी थी , यहाँ से खिलजी ने अपनी सेना को रवाना किया , जालंधर के निकट भीषण संग्राम हुआ , मुस्लिम सेना के हाथ आये सभी मुगलो को काट फेंका गया , गधो और ऊँटो पर लादकर इनकी कटी हुई मुंडियों को गधो और ऊँटो पर लादकर पार्सल कर दिया , अफ्रीका की जंगली जातीया अपने शत्रु का सर गले में डालकर बड़ी इठलाती हुई घूमती है , उन लोगो की सभ्यता की यही निशानी है। जालंधर से वापस लौटते समय सभी मंदिरो को तोड़कर मस्जिद में परिवर्तित कर दिया , हिन्दू स्त्रियों का शील भंग कर बाल पकड़कर उनके हरम वेश्यावर्ती के लिया घसीटा गया।
१२६९ में अलाउदीन की सेनाये नए हिन्दू क्षेत्र की वार्षिक लूट और नरसंघार पर निकली , इस बार गुजरात की बारी थी , अभियान का भार उलुघ खान और नुसरत खान पर था , तबाही फैलाने वाली मुस्लिम सेना के सामने राजधानी अन्हिलवाड़ को छोड़कर गुजरात के करनराय ने अपनी पुत्री देवल देवी के साथ देवगिरि के रामदेव राय की शरण ली थी , अन्हिलवाड़ और गुजरात को निर्विरोध निर्दयतापूर्ण लुटा गया , रानी कमलदेवी अनन्तपुर की अन्य नारियो के साथ मुसलमानो के हाथो पड़ गयी , उन सभी का बलात्कार हुआ , बरनी लिखता है सारा गुजरात आक्रमणकारियो का शिकार हो गया , मुहम्मद गजनवी की लूट के बाद पुनर्स्थापित शिव की प्रतिमा को दिल्ली लाया गया , और लोगो के चलने के लिए नीचे फैला दिया गया था। प्रत्येक मुस्लिम शासक ने बार बार इन कुकर्मो को दोहराया है। सभी के सभी हिन्दू मंदिर आज भी मस्जिद बने हुए है , इस युद्ध में एक सुन्दर हिन्दू बालक भी खिलजी के हाथो पड़ चुका था , जो उसके अप्राकृतिक दुष्कर्म के काम आता था।
इसके कर्मो की लेखनी में बरनी लिखता है " अलाउदीन का हिन्दू विरोधी पाशविक कानून सभी शहरो और गाँवों में बड़ी कठोरता से लागू किया जाता था , चौधरी और मुकादम घोड़े पर नहीं चढ़ सकते थे , शस्त्र नहीं रख सकते थे ,
" नजराना जमा करने के समय यह कानून सभी पर लागू किया जाता था , लोगो को हुक्म का ऐसा गुलाम बना दिया , की एक एक अधिकारियो के साथ बीस - बीस चौधरियो की गर्दन बांधकर लात-मुक्को से भुगतान वसूला जाता है। कोई भी हिन्दू अपना सर ऊँचा नहीं रख सकता था , पगड़ी पहनने तक, और सोने चांदी के बर्तन और जवाहरात रखने पर भी प्रतिबन्ध लगा दिया गया था। लोग नजराना वसूल करने वाले अधिकारी को बुखार से भी बुरा समझते थे , मुंशीगिरी एक बहुत बड़ा अपराध समझा जाता था , कोई भी मुंशी क्लर्क को अपनी बेटी नहीं देता था।
नजराना भी इस प्रकार डरा कर लिया जाता , अगर कोई अधिकारी चांदी मांगे तो उसे सवर्ण देना होगा , अगर कोई अधिकारी मुँह पर धूल फेंके तो बिना किसी हिचकिचाहट धूल खाने के लिए मुँह खोल लेना होगा। इसी तरह इस्लाम का गौरव बढ़ता था , आज भी हम हिन्दुओ का किसी ना किसी माध्यम से अपमान करवा कर ही इस्लाम पवित्रता और महानता हासिल करता है। हिन्दुओ को दबाकर रखना , इन लोगो का परम् धार्मिक कर्तव्य है , क्यू की हिन्दू मुहम्मद पैगम्बर के कट्टर शत्रु है। पैगम्बर ने इन मुसलमानो को हिन्दुओ का कत्ल करने की , उन्हें गुलाम बनाने के आज्ञा जो दी है। हिन्दुओ को मुसलमान में बदल देना , उनकी स्त्रियों को लूटकर लौंडी बना लेना , अपने हरम के लिए , यह कुरआन का आदेश है।
काजी तू बड़ा समझदार है , विद्धवान है , इस्लाम का कानून हिन्दुओ को कुचलकर और दबाकर रखना चाहिए , हिन्दू लोग तब तक हुक्म नहीं मानेंगे, समर्पण नहीं करेंगे , जबतक उन लोगो को एकदम गरीब ना बना दिया जाए , रणथंबोर से लूटने के बाद भी सुल्तान दिल्ली की जनता से बहुत बुरी तरह पेश आया।
रानी माँ पद्मावती
१३०३ में अलाउद्दीन ने चितोड़ पर चढ़ाई कर दी , रति के समान सुन्दर सौन्दर्य देवी रानी पद्मिनी को पाने की लालशा उसके मन में थी , मुस्लिम सेना पर भयंकर प्रहार करते हुए राजपूतो ने दुराचारी मुस्लिम शत्रुओ को अतुलनीय क्षति पहुंचाई , इसी बीच अलाउदीन को दिल्ली में अनुपस्तिथ पाकर मुगल सेना ने दिल्ली पर धावा बोल दिया , इसी वजह से इस बार यहाँ से डेरा उठाकर उसे फिर से दिल्ली भागना पड़ा। मुगलो से युद्ध करने को अलाउद्दीन तैयार नहीं था , उसकी उत्तमसेनावाहिनी को राजपूतो ने काट फेंका था , अतएव यह संयोग की बात है की उसे वापस आते देख मुग़ल सेना निराशा से ऐसे ही भाग खड़ी हुई।
ठीक इसी समय अलाउदीन के दुराचारो से ऊबकर दिल्ली के मुसलमानो ने ही इसका विद्रोह कर दिया , चालीस हजार आदमियो को इसने काट फेंका। यह कहा जाता है की चितोड़ के आक्रमण के बाद अलाउदीन की सारी आशाएं धूल में मिल गयी , शाशक राणा रतन सिंह के पास उसने यह समाचार भेजा की वह दर्पण में पद्मिनी की एक झलक देखकर संतुष्ठ हो , घेरा उठा , दिल्ली लौट जाएगा।
दर्पण में पद्मिनी की झलक देखने के बाद उसकी लालसा और भड़क उठी , उसने धोखा देने की गाँठ बाँध ली , अपने अतिथियों का पूरा मान-सम्मान करने वाले उदार राजपूतो ने दुर्ग के बाहर तक अलाउद्दीन का साथ दिया , राजपूत शाशक राणा रत्न सिंह स्वम् अलाउदीन खिलजी के साथ तम्बू तक बाहर आया , कपटी और मायावी अलाउदीन ने राणा रतनसिंह को उसके अंगरक्षको के साथ ही गिरफ्तार कर लिया , इसके बाद उसने दुर्ग में समाचार भेज दिया , की यदि रानी पद्मावती उन्हें नहीं सौंपी गयी , तो वह राणा रत्न सिंह को तड़पा तड़पा कर मार देगा।
इसके उतर में वीर साहसी राजपूतो ने एक योजना बनायी , उन्होंने अलाउदीन के पास यह समाचार भेज दिया की अन्य राजपूत दासियो के साथ पद्मिनी भी अलाउद्दीन के तम्बू तक पहुंचा दी जायेगी , इस लड़ाई का नेतृत्व अब खुद रानी पद्मावती कर रही थी , इसके बाद दासियो के वेश में वीर प्रवीण और ससस्त्र राजपूत छिपकर पालकियों में बैठ गए , ७०० पालकियों का यह कारवां अलाउदीन के पड़ाव के पास पहुंचा , तब अलाउदीन से यह निवेदन किया गया की अंतिम विदाई देने के लिए , पद्मिनी को राणा रतनसिंह से मिलने का आखिरी अवसर दिया जाए ,
अपने द्धार पर उपस्थित ७०० राजपूत रमणियों के साथ भावी -कामकेलि की कल्पना से अत्यंत आनंदित होकर अल्लाउद्दीन ने राणा रत्न सिंह को मुक्त कर दिया गया , राणा रतनसिंह ज्यो ही राजपूत कारवां के पास पहुंचे , चुनिंदा वीर राजपूतो की सुरक्षा में उन्हें चित्तोड़ भेज दिया , साथ ही अन्य राजपूत वीरो ने अपना असल सिंह स्वरूप धारण कर लिया , और जय एकलिंग की सिंह गर्जना के साथ हिन्दू रोष से अलाउदीन के पड़ाव पर टूट पड़े, अनेक शताब्दियों से लूटने , बर्बाद और अपमानित करने वाले तुर्की , अरबी, अफगानी , आदि गुंडों के सिर पैर गाजर-मूली की तरह काट कर फेकने लगे।

मुस्लिम दुस्तता के घोर अंधकार में सूर्य की भाँती चमकती वीर राजपूत तलवारो की देशभक्ति इस मध्यकालीन वीरगाथा में २ वीर राजपूत नक्षत्रो की भाँती चमक उठे , उसी समय वे दोनों वीर पौराणिक हो उठे , उ उनकी देशभक्ति और निष्ठा महान बलिदान राजस्थान के लोक गीतों में अमर हो गया -------
आगे के भाग में --- रानी पद्मावती का चेहरा कभी अलाउद्दीन ने देखा ही नहीं
और रानी पद्मावती का जोहर --

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