पारसियों के प्रदेश पर्शिया का इस्लामिक ईरान तक का खोफनाक सफर ( ६३४ - ६५१ ) मात्र १७ साल
अरब को पूरा हथियाने के बाद अंतरास्ट्रीय लुटेरो की नज़र अब पर्शिया ( ईरान ) पर थी , सबसे पहले में आपको एक गर्व और दुःख दोनों का अनुभव एक साथ करवा देता हूँ , पर्शिया देश परशुराम भगवान् द्वारा जीता गया था , २४ बार विश्व की उत्पाती शक्तियों का उन्होंने संघार किया था , उसमे से एक पर्शिया भी था , यह देश उनके कुठार के नाम पर ही पड़ा है , यह हमारे लिए गौरव की बात है , दूसरी और दुःख की बात की हम कितना खो चुके , भूमि की बात छोड़िये, अपने धर्म का कितना नाश हो गया। आज भी अधर्म का नाश हो कहने से कुछ भी नहीं होने वाला , परशुराम की तरह हाथ में कुठार लेकर ही धर्म का नाश हो सकता है , में तो अब यह कहता हूँ , सम्पूर्ण विश्व के शांतिप्रिय लोगो को , शांति की चाह रखने वाले लोगो को इस्लाम के विरुद्ध एक ओ जाना चाहिए। वही इनकी नीति के अनुसार इस्लाम और जीवन में से चुनने का ऑप्सन इनके सामने रक् देना चाहिए , इसमें कुछ भी गलत नहीं है , बात भूमि या सम्पति की भी नहीं है , बात आपकी व्यक्तिगत धार्मिक स्वतन्त्रा की है , इस्लाम रहा तो आपकी यह स्वतंत्रता जाना तय है , इसलिए अपनी स्वतंत्रता को बचाने ले लिए विश्व की सभी शक्तियों को एक हो जाना चाहिए , निश्चित रूप से विश्व में फिर कोई भी समश्या नहीं रहेगी।
ईरान इन अरबो के लिए बहुत ज़रूरी था , सिर्फ इसकी भूमि ही नहीं , बल्कि और नए लुटेरे भी इस्लाम को चाहिए थे , जो उसे ईरान से भारी मात्रा में मिल सकते थे , ईरान ही ऐसा पहला देश था , यहूदियो को छोड़ कर , जिसने इन लुटेरो का डट कर सामना करने की ठानी। ईरान वो पहला देश था , जिन्होंने इन खुनी दरिंदो को लगातार ५ या ६ साल रोके रखा , कई बार इन्होंने इन अरबी भेड़ो को धूल चटाई थी , रगड़ रगड़ कर मारा था , पर हाय रे यह किस्मत , किसी ने भी इस डाकू दल को अरब तक खदेड़ कर मारने की कोशिश नहीं की , इसी का परिणाम यह हुआ की पर्शिया खुद को ज़्यादा समय तक इन अरबी पिशाचो से खुद को नहीं बचा पाया .
मुस्लमान केवल विजय नहीं चाहते थे, यह अनपढ़ और नीच दरिंदे जिधर भी जाते, उस प्रदेश में अगले 100 सालो तक भुखमरी खत्म नहीं होती थी, पूरा नगर बर्बाद करके ही इन रक्तपिशाचो को संतुष्टि मिलती थी, सिकंदर ने भी बहुत विजय, बड़ी बड़ी विजय हासिल की थी, पर इतिहास में कोई ऐसा उल्लेख नहीं, की उन्होंने किसी का मत परिवर्तन करवाया हो, या नागरिकों को हानि पहुंचाई हो,अगर युद्ध के मैदान में शत्रु आमने सामने तीर छाती के पार कर दे, तो उसकी भी वीरता का सम्मान है, परंतु इस्लाम ने तो युद्ध के सारे नियम ही बदल डाले, वो किसी भी लड़ाई में सेना का सामना नहीं करते, बल्कि चोर उच्चको डाकुओं की तरह नागरिकों पर हमला करते है, इसका जलवन्त उदारहण आप पाकिस्तान का देख सकते है , होटल ताज पर आम नागरिकों पर हमले किये, 1991 ब्लास्ट आप देखिये, आम नागरिकों पर हमले हुए, ढाका का अटैक, 9/11 का अमेरिका पर हमला, फ्रांस में, विश्व के कोने कोने में आम काफ़िर नागरिकों पर इस्लाम का कहर किस कदर बरपा है, कहीं इंसानों के चीथड़े चीथड़े हो गए, तो कहीं कोई पंगु, किसी की चाक़ू से गला रेंतने में इन्होंने शर्म नहीं की 2016 में जहाँ दुनिया मंगल पर जीवन की आशा कर रही है, वहां यह मासूम यजीदी ओरतो की दलाली कर रहे है । यही इस्लाम है, यह आज का नहीं 1400 सालो का इनका कच्चा लाइव इतिहास है।
ईसाइयो के प्रदेश byzantines को जीतने के लिए, ईरान पर कब्ज़ा आवश्यक ही था, कुरआन कहती है कि घात लगाकर बैठो और वार करो, मुशरिकों से काफिरो से उस हद तक लड़ो, कब तक की मूर्ति पूजा, और मानवता समाप्त ना हो जाए, जब तक लड़ते रहो, जब तक हर इंसान की सुन्नत ना हो जाये, लिंग कटवाओ, या गला, दोनों में से आपको एक चुनना ही होगा, बैठ गए लुटेरे घात लगाकर, रात में ईरान की सीमा में घुस घुस कर नागरिकों पर असहनीय अत्याचार करते, उनसे इस्लाम कबूल करवाते, ना कोई करता, तो इस्लाम की मशीन में उसकी महीन कटाई कर देते, शुरुवाती संघर्षों में विजय के बाद भी ईरान खुद को इन भेड़ियों से बचा नहीं पाया । आज यह हम भारतीयों के लिए बड़ी ही चिंता का विषय है, हमें 3 युद्ध जीतकर निश्चिन्त ना होकर, इन्हें जड़ से ही समूल खत्म करने पर धयान देना चाहिए, इस्लाम के उदय से पहले सारा विश्व सुरक्षित था, मगर इस्लाम के उदय के साथ ही एक भयंकर महामारी फेल गयी, जिधर से इस्लाम गुजरता गया, खून और शवों की दुर्गन्ध बिखेरता गया, पूरी दुनिया के काफिरो का हर दिन एक युद्ध है, जब तक आप इस्लाम को जड़ से यानी अरब तक ही खत्म नहीं कर देते ।
ईरान की सीमाओं पर पंजे मारते मारते उसके काफी छोटे मोटे प्रदेशो को नागरिकों समेत ही इन्होंने हड़प लिया था, वहां से नए मुस्लमान बनाकर इनकी लुटेरी सेना भी मजबूत हो गयी, सरहद की सीमा से सटे पारसियों से लेकर सरहद के अंदर तक अरबी भेड़े इन पारसियों का जीना हराम कर चुकी थी, उस समय पारस का राजा था, जिसे संभवतः याज़ार्ड कहते थे, उन्होंने सेना की एक छोटी टुकड़ी को इन जंगली जानवरों पर काबू पाने के लिए भेजा, पारसी हीरो के बड़े शौकीन हुआ करते है, और बहुत ही हिरा वो जमा भी करते थे, तो एक तो नजर इन लुटेरों की पारसियों की सम्पतियों और स्त्रियों पर भी थी, अब कोई ईरानी शिया मुसलमान को बताए जाकर की तुम्हारी नाजायज बापो ने तुम्हारा सब कुछ लूटकर सिर्फ तुम्हे मुसलमान बनाकर अपने हाल पर मरने के लिए छोड़ दिया, क्या इनका एक पल के लिए भी इस्लाम में रहना धर्म है??? वही तो भारत के मुसलमानो के साथ हाल है।
अरबी आतंकवादी ऊंट पर आते थें, और हमला होने की स्तिथि में भाग खड़े होते थेंक्स इस्लाम और इसके अलावा कर भी क्या सकता था, इंसानियत के नाम पर लानत के अलावा कुछ नहीं इस्लाम । फ़ारसी इन लुटेरों की कपट कला से परिचित नहीं थे, पहली लड़ाई में इन लुटेरों को पकड़कर वहीँ इनकी कब्र बना दी, बाकी के लुटेरे फिर से भाग खड़े हुए, फिर इनको पारसियों ने खदेड़ कर नहीं मारा, और जाने दिया ।
इसबार मुसलमानो ने एक अचूक छल गया, कहा कि लड़ाई नगर के आसपास नहीं बल्कि नगर से दूर कास्कर में करेंगे, जिससे नागरिकों का कम से कम नुकसान हो, फ़ारसी इनकी चाल में फंस गए, याज़ार्ड की पूरी सेना कास्कर में आ गयी, उधर इन लुटेरों की एक टुकड़ी ने निहत्ते असहाय नागरिकों पर हमला कर दिया, इस लड़ाई से पहले राजा ने भी नहीं सोचा होगा, की इस्लाम की छिपकली अब उन्हें निगलने ही वाली है, अब नागरिकों को छोड़ने के एवज में इन्होंने एक भूभाग राजा से मांग लिया, और कहा आज से सब खत्म, यह ज़मीन देकर हमारी लड़ाई खत्म, मरता क्या ना करता, काफी पारसियों को भी मुसलमान बनाया जा चूका था, जो जिल्लत की जिंदगी ही पर्शिया में जी रहे थे।
मगर सारे नियम और वादे इस्लाम ने फिर तोड़ दिए उन्हें तो पूरा ईरान और वहां की स्त्रियां ही चाहिए थी, nihaved की लड़ाई फिर शुरू हुई, मुसलमानो ने रात में ही ईरान पर हमला कर दिया, अंदर के असंतोष में जी रहे मुसलमानो ने भी इन अरबी भेड़ो की अपने हो पूर्व भाइयो की कटाई में भरपूर मदद की, राजधानी में सिर्फ एक ही चीख थी, के बचाओ, चारो और भगदड़ मच चुकी थी, खुद राजा को भागना पड़ा, पर अफसोस , बेचारी 3 साल की राजकुमारी इन भेड़ियों के चंगुल में फंस गई, अली ने उसे लेजाकर तोहफे स्वरुप खलीफा उमर को दिया, अरबियों के आज भी फतवे पाधियेज़ 1 साल की बच्ची से भी निकाह हलाल है, अब राजा को तो किसी भी हाल में अपनी बेटी को आजाद करवाना था, प्राणों से ज़्यादा प्रिय राजकुमारी अब उन भेड़ियों के चंगुल में थी, जो बस कुछ ही सालो बाद उसे नोच खाने का ख्वाब देख रहे थे, मगर तुरंत याज़ार्ड ने सेना एकत्रित की और इन भेड़ियों पर चढ़ाई कर दी, भयंकर नरसंघार कर अपनी पुत्री को आजाद करवा ही लिया, दुनिया भर के मुसलमानो का इतिहास सिर्फ और सिर्फ विश्वशघात , छल, और कपट से ही भरा है, कैदशाह की इस लड़ाई में पर्शिया की राजधानी लुटेरों के कब्जे में हो गयी, जिस लड़ाई में उन्होंने अपनी राजकुमारी को आजाद करवाया, उसे अल जिस्र की लड़ाई कहते है, काश की यही लगन अपनी नागरिकों की सुरक्षा में भी राजा लगाते,
637 में कैदशाह का युद्ध फिर शुरू हुआ, अपने प्रान्त में रह रहे, मुस्लिम सेनिको को भी ईरान ने राजा ने जगह दे दी, मासिक वेतन पर , पारसियों के पास हांथी थिज़ और उसी पर वो युद्ध कार्टेज जब हांथी उन्हने कुचलते जातेज़ तो अरबी भेड़े ऊंट पर सवार होकर भाग जाती, रेगिस्तान पर ऊंट उनके लिए वरदान ही था, अब बारी फिर से मुसलमानो के कपट की थी, मुस्लिम पर्शियन सेनिको ने अपनी सेना की एक एक सुचना लुटेरों को दे दी, अचानक रात में हमला करवाकर भयंकर नरसंघार करवाया, और राजा को कैद कर खलीफा के सामने प्रस्तुत किया गया, जहाँ उसे इस्लाम और जीवन में से एक चुनने को कहा, सारा पर्शिया अब इनके अधिकार में ताज धीरे धीरे पारसियों का इस्लामी संस्कार शुरू हुआ, राजा की गर्दन उड़ा दी गयी, राजकुमारी का कुछ पता नहीं चला, अंत में कुछ पारसी भागकर भारत के गुजरात आ जगये आज तक यहीं है। पर इस ईरान से पारसियों से खुन की दुर्गन्ध यहाँ तक आती है, पता नही ईरानी मुसलमानो को क्यू नहीं आती । इन १३ सालो के मुस्लिम शाशन में पूरा पारस सुन्नत करवा चुका था।
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