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Saturday, January 28, 2017

कुतुबुद्दीन ऐबक

----- कुतुबुद्दीन ऐबक

यह विधाता का कैसा क्रूर व्ययंग है , की प्रथम विदेशी राजा जिसने भारतीयों को गुलाम बनाया , जिसने इस्लाम के नाम पर पाश्विक अत्याचार कर दिल्ली के प्राचीन हिन्दू राजसिहांसन को अपवित्र किया , स्वम् एक गुलाम था , इसे पश्चिमी एशिया के इस्लामिक देशो में कई बार ख़रीदा बेचा  गया था।

उसका नाम कुत्तूबुद्दीन  ऐबक था , इतिहास तबकात - ए  - नासिरी का कहना है की उसकी छोटी अंगुली तोड़ दी गयी थी , इसलिए इसका नाम ऐबक पड़ा था , ऐबक यानी " हाथ से पंगु " कुछ इतिहासकार विश्वाश करते है की ऐबक नाम की एक जाति  की उपाधि होनी चाहिए , दूसरे कहते है की मूल पाठ का बयान सही नहीं हो सकता।  इससे स्पष्ठ है की मुस्लिम इतिहास की पुस्तके झूठे बायनो  की पिटारी है।

       इन्ही झूठे  इतिहासों  पर आधारित इतिहास पुस्तके जनता और सरकार  को पथभृष्ट करती है , की मुस्लिम शाशको और कुलीनों की लंबी वंश परंपरा जिन्होंने आतंक और अत्याचार की झड़ी लगा दी , जिसके हजार बर्षो के शाशन काल का हर एक दिन खून से चिपचिपा है , उस लंबी वंश परंपरा के सभी वंशज दयालु, न्यायी और सभ्य थे।

     उदहारण के लिए इसी पंगु को लेते है , कुतुबुद्दीन ऐबक को --- जो गुणों का प्रमाण-पत्र  दिया जाता है उसे परखेंगे।  फिर हम जांचेंगे की उसके गुणों का मिलान उसके जीवन चरित्र से होता है की नहीं।

तबकात के अनुसार ------ " सुल्तान कुतुबुद्दीन दूसरा हातिम था , वह एक बहादुर और उदार राजा था , पूरब से पश्चिम तक उसके समान  कोई राजा नहीं था , जब भी सर्वशक्तिमान खुदा अपने लोगो के सामने महानता और भव्यता का नमूना पेश करना चाहते है , वे वीरता और उदारता के गुण  अपने किसी एक  गुलाम में भी भर देते है ' ' ' अतएव राजा दिलेर और दरियादिल था , और हिंदुस्तान के सारे क्षेत्र मित्रो यानि  मुसलमानो से भर गए थे , और शत्रु ( मतलब हिन्दू ) साफ़ हो गए थे।  उसकी लूट और कत्लेआम मुसलसल था।

इस उदारहण से स्पष्ठ   है की  मुस्लिम इतिहास और यतार्थ में सारे मुस्लमान हिंदुस्तान के हिन्दुओ के लगातार क़त्लेआम का ( स्पष्ठ ही इसमें स्त्रियों के बलात्कार उनकी सम्पति लूट , और उनके बच्चो का  हरण   भी शामिल है ) ऊँचे दर्जे की उदारता धार्मिकता , वीरता और महानता  का काम मानते है।  साम्प्रदायिकता से सरोबार और राजनीती से दुर्गन्धित भारतीय इतिहास ने बलात्कार , लूट , और हरण से अपनी आँखे मूंद  ली है।  उन्होंने केवल उन्ही शब्दो को   जकड कर पकड़ रखा है की मुस्लिम शाशक उदार और कुलीन थे।

इसलिए हम हिन्दुओ को तो  कम  से कम अवश्य ही यह महसूस करना चहिये की बिना किसी एक अपवाद के भारत का प्रत्येक मुस्लिम शाशक नृशंस और अत्याचारी ही था , उसके दुष्कर्मो से मनुष्य ही नहीं पशु की गर्दन शर्म से झुक जाती है।  हम हिन्दुओ को इनकी झूटी प्रस्तुति और मनगढंत गप्पबाजी में डुबकी नहीं लगानी चाहिए।

कुतुबुद्दीन एक गुलाम था , अब उसकी जन्मतिथि में कौन सिर  खपाये ? इसलिए इतिहास को उसकी जन्मतिथि का ज्ञान नहीं है।  इतिहास को सिर्फ इतना ज्ञान है की वो एक तुर्क था।  उसके परिवार को मुस्लिम धर्म मानना  पड़ा था , गुलामी से श्रापित उसे अनेक लोगो के साथ भेड़  की भांति  बेचने के लिए हांका  गया था।

इसका पहला खरीददार अज्ञात है , मगर उसे निमिषपुर में खरीदकर ओने पोन दामो में बेच दिया गया था , यहाँ उनसे एक काजी से कुरआन की शिक्षा भी ली , की किस प्रकार काफ़िर हिन्दुओ का कत्ल किया जाए।

कुरूप और ऊपर से पंगु होने के कारन काजी ने इसे एक सौदागर दल के हाथों बेच दिया , आज के व्यापारियों की भांति मुस्लिमो के पास काला  धन तो नहीं  था , किन्तु लाल धन अव्य्श्य था , जो उन्होंने हिन्दुओ का रक्त बहाकर  इकठ्ठा किया था।

कुत्तुबउद्दीन अब किशोर अवस्था को प्राप्त कर रहा था , उसका मूल्य भी बढ़ रहा था , क्यू की उसकी डाका डालने , हत्या करने की क्षमता  में वृद्धि हो रही थी।

भारत के सभी मुस्लिम बादशाह रात में ही नहीं ,  बल्कि दिन में भी शराब के नशे में आमोद और प्रमाद में , वासना में व्यतीत करते थे , उसी परंपरा में प्रायः गोरी भी " संगीत और आनंद " में डूब  जाता था , एक रात उसने पार्टी दी और आनन्दोसत्व के बीच  उसने नोकरो को सोने और चांदी  के सिक्के बड़ी उदारता से दिए , उसमे से कुछ कुत्तुबउद्दीन ऐबक को भी मिले , जब कुतुबुद्दीन जब पहली बार गोरी की सेवा में आया था , उस समय तक उसके पास कोई उल्लेखनीय विवेक नही था ,  कोई भी काम कितना भी गन्दा व घिनोना क्यू ना हो , वह तैयार  रहता था।  इससे उसको नियमहीन स्वामी की कृपा प्राप्त हो गयी।

कुतुबुद्दीन एक घुड़सवार नायक था , और खुरासान के विरुद्ध युद्ध में भी उसे एक अभियान में भाग लेना पड़ा था , इसमें तीन शाशको ने भाग लिया था , गोर , गजनी , और बामियान।  बामियान अफगानिस्तान में ही है , जहाँ बुद्ध की बहुत विशाल मूर्ति भी थी , इसे बाद में तालिबानियों ने उड़ा  भी दिया था , अब इसका दुबारा निर्माण हुआ है , चीन की मदद से।

कुतुबुद्दीन ने इस अभियान के बाद  के अभियानों के बाद के अभियानों में व्यावहारिक ज्ञान पाया , इससे उसे भारत में नृशंग  और खूंखार चक्र चलाने में बहुत सहायता मिली।

सबसे पहली बार कुतुबुद्दीन ने ११६१ ईश्वी में भारत के मगध पर आक्रमण किया , सारे दुर्ग विदेशी मुसलमानो ने बनाये है , इस प्रचलित इतिहास को झूठा  साबित करता हुआ " ताजुल-मा -आसिर ( पृष्ठ २१६ ग्रन्थ २ इलियट एवम डाउसन )  कहता है --- " जब वह मेरठ पहुंचा , जो सागर जितनी छोड़ी और गहरी खाई , बनावट और नींव की मजबूती के लिए भारत  भर में एक प्रसिद्द दुर्ग था , तब उसके देश के आश्रित  शाशको की भेजी हुई सेना उससे आकर मिल गयी , दुर्ग उनसे ले लिया गया , दुर्ग में एक कोतवाल की नियुक्ति की गयी , सभी मूर्ति मंदिरो को मस्जिद बना दिया गया )

कितने दुःख की बात है की प्रत्येक मुस्लमान इतिहासकार इस प्रकार बार बार जोरदार आवाज में घोषणा करता है की  हिन्दू मंदिरो को , महलो को मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया , इसके बावजूद फ़िल्मी भांड और सरकारी मुस्लिम चापलूस और भोली जनता का ढ्र्ढ्ता से यही मानना है  की इन सबका निर्माण मुसलमानो ने किया।

एक मुस्लिमइतिहासकार  कहता है की मेरठ लेने के बाद कुतुबुद्दीन दिल्ली की और बढ़ चला , जो " सम्पति और स्रोत का आगार  था।  विदेशी मुस्लिम विजेता  कुतिबुद्दिन ने उस शहर को विध्वंश कर नस्ट- भ्रस्ट कर दिया ,   शहर और उसके निकटवर्ती क्षेत्र को मूर्तिपूजको से मुक्त कर देव स्थान आदि जगहों पर मस्जिदों का निर्माण किया।

क़ुतुब मीनार ----- आजकल दिल्ली में जिसे हम कुतुबमीनार कहते है , वह राजा विक्रमादित्य के राज्यकाल  का प्राचिन हिंदी नक्षत्र निरिक्षण स्तम्भ है , जब कुतुबुद्दीन ने इसपर धावा किया था , तो इसके चारो और मजबूत दीवारे थी , विनाश के एक नंगे नाच के बाद जिसमे प्रतिमाओ को बाहर फेंक उसी मंदिर को  क्वातुल इस्लाम की मस्जिद बनाया जा रहा था , कुतुबुद्दीन ने पूछा इसका मतलब क्या है ?// उसे अरबी भाषा में बताया गया की यह स्तम्भ एक क़ुतुब मीनार है , यानि उतरी धुव  के निरिक्षण का केंद्र।

इस मुस्लिम लुटेरे ने केवल चार वर्ष शाशन किया , इस स्तम्भ के निर्माण के लिए केवल ४ वर्ष का समय पर्याप्त नहीं है , इस बात को अगर छोड़ भी दे, तो भी कुतुबुद्दीन ने कभी यह नहीं कहा की उसके इस स्तम्भ का निर्माता वो खुद है।  दिल्ली विजय के बाद उसे पता चला की पृथ्वीराज चौहान के भाई हेमराज ने हिन्दू-स्वाधीनता का झंडा बुलन्द किया है , उसने मुस्लिम अधिकृत रणथम्बोर  दुर्ग को घेर लिया , उसने अजमेर की और भी कुच करने की धमकी दी है , जहाँ की मुसलमानो से पराजित पृथ्वीराज के पुत्र का शाशन था , हेमराज    के प्रयास तो सफल नहीं हुए , मगर कुतुबुद्दीन ने इसका खूब फायदा  उठाया , उसने अधिक से अधिक धन पृथ्वीराज के पुत्र से निचोड़ा , पृथ्वीराज चौहान का कायर पुत्र भी इसकी धमकियों से डर  इस नीच को मालामाल कर दिया।  ३ सोने से बने तरबूज कुटूबुद्दीन  ऐबक को भिजवाये गए , अब इससे पता चलता है , की इन अरबियो और मुस्लमान शाशको के पास इतना धन आया कहाँ से।

अभी अजमेर में मुस्लिम शक्ति का सिक्का जमा ही था की दिल्ली के हिन्दू शाशक , ने जिसे हटाकर  मुसलमानो ने दिल्ली छीनी  थी , उसने अपनी सेना एकत्रित कर ली है , और वह सीधा कुतुबुदीन की और बढ़ चला आ रहा है , घिर जाने के डर  से कुतुबुद्दीन अजमेर से बाहर निकल आया --- घमासान युद्ध हुआ , दिल्ली का राजपूत शाशक वीरता से लड़ता हुआ वीरगति को प्राप्त हुआ  कायर मुसलमानो ने " धड़ से उसके सिर  को तरास  दिया ,  और उसकी राजधानी और  निवाश स्थान दिल्ली भेज दिया , इसके बाद अपनी सफलता का लंबा चौड़ा विवरण उसने गजनी भी भिजवाया , वहां से उसको गोरी का निमंत्रण मिला , अपने स्वामी का निमंत्रण पाकर कुतुबुद्दीन दूर गजनी पहुंचा , उसके आगमन पर एक उत्सव का आयोजन किया गया , और उपहार के रूप में बहुमूल्य रत्न और प्रचुर धन उसे प्राप्त हुआ ,

मगर कुतुबुद्दीन इस महान  सम्मानजनक भोज का उपयोग नहीं कर पाया , और वह बीमार पड़  गया , वह दरबार के मंत्री जिया-उल-मुल्क के साथ ठहरा हुआ था , संभव है उसी ने जलन से इसे जहर दे दिया हो , बाद में इसे गौरी के मेहमानखाने में लाया गया , अभी भी वह स्वस्थ महसूस नहीं कर रहा था , उसने हिंदुस्तान वापस लौटने का निर्णय किया।

वापस लौटने के  समय इसने काबुल और बन्नू के बिच बंगाल देश के कारमन  नाम के एक स्थान पर अपना पड़ाव डाला , वहां के मुखिया को धमकाकर उसकी पुत्री के अपने घ्रणित गुलामी के हरम में घसीट लिया  गया , दिल्ली लौटकर अपने पुराने इस्लामी स्वाभाव से जनता को  सताने लगा , ११६४ में उसने वाराणसी की और कूच  किया --- ताजुल-मा- आसिर के अनुसार ___ कोल हिन्द का सर्वाधिक विख्यात दुर्ग था , वहां की रक्षक टुकड़ी में जो बुद्धिमान थे , उनका इस्लाम धर्म में परिवर्तन हुआ , मगर जो प्राचीन धर्म में  डटे  रहे, उन्हें हलाल कर दिया गया , अब इससे यह तो स्पष्ठ है की भारत के मुस्लमान उन्ही कायरो की  औलाद है। जिनके माँ बाप को सता सता कर मुस्लमान बनाया गया है।

मुस्लिम गिरोह ने दुर्ग में प्रविष्ट होकर भरपूर खजाना और अनगिनत लूट का माल जमा किया , जिसमे एक हजार घोड़े भी थे , यह सब मुसलमानो का चरित्र ही तो प्रदशित करते है।  मुस्लिम इतिहासकार लेकिन यह लिखने के कतरा  जाता है की इस दुर्ग पर अधिकार कर लिया , मुस्लिम  धावे के बड़े नुक्सान को झेलकर भी अविजित खड़ा रहा।  इस घटना को जीत जरूर बताते है , मगर आगे के इतिहास में बार बार मुस्लिम उसी दुर्ग पर हमले भी करते है ,

इसी बीच  गोरी मुस्लिम लुटेरो का एक गिरोह भारत में घुस आया , अपनी गुलामी के नजराने के तोर पर स्वेत चांदी  और सोने से लदा हांथी और १००० घोड़े उपहार स्वरुप दिए गए , इन सब धन को हिन्दू घरो से ही लुटा गया था कैसी विडम्बना है की एक डाकू , अपने डाकू सरदार को अपनी पाप की कमाई नजराना भेंट दे रहा है।   यह दोनों सेनाये मिलकर मुस्लिम गिरोहों का विशाल डाकूदल  तैयार हो गया , इसमें पचास हजार तो सिर्फ घुड़सवार सेना ही थी , अब पैदल सेना का अनुमान लगा लीजिये , जिसमे पूर्व हिन्दू भी शामिल थे , जिन्हें कोड़े की मार और तलवार की धार पर मुस्लमान बनाया गया था ,

जयचंद  गद्दार और कुतुबुद्दीन ऐबक की आगे की कहानी आज रात को ही पोस्ट करूँगा ---- फिलहाल उनकी मानसिकता समझिये ---- इन गद्दार कोम  के गाजियों की ---

आगे की पोस्ट खाना बनाने के बाद पोस्ट करता हूँ।

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