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Sunday, January 15, 2017

Raziya sultan ka itihas

रजिया सुल्तान फंस गयी गुंडों में  ( history of rajiya sultana )

मध्यकाल का मुस्लिम दरबार नरक की एक मसीन था।  संगदिल मुसलमान  इसका कि केंद्रीय चक्का था, तथा बाकी मुसलमान कुल्हाड़ी भांजने वाले गुर्गो के दलपति इस मशीन के शेष कल-पुर्जे।

घुस. भाईभतीजावाद , हत्या, नरसंघार, बलात्कार व् लुटरूपी कोयलेपानी से चालित  इस मशीन का काम हिंदुस्तान और हिन्दुओ की महीन कटाई करना ही था।
कौओ और गिद्धों की भांति हिन्दू मलबा पर टूटने वाली मुस्लिम अपहरणकर्ताओ एवम चुनिंदा लोगो की यह मसीन हजार वर्षो तक लगातार चलती ही रही।  खुनी टुकड़े खूब विकृत  हुए , दमघोटूं दुर्गन्ध चारो और व्यापत हो गयी , कपट , कामुकता और विश्वाशघात की गोद  में लिपटे , जो इस मशीन में जाकर नहीं चिपटे , वो बुरी तरह जले , और बर्बाद हो गए, रजिया का जीवन इसका जलवंत उदारहण है , हालांकि वह स्वमं  एक मुसलमान  थी , एक मुसलमान  गुलाम सुल्तान की एक गुलाम बेटी।

रजिया अल्ततमश की अनाथ बेटी थी , भेडियो से भरे मुस्लिम दरबार में उसकी जवानी सहज प्राप्त थी , जोरो से चलते इस मसीन के पट्टे  में बुरी तरह फंस गयी , कुछ ही पलो  में रजिया राजगद्दी से गेंद की भांति उछाल दी गयी, उसका नारी शील चूर चूर होकर धूल में मिल गया।

दिल्ली में अनेक मुस्लिमकालीन कब्रे फटेहाल में पड़ी है , उसमे से एक रजिया की भी है, कैथल में बंदी बनाकर दिल्ली की गलियो में घसीटकर उसकी हत्या की गयी , जिस स्थान पर उसकी हत्या हुई, उसे वहीँ दफना दिया गया , पुरा नी  दिल्ली के तुर्कमान गेट के एक फर्लांग मीटर एक कबीला  ढेर है , इसी के निचे रजिया गड़ी  पड़ी है।

अप्रैल १२३६  में अल्ततमिश की म्रत्यु हुई थी , मुस्लिम दरबारी रिवाज के अनुसार " बेटो ' में गद्दी के  लिए छीन - झपट होने लगी, यह मुर्ग़ीराज बेटे हरम  के पिछले दरवाजे से प्रवेश करते थे , बच्चो की पैदावार बड़ी तेज़ी से बढ़ी जा रही थी , काम दुसरो का था , पर नाम सुल्तान का , हर नए जन्म पर सुल्तान मुस्लिम का सीना गर्व से फूल जाता था।

गद्दी के दावेदार भी अनेक होते थे , उत्तराधिकारी संग्राम का मार्ग सभी के लिए खुला था , गुलाम , भतीजे , भाई , भोजाई , अंग-रक्षक, चाचा , चाचियां , दादिया , , पुकार माँ , धाय माँ , रसाओइये , खोजे , पदचर और मंत्री ही नहीं ,वेश्या के दलाल भी इन निश्चित दंगो में भाग  लेते थे।  अल्तमिश का पुत्र नादिरशाह मुहम्मद एक लापरवाह , चरित्रहीन , और एक कामुकशाही जवान था , उसके पिता अल्ततमिश के रहिते ही उसकी असामयिक म्रत्यु  हो गयी थी , वह गुप्त रोगों का रोगी भी था , फिर भी चापलूस मुस्लिम इतिहासकार उसे विद्धवान , मेघावी , वीर , साहसी, उदार और दातार कहने से नहीं चूकते , प्रत्येक मध्यकालीन मुस्लिम इतिहासकारो ने इन शैतानो की जमकर आरती उतारी है , मगर बाद में जब उनकी घटनाओ का जब वर्णन आता है , तो वही लूट, कामुकता , हत्या का वीभत्स खुनी किस्सा ही सामने आता है।
प्रचलित पाठ्य पुस्तको में सरसरे तोर पर इन्ही मशीनों - उपाधियो को चुन चुन कर और बड़े इत्मनान  से मध्यकालीन मायावी मुसलमानो की काली करतूतों पर पर्दा डाल  दिया है।  अब वह लोग इस बात का नगाड़ा जोर जोर से पीट  रहे है की उसमे से हर एक शासक न्यायी , कुलीन , बुद्धिमान , विद्ववान।  उदार धार्मिक और विवेकशील था।

अल्तमिश के बाद उसका रूकनुदीन गद्दी पर बैठा , वह बेक तुर्की दासी का पुत्र था , जिसका शील कदापि सुरक्षित नहीं रहा होगा , विशेषकर उस अवस्था में जब चारो और अल्ततमश को सूंघता, घूमता , फिरता पाते है।  प्रथा पालन के लिए मुसलमान  उसके सर पर सेहरा बांधते है की इंसानियत से ओत -प्रोत एक उदार और सुन्दर राजा था , उसके बैठने से राज और गद्दी दोनों धन्य हो गए , यहाँ भी सदा की भांति मुस्लिमकट्टरपंती इतिहासकारो का झूठ ही जन्म ले रहा है , दो ही पंक्ति बाद यह बेशर्म कपटी कहते है की अनुचित स्थानों हिन्दुओ का धन लुटाते हुए अपनी महफ़िलो को मौज मस्ती के हवाले कर दिया , कामुकता और विलासता में इतना गर्क हो चुके थे , की उसकी माँ शाह तुरकन सरकारी कामो में दखल देने लगी, पति के जीवन काल में दूसरी ओरतो को वह घ्रणा की दृष्टि से देखती थी, इन्हें सजा देने का मौका अब उसे मिला  , बदले में क्रोंध  में अंधी हो उसने कई स्त्रियों को ही मरवा दिया।

अल्ततमश  के बेटो में एक गियासुदीन भी था , उसने रुकमुदीन से अवध में छेड़छाड़ प्रारम्भ की , शाही लुटेरो का एक दल खजाना लूटखोर लखनोटी   दिल्ली आ रहा था उसने इसे लूट लिया लिया , उसके अतिरिक्त इसने हिंदुस्तान  बहुत शहरो को लुटा , बंदायू के शासक मालिक इज़्ज़ुदीन मुहम्मद सला री , कबीर खान , हांसी शासक मलिक सैफुदीन और लाहौर शासक अलाउदीन ने आपस में षड्यंत्र कर विरोध  दिया , मुस्लिम दरबारी और शाशक ही नहीं , चपरासी भी धर्मान्तरण की वार्षिक तरंग में गोते खाता था , हिन्दू घरो  ग्रामीण नगरो को तबाह करना अपना पवित्र इस्लामी कर्तव्य मानते थे , इसलिए कट्टर मुस्लिमो के यह दादा जब दिल्ली दरबार से विद्रोह करते थे , तब अपने उबलते उफनते बेजोड़ इस्लामी  जोश मे  हिन्दुओ की हत्या , हरण  और लूट  पिल पड़ते थे , हिंदुस्तानी सुल्तानों के  विद्रोह का एक ही कारण था , की हिन्दू धन  का बंटवारा दिल्ली नहीं करेंगे , रुकमुदीन दमन का विरोध करने दिल्ली से सेना लेकर निकला , रुकमुदीन की अनुपस्थिति का लाभ उसकी पोषय बहन रजिया ने उठाया , प्रतीत होता है की मायावी मुस्लिम हरम अंडा सेने की एक विशाल मशीन प्रतीत होता था , जिसमे  प्रत्येक दिन सेंकडो भाई बहन या पुत्री पुत्रिया निकलते थे। रजिया में राजगद्दी का भोग करने की तीव्र इच्छा जाग चुकी थी सहायता के लिए कुछ गुलाम उसके चारो और चक्कर काटते रहते थे , वे आगे आये , नज़र शाही गद्दी और रजिया की जवानी दोनों पर थी।

दरबार के धूर्त और कामुक मुस्लिम गिरोह - नेताओ के लिए रुकमुदीन की बूढी माँ बेकाम थी , वे रजिया के पीछे इसलिए खड़े हो गए , की रजिया का अबाध भोग कर सके , रुकमुदीन की बूढी माँ बेरहमी से कत्ल कर दी गयी। १२३६ ईश्वी में रजिया राजगद्दी पर बड़े शान से बैठ  गयी , एक बहन का अपने भाई के लिए खुला विद्रोह था , गद्दी से सुल्तान को बंदी बनाने के लिए उसने सेना भेज दी , जिस माह उसे बंदी बनाकर दिल्ली लाया गया , उसी माह उसकी म्रत्यु  हो गयी , मतलब साफ़ है की रजिया ने बड़े ठन्डे दिल से उसकी हत्या करवा दी, की ना रहेगा बांस , और ना बजेगी बांसुरी।

इस प्रकार रुकमुदीन का कार्यकाल सिर्फ ६ महीने और कुछ ,  उसके बारे  ज्ञात होता  है की सिर्फ ६ महीने  कार्यकाल में ही उसने हिन्दुओ के धन से कितनी मौज मस्ती की। हांथी पर सवार होकर वह कमबख्त लूटने निकलता था।  ठीक यही वर्णन  यही मायावी मुस्लिम शाशको पर फिट बैठता है।  शराब और साकी की महफ़िलो में सभी मुस्लिम शाशको ने हिन्दुओ का धन लूट लूट कर खूब पानी की तरह बहाया।

अब गद्दी पर रजिया थी ,  झूठ का नगाड़ा बजाते हुए मुस्लिम इतिहासकार कहते की  "  रजिया एक महान  साम्रागी, सच्चा न्याय करने वाली , आज्ञा- पालक आदि आदि , मगर में आपको स्पष्ठ कर चूका हूँ षड्यंत्र और हत्यारे मुस्लमान लोगो  से रजिया भी कम  फरेबी और कम खून की प्यासी नहीं थी , अपने ही सुल्तान भाई रुकमुदीन की हत्या कर उसने गद्दी हड़पी थी , शायद उसकी माँ के खून से भी उसके हाथ लाल थे।   कुछ लोग कहते है की अल्ततमस  ने रजिया में गुण  पाया , चाहता  था की उसके बाद रजिया ही सुल्तान बने , बकवास और कोरी बकवास , इस गप्प को रजिया के सत्ताधीन होने के बाद गढ़ा  गया है , चापलूस दरबारियो ने इसे गढ़ा  है , खुद वजीर ए  आजम निजाम से रजिया को सुल्तान नहीं माना। उसने रुकमुदीन का विद्रोह करने वाले दरबारियो के साथ मिलकर संग्राम की घोषणा कर दी , लोग देश के विभिन्न भागो से आकर दिल्ली के दरवाजो पर जमा होने लगे , और काफी दिनों तक यह दुश्मनी चलती रही।
पुरानी दिल्ली के तुर्कमान गेट के आगे रजिया गड़ी  पड़ी है , इससे यह भी स्पष्ठ हो जाता है , की पुरानी दिल्ली शाहजहां ने नहीं बसाई , बल्कि यह तो पहले से ही बसी हुई थी।

दूसरी सबसे बड़ी बात यह की रजिया ने केवल ४ वर्षो तक शाशन किया था , और इन पुरे चार वर्षो में उसका काल , युद्ध , दंगो , पर लूट का अखाड़ा ही था , फिर भी कट्टर मुस्लिमो ने उसे नायब हीरोइन की तरह पेश किया है , मगर सबसे हास्यादपद बात यह है की इन इतिहासकारो ने सभी मुस्लिम शाशको की ही ऐसे ही झूटी बड़ाई की है, जबकि प्रत्येक मुस्लिम शाशक बिना किसी अपवाद के एक शैतान का ही अवतार था , अपने दुष्कर्मो से इन लोगो ने भारत में जहन्नम जैसी आग लगा दी थी।

रजिया की गद्दी में विरोध से असंतुस्ट होकर अवध शाशक नादिरशाह ने अपनी उन्नति का स्वपन देखा , तुरंत सेना बटोरकर दिल्ली जा पहुंचा , बहाना बड़ा सुन्दर था , मुसीबत में रजिया की मदद करना , इरादा था गद्दी और गद्दीवाली दोनों को हथियाना ही था , चाल बड़ी ही पुरजोर थी , मगर बागियो ने उसे पकड़कर मार डाला. अब दिल्ली घिरी हुई थी , और रजिया महल में बंद , अब रजिया के पास कपट के अलावा कौई चारा भी नहीं बचा था , उसके कुछ प्रमुख जवान दरबारी रजिया के साथ तम्बू में बारी बारी से रात बिताने भी आये, वजीर ए  आजम निजामुल मुल्क को इसने बातचीत के बहाने बुलाया , और सोचा की यहाँ उसे बंदी बना लिया जाएगा , पर तीनो को पहले ही षड्यंत्र की भनक लग गयी थी , और वो भाग खड़े हुए ,  बाद में इन तीनो को पकड़कर इसने मरवा दिया।

विलासी दरबारियो के वातावरण में गद्दी पर बैठी जवान रजिया स्वमं  ही एक पुरुस्कार थी , उसके लिए उसके पीछे से दरबारी आपस में भीड़ जाया  करते थे , मुस्लिम दरबारियो के पाप के भंवर में फंसी रजिया को कई बार अपनी जवानी का सौदा  करना पड़ा , अनेक लोग इस लड़की को धमकाने में भी सफल हुए , इनमे आमिर जमालुदीन नाम का एक गुलाम था , घुड़सवारी का आनंद  लेने वही रजिया के साथ भी जाया  करता था , कामुक सम्बन्ध घनिस्ट हो जाने से वह रजिया का गुलाम से निजी सहायक भी बन गया , मगर अन्य दरबारियो की आँखों में वह बहुत चुभता था।  लगातार संघर्ष और दंगो के बिच वह तबरहिंद के शाशक अल्तुनिया का विरोध शांत करने निकली , मगर उसे यहाँ हार मिली , यहाँ रजिया को बंदी बनाकर उससे बलात्कार भी हुआ , मुस्लिम इतिहासकारो ने इसे शादी का फतवा दिया , इसके बाद दोनों की सेनाओ ने मिलकर मैनुदीन पर चढाई की , पर वहां भी वो हार गए , सभी मुस्लिम दरबारियो ने रजिया से कन्नी काट ली  अब गंजेड़ी यार किसका, कस लगाया और खिसका, बस इसी हालत में दोनों भटक रहे थे , तो दोनों की पकड़कर हत्या कर दी गयी।  फननेशाह  मुस्लिम  सेना ने पहले रजिया का सामूहिक बलात्कार किया उसके बाद दिल्ली की सड़को पर घसीटकर उसकी हत्या कर दी ,

अब मुस्लिम इतिहासकार जो इस रजिया की इतनी  बढ़ाई  करते है, किसी प्रकार से लोग इसे रजिया का शाशन युग मानते है , कामुक दरबारियो के बिच दिवार से सटी अपना शरीर और राज्य बचानेके लिए उसने कई लड़ाईया की , और सब की सब हारी , प्रजा की भलाई सोचने का वक़्त ही उसे कब मिला ??? और मिलता बी तो क्या वो हिन्दुओ के लिए कुछ भी करती  ???

और यही हिन्दू बेवकूफ रजिया सुल्तान का नाम सुनते ही पेट पर हाथ फेर के कहते है की , एक रजिया जैसी शासक भी थी।

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