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Friday, January 13, 2017

Tuglak ki sachai

महाधूर्त तुगलक की पाप गाथा।

कुछ निष्ठा हीन  भारतीय इतिहासकार उमंग और उत्साह से तुगलक की एक विचारवान मुस्लिम के नाम से प्रशंशा करते है , जिसकी सारी  सुधारवादी योजनाए गड़बड़ा गयी थी , मगर कुछ  निष्ठावान इतिहासकार उसे पागल और सनकी करार देते है।

मुहम्मद तुगलक का २५ वर्षीय शाशनकाल छुरेबाजी अकाल और दमन की लंबी कहानी है , प्रमुख रूप से हिन्दू उसके शिकार थे , और आंशिक रूप से मुस्लमान , जिन्होंने उसके अत्याचारो का विरोध किया था , उसमे पगालपन की भी एक पद्धति थी , एक तरीका था , सलीका था , उसका मुस्लिम दिमाग इस्लामी यातना के नए नए ढंग खोज निकालने में बेजोड़ था।  इन खोजो का उपयोग वह आँख मूंदकर बड़े धड्डले से सभी पर करता था।

इस्लामी रिवाज़  के अनुसार तख़्त का लोभी तुगलक १३२५ में अपने अपहकर्ता पिता गियासुदीन की हत्या कर गद्दी पर बैठा था।  उसकी हत्या प्रणाली एक अनोखी थी , दिल्ली से एक पड़ाव दूर उसने काष्ठगृह बनाया , उस दिखावी  श्रद्धालु और विनम्र  पुत्र ने अपने पिता को एक रात इसमें आराम फरमाने की प्रार्थना की , सुल्तान गियासुदीन संध्या की शराबी दावत में बेहोश होकर बड़े आनंद से अपने शैतान पुत्र द्वारा तैयार  इस म्रत्यु  जाल में फंसे बेखबर झपकी ले रहे थे , की हांथी की एक टक्कर से सारा खांचा उसके सर पर आकर गिरा , कहीं सिर  चूर चूर होने से बच गया तो ?? इसलिए उसने इस मलबे में आग लगा दी , कहीं बेशर्म जान नहीं जली तो ???  आग बुझाने के बहाने इतना पानी बहाया , की कम से कम वो डूब  तो मरे।

इन शैतान मुसलमान  सुलतान के चारो और नीच मुस्लिम चापलूस लेखक चांदी  के चंद  सिक्को की खनक पे यह दिन को रात लिखने में भी संकोच नहीं करते थे। इस कुख्यात जाति  के दो खुशामदी टट्टू मुहम्मद तुगलक के पास भी थे।  एक था जियाउदीन बरनी और एक इब्न बतूता , बड़े दुःख के साथ में यह लिख रहा हूँ , की आँख मूंदकर इन बेशर्म  दलालो के झूठे रिकार्डो को भारतीय इतिहास का मूल आधार माना गया है।  इन दलालो और चापलूसों ने नारकीय यातनाओ के हाहाकार के बीच  रहकर भी क्रूर-कारनामो का सिलसिलेवार वर्णन नहीं किया है , फिर भी इन लोगो ने इन सुल्तानों के खुनी कारनामो की कई झांकिया प्रस्तुत की है , जहाँ जहाँ इन खुनी कारनामो का प्रसंग भी है , तो वहां निंदा नहीं।  साथ ही मुसलमानो को न्यायी बुद्धिमान और रहमदिल माना है।
यह हमारा इतिहास नहीं बाकि हमारे राष्ट्र का अपमान है , भारतीय इतिहास को इन चापलूसों ने कल्पना और चापलूसी की चासनी में ही रंग दिया है , इन खुनी मुसलमान  के झूठे और रंगीन वर्णन किशोर और छात्रों को रोज रटाने चाहिए , जो नरसंघार , बलात्कार और संघार में गर्क रहते थे।  जो समरकंद , गजनी और बुखारा के बाजारों में गुलामो को ओने पोने दामो में बेच देने के लिए हिन्दू स्त्रियों , बच्चो का थोक में निर्यात करते थे , इन सभी कारनामो को ताज पहनाने के लिए दिल्ली की लगभग सभी सड़को के नाम इन्ही दुस्टो के नाम पर रखे गए है।

किस प्रकार झूठ लिखने के लिए , अपने आप को इतिहासकार मानने वाले इन चापलूसों का पेट और जेब भरी जाती थी इसका रूप इब्न बतूता के सब्दो में ही देखिये , यह मुहम्मद के काले कारनामो को पोतने के लिए अफ्रिका से बुलाया गया था वह लिखता है  " दिल्ली पहुँचने पर राजा अनुपस्थित थे , मगर राजमाता ने मेरा स्वागत किया , उपहार में मुझे बेहतरीन कपडे , २००० दीनार , और रहने के लिए एक महल मिला , सुल्तान के लौटने पर मेरी और ज़्यादा खातिर हुई , मुझे ५००० दीनार  वार्षिक आय वाले गाँव , १० सुन्दर नारिया ( साफ़ है यह हिन्दू नारिया थी , जिन्हें वेश्यावर्ती के लिए इन्ही मुसलमानो ने घसीटा था , एक सजा सजाया घोडा , और ५००० दीनार  नगद प्राप्त हुए "

स्पष्ठ है की  मुस्लिम लेखको पर हिन्दुओ का लुटा हुआ माल समय समय पर बड़ी दरयादिली से न्योछावर किया जाता था , इससे उनका इस्लामी मुड़  बना रहता था , और अपने मालिको की झूठी बढ़ाई  हांकने में भी कमी नही रखते थे।

मगर अपने निरपेक्ष क्षनो में इब्न बतूता ने लिख मारा  है वही पेज ( ६११ )  मुहम्मद को खून बहाना , सभी बातो में सबसे अधिक पसंद था , , म्रत्युदंड प्राप्त व्यकि हमेशा उसके द्वार पर रखे जा सकते है , उसका उग्र और क्रूर कारनामा विख्यात हो चुका है , सुल्तानी महल के प्रथम भाग के बाहर कई मंच है , जिनपर बैठकर जललाद लोगो को हलाल करते थे , ऐसा रिवाज है की जब कभी सुल्तान किसी आदमी की हत्या की आज्ञा देता सभा होल में लाकर खड़ा कर दिया जाता , जहाँ उसका देह ३ दिन तक पड़ा रहता था , मेने जो कुछ भी उनकी दयालुता और नम्रता के बारे में लिखा है , उसके बावजूद सुलतान को खून खराबा बहुत पसंद है।  मेने प्रायः लोगो को हलाल होते , और वहां उनके पड़े शवो को देखा है  मै  एक दिन महल जा रहा था , की मेरा घोड़ा झिझका , मेने नजर उठायी तो देखा की ३ हिस्सो में एक आदमी का धड़ था , सुल्तान मामूली भूलो पर बड़ी कठोर यातनाये देते था , विध्वान , कुलीन , या धार्मिक किसी को नहीं छोड़ता था , रोजाना सेंकडो लोगो को जंजीरो में जकड़कर सभा हाल में लाया जाता , उनके हाथ पाँव एक दूसरे से बांधकर लाया जाता है , कुछ को मार दिया जाता , और बाकियो को कोड़े से उन्हें पीटा  जाता था।

कभी कभी स्पेशल ट्रेनिक प्राप्त पशुओ को भी इस काम पर नियुयक्त किया जाता था  " हक़ के आकार  के आकार  के चाक़ू से भी तीक्ष्ण लोहा नर - हत्यारे हांथियों को पहनाया जाता था , जब आदमी उसके आगे फेंके जाते , तो हांथी उन्हें चारो और उन्हें अपनी सूंड में लपेटकर हवा में उछाल देते थे , और उन्हें फिर अपने दांतो पर रोकर ज़मीन पर दे मारते थे  फिर हांथी उनपर अपना पाँव रख देते थे

इतना तो खुद बरनी ने भी सच कह ही दिया है,  सुल्तान ने अपना मानसिक संतुलन खो दिया है , अत्यंत आवेश की दुर्बलता में वह बहुत कठोर हो गया था , वह जंगली घास फुस की तरह लोगो को काटता था।   अपने पिता का खून अपने मुह पर पोतकर मुहम्मद तुगलक ने गद्दी पर बैठने के साथ ही , ही अपनी रियाया से ५ से १० प्रतिशत अधिक लगान वसूल करना शुरू कर दिया  ( कांग्रेस की धर्म - नीति सरकार  की तरह ) , इस काम में वह तब तक टेक्स बढ़ाता रहा, जब तक की जनता की कमर नहीं टूट गयी।  अपने ऊपर इन भारी  टेक्स के कारण जनता जंगलो में भागने लग गयी , जंगल में लोग रहने भी लगे , वहां भी एक सुखमय बस्ती बन गयी थी , मगर इस जल्लाद ने वहां भी अपने डाकू भेजकर जंगलो में आग लगा दी , वहां कोई भी ज़िंदा नहीं बच सका. कुछ लोगो को तो ज़बरदस्ती ही उसने शहर के बाहर उनकी सम्पति लूट कर निकाल दिया , लेकिन देवगिरि पहुंचकर वे सभी निराश होकर अपनी मौत की कामना करने लगे "

अब आपके लिए  जान्ने  लायक जरुरी बात _     देवगिरि  में बेस लोग सुलतान को  पत्र  लिखकर भद्दी भद्दी गालिया देते थे , हिन्दुओ के ही जाबाज उसे दरबार हाल में फ़ेखते , ताकि दूसरा उसे पढ़ ना पाए , जब सुल्तान उसे खोलते तो उन्हें ज्ञात होता की इनमे सिर्फ गालिया ही लिखी है , मुस्लिम इतिहासकार बढ़ाई  करते नहीं हांकते की देवगिरि को  पूर्णरूपी केंद्र बनाने के लिए उन्होंने देवगिरि अपनी राजधानी बदली थी।  इसके उल्ट बात सही यह है की उन गालियो से तंग आकर उसने दिल्ली दरबार को ही तहस नहस करने का मन बना लिया , सुल्तान ने दिल्ली में ढिंढोरा पिटवा दिया की दिल्ली में ३ दिन के बाद कोई ना रहे , , सब कुछ अच्छे से छान लिया की कोई रह तो नहीं गया है , उसके  गुलामो  ने गली में २ आदमियो को खोज निकाला , एक कोढ़ी था , और दूसरा अँधा , उन्होंने कोढ़ी को मारने की आज्ञा दी , और अंधे को दिल्ली से दौलताबाद तक घसीटकर ले जाने की सजा , यह ५० दिन का सफर था , रास्ते में उस बेचारे के अंग अंग बिखर गए , सिर्फ उसका एक पैर ही दौलताबाद पहुँच पाया।  एक दिन दिल्ली का अँधेरा देख के सुल्तान ने कहा , की अब मेरे कलेजे को ठंडक मिली है।

अब देवगिरि पहुंचकर देवगिरि की हिन्दू जनता के जीवन में इसने विष घोल दिया , , क्रुद्ध होकर हिन्दू जनता ने उसका जीना मुश्किल कर दिया , देवगिरि के आस पास हिन्दुओ की काफी ज़मीनो पर मुसलमानो की कब्र बन गयी थी , और देवगिरि से वापस बहुत थोड़े ही मुस्लिम लुटेरे वापस लौट पाए।

मुहम्मद ने देखा की उसका पागल प्लान देवगिरि में भी उसे शांति नहीं दे सका , क्यू की उसकी पापी छाया  जहाँ भी लोगो पर पड़ी , वहीँ के लोगो ने बगावत कर दी , फिर उसने दिल्ली कूच  किया , बलपूर्वक देवगिरि से वापस लाये दिल्ली के नागरिको की वापस आते आते ही हत्या या म्रत्यु हो गयी।   अब मुहम्मद में एक नया जोश उतपन्न हुआ , उसने विश्वविजय करने की ठानी , जो असम्भव था , इसलिए उसने ताँबे के सिक्के चलाये , और सोने चांदी  के बदले उनका प्रयोग होने लगा , इस पागल प्लान का उल्टा प्रभाव हुआ , कई नयी टकसाल खुल गयी ,  सोने और ताँबे का भाव बराबर हो गया , लोग सोने  चांदी  के सिक्के जमा करने लगे , और टेक्स ताँबे के सिक्को से भरने लगे।  खजाना ताँबे के सिक्को से भर गया , जब ताँबे के दाम मिटटी से कम हो गए , और उन्हें लेने वाला कोई ना रहा तो , गुस्से में अपना फैशला वापस ले उसने जनता के विरुद्ध ही तलवार निकाल ली ( पेज नंबर २५१ )

विश्वलुट  के लिए तयार करने के लिए डाकू सेना इक्क्ठा करने का मुहम्मदी इरादा फ़ैल हो गया , अब इसने इराक़ तथा ईरान पर नजर डाली , अपने मन में उसने यह लड्डू फोड़ लिए की घुश देकर इन देश के अफसरों को अपनी और मिलाया जा सकता है , वे लोग लोबहलुभवन प्रस्ताव लेकर सुल्तान के पास आये , और सुल्तान को ठग लिया , इच्छीत  दरबारी मिलाये नहीं जा सके , और जो मिले , वो किसी काम के नहीं थे , मगर हर हालात में उसका खजाना खाली हो गया।

हताश होने के बाद भी इस पागल की झुंझलाहट खत्म नहीं हुई , उसने खुरासान के विरुद्ध सेना इक्कठी करने का सोच लिया , , इस भर्ती दफ्तर में तीन दो पछत्तर हजार घोड़े  नामजद हुए , पुरे एक वर्ष तक इनको दाना पानी दिया गया।  मगर बाद में वेतन देने के लिए एक भी पैसा नहीं बचा , सभी ने अपना अपना रास्ता नाप लिया , अब यह विशाल गिद्ध के गिरोह ने हिन्दुओ को लूटना शुरू कर दिया।  #पुरोहितवाणी

पश्चिम में राज्य विस्तार का चंचल भाव फ़ैल हो गया तो क्या हुआ , अभी पूर्व तो बाकी पड़ा था , उसने तिब्बत पर आक्रमण करने की योजना बनायी , एक विशाल मुस्लिम सेना वहां भेजी गयी , जिस नगर या खेत से यह मुस्लिम सेना गुजरती वहां सिर्फ विनाश ही होता था , घर की बहने और पत्निया इन मुसलमानो की गुलाम या वेश्या बन जाती , इसी काल में हर जगह इसका विरोध होता रहा ,  इसको कहीं हिन्दुओ ने टिक के नहीं रहने दिया , मरते तो थे इनके हाथो , पर इसके कई प्रिय लोगो की कब्र भी हिन्दुओ ने बना दी थी।  यह जब तेलंगाना गया , तो वहां भी इसका प्लेज पहुच गया , पुरे तेलंगाना को इसने निचोड़ दिया , मगर यहाँ उसको दस्त लग गए , इसलिए वहां से इसे लौटना पड़ा , मार्ग में सुल्तान ने राजा भोज की प्राचीन राजधानी धारानगरी में पड़ाव डाला , मुहम्मद एक श्रापित व्यकि ही था , वह जहाँ पहुंचा उधर बर्बादी भी पहुँच गयी , मार्ग की सभी चोकिया और मंदिर उसने नष्ट कर दिए।  इसके काल में वह भुकमरी आ चुकी थी की इब्न बतूता लिखता है  की रास्ते में मेने देखा की एक औरत मरे हुए घोड़े की चमड़ी उतार उतार कर खा रही थी , इसके समय में ऐसा अकाल आया की आदमी आदमी को खा रहा था , और इस हालात में भी इसका हिन्दुओ को लूटना , सताना जारी था , एक तो भूखे, और बिना ही गलती  के उन्ही के  देश में उन्ही को कोड़े मारे जाने लगे।

 में इसका पूरा विवरण क्या लिखू अब।  मुझमे और हिम्मत नहीं , इसकी दुष्ठता को जो हमारे इतिहासकारो ने छुपा दिया , वो अंत में इसकी म्रत्यु से ३ वर्ष पहले यह खड़ा भी नहीं हो पाता था , और किस हाल में फिर मरा  होगा

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