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Friday, January 20, 2017

दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन

दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी



दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने भी पद्मिनी के अपूर्व सौंदर्य की कहानी सुनी। वह अपने आप को उसे पाने से रोक न सका। उसने चित्तौड़ पर चढ़ाई कर दी। लेकिन चित्तौड़ के वीरों के सामने उसकी एक न चली।
हारकर उसने धोखे से राणा रतन सिंह को बंदी बना लिया। उसने चित्तौड़ में यह सूचना भेज दी कि अब पद्मिनी को पाने पर ही रतन सिंह को मुक्त किया जाएगा।

महारानी पद्मिनी ने एक योजना बनाई कि सात सौ डोलियों में बैठकर चुने हुए वीर खिलजी के पास जाएं और रतन सिंह को मुक्त करा लाएं। डोलियों के कहारों की जगह भी वीर ही जाएं, किन्तु अलाउद्दीन को यही बताया जाए कि पद्मिनी अपनी सहेलियों के साथ उसके पास आई है।
रानी पद्मिनी ने प्रजा के दिल में आग की चिनगारियां सुलगा दीं। दो बालक-गोरा और बादल सामने आए और बोले, "मां, तू शक्ति है। तू धन्य है। हम रावल को छुड़ा लाएंगे। हमें आज्ञा दो, मां! हम दुश्मनों के खून की नदियां बहा देंगे।"
उन बालकों का साहस देखकर वीर सैनिकों के मुंह से निकला, "हम राजलक्ष्मी की रक्षा के लिए मर मिटेंगे, पर राजलक्ष्मी पर आंच भी न आने देंगे।

योजना के अनुसार अलाउद्दीन को समाचार भेजा गया कि रानी पद्मिनी अपनी सहेलियों के साथ आ रही हैं।
अलाउद्दीन उत्सुकता से पद्मिनी की प्रतीक्षा करने लगा। गोरा ने आगे आकर कहा, "हमारी महारानी आपसे मिलने से पहले रावल रतनसिंह से थोड़ी देर के लिए अकेले में मिलना चाहती हैं।"
अलाउद्दीन ने मंजूरी दे दी। लेकिन पद्मिनी के लौटने में देर देखकर वह स्वयं डोली के पास पहुंच गया। उसने डोली से परदा भी हटा दिया।

बस फिर क्या था, लड़ाई छिड़ गई। मार-काट होने लगी। गोरा-बादल की वीरता देखते ही बनती थी। दोनों गाजर-मूली की तरह यवनों को काट रहे थे। यवन सेना के पैर उखड़ गए। वह भाग खड़ी हुई।
इस भागदौड़ में रतन सिंह तो बचकर चित्तौड़ के किले में आ गए मगर गोरा घिर गया। वह वहीं वीरगति को प्राप्त हुआ।
इस पराजय से बादशाह तिलमिला उठा। उसने प्रतिज्ञा की कि वह पद्मिनी को पाकर ही रहेगा और चित्तौड़ को मिट्टी में मिला देगा। उसने बड़ी सेना लेकर चित्तौड़ पर दोबारा चढ़ाई कर दी। इस बार उसके साथ तोपें भी थीं।
तोपों की मार से चित्तौड़ की नींव हिल गई। जब विजय की कोई आशा न रही तो पद्मिनी जौहर की आग में कूद पड़ी।

उधर बादल शत्रुओं को मौत के घाट उतारता हुआ शहीद हो गया। चित्तौड़ श्मशान बन गया। वहां या तो जौहर की आग सुलगती थी या लाशों के ढेर।
अलाउद्दीन पागलों की तरह पद्मिनी को खोजता हुआ गढ़ में घुसा। लेकिन वहां आग की लपटें देखकर वह वापस लौट आया। उसे लगा कि पद्मिनी आग की लपटों में हंसती हुई दिखाई दे रही है और  गोरा-बादल हाथों में नंगी तलवारें लिए उसे चेतावनी दे रहे हैं कि लौट जा, पापी यहां की किसी भी वस्तु पर तेरा अधिकार नहीं।
भारतीय नारियों का एक वो इतिहास भी है जब मुसलमानो का गला काट देती या जौहर कर लेती लेकिन उनको अपने समीप देखना भी घोर पाप था

राजस्थानी लोकगीतों और गाथाओं में गोरा-बादल की वीरता का बखान आज भी उनकी याद को ताजा किए है।

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