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Wednesday, January 4, 2017

Taimoor lang ka khooni khel

तैमूर नाम नहीं भारत पर एक हरा घाव है , जो फिर से मुसलमान  सैफ अली खान ने उसे कुचरा  है।

ऐसा मालुम होता है की मुस्लिम खानदानो के तारतम्य ने हिन्दुओ का जो खून बहाया है , वो काफी नहीं था ,  इसलिए उसने हजार वर्षीय शाशन काल में तैमूर लंग , नादिरसाह , और अहमद अब्दाली जैसे स्पेशल आतंककारी हिंदुस्तान में आये , और अपनी तलवार से हिन्दुओ के घावो  को और चौड़ा  कर दिया , ताकि खून का प्रवाह कभी मंद ना हो , वास्तव में यह इस्लामी प्लेग थे , सिंधु नदी के इस पर आकर इन्होंने हिंदुस्तान की हरी भरी ज़मीं को तहस नहस कर डाला , तूफ़ान का तेज  झोंखा आया और चला गया , मगर पीछे खून का एक दलदल छोड़ गया , साथ ही अपने चाटने खाने वाले इस्लामी राक्चसो को यह भी बता दिया की अंधड़ का जोश क्या कर सकता है , मुस्लिम शासक जिस धर्मान्तरण के काम को करने में १५ बरस  लगाते , इन लोगो ने इसे १५ दिन में ही पूरा कर दिखाया।  मुझे आज पहाड़ो पर  भागते उन यजीदी महिलाओ और बच्चो में हमारे पूर्वज दिखाई देते है।

पंद्रहवी शताब्दी के अंत में हिंदुस्तान पर वज्र की तरह टूट पड़ने वाले इस्लामी प्रकोपो में से एक था , जन्म जात  राक्षस - तैमूर लंग ( तमर लेन  या सिर्फ तैमूर )
हैजे की तरह हिंदुस्तान की हत्या करने के लिए गद्दी पर बैठने वाले अंतिम मुसलमान  खानदान ( मुग़ल खानदान ) की रगो में इसी पाश्विक तैमूर का खून भी मिला हुआ था।

उस समय चारो और उथल पुथल मची हुई थी , अराजकता फैली हुई थी , हिंदुस्तान का रंगमंच मुस्लिम शाशको के पैशाचिक नाच के लिए एकदम तैयार था , सिर्फ पर्दा उठने की देर  थी , मुस्लिम शाशक फ़िरोजशाह तुगलक , जिसको भरम से लोगो ने देवता , विद्धवान , आविष्कर्ता, उद्धारक और ना जाने क्या क्या बना दिया , १३८८ में वह मर चुका था , उसकी आविष्कक प्रतिभा का जवाब नहीं था , उसने एक अनोखा मिक्सचर अविष्कार तैयार किया , उसने नगरकोट के हिनुमन्दिर ज्वालामुखी की प्रतिमा को पहले चूर चूर किया उसके बाद इस प्रतिमा का चूर्ण बनाकर इसे गौ  - मांस में  मिलाकर एक मिक्सचर तैयार  किया इस मिक्सचर को एक थैली में डालकर ब्राह्मणों की नाक पर बाँध दिया , ताकि वे सूंघ सके और घोड़े की भांति खा भी सके।

इसके बाद मुस्लिम शासको की स्तिथि यह थी की वो भारत के कई राज्य खुद को स्वतंत्र घोसित कर चुके थे , ठीक इसी समय १३६८ ईस्वी में हिंदुस्तान पर तैमूर का प्रकोप प्लेग बनकर फेल गया , इसके जहन्नुमी नाच ने केवल सारे उत्तरभारत को बर्बाद ही नहीं किया , वरन  वह अपने पीछे छोड़ गया धर्मान्तरण की भूखी मांद , कटी  सड़ी  गाये , मस्जिद और मकबरो में बदले हुए मंदिर तथा कुचली मसली लाशें।  गर्म गर्म लाल लोहो , , हषुओ , , तथा तलवारो से लोगो को काटने वाले यह लोग इस्लाम के स्वनियुक्त फ्री स्टायिल अत्याचार की भर्ती के अफसर थे , असंख्य हिन्दुओ को इन्होंने सता  सता  कर मुसलमान  बनाया था ,  आज करोडो लोग इस्लामी परम्परा का घमण्ड करते है , मगर इसका श्रेय कासिम , तैमूर , बाबर , अकबर आदि को जाता है।

क्रूर मुस्लिम परिवार में पैदा जन्मा तैमूर तुर्क था , कुछ लोग दावा करते है की तैमूर का पिता लुटेरे चंगेज खान के वंश से था , मुसलमान लोग यह दावा करते है की वो एक गरीब चरवाहा था , तैमूर के पिता छोटी मोटी  जमीन के जागीरदार थे , पिता का नाम तुरघाई  और माता का नाम तकिना खातून।

होनवार वीरवान के होत  चिक्ते  पात के अनुसार , बबचपन में ही तैमूर के धनवान होने के लक्छण पैदा ओने लगे थे , बड़ी जल्दी वह एक चेम्पियन हत्यारे के रूप में विकसित हो गया , उसने खानदानी कसाईगिरी में अपने बाप को भी मात दे दी।  अपनी बेजोड़ गिरोहबंदी से तैमूर कई छेत्रिय अभियानो में निखर  उठा और १५ वर्ष की आयु में ही तुर्किस्तान का सुल्तान बन बैठा।  में आपको बता दूँ , हिंदुस्तान के मुसलमानो की तरह तुर्किस्तान के मुसलमान भी अत्याचार और बलपूर्वक ही बनाये गए मुसलमान  है , टर्की में ३०० सालो तक प्रिंटिंग प्रेस इस्लामी कटटरपन्तियो ने बंद कर दी थी , और एक पूरी पीढ़ी को उसके इतिहास से महरूम रख दिया चाहे बाबर हो या गौरी सभी बलपूर्वक बनाए गए पूर्वजो की ही संतान थे , इसलिए हमें भारत के मुसलमानो को लेकर भी सजग हो ही जाना चाहिए।

लोग तैमूर से घ्रणा करते थे , शीघ्र ही उसे नया प्राप्त राज्य छोड़ मध्यपूर्व के जंगलो में भाग जाना पड़ा , अपने भाई बंध  अर्थात जंगली जानवरो के साथ सुखद साहचर्य में रहने के लिए। राहवनी के पेशे से वो कट्टर था , अपने निशाचरी कारनामो से उसने अपनी सीमा में आने वाले सभी घरो को आतंकित कर रखा था , गुंडों का कोई ना कोई गिरोह हमेशा उसके साथ तैयार रहता था , १३६६ में उसने समरकंद को जीता और एक बार फिर शाशक हो गया।  इस नए शाही दबदबे की आड़ में उसने खुरासन पर चढ़ाई कर दी और उसके शाशक को  मार डाला।  १३७० ईश्वी में उसके राजा होने की डुगडुगी भी बज गयी , अमीर  हुसेन पर तैमूर के पेशविक  आक्रमण का अंदाजा हम इस बात से लगा सकते है , की अमीर  हुसैन तैमूर का साला था , ह्रदय  से इस्लामी रीती को मानते हुए उसने अपने साले का खून कर दिया।  उस समय कोई शेक्सपीयर होता तो जरूर कहता ---- "धोखेबाजी तेरा नाम मुसलमान  है।"

नयी प्राप्त सम्पति की शक्ति से भरपूर कपट का सच्चाई से पालन करते हुए तैमूर ने आसपास के छेत्रो में लूट जारी रखी , एक एक कर वो ईरान , इराक़ , कंधार का दमन करता गया , अब उसके मन में भी दुनिया जितने की इस्लामी तम्मना पनपने लगी , इस तम्मना को दाना पानी देने के लिए उसने सामूहिक नरसंघार की फसल काटी , अपने ६६ वर्ष की जिंदगी में तैमूर ३५ बड़े अभियानों में निकला था , और  उसने पूर्व में हरिद्धार  से लेकर पश्चिम के करो तक के छेत्रो को रौंद  डाला था।  तैमूर के लिए काला  अक्षर भैंस बराबर था , उसके जंगली कारनामो को उसके अनेक चापलूसों ने लिखा है , की उसकी खुनी तलवार के निचे लोग कांपते थे।

तैमूर के खुनी शाशन में घटनाओ का रिकॉर्ड किस प्रकार रखा जाता था किस प्रकार तैमूर के दरबार में उस घटनाओ के लेख की प्रमाणिकता तथा प्रभाव की परीक्षा होती थी , उसका वर्णन  जफरनामा  ( विजय गाथा ) के लेखक शरफूदीन यजदी के तैमूर की मौत के ३० वर्ष बाद किया गया है।  यजदी बतलाता है " इन लेखों को साही  मौजूदगी में पेश किया जाता था , और बादशाह को पढ़कर सुनाया जाता था , ताकी  उसकी मंजूरी लेकर उसको सही किया जा सके।  आपको यह बतलाने की जरुरत नहीं है की जिंदगी भर लाखो आदमियो का कत्ल करने वाला तैमूर सच्चाई का गला  भी आसानी से घोट सकता था।  अतः उसका ज्जीवन चरित्र और कल्पना कोरी बकवास है का रंगीन खजाना है।  बाहुकम लिखी गयी मीठी स्तुतियो ,  बोगस दावो और मायावी मंजूरियों की ऊंचाई पर पड़ते इन बकवासी तारीफो के पुलिंदों को पढ़कर उसी तरंग में थिरकने लगते है , यह थिरकना एकदम बंद होना चाहिए।  बचपन के भोलेपन में पढ़े गए  गए यह सारे इतिहास अवैध घोषित  होने चाहिए।  .राष्ट्रनीठ हिंदुस्तान को चाहिए की उस तोतारटंत लेखों को राष्ट्रद्रोही लेख घोषित किये जाए।

भारत के सभी मुस्लिम विजेताओ और लुटेरो के अनुसार तैमूर भी यह सच्चाई से स्वीकार करता है की उसका इरादा चोरी करना , हत्या करना और यातना के जरिये हिन्दुओ को मुसलमान  बनाना, मंदिरो और महलो को छीन  कर उन्हें मकबरा या मस्जिद बना देना है।  मार्च १३६८ के आसपास उसने सिंधु नदी को कटक के रास्ते से पार किया ,और तुळुम्ब  के सारे निवाशियो को उसने मारकर सारा धन , अनाज इतियादी छीन  लिया था।  मध्यकालीन मुस्लिम सेनाये मारकाट , लूट और शीलहरण में ही लगी रहती थी जीवन के दिन बिताने का बस यही एक उपाय था।  मृतको के माल को खाकर उनकी सेनाये जिन्दा रहती थी , जी प्रकार सड़ी  गली चीज़ में कीड़े बुलबुलाते  रहते है , शराब पीना और बलात्कार करना ही इनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य था , जब उनका नरसंघार बंद रहता था तब पराजित देश से लूटकर लाये सामान की खरीद बिक्री करते थे , अपने आप को सजाने सवारने , लोगो  घुस देने के , तथा भारत की लूट , हत्या , बलात्कार और शराबखोरी के पापो की प्रायश्चित करने के लिए मक्का के गरीबो को दान देकर अपने लूटपाट के माल को खर्च करते थे।

इस उपजाऊ जमीन  में बाकि  हिन्दुओ की जिंदगी का गला  घोंटने के वाले , धर्मान्तरण इस्लाम के दम  घोंटने वाले वातावरण से आतंकित होकर कश्मीर के राजा ने संधि कर कश्मीर में मनमानी लूट मचाने की छूट दे दी।

वहां से आगे अंधकार वह जानवर उस नगर में उस नगर पहुंचा , इस नगर का नाम क्या है , इसका सही इतिहास ही मिटा दिया गया है , यहाँ तैमूर ने अपने स्वाभाव का जंगलीपन दिखाया , उसने उस वह्र्त कर्सी  केंद्र का सारा अन्न लूट लिया , जितना ढो  सकता था , लाद  लिया , बाकी का उसने जला  दिया।  ताकि उसकी तलवार से बच निकलने वाले लोग भूख की आग में जल मरे , सारे संसार में इस्लाम इन्ही तरीको से  इस्लाम धर्म इन्होंने भरा है , इस्लाम धर्म की दीक्षा के लिए लोगो को भूख से तड़पाया गया , कुचला गया , लुटा गया ,  कटार  भोंककर मारा गया , और तरह की यातना देकर सताया गया।  आंसुओ का कोई मूल्य उनके सामने नहीं था।  दया माया से उनका कोई नाता नहीं था , माँ - बाप के उन लोगो ने स्त्रियों और बच्चो का बलात्कार ही नहीं किया , बल्कि उनके बच्चो का ही मांस माँ - बाप के मुह में ठूंसा गया।  फ़तहबाद , रायपुर , और पानीपत होकर तैमूर दिल्ली आ धमका।  प्रत्येक नगर और ग्राम में उसने हत्या और हाहाकार का बाजार गर्म कर दिया  था , जो हिन्दू उसके हाथ में पड़ा हलाल हो गया , स्त्रियों का बलात्कार हुआ , बच्चो को या तो हलाल कर दिया गया , या उनका खतना हुआ , फिर भावी लुटेरा बनाने  लिए उन सबको अपने स्कूल में गुलाम बनाकर दाखिल कर दिया गया , सब घरो में आग लगा दी गयी।

मुल्तान , दीवलपुर,  सरसुती , कैथल , समाना  आदि नगरो में ढाये गए तैमूर के जुल्मो की कहानी उसके दिल्ली  पहुँचने से पहले ही यहाँ पहुँच गयी थी , इन घटनाओ को सुन सुन कर यहाँ के हिन्दू नगर सेनिको ने और नागरिको ने अपनी अपनी पत्नियों और बच्चो को चिता में डाल  दिया , बशर्ते उनको यह काम करने का समय मिला हो , या ऐसा करने का उनमे साहस रहा हो , जिससे यह मुस्लिम जानवर उनकी आँखों के सामने उन्हें भयंकर यातनाएं ना दे सके ,  सारे सामन को लूट लेने के बाद लोगो को नंगा कर के कोड़ो  से मारा जाता था , उनको यातना देने , उनको अपमानित करने , उनको खत्म करने  मैदान में लेजाकर लोगो को घोड़ो से बांधकर घसीटा जाता था , ओरतो का बलात्कार उनके खत्म कर दिया जाता था , अपने जैसा ही बर्बर बनाने के लिए लोगो को गुलाम बना दिया जाता था।

  मानव समाज में  के इतिहास में किसी भी धर्म या जाति  ने , यातना पीड़ा देकर , फेंफड़ा निकालकर , क़यामत बरपाकर , पाशविकता में बलात्कार करकर , हलाल कर , असहाय और अपंग  बनाकर , आँखे फोड़ कर , हड्डिया चूर चूर कर , जिन्दा जलाकर ,गर्म लोहो को दागकर , गुदा भोगकर , दीन  हिन् गुलाम बनाकर इतना जुल्म नहीं ढाया  है , जितना इन जानवरो ने इस्लाम के नाम पर अफ्रीका और फिलीपीन से लेकर कहर ढाया  है।  तैमूर इन जानवरो का शहजादा था , इसी के खून से खुनी हिंसक जानवरो की एक कतार तैयार हुई , इस कतार को "महान मुगलिया " खानदान कहते है।  १५१६ से लेकर १८५८ तक इस खानदान  ने हिंदुस्तान में अत्याचारो की मूसलाधार वर्षा की थी।

दिल्ली कूच  करने से पहले उसने अपना माल  अपने नगर भेज दिया था , यह सफर उसने जंगली रास्तो से तय किया , रस्ते में उसने २००० जाटों की हत्या की , उनकी पत्नियों को बंधक बनाया , तथा पशुधन समेत उनकी सारी  सम्पति को लूट लिया , उसने कहा  कैथल , और अस्पन्दि के सारे लोग काफिर या नास्तिक है , मतलब अल्लाह को ना मानने वाले।  लोग अपने बच्चो समेत घरो में आग लगाकर दिल्ली भाग गए , इसी के नाम से लोग जान लेकर भागते थे , इस इस्लामी प्लेग के एक एक मुस्लिम लुटेरो ने हमारे देश को नोच खाया ,  जो आज तक जारी है।

पानीपत के उजड़े दुर्ग भंडार में १० हजार टन  गेंहू उसे प्राप्त हुआ , लालची मुस्लिमो को नरहत्या कीआग में आज पानीपत के दुर्ग का नामोनिशान मिट चुका है।

तैमूर अब दिल्ली की और बढ़ता गया , पर कटे भयभीत नए धर्मन्तरणों से तैमूर की सेना फल फूल गयी, , अंदर भारत में रहने वाले मुस्लिम भी अपने इस हीरो का हाथ बहुत जोरो शोरो से बांटने लगे , सभी को उसने हथियार पकड़ने की आज्ञा दी , अतः  इन लोगो का नया जन्म होने वाला था , हर हिन्दू चीज़ पर कब्ज़ा कर लेना मुसलमानो की पाक ड्यूटी है।  इस छीना झपटी के इस इतिहास को  इन मायावी मुस्लिम इतिहासकारो ने मजाक बनाकर छोड़ दिया है , किया कुछ और , लिखा कुछ और।  हर मुसलमान भारत में भवन निर्माणों का श्रेय मुसलमानो को देते है , हर हिन्दू सम्पति को मुसलमानो की बनायी स्मृति बताकर केवल भयंकर भरम नहीं फैलाया है , बल्कि इसे अपने बाप का माल भी समझ लिया है।   यह मुस्लिम को हिन्दू आज जो फिर से छूट  देकर भाईचारा रख रहे है , सच्चाई यह है की इन्ही मुसलमानो के हाथो तुम्हारा पतन हो जाएगा।

इसके बाद तैमूर ने लोनी के दुर्ग को ध्वस्त किया , , यह यमुना की प्राचीन राजपूत नहर के बिच था , इस महल में राजपूतो के परिबार रहते थे , जहाँ उन्हें महल समेत ही आग लगाकर मार डाला गया।  उसमे बच्चे  , महिलाये , बूढ़े बुजर्ग सभी थे , तैमूर ने बारात में दिल्ली में आखिरी हमले से पहले एक लाख हिन्दुओ को कैद कर लिया , यह सभी कैदी एक साथ ही पड़ाव में लाये गए , दरबारियो ने सलाह दी की इनको जिंदाछोड़ना इस्लाम के कानून के खिलाफ है , उसने ऐलान कर दिया , की सभी इन काफिरो को हलाल कर दिया जाए , और वही हुआ , दिल्ली पर आखिर चढाई करने , और विजय प्राप्त करने ले लिए उसने एक लाख आदमियो को मार डाला , क्या अब मुझे आपको यह भी समझाना होगा की हिन्दुओ ने इतना दर्द झेला और उफ़ तक  नहीं की ??? अपनी जान उन्होंने दे दी , पर आन अपनी उन्होंने नहीं छोड़ी , , व्यभिचारी मुस्लिम बनने के बदले उन्हें धार्मिक हिन्दू बनकर मिट जाना स्वीकार था , तैमूर यह भी कहने में नहीं हिचका, की जो लोग राजपूतो के करीब जाने से डरते थे , आज उन्ही के पेट में खंजर घोंप घोंप वो गाजी बन रहे थे।

संकट की ऐसी घडी में कमजो र सुल्तान  महमूद तुगलक 2TH दिल्ली पर राज्य करता था , यमुना नदी के तट  पर तम्बू लगाकर तैमूर की लुटेरी सेना गिद्धों और भेडियो की भांति ग्रामीणों पर टूट पड़ी।  प्रत्येक दिन सुल्तान और तैमूर की सेना में झड़पे होने लगी।

ऐसा मालुम होता है की मुस्लिम खानदानो के तारतम्य ने हिन्दुओ का जो खून बहाया है , वो काफी नहीं था ,  इसलिए उसने हजार वर्षीय शाशन काल में तैमूर लंग , नादिरसाह , और अहमद अब्दाली जैसे स्पेशल आतंककारी हिंदुस्तान में आये , और अपनी तलवार से हिन्दुओ के घावो  को और चौड़ा  कर दिया , ताकि खून का प्रवाह कभी मंद ना हो , वास्तव में यह इस्लामी प्लेग थे , सिंधु नदी के इस पर आकर इन्होंने हिंदुस्तान की हरी भरी ज़मीं को तहस नहस कर डाला , तूफ़ान का तेज  झोंखा आया और चला गया , मगर पीछे खून का एक दलदल छोड़ गया , साथ ही अपने चाटने खाने वाले इस्लामी राक्चसो को यह भी बता दिया की अंधड़ का जोश क्या कर सकता है , मुस्लिम शासक जिस धर्मान्तरण के काम को करने में १५ बरस  लगाते , इन लोगो ने इसे १५ दिन में ही पूरा कर दिखाया।  मुझे आज पहाड़ो पर  भागते उन यजीदी महिलाओ और बच्चो में हमारे पूर्वज दिखाई देते है।

पंद्रहवी शताब्दी के अंत में हिंदुस्तान पर वज्र की तरह टूट पड़ने वाले इस्लामी प्रकोपो में से एक था , जन्म जात  राक्षस - तैमूर लंग ( तमर लेन  या सिर्फ तैमूर )
हैजे की तरह हिंदुस्तान की हत्या करने के लिए गद्दी पर बैठने वाले अंतिम मुसलमान  खानदान ( मुग़ल खानदान ) की रगो में इसी पाश्विक तैमूर का खून भी मिला हुआ था।

उस समय चारो और उथल पुथल मची हुई थी , अराजकता फैली हुई थी , हिंदुस्तान का रंगमंच मुस्लिम शाशको के पैशाचिक नाच के लिए एकदम तैयार था , सिर्फ पर्दा उठने की देर  थी , मुस्लिम शाशक फ़िरोजशाह तुगलक , जिसको भरम से लोगो ने देवता , विद्धवान , आविष्कर्ता, उद्धारक और ना जाने क्या क्या बना दिया , १३८८ में वह मर चुका था , उसकी आविष्कक प्रतिभा का जवाब नहीं था , उसने एक अनोखा मिक्सचर अविष्कार तैयार किया , उसने नगरकोट के हिनुमन्दिर ज्वालामुखी की प्रतिमा को पहले चूर चूर किया उसके बाद इस प्रतिमा का चूर्ण बनाकर इसे गौ  - मांस में  मिलाकर एक मिक्सचर तैयार  किया इस मिक्सचर को एक थैली में डालकर ब्राह्मणों की नाक पर बाँध दिया , ताकि वे सूंघ सके और घोड़े की भांति खा भी सके।

इसके बाद मुस्लिम शासको की स्तिथि यह थी की वो भारत के कई राज्य खुद को स्वतंत्र घोसित कर चुके थे , ठीक इसी समय १३६८ ईस्वी में हिंदुस्तान पर तैमूर का प्रकोप प्लेग बनकर फेल गया , इसके जहन्नुमी नाच ने केवल सारे उत्तरभारत को बर्बाद ही नहीं किया , वरन  वह अपने पीछे छोड़ गया धर्मान्तरण की भूखी मांद , कटी  सड़ी  गाये , मस्जिद और मकबरो में बदले हुए मंदिर तथा कुचली मसली लाशें।  गर्म गर्म लाल लोहो , , हषुओ , , तथा तलवारो से लोगो को काटने वाले यह लोग इस्लाम के स्वनियुक्त फ्री स्टायिल अत्याचार की भर्ती के अफसर थे , असंख्य हिन्दुओ को इन्होंने सता  सता  कर मुसलमान  बनाया था ,  आज करोडो लोग इस्लामी परम्परा का घमण्ड करते है , मगर इसका श्रेय कासिम , तैमूर , बाबर , अकबर आदि को जाता है।

क्रूर मुस्लिम परिवार में पैदा जन्मा तैमूर तुर्क था , कुछ लोग दावा करते है की तैमूर का पिता लुटेरे चंगेज खान के वंश से था , मुसलमान लोग यह दावा करते है की वो एक गरीब चरवाहा था , तैमूर के पिता छोटी मोटी  जमीन के जागीरदार थे , पिता का नाम तुरघाई  और माता का नाम तकिना खातून।

होनवार वीरवान के होत  चिक्ते  पात के अनुसार , बबचपन में ही तैमूर के धनवान होने के लक्छण पैदा ओने लगे थे , बड़ी जल्दी वह एक चेम्पियन हत्यारे के रूप में विकसित हो गया , उसने खानदानी कसाईगिरी में अपने बाप को भी मात दे दी।  अपनी बेजोड़ गिरोहबंदी से तैमूर कई छेत्रिय अभियानो में निखर  उठा और १५ वर्ष की आयु में ही तुर्किस्तान का सुल्तान बन बैठा।  में आपको बता दूँ , हिंदुस्तान के मुसलमानो की तरह तुर्किस्तान के मुसलमान भी अत्याचार और बलपूर्वक ही बनाये गए मुसलमान  है , टर्की में ३०० सालो तक प्रिंटिंग प्रेस इस्लामी कटटरपन्तियो ने बंद कर दी थी , और एक पूरी पीढ़ी को उसके इतिहास से महरूम रख दिया चाहे बाबर हो या गौरी सभी बलपूर्वक बनाए गए पूर्वजो की ही संतान थे , इसलिए हमें भारत के मुसलमानो को लेकर भी सजग हो ही जाना चाहिए।

लोग तैमूर से घ्रणा करते थे , शीघ्र ही उसे नया प्राप्त राज्य छोड़ मध्यपूर्व के जंगलो में भाग जाना पड़ा , अपने भाई बंध  अर्थात जंगली जानवरो के साथ सुखद साहचर्य में रहने के लिए। राहवनी के पेशे से वो कट्टर था , अपने निशाचरी कारनामो से उसने अपनी सीमा में आने वाले सभी घरो को आतंकित कर रखा था , गुंडों का कोई ना कोई गिरोह हमेशा उसके साथ तैयार रहता था , १३६६ में उसने समरकंद को जीता और एक बार फिर शाशक हो गया।  इस नए शाही दबदबे की आड़ में उसने खुरासन पर चढ़ाई कर दी और उसके शाशक को  मार डाला।  १३७० ईश्वी में उसके राजा होने की डुगडुगी भी बज गयी , अमीर  हुसेन पर तैमूर के पेशविक  आक्रमण का अंदाजा हम इस बात से लगा सकते है , की अमीर  हुसैन तैमूर का साला था , ह्रदय  से इस्लामी रीती को मानते हुए उसने अपने साले का खून कर दिया।  उस समय कोई शेक्सपीयर होता तो जरूर कहता ---- "धोखेबाजी तेरा नाम मुसलमान  है।"

नयी प्राप्त सम्पति की शक्ति से भरपूर कपट का सच्चाई से पालन करते हुए तैमूर ने आसपास के छेत्रो में लूट जारी रखी , एक एक कर वो ईरान , इराक़ , कंधार का दमन करता गया , अब उसके मन में भी दुनिया जितने की इस्लामी तम्मना पनपने लगी , इस तम्मना को दाना पानी देने के लिए उसने सामूहिक नरसंघार की फसल काटी , अपने ६६ वर्ष की जिंदगी में तैमूर ३५ बड़े अभियानों में निकला था , और  उसने पूर्व में हरिद्धार  से लेकर पश्चिम के करो तक के छेत्रो को रौंद  डाला था।  तैमूर के लिए काला  अक्षर भैंस बराबर था , उसके जंगली कारनामो को उसके अनेक चापलूसों ने लिखा है , की उसकी खुनी तलवार के निचे लोग कांपते थे।

तैमूर के खुनी शाशन में घटनाओ का रिकॉर्ड किस प्रकार रखा जाता था किस प्रकार तैमूर के दरबार में उस घटनाओ के लेख की प्रमाणिकता तथा प्रभाव की परीक्षा होती थी , उसका वर्णन  जफरनामा  ( विजय गाथा ) के लेखक शरफूदीन यजदी के तैमूर की मौत के ३० वर्ष बाद किया गया है।  यजदी बतलाता है " इन लेखों को साही  मौजूदगी में पेश किया जाता था , और बादशाह को पढ़कर सुनाया जाता था , ताकी  उसकी मंजूरी लेकर उसको सही किया जा सके।  आपको यह बतलाने की जरुरत नहीं है की जिंदगी भर लाखो आदमियो का कत्ल करने वाला तैमूर सच्चाई का गला  भी आसानी से घोट सकता था।  अतः उसका ज्जीवन चरित्र और कल्पना कोरी बकवास है का रंगीन खजाना है।  बाहुकम लिखी गयी मीठी स्तुतियो ,  बोगस दावो और मायावी मंजूरियों की ऊंचाई पर पड़ते इन बकवासी तारीफो के पुलिंदों को पढ़कर उसी तरंग में थिरकने लगते है , यह थिरकना एकदम बंद होना चाहिए।  बचपन के भोलेपन में पढ़े गए  गए यह सारे इतिहास अवैध घोषित  होने चाहिए।  .राष्ट्रनीठ हिंदुस्तान को चाहिए की उस तोतारटंत लेखों को राष्ट्रद्रोही लेख घोषित किये जाए।

भारत के सभी मुस्लिम विजेताओ और लुटेरो के अनुसार तैमूर भी यह सच्चाई से स्वीकार करता है की उसका इरादा चोरी करना , हत्या करना और यातना के जरिये हिन्दुओ को मुसलमान  बनाना, मंदिरो और महलो को छीन  कर उन्हें मकबरा या मस्जिद बना देना है।  मार्च १३६८ के आसपास उसने सिंधु नदी को कटक के रास्ते से पार किया ,और तुळुम्ब  के सारे निवाशियो को उसने मारकर सारा धन , अनाज इतियादी छीन  लिया था।  मध्यकालीन मुस्लिम सेनाये मारकाट , लूट और शीलहरण में ही लगी रहती थी जीवन के दिन बिताने का बस यही एक उपाय था।  मृतको के माल को खाकर उनकी सेनाये जिन्दा रहती थी , जी प्रकार सड़ी  गली चीज़ में कीड़े बुलबुलाते  रहते है , शराब पीना और बलात्कार करना ही इनके जीवन का एकमात्र उद्देश्य था , जब उनका नरसंघार बंद रहता था तब पराजित देश से लूटकर लाये सामान की खरीद बिक्री करते थे , अपने आप को सजाने सवारने , लोगो  घुस देने के , तथा भारत की लूट , हत्या , बलात्कार और शराबखोरी के पापो की प्रायश्चित करने के लिए मक्का के गरीबो को दान देकर अपने लूटपाट के माल को खर्च करते थे।

इस उपजाऊ जमीन  में बाकि  हिन्दुओ की जिंदगी का गला  घोंटने के वाले , धर्मान्तरण इस्लाम के दम  घोंटने वाले वातावरण से आतंकित होकर कश्मीर के राजा ने संधि कर कश्मीर में मनमानी लूट मचाने की छूट दे दी।

वहां से आगे अंधकार वह जानवर उस नगर में उस नगर पहुंचा , इस नगर का नाम क्या है , इसका सही इतिहास ही मिटा दिया गया है , यहाँ तैमूर ने अपने स्वाभाव का जंगलीपन दिखाया , उसने उस वह्र्त कर्सी  केंद्र का सारा अन्न लूट लिया , जितना ढो  सकता था , लाद  लिया , बाकी का उसने जला  दिया।  ताकि उसकी तलवार से बच निकलने वाले लोग भूख की आग में जल मरे , सारे संसार में इस्लाम इन्ही तरीको से  इस्लाम धर्म इन्होंने भरा है , इस्लाम धर्म की दीक्षा के लिए लोगो को भूख से तड़पाया गया , कुचला गया , लुटा गया ,  कटार  भोंककर मारा गया , और तरह की यातना देकर सताया गया।  आंसुओ का कोई मूल्य उनके सामने नहीं था।  दया माया से उनका कोई नाता नहीं था , माँ - बाप के उन लोगो ने स्त्रियों और बच्चो का बलात्कार ही नहीं किया , बल्कि उनके बच्चो का ही मांस माँ - बाप के मुह में ठूंसा गया।  फ़तहबाद , रायपुर , और पानीपत होकर तैमूर दिल्ली आ धमका।  प्रत्येक नगर और ग्राम में उसने हत्या और हाहाकार का बाजार गर्म कर दिया  था , जो हिन्दू उसके हाथ में पड़ा हलाल हो गया , स्त्रियों का बलात्कार हुआ , बच्चो को या तो हलाल कर दिया गया , या उनका खतना हुआ , फिर भावी लुटेरा बनाने  लिए उन सबको अपने स्कूल में गुलाम बनाकर दाखिल कर दिया गया , सब घरो में आग लगा दी गयी।

मुल्तान , दीवलपुर,  सरसुती , कैथल , समाना  आदि नगरो में ढाये गए तैमूर के जुल्मो की कहानी उसके दिल्ली  पहुँचने से पहले ही यहाँ पहुँच गयी थी , इन घटनाओ को सुन सुन कर यहाँ के हिन्दू नगर सेनिको ने और नागरिको ने अपनी अपनी पत्नियों और बच्चो को चिता में डाल  दिया , बशर्ते उनको यह काम करने का समय मिला हो , या ऐसा करने का उनमे साहस रहा हो , जिससे यह मुस्लिम जानवर उनकी आँखों के सामने उन्हें भयंकर यातनाएं ना दे सके ,  सारे सामन को लूट लेने के बाद लोगो को नंगा कर के कोड़ो  से मारा जाता था , उनको यातना देने , उनको अपमानित करने , उनको खत्म करने  मैदान में लेजाकर लोगो को घोड़ो से बांधकर घसीटा जाता था , ओरतो का बलात्कार उनके खत्म कर दिया जाता था , अपने जैसा ही बर्बर बनाने के लिए लोगो को गुलाम बना दिया जाता था।

  मानव समाज में  के इतिहास में किसी भी धर्म या जाति  ने , यातना पीड़ा देकर , फेंफड़ा निकालकर , क़यामत बरपाकर , पाशविकता में बलात्कार करकर , हलाल कर , असहाय और अपंग  बनाकर , आँखे फोड़ कर , हड्डिया चूर चूर कर , जिन्दा जलाकर ,गर्म लोहो को दागकर , गुदा भोगकर , दीन  हिन् गुलाम बनाकर इतना जुल्म नहीं ढाया  है , जितना इन जानवरो ने इस्लाम के नाम पर अफ्रीका और फिलीपीन से लेकर कहर ढाया  है।  तैमूर इन जानवरो का शहजादा था , इसी के खून से खुनी हिंसक जानवरो की एक कतार तैयार हुई , इस कतार को "महान मुगलिया " खानदान कहते है।  १५१६ से लेकर १८५८ तक इस खानदान  ने हिंदुस्तान में अत्याचारो की मूसलाधार वर्षा की थी।

दिल्ली कूच  करने से पहले उसने अपना माल  अपने नगर भेज दिया था , यह सफर उसने जंगली रास्तो से तय किया , रस्ते में उसने २००० जाटों की हत्या की , उनकी पत्नियों को बंधक बनाया , तथा पशुधन समेत उनकी सारी  सम्पति को लूट लिया , उसने कहा  कैथल , और अस्पन्दि के सारे लोग काफिर या नास्तिक है , मतलब अल्लाह को ना मानने वाले।  लोग अपने बच्चो समेत घरो में आग लगाकर दिल्ली भाग गए , इसी के नाम से लोग जान लेकर भागते थे , इस इस्लामी प्लेग के एक एक मुस्लिम लुटेरो ने हमारे देश को नोच खाया ,  जो आज तक जारी है।

पानीपत के उजड़े दुर्ग भंडार में १० हजार टन  गेंहू उसे प्राप्त हुआ , लालची मुस्लिमो को नरहत्या कीआग में आज पानीपत के दुर्ग का नामोनिशान मिट चुका है।

तैमूर अब दिल्ली की और बढ़ता गया , पर कटे भयभीत नए धर्मन्तरणों से तैमूर की सेना फल फूल गयी, , अंदर भारत में रहने वाले मुस्लिम भी अपने इस हीरो का हाथ बहुत जोरो शोरो से बांटने लगे , सभी को उसने हथियार पकड़ने की आज्ञा दी , अतः  इन लोगो का नया जन्म होने वाला था , हर हिन्दू चीज़ पर कब्ज़ा कर लेना मुसलमानो की पाक ड्यूटी है।  इस छीना झपटी के इस इतिहास को  इन मायावी मुस्लिम इतिहासकारो ने मजाक बनाकर छोड़ दिया है , किया कुछ और , लिखा कुछ और।  हर मुसलमान भारत में भवन निर्माणों का श्रेय मुसलमानो को देते है , हर हिन्दू सम्पति को मुसलमानो की बनायी स्मृति बताकर केवल भयंकर भरम नहीं फैलाया है , बल्कि इसे अपने बाप का माल भी समझ लिया है।   यह मुस्लिम को हिन्दू आज जो फिर से छूट  देकर भाईचारा रख रहे है , सच्चाई यह है की इन्ही मुसलमानो के हाथो तुम्हारा पतन हो जाएगा।

इसके बाद तैमूर ने लोनी के दुर्ग को ध्वस्त किया , , यह यमुना की प्राचीन राजपूत नहर के बिच था , इस महल में राजपूतो के परिबार रहते थे , जहाँ उन्हें महल समेत ही आग लगाकर मार डाला गया।  उसमे बच्चे  , महिलाये , बूढ़े बुजर्ग सभी थे , तैमूर ने बारात में दिल्ली में आखिरी हमले से पहले एक लाख हिन्दुओ को कैद कर लिया , यह सभी कैदी एक साथ ही पड़ाव में लाये गए , दरबारियो ने सलाह दी की इनको जिंदाछोड़ना इस्लाम के कानून के खिलाफ है , उसने ऐलान कर दिया , की सभी इन काफिरो को हलाल कर दिया जाए , और वही हुआ , दिल्ली पर आखिर चढाई करने , और विजय प्राप्त करने ले लिए उसने एक लाख आदमियो को मार डाला , क्या अब मुझे आपको यह भी समझाना होगा की हिन्दुओ ने इतना दर्द झेला और उफ़ तक  नहीं की ??? अपनी जान उन्होंने दे दी , पर आन अपनी उन्होंने नहीं छोड़ी , , व्यभिचारी मुस्लिम बनने के बदले उन्हें धार्मिक हिन्दू बनकर मिट जाना स्वीकार था , तैमूर यह भी कहने में नहीं हिचका, की जो लोग राजपूतो के करीब जाने से डरते थे , आज उन्ही के पेट में खंजर घोंप घोंप वो गाजी बन रहे थे।

संकट की ऐसी घडी में कमजो र सुल्तान  महमूद तुगलक 2TH दिल्ली पर राज्य करता था , यमुना नदी के तट  पर तम्बू लगाकर तैमूर की लुटेरी सेना गिद्धों और भेडियो की भांति ग्रामीणों पर टूट पड़ी।  प्रत्येक दिन सुल्तान और तैमूर की सेना में झड़पे होने लगी।

१९ -१२ १३५८ को तैमूर के लुटेरे दिल्ली में घुस गए ,  एक दरवाजे से अपनी जान बचाकर सुल्तान और दूसरे दरवाजे से जान बचाकर सेनापति मल्ले  खान नो दो ग्यारह हो गए , मुस्लिम गिद्धों का खुराक बनने के लिए वहां की हूँ जनता रह गयी ,

इस घटना का विवरण जफरनामा ने कुछ इस तरह है  ( पेज संख्या  ४४६ से ४४९ तक )

इस खुनी दर्शय का रोमांचकारी वर्णन करते हुए तैमूर कहता है की  " सिपाही हिन्दू को पकड़ने के लिए जब उनकी सेना आगे बढ़ी तो बहुत से हिन्दुओ ने अपनी तलवार खिंच ली , इस लड़ाई में लगी आग  सब कुछ जलाते हुए शोरी  दिल्ली पहुँच गयी ,  क्रोधित होकर तुर्क काटने और लूटने में लग गए , हिन्दुओ ने अपने अपने घरो में आग लगा दी , और अपनी पत्नियों और बच्चो को भी उसी में झोंक दिया , फिर लड़ने दौड़े और मारे गए , हिन्दुओ ने इस लड़ाई में बहुत ही वीरता और फुर्ती दिखाई , बृहस्पतिवार और शुक्रवार १५००० मुस्लिम लुटेरे सारी  रात और दिन काटने और लूटने में लगे रहे , शुक्रवार की सुबह तो सेना मुझसे बेकाबू हो गयी , शहर में मेरे लोगो ने कुछ सोच विचार  नहीं किया , काटने , लूटने , ओर बंदी बनाने में लीन हो गए , सारे दिन काटमार चलती रही ( क्यू की वह शुक्रवार था , हलाल और जिबह  करने के लिए मुसलमानो के लिए पाक दिन था )
दूसरे दिन शनिवार था , और सब कुछ वैसे ही चल रहां था , लूट इतनी ज़्यादा थी की हर आदमी के पास पचास से १०० तक कैदी थे , जिसमे सारे महिलाये और बच्चे थे ( साथ में हिरे और जवारात भी ) हिरे जवाहरात , माणिक , मोती , सोने चांदी  के बर्तन , और गहने अशर्फी  और महंगे रेशम के कपडे सहित बहुत लूट का माल हमारे हाथ लगा , हिन्दू ओरतो से सोने चांदी  के गहने इतने मिले की जिसका कोई हिसाब नहीं था।  इन सभी पैसो को इन लुटेरो ने अरब के गरीबो में या काबा में जाकर बहाया।

तैमूर आगे लिखता है ,  शनिवार को मुझे यह बताया गया की बहुत ससे हिन्दू हथियार और राशन लेकर जामा मस्जिद में जमा हो गए , और बचाव की तयारी कर रहे थे , मेरे कुछ आदमी उधर से आ रहे थे , हिन्दुओ ने उन्हें घायल कर  दिया , , मेने तुरंत अमीरशाह मालिक को अल्लाह के घर से काफिरो को निकालने का आदेश दे दिया।  वहां हमला कर सभी काफिरो को खत्म किया गया , इसके बाद पूरी दिल्ली लूट ली गयी।

इससे यह साफ़ साफ़ पता चलता है की शाहजहां के तो २०० साल पहले ही जामा  मस्जिद थी , यह भी मंदिर को तोड़कर ही बनायी गयी थी , तैमूर आगे कहता है फिर मेने दिल्ली रुकने में ज़्यादा रूचि नहीं ली , क्यू की दिल्ली पूरा खाली हो चुका था , १५ दिन की हाय  और हत्या के बाद तैमूर ने दिल्ली छोड़ने में बड़ी जल्दबाजी की , इसका कारण था बग़दाद की जनता वहां उसके गुर्गो केविरुद्ध खड़ी हो गयी थी।
वापस लौटते समय उसने बागपत , मेरठ , हरिद्वार , जम्मू , नगरकोट आदि में भी खूब तबाही की , लगभग सभी हिन्दुओ को वहां हलाल कर दिया गया , कश्मीर के काफ़िर राजा को यातना दे दे कर इन्होंने मुसलमान बना दिया ,  गाय मारकर उसने हिन्दुओ को खाने पर मजबू किया , लुटा हुआ सारा धन वो अपने साथ बटोरकर ले गया।  ऐसे अनेक हिन्दू राजा और प्रजा को मारकर अपंग  कर , अपमानित कर , धर्मान्तरित कर , जाते जाते भी मुल्तान लाहौर देवलपुर में उत्पात मचाने के लिए अपने लुटेरे व्यभिचारी गुर्गो की छोड़ दिया।  बगदाद पहुंचकर भी विद्रोह दबाने के नाम पर उसने एक लाख लोगो का खून पिया।

खुनी नरसंघार और नरशंग  बलात्कारों के रोमांचकारी वर्णनों से इन विचित्र मुस्लिम इतिहासो का प्रत्येक पन्ना खून से लाल है , मगर बिच बिच में कई मजेदार प्रसंग आ जाते है जो अज्ञान का भंडा बीच  चोराहे  पर फोड़ देते है।  कुछ इतिहासकार तैमूर को सुन्नी  साबित करते है , जबकि वास्तव में वह एक कट्टर शिया मुसलमान  था , इसलिए हिन्दुओ  को इन शिया मुसलमानो को लेकर जो वहम  है , वो भी समाप्त हो जाना चाहिए।

लोग कहते है तैमूर के ४ पुत्र थे , मगर हरम में घुसकर सांड की  तरह कितनी महिलाओ का बलात्कार कर इसने कितनी  संताने पैदा की इसका कोई हिसाब इन मायावी मुसलमान इतिहासकारो ने नहीं रखा।   उसने अपने पोते मुहम्मद को अपना वारिस बनाया , मगर परम्परागत मुस्लिम रिवाजो के अनुसार दूसरे पोते खलील ने उसकी हत्या करवा सुल्तानी का नगाड़ा पीट  दिया , इसके बाद फिर इस्लामी चक्र ऐसा चला की उसका चाचा यानी तैमूर का बेटा  गद्दी पर आ गया

मशान और चिमटे तथा तलवार और कटार  लेकर इस्लाम का प्रचार करने वाले अग्रणी राक्षसों - संतो में तैमूर का नाम अग्रणी है।

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