रामायण भाग 4
लगातार राक्षसों , महिलाओं, पुरषो, और बच्चो पर बढ़ते अत्याचार के कारण विश्वमित्र ने घृणा को पोषित करना शुरू कर दिया, उनके मन में राक्षसों को लेकर अब कोई दया भावना नहीं थी, विश्वमित्र अब समाज सुधार की सारी भावनाओ का त्याग कर राक्षसों और उनके समर्थकों का पूर्ण संघार चाहते थे, विश्वमित्र अब उन लोगो का भी संघार चाहते थे जो इन राक्षसी कृत्यों में किसी ना किसी तरह लिप्त थे, या उनके समर्थन में, अपने मन में विशाल घृणा को पोषित कर चुके विश्वमित्र अब उन लोगो का भी संघार चाहते थे , जो इन राक्षसों को लेकर थोड़ी बहुत भी दया भावना रखते थे ।। बालि जैसे निरपेक्ष लोगो का संघार विश्वमित्र रावण से भी पहले चाहते थे ।।
जो अपनी मृत माता का शव लेकर पीड़ित बालिकाएं आयी थी, वे अब भी विश्वमित्र के चरणों में बैठी थी, विश्वमित्र उठे !! उठो पुत्रियों , क्या तुम्हारी रक्षा के लिए ग्रामवन्धु से कोई आर्य नहीं आया ??
ऋषिवर !! यह तो आत्महत्या करने जैसा होता, सारे ग्राम जला दिए जाते, सारे पुरषो की हत्या हो जाती, बाकी स्त्रियों की भी वही दशा होती, जो आज हमारी है ।।
आर्यो का तो कोई वैध उपचार तक नहीं करता, इतने शक्तिशाली है वो राक्षस ।। बालिकाओं की आँखों में मृत्यु का भय छा गया, कहीं उनके पता चल गया, की यह सब मेने दुसरे ग्राम के ऋषि या आर्यो को बताया तो, वो फिर से उससे भी कहीं अधिक उत्पात मचाएंगे, और अत्याचार करेंगे ।।
तेज प्रज्ज्वलित स्वर में विश्वमित्र बोले, म्रत्यु के भय से कायर मत बनो ।। जो कुछ घटित हुआ है, वो क्या किसी मृत्यु से कम है?? तुम पिछड़ी जाति के दलित बनकर रह जाओगे, अगर अत्याचारों का विरोध नहीं किये तो, वाद में दलित से राक्षस बनने में कितना समय लगता है?? दरिद्र मनुष्य के मन में ही राक्षसी भाव जन्म लेते है ।। और वो हिंसक हो उठता है, यह एक मनोवैज्ञानिक कारण भी है ।।
नाम बताओ इस राक्षस का कौन है आखिर यह, रावण तो नहीं है???
में तुम्हारी रक्षा में दसरथ से कहकर सैनिक लगवा दूंगा बताओ उसका नाम?
बालिकाए कांपते स्वर में बोली, ऋषिवर महाराज दशरथ के सेनापति बहुस्लव का पुत्र देवप्रिय ही है, जो इस प्रकार के अत्याचार कर रहा है ।।
विश्वमित्र का मस्तिक एक दम झनझना गया, स्वमं शाशन प्रतिनिधि का पुत्र ही राक्षसी कृत्य करेगा, तो न्याय कौन करेगा ??
विश्वमित्र की आँखे आकाश को भेद देने के लिए ऊपर उठी, इस बार विश्वमित्र की आँखों में द्रढ़ता थी, वज्र की सी ।।
बोले - जब शाशक राक्षस हो जाए, तो न्याय का कर्तव्य एक ऋषि का होता है ।।
अब आगे का कल के भाग में
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