Search This Blog

Friday, January 27, 2017

हमारा_धर्मयुद्ध ------ विश्वविजयी राम की अद्भुत शौर्य गाथा ।।

#हमारा_धर्मयुद्ध ------ विश्वविजयी राम की अद्भुत शौर्य गाथा ।।

आर्यो की उदासीनता के कारण रावण के विस्तारवादी मार्ग में अब कोई बाधा  ही नहीं है , जिस समय खुद के दिव्यस्त्रों से लड़ना चाहिए , आपातकाल में आर्य देवताओ के पास जाते है , उन शस्त्रो  के लिए , अपनी रक्षा के लिए भी उन्हें देवताओ के पास ही जाना पड़ता है ,  आर्यो के पास न तो अपनी रक्षा करने का कोई दिव्यस्त्र   नहीं होते , अन्य लोगो से दिव्यअस्त्र  पाना , भले ही वह देव जाति  ही क्यू न हो ,अत्यंत  कठिन है पुत्र ,उसके लिए अत्यंत विकट  तपश्या करनी पड़ती है , देवगण  उस दिव्यास्त्र को देते समय यह नहीं सोचते की वह किसे दे रहे है ,  और उसे प्राप्त करने के बाद उस अस्त्र का प्रयोग किस प्रयोजन से होगा , कभी  कभी यह दिव्यास्त्र अन्यायी , समाज-विरोधी , मानव विरोधी , राक्षसों के हाथ भी पड़  जाते है , और मानवो का उन राक्षसों से लड़ना असंभव हो जाता है , जब शस्त्रो  के लिए हम दुसरो की आश करते है , तो कृपा की बाट  जोहनी पड़ती है , वत्स तब तक सारे काम सम्भव नहीं हो पाते , हाँ कुछ ऋषियों ने अपने ज्ञान से दिव्यास्त्र प्राप्त किये है , और कुछ दिव्यास्त्र मेरे पास भी है , कहते कहते विश्वामित्र के मुख पर करुण  मुस्कान प्रकट हो गयी ,

" किन्तु पुत्र , मेरे दिव्यास्त्र मेरे लिए ही समश्या की जड़ बन गए है , यह दिव्यास्त्र में किसे दूँ , उतावली में किसी ऐसे व्यक्ति को ना दे दूँ , जो बाद में इसका दुरपयोग करे।

राम और लक्षमण अत्यंत भावुक उत्सुक भाव से विश्वामित्र के वचन सुन रहे थे , एक एक सब्द उन्हें मोती लग रहा है , खासकर हथियार का नाम सुनते ही तो लक्ष्मन के मुख पर अलग ही रौनक विश्वामित्र देखते है , वे अधिक जानना चाहते है, और अधिक

ऋषि उनके मन की अवस्था समझ कर मुस्कुराये , बोले वत्स कुछ पूछना चाहते हो ???

राम के ह्रदय  का भी उल्लास फुट पड़ा

गुरूवर आप अद्भुत है , आपकी बातों में सम्मोहन शक्ति है , आप पवित्र ग्रंथो की वाणी नहीं बोलते , आपकी जिब्हा  से स्वम् के अनुभव और उसका सत्य निकलता है , आप अन्य से बहुत भिन्न है गुरुदेव।

गुरु मुस्कुराये,---- तुम कुछ पूछना चाहते हो राम ??

राम बोले -- एक जिज्ञासा है , यदि युद्ध के लिए शस्त्र  का ज्ञान इतना ही आवश्यक है , और आप तो यह ज्ञान जानते भी है , किन्तु स्वम् आप यह युद्ध क्यू नहीं करते , उसके लिए मुझे ही क्यू चुना आपने ?? आपने स्वम् राक्षसों का संघार क्यू नहीं किया ,

लक्षमण के नेत्र बोलते हुए राम भैया की और ही देख रहे है ,

गुरु के गरिमा के बंधनो को मुक्त कर शिथिल  कर विश्वामित्र उन्मुक्त रूप से हंसे --

राम ----- ऐसे ही प्रश्न की अपेक्षा मुझे तुमसे थी , पुत्र --- यह प्रकृति का बड़ा विचित्र न्याय है , प्रकति किसी एक व्यक्ति को सम्पूर्ण शक्ति नहीं देती , दो पक्ष है पुत्र , एक चिंतन , और एक कर्म  , यह भी एक अद्भुत नियम है , जो चिंतन करता है , न्याय अन्याय की बात सोचता है , उस व्यक्तित्व का चिंतन पक्ष जाग्रत होता है , किन्तु कर्म पक्ष उसका पीछे छूट जाता है , तुम देखोगे पुत्र , चिंतक केवल सोचता है ,  वह जानता है की क्या उचित आई , क्या अनुचित , किन्तु अपने चिंतन को कर्म के रूप में परिणत करना सामान्यतः उसके लिए संभव नहीं हो पाता , उसकी कर्म शक्ति ख़तम हो जाती है , वहां केवल मस्तिक रह जाता है , कर्म व्यक्ति को राक्षस बना देता है , और न्याय और अन्याय का विचार मनुष्य को ऋषि और पुत्र , जिनमे कर्म और विचार दोनों की ही शक्ति हो , वास्तव में ऐसे लोग संसार में बहुत कम है , जन  सामान्य ऐसे ही लोगो को ईश्वर का अवतार मान लेते है , जब न्याययुक्त कर्म करने की शक्ति किसी  में आ जाए , तो वह जनसामान्य का नेतृत्व अपने हाथ में लेकर आगे बढ़ अन्यायों का विरोध करे तो प्रकति की अनके  शक्तिया अपनी पूर्णता में साक्षात हो उठती है , वही अवतार कहलाता है।

मुझमे कर्म  जब था , तो चिंतन नहीं था , अब जब चिंतन है ज्ञान है , तो गुरु कहलाता हूँ ,  कर्म करने की शक्ति अब मुझमे नहीं है , सामान्यतः सोचने वाले व्यक्तियों का कर्मशुल  और शरीर शून्य हो जाता है , यह केवल एक सूक्षम विचार है , उसका स्थूल कर्मशील शरीर निष्क्रिय हो जाता है ,

इसलिए मुझे तुम्हारी आवश्कयता पड़ी है राम

मुझे गुरु मानकर मेरे आदेश के अनुसार कर्म करो राम , इससे में  और तुम एक ही कहे जायँगे , तुम न्याय की बात मुझ पर छोड़कर स्वतंत्र होकर कर्म करोगे ,

तो जैसे मेने कहा    तुम मेरे ही अवतार कहलाओगे

राम कुछ ही दुरी पर मेरा आश्रम है , और तुम्हारे युद्ध का समय भी

क्रमश

No comments: